स्वच्छ पर्यावरण की चलती-फिरती कार्यशाला
|
कृष्णानंद राय
कवि-हृदय से निकले उद्गार बन रहे जागरूकता का माध्यम
द्र लखनऊ से शशि सिंह
नाम है कृष्णानंद राय। गाजीपुर जिले के रहने वाले हैं। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में नौकरी करते हैं। उसका लेखा-जोखा संभालने का जिम्मा (लेखाकार) इन्हीं पर है। लेकिन कृष्णानंद राय का केवल यही परिचय नहीं है। राय लखनऊ और आसपास के जिलों में पर्यावरण बचाने और उसके प्रति जागरूकता पैदा करने की चलती-फिरती कार्यशाला हैं। सरकारी नौकरी है, इतना पैसा पाते हैं कि मोटरसाइकिल से चल सकते हैं, लेकिन रोज 25-30 किलोमीटर साइकिल से चलते हैं। घर से कार्यालय जाना तथा शहर में दैनिक कामकाज साइकिल से ही निपटाते हैं। कहते हैं, साइकिल से चलने के पीछे का मंतव्य लोगों को बड़े वाहनों के प्रयोग से परहेज की सीख देना है ताकि सड़कों पर वाहनों की भीड़ कम हो, वायु प्रदूषण कम हो, ध्वनि प्रदूषण कम हो, सड़क हादसों में कमी आ सके। साइकिल से चलने के वे इतने फायदे गिनाते हैं। हाथ में नियमित रूप से एक झोला रखते हैं। पॉलीथिन के प्रयोग से बचने की सीख देते हैं। उनके घर में पॉलीथिन का प्रयोग बिल्कुल बंद है। वे कहते हैं वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण को रोका नहीं गया तो सृष्टि का विनाश तय है। मानवता को बचाना मुश्किल हो जाएगा। पर्यावरण बचाना हर देशवासी का सामाजिक दायित्व है।
कृष्णानंद राय भोजपुरी के कवि भी हैं। खास बात यह है कि इनकी कविताएं पूरी तरह सामाजिक कर्तव्यों की सीख से ओत-प्रोत हैं। इनका सारा संवाद करीब-करीब कविताओं के माध्यम से होता है। पौधारोपण और उनकी रक्षा को समर्पित कृष्णानंद राय लखनऊ में इस क्षेत्र में काम कर रही करीब-करीब हर संस्था से औपचारिक-अनौपचारिक रूप से जुड़े हैं। उनके अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। अपनी सरकारी ड्यूटी निभाने के बाद कम से कम छह घंटे पूरे शहर में घूम-घूमकर हर मंच से अपनी कविता के माध्यम से पर्यावरण बचाने की सीख देते हैं। वह आह्वान करते हैं-
दफ्तर-कार से एसी हटाओ
कान खोलकर सुन लो भाय
ओजोन परत में छेद न होवै
पर्यावरण धरम बन जाय।
सब मिलकर पानी बचाओ,
पीढ़ी खातिर पानी बचि जाय,
भूजल भागि रहा है नीचे
रोइ-रोइ मनवा पछताय।
इस नेक काम की प्रेरणा कहां से मिली, यह पूछने पर कहते हैं, “गाजीपुर का रहने वाला हूं। 40 साल पहले की बात है, पिता जी के साथ गंगा स्नान को जाता था। तब गंगा कल-कल बहती दिखती थी, लेकिन उसके सूखने का क्रम भी शुरू हो गया था। थोड़ा बड़ा हुआ तो देखा उसमें पानी की कमी साफ दिख रही थी। पिता जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि जल के अंधाधुंध दोहन तथा जल संरक्षण के प्रति सामाजिक लापरवाही से देश की सभी नदियों में जल स्तर कम होता जा रहा है। इसी के साथ शहरों की गंदगी तथा किनारे बने कारखानों का गंदा जल बिना शोधन किए नदियों में गिराया जा रहा है। तभी से मन में आया कि मानवता की रक्षा के लिए न केवल जल के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित करने और जल प्रदूषण रोकने के लिए काम करना है वरन् वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई भी रोकना है। पौधारोपण को प्रोत्साहित करना है। करीब 40 साल पहले शुरू किया गया अभियान निरंतर चल रहा है। 50 साल का हो गया हूं लेकिन जब तक हाथ-पैर चलते रहेंगे, यह अभियान जारी रहेगा।”थ्
चंद्रभूषण
जरूरत है पौधों के लिए जिम्मेदार “माता-पिता” की
नाम है चंद्रभूषण तिवारी। देवरिया (उ.प्र.) के रहने वाले हैं। अब लखनऊ में स्थाई निवास बना रखा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए इस शहर में सरकारी प्रयास कितने प्रभावी हैं, यह तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन पौधारोपण करने या कराने का इनका प्रयास 70 प्रतिशत तक सफल है। वह बताते हैं, “हमारी चिंता केवल पौधे लगाना ही नहीं है, वे कैसे सुरक्षित रहें, इसकी ज्यादा चिंता रहती है। हम पर्यावरण से प्यार करने वाले उन लोगों को पौधे देते हैं जो इस बात की गारंटी दें कि उसे अपने बच्चे की तरह पालेंगे-पोसेंगे। हम पौधों के लिए प्रकारांतर से जिम्मेदार माता-पिता की तलाश में रहते हैं।
चंद्रभूषण तिवारी की अनोखी कार्यशैली है। गरीब बच्चों के बीच मलिन बस्तियों में खुला विद्यालय चलाते हैं। पढ़ाने के साथ उन बच्चों को इस बात की सीख देते हैं कि वे आसपास के पौधों में रोज पानी अवश्य डालें। वे जो बोतलभर पानी पीने के लिए लाते हैं उसमें पानी बचे तो उसे फेंकने की बजाय पौधों में डाल दें। उनका कहना है कि पेड़ों के पर्यावरणीय महत्व को देखते हुए वह इस बात से सहमत हैं कि उनकी रक्षा बच्चों का भी दायित्व है। उनका प्रयास ज्यादा कारगर होगा। पौधों को भी तो गरीब बच्चों की तरह पोषण की जरूरत है। “जिसने सूरज चांद बनाया, जिसने तारों को चमकाया…” बच्चों को कविता की पंक्तियां याद कराते हुए बताते हैं कि उसी ने प्रकृति की भी रचना की है। पेड़-पौधे प्रकृति की सबसे अमूल्य रचना हैं, इन्हें बचाकर ही प्रकृति की रक्षा की जा सकती है।
चंद्रभूषण तिवारी जिन तीन स्कूलों को चलाते हैं, उनमें गरीब बच्चों की बड़ी संख्या है। इन्हें मुफ्त शिक्षा देना उनका ध्येय है। ये बच्चे पर्यावरण बचाने की दृष्टि से उनके लिए वरदान साबित हो रहे हैं। वे पढ़ाई के साथ ही आसपास के पेड़-पौधों की रक्षा और पोषण का दायित्व भी संभाल रहे हैं। चंद्रभूषण किसी एनजीओ के माध्यम से काम नहीं करते। उनके इसी प्रकृति प्रेम को देखते हुए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी ने उन्हें सम्मानित किया। भारत विकास परिषद और श्रीश्री रविशंकर की “आर्ट ऑफ लिविंग” की ओर से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।थ्
दिनेश चंद्र श्रीवास्तव
औषधीय पौधों को बनाया पर्यावरण का संबल
जब आम लोगों में औषधीय पौधों के प्रति चिंता कम होती देखी, तो श्री दिनेश चंद्र श्रीवास्तव ने अपनी पेंशन और भविष्य निधि का कुछ हिस्सा निकाला और लगा दिया औषधीय पौधों के रोपण और पोषण पर। पहले चले थे अकेले, अब बढ़कर एक बड़ा कारवां बन गया है। सहयोग करने वाले लोगों का भरपूर संबल मिला है इन्हें। लखनऊ (उ.प्र.) के विकासनगर इलाके में रहते हैं, लेकिन औषधीय पौधों के रोपण और पोषण के लिए पूरे लखनऊ में काम करते हैं।
बातचीत में उन्होंने बताया कि प्राय: सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर पर्यावरण के संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ती जा रही है, लेकिन जिस तरह औषधीय पौधों को नष्ट किया जा रहा है, कारपोरेट जगत द्वारा उन्हें बड़े स्तर पर अंधाधुंध तरीके से प्रयोग में लाया जा रहा है, उससे वह दिन दूर नहीं जब वे खत्म हो जाएंगे। ऐसे हालात में उनका रोपण और पोषण प्रकृति की रक्षा के लिए आवश्यक हो गया है। पर्यावरण की रक्षा में हो सकता है कि हमारा प्रयास बहुत छोटा हो, लेकिन यह प्रयास आगे समाज की बड़ी पहल बने, ऐसी कोशिश है। मैं तो अपनी पेंशन और भविष्यनिधि का एक हिस्सा इस काम में लगा रहा हूं। पहले थोड़ी कठिनाई थी लेकिन इस अभियान का महत्व लोगों को समझ में आ गया है। लोग जुड़ रहे हैं। अब पूरे लखनऊ में यह अभियान चल निकला है।
दिनेश चंद्र श्रीवास्तव और उनके मित्रों की मदद से औषधीय पौधों की छोटी-छोटी कई बगिया तैयार हो चुकी हैं। पूछने पर बताते हैं कि लोगों को वह निशुल्क पौधा इस शर्त के साथ देते हैं कि भविष्य में उन्हें न केवल रोपें, वरन् उनकी रक्षा और पोषण का दायित्व भी संभालें। इनकी बगिया में अलोवेरा, गिलोय, तुलसी, बरगद, जामुन, तेजपत्ता, अश्वगंधा, शंखपुष्पी, बेल आदि कई औषधीय पौधे हैं। अब इन्होंने इस काम के लिए एक संस्था का भी गठन कर लिया है, नाम है “ओम ब्रह्म शांति औषधीय सद्भावना उद्यान”। इस संस्था से जुड़ने वालों का सिलसिला तेज गति से जारी है। कहना न होगा कि भविष्य में यह अभियान विराट रूप लेगा ही।थ्
टिप्पणियाँ