पर्यावरण संरक्षण के अनूठे प्रयोग
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वेणुगोपालन
कर्नाटक का पश्चिमी घाट क्षेत्र राज्य के लिए एक जीवन रेखा का काम करता है। यहां पौधों की विभिन्न किस्में, वन्य जीव और जैव विविधताएं हैं। यह विविध औषधियों के पौधे, वृक्ष तथा वनवासियों के जीविकोपार्जन के विभिन्न साधन जैसे लकड़ी, फल-फूल आदि उपलब्ध कराता है। क्रमश: लोगों द्वारा उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के कारण पारिस्थितिक असमानता उत्पन्न हो गई थी। इसी पारिस्थितिक असमानता पर विराम लगाने और इसके संरक्षण और उचित प्रबंधन तथा पारिस्थितिक सुरक्षा के लिए कर्नाटक सरकार ने 2008 में पश्चिमी घाट कार्य बल का गठन किया। इस कार्यबल के अध्यक्ष बनाए गए पश्चिमी घाट के संरक्षण के लिए दो दशकों से संघर्ष करते आ रहे अनन्त हेगड़े असीसर। पश्चिमी घाट कार्यबल की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए असीसर ने बताया कि सरकार कोभूमि उपयोग नीति, प्राकृतिक भूमि उपयोग नीति, प्राकृतिक संसाधन संरक्षण और दृढ़ विकास नीतियों आदि के लिए सलाह दी गई है। उन्होंने कहा कि कार्यबल ने इस क्षेत्र की महत्ता को संरक्षित और सुरक्षित करने के लिए सरकार से 16 कार्यक्रमों को लागू करने की सिफारिश की है। करावली हसिरू कवच (क्षेत्रीय हरित कवच) के नाम से एक अभिनव परियोजना तटीय जिलों में शुरू की गई है जो तटीय पारिस्थितिकी की रक्षा और समुद्र तट के कटाव को रोकने के लिए है। इसमें सदाबहार हरियाली, हरित दीवार एवं भागीदारी वन्यकरण जैसे कार्यक्रम शामिल हैं। नाड़ी संरक्षण अभियान के तहत सार्वजनिक जागरूकता और कार्रवाई अभियान के क्रम में नदी घाटी वातावरण को बचाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। इस कार्यक्रम में स्थानीय जनप्रतिनिधियों, पंचायत राज संस्थाओं, किसान, वनवासियों, छात्रों और अन्यों को अपने क्षेत्र में घाटी क्षेत्र की पारिस्थितिक स्थिति के आकलन और संरक्षण के लिए शामिल किया गया है। क्षेत्र की पारिस्थितिक असमानता को समाप्त करने के लिए साल 2009 से वृक्षारोपण कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसमें किसानों और शैक्षणिक तथा स्वयंसेवी संस्थाओं की सहभागिता से हर साल एक करोड़ पौधों की रोपाई की जाती है।
ग्राम वन समितियां
वन संरक्षण के सम्बंध मेंभागीदारी पर जोर देकर भागीदारी वन संरक्षण के नाम से पूरे राज्य में ग्रामीण स्तर तक ग्राम वन समितियों की स्थापना की गई है। इन समितियों से प्राप्त जानकारियों के आधार पर कार्यक्रम को संचालित किया जा रहा है। इसी प्रकार औषधीय पौधों के संरक्षण सम्बंधी कार्यक्रम के तहत मौजूदा 13 औषधीय पादप संरक्षण क्षेत्रों को मजबूत कर रहे हैं, नए पादपों की पहचान की गई है, जिन्हें संरक्षित किया जा रहा है। इसके अलावा संरक्षित औषधीय पौधों की सूची, तस्करी और जैव विविधता (संरक्षण) अधिनियम-2002 के प्रावधानों के प्रवर्तन की रोकथाम जैसे पहलुओं पर विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है।
असीसर ने बताया कि कार्यबल ने पहाड़ी क्षेत्रों का वन्यकरण करने के लिए बड़े पैमाने पर स्वदेशी संयंत्रों का उपयोग कर भूमि का समतलीकरण किया है। जंगलों में यह योजना किसानों और सहकारी समितियों की भागीदारी के साथ शुरू की गई है। इसी तरह कृषि वानिकी और “वाटरशेड” को बढ़ावा दिया जा रहा है।
कार्यबल की सिफारिशों पर विचार करते हुए इस क्षेत्र में सरकार ने किसी को खनन की अनुमति नहीं दी है, परन्तु अभी तक प्रतिबंध नहीं लगाया है। कार्यबल ने पश्चिमी घाट क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को प्रतिबंधित किए जाने की सलाह दी है। असीसर कहते हैं कि वनवासियों का जीवन वन पर ही निर्भर है, उनके जीविकोपार्जन पर किसी तरह का कुप्रभाव न पड़े इसके लिए कार्यबल ने ऐसे कार्यक्रम बनाए हैं जिन्हें उनकी सक्रिय भागीदारी के साथ लागू किया जा रहा है। प्राकृतिक एवं वन्यजीवों के कारण फसलों के नुकसान की भरपाई की योजना बनाई गई है, जिसके तहत उन्हें नुकसान का त्वरित और पर्याप्त मुआवजा मिल सके।
अनन्त ने बताया कि राज्य के नदी उद्गम स्थलों को पर्यावरण प्रदूषण और वहां के पारिस्थितिकी वातावरण को संरक्षित एवं सुरक्षित रखने के लिए कार्यबल ने एक महत्वपूर्ण सिफारिश सरकार को भेजी है। वैसे इस सम्बंध में जन जागृति अभियान भी छेड़ा गया है। हमारी नदियों के उद्गम स्थल सुरक्षित रहे तो हमें जल संसाधन के लिए तकलीफ नहीं उठानी पड़ेगी। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने सिंचाई बजट की न्यूनतम 5 प्रतिशत राशि को नदी उद्गम स्थलों के संरक्षण में आबंटित करने की सिफारिश की है।
राज्य में अनेक व्यक्ति और संस्थाएं पर्यावरण संरक्षण के सन्दर्भ में कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए काम कर रही हैं, जिनमें से कुछ का उल्लेख यहां किया जा रहा है। वैसे तो कर्नाटक सरकार ने “बायोडायवर्सिटी बोर्ड” की स्थापना की है, जो राज्य के ग्रामीण इलाकों सहित शहरों में जैव विविधता को लेकर कई योजनाओं के क्रियान्वयन में निबद्ध है।
“इको वाच” संस्था की स्थापना प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और पर्यावरणविद् सुरेश हेब्लीकर ने 1998 में की थी। इस संस्था का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के लिए विद्यार्थियों एवं जनता को जागृत करना है। हेब्लीकर का कहना है कि आज राज्य में जिस तरह से पारिस्थितिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है वह राज्य की जनता के जीवन के लिए हानिकारक है। शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में पारिस्थितिक वातावरण को सुरक्षित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण की जरूरत है।
सुरेश हेब्लीकर कहते हैं कि “इको वाच” विशेषकर शहरी वन संरक्षण के लिए कई कार्यक्रम चला रही है। पिछले डेढ़ दशक के दौरान ढाई लाख से अधिक पौधों का रोपण बंगलूरु सहित राज्य के अन्य क्षेत्रों में किया गया है। संस्था को इस काम में 75 प्रतिशत तक सफलता मिली है।
“इको वाच” उष्णकटिबंधीय जीन बैंक परियोजना के माध्यम से विलुप्त होती जा रहीं पौधों की देशी किस्मों के संरक्षण के लिए काम कर रही है। बेलगाम स्थित विश्वेश्वरैया अभियांत्रिकी विश्वविद्यालय परिसर की लगभग 30 एकड़ भूमि में 300 सेभी अधिक प्रजातियों के पौधे मेडिसिनल प्लांट गार्डन, तितली पार्क, पवित्र गार्डन जैसे विभिन्न ब्लाकों में जैव विविधता पार्क के तहत वैज्ञानिक तरीके से लगाए गए हैं। “इको वॉच” जनता का आह्वान करती है कि वे अपने निजी वाहनों के बजाए सरकारी बसों का उपयोग करें, जिससे देश में पेट्रोल एवं डीजल की खपत कम हो सके। इसी प्रकार उसने जल संरक्षण के लिए लोगों को जागृत किया है। विद्युत की खपत को कम करने के सन्दर्भ में “इको वाच” ने कई प्रयास किए हैं।
राज्य के मलनाड क्षेत्र के कारवार जिले की सिरसी तहसील में स्थित “वनश्री संस्था” एक छोटे से परंपरागत बीज का संरक्षण कर वन उद्यान जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने को समर्पित है। वनश्री का उद्देश्य खेतों और बागानों में खेती और जंगली जैव विविधता को बढ़ावा देना और पारंपरिक किस्मों के बीज के संरक्षण को प्रोेत्साहित करने के साथ ही व्यवसाय को बढ़ाने के लिए सेवाएं प्रदान करना है।
सिरसी में वनश्री का कार्यालय होने के बावजूद इस संस्था के सदस्य पश्चिमी घाट के विभिन्न क्षेत्रों तथा तटीय क्षेत्र के संकीर्ण पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। उनका कार्यक्षेत्र भी यही है। वनश्री संस्था विभिन्न आकार के वन उद्यान तथा गृह उद्यान को बढ़ावा देती है। यह लोगों को घर के आंगन में सब्जियां उगाने को प्रोत्साहित करती है और जैविक पद्धतियों से यह करने के लिए आवश्यक जानकारीभी उपलब्ध कराती है।
मलनाड वन उद्यान और “सामूहिक बीज रखवाले” के नाम से एक संस्था की स्थापना 2001 में बीज विनिमय समूहों के रूप में हुई थी, जिसने 2003 से जैव विविधता पर ध्यान केंद्रित किया। इसने सामूहिक संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध उद्यमों के माध्यम से आजीविका को बढ़ावा देना शुरू किया।द
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