व्यंग्य वाण
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व्यंग्य वाण
विजय कुमार
शर्मा जी होली पर मिले, तो उनके चेहरे का उल्लास बता रहा था कि उन्होंने कुछ विशेष उपलब्धि पाई है।
– क्या बात है शर्मा जी, आज तो… ?
– बस पूछो मत वर्मा, एक राष्ट्रीय हिन्दी कवि सम्मेलन में भाग लेने का निमन्त्रण मिला है।
– पर आपका तो कविता से दूर का भी कोई संबंध नहीं है ?
– है क्यों नहीं ? मुझे बचपन से कविता सुनने और सुनाने का शौक है। विद्यालय की बाल सभा में मैंने कई बार पुरस्कार भी पाया है।
– पर शर्मा जी, सिर पर बड़े बाल रखने से बालकवि और मेहंदी पोत लेने से कोई मेहंदी हसन नहीं हो जाता।
– दूसरों की कविताएं याद करने के साथ ही मैंने कुछ कविताएं खुद भी लिखी हैं। तुम्हें सुनाऊं ?
– जी नहीं, क्षमा करें। मैं इन दिनों बेकार नहीं हूं।
– यानि कविता बेकार लोग ही लिखते और सुनते हैं ?
– ऐसा तो नहीं है, पर इसके चक्कर में कई अच्छे-भले लोगों को बेकार होते मैंने जरूर देखा है। पर यह तो बताओ कि कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली, कहां आप और कहां राष्ट्रीय कवि सम्मेलन…? बात कुछ हजम नहीं हुई।
– होली पर मिलावटी तेल के पापड़ और नकली खोये की गुझिया अधिक खा लेने से पेट गड़बड़ हो ही जाता है।
– फिर भी कुछ तो बताओ।
– अब तुमसे क्या छिपाना। शर्मानी “मैडम” के चाचा जी एक राष्ट्रीय हिन्दी कवि सम्मेलन करा रहे हैं। मुझे भी वहां बुलाया गया है।
– पर उसमें तो चोटी के साहित्यकार कवि आ रहे होंगे ?
– तुम क्या जानो वर्मा, आजकल कवि सम्मेलन साहित्यिक नहीं, व्यावसायिक कर्म हो गया है।
– मतलब…?
– मतलब यह कि चाचा जी को एक लाख रु0 में कवि सम्मेलन कराने की जिम्मेदारी दी गयी है।
– तो फिर जिम्मेदारी क्यों, ठेका कहो ?
– कविता के क्षेत्र में ठेके को जिम्मेदारी ही कहा जाता है।
– चलो मान लेता हूं, तो चाचा जी ने क्या किया ?
– उन्होंने अपने सब परिचित कवि मित्रों को और कुछ मेरे जैसे नाते-रिश्तेदारों को भी बुलाया है। वहां सस्वर कविता पढ़ने वाले “ससुर” और बिना स्वर-लय वाले “असुर” दोनों होंगे।
– तो इससे यह कवि सम्मेलन राष्ट्रीय कैसे हो गया ?
– देखो मैंने केरल के बारे में बहुत पढ़ा है। कई बार वहां गया भी हूं। सो मैं केरल का हिन्दी कवि हो गया। शर्मानी “मैडम” बंगला फिल्में देखने की शौकीन हैं, वे बंगाली कवियित्री मानी जायेंगी। चाचा जी के दामाद पंजाब और समधी महाराष्ट्र के हैं। वे वहां का प्रतिनिधित्व करेंगे। और चाचा जी खुद तो हरियाणवी हैं ही।
– लेकिन भारत में तो बहुत से राज्य हैं।
– तो चाचा जी के और भी कई रिश्तेदार व मित्र हैं। सबको मंच पर बैठा देंगे। वैसे भी आजकल हिन्दी कवि सम्मेलन में कविता कम और चुटकुलेबाजी अधिक होती है। फिर ये तो होली का मौसम है।
– तो क्या इतने से कवि सम्मेलन सफल हो जाएगा ?
– यदि सफल हो गया, तो वाह-वाह, और नहीं हुआ, तो दोष श्रोेताओं का, कि उन्हें कविता की समझ ही नहीं है।
– पर इसमें बदनामी तो चाचा जी की होगी।
– होती रहे, पर उन्हें पचास हजार रु. का शुद्ध लाभ भी तो होगा।
– पर मैं तो इसे राष्ट्रीय कवि सम्मेलन नहीं मानता।
– मत मानो। जब एक राज्य या दो-तीन जिलों में अपनी ढपली बजाने वाले लालू यादव, रामविलास पासवान, शरद यादव, मुलायम सिंह, ममता बनर्जी और सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसों के दल राष्ट्रीय हो सकते हैं, तो हमारा कवि सम्मेलन राष्ट्रीय कैसे नहीं होगा ?
– पर शर्मा जी, यह तो हिन्दी पर अत्याचार है।
– वर्मा जी, जब हिन्दी को ओढ़ने-बिछाने और उसके नाम की रोटी खाने वाले ही अंग्रेजी की जय बोल रहे हैं, तो हम पीछे क्यों रहें? अच्छा चलता हूं, नमस्ते। मुझे कुछ तैयारी भी करनी है।
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