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पाक के पल्ले

by
Mar 17, 2012, 12:00 am IST
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दृष्टिपात

दिंनाक: 17 Mar 2012 18:37:25

दृष्टिपात

आलोक गोस्वामी

110 परमाणु हथियार!

एक बहुत बड़े वाले गैर सरकारी संगठन ने अपनी ताजातरीन रपट में चौंकाने वाला खुलासा किया है कि पाकिस्तान के पास 110 तक परमाणु हथियार हैं और उसने पिछले साल अपने परमाणु बम तैयार करने में 2.2 अरब डालर खर्चे हैं। जैसी उम्मीद थी, रपट आने के बाद इस्लामाबाद तुरन्त हरकत में आया और बोला, “नहीं जी, बात कुछ हजम नहीं हुई।” “बम के भरोसे मत रहो” शीर्षक से छपी रपट में उस अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ने दावे से कहा है कि पाकिस्तान के पल्ले में 90 से 110 परमाणु बम छुपे हुए हैं। हाल के सालों में इसके जखीरे में ताबड़तोड़ बढ़ोतरी हुई है। 2008 में तो जखीरे में 60 से 80 परमाणु बम ही थे, अब 110 तक हैं। सूत्रों के हवाले से रपट कहती है, आने वाले 10 सालों में पाकिस्तान तमाम तरह के 350 परमाणु हथियार पाने के मकसद की तरफ तेजी से बढ़ते हुए अपने जखीरे को दुगुना करने की मंशा पाले हुए है। इसने 2010 में इस पर 1.8 अरब डालर खर्चे थे, 2011 में 2.2 अरब डालर खर्चे हैं। इस बढ़े खर्चे पर मुलम्मा चढ़ाया गया है प्लूटोनियम के नए ढांचे के रखरखाव का। रपट सामने आई तो आदतन पाकिस्तानी हुकूमत तिलमिला उठी। विदेश विभाग के प्रवक्ता अब्दुल बासित ने फरमाया कि कुछ ज्यादा ही बढ़-चढ़कर छाप दिया है जी रपट वालों ने। वैसे ये न कुछ अंदरखाने के लोगों का किया कराया है जी। कान न दिया करो जी फिजूल बातों पर। बासित ने आगे कहा, “पाकिस्तान का रणनीतिक कार्यक्रम तो मंझोले दर्जे का और भरोसेमंद न्यूतम निरोधक है ताकि मुल्क की हिफाजत की जा सके।” एक और मजेदार बात कर दी बासित ने, कहा कि हमारा तो पूरा ध्यान आर्थिक तरक्की और लोगों की भलाई के काम करने पर है जी। हम तो चाहते ही नहीं हैं न जी कि दक्षिण एशिया या दुनिया में कहीं भी यूं एटमी असलहों की दौड़ हो। थ्

श्रीलंकाई मंत्री ने कहा

“अमरीकी चीजें मत बरतो”

अभी 13 मार्च को श्रीलंका सरकार में एक मंत्री ने बुलंद आवाज में अपने देश वालों से अपील की कि अमरीकी चीजों का बहिष्कार करो। कारण? कारण यह कि “अमरीका संयुक्त राष्ट्र के उस मानवाधिकार प्रस्ताव का समर्थन करता है जो श्रीलंका में पृथकतावाद को बढ़ावा देगा।” प्रस्ताव है कि श्रीलंका अपने देश में हुए गृहयुद्ध के दौरान कथित दुराचार की जांच करे। प्रस्ताव पर अगले हफ्ते जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् में वोट पड़ेंगे।

2009 में श्रीलंका सरकार ने वहां 25 सालों से चले आ रहे गृहयुद्ध की समाप्ति पर तमिल चीतों (लिट्टे) पर निर्णायक प्रहार किया था। अपने देश वालों से अमरीकी चीजें इस्तेमाल न करने को कहने वाले श्रीलंका के आवास मंत्री विमल वीरवंशा ने उक्त प्रस्ताव को विद्रोही गुट की वापसी का आह्वान करने वाला बताया है। इसके पीछे वीरवंशा ने अमरीका में बसे लिट्टे नेता विश्वनाथन रुद्रकुमारन को जिम्मेदार ठहराया है, जो अमरीका में रहते हुए गृहयुद्ध के दौरान कथित ज्यादतियों की जांच का झंडा उठाए है। इधर श्रीलंका सरकार ने कई स्तर पर इस प्रस्ताव का विरोध किया है। प्रस्ताव “श्रीलंका सरकार और लिट्टे विद्रोही, दोनों तरफ से किए गए दुराचारों की जांच” की बात करता है। संयुक्त राष्ट्र ने एक दल बनाया था जिसने जांच करके कहा कि उन दिनों श्रीलंका में सरकारी फौज की गोलाबारी में दसियों हजार के मारे जाने का अंदाजा है।

वीरवंशा ने प्रस्ताव की तीखे शब्दों में भत्र्सना करते हुए देश के लोगों से कोका-कोला, पेप्सी, के.एफ.सी., मैकडोनाल्ड्स और गूगल की ईमेल सेवा तक का बहिष्कार करने की अपील की, ये सब अमरीकी ब्रांड हैं। उधर अमरीका इस प्रस्ताव के लिए समर्थन जुटाने का अभियान चलाए हुए है। थ्

आखिर वेन बोल पड़े

“तिब्बती प्रदर्शनों में धर्मशाला का हाथ”

चीन के प्रधानमंत्री वेन जिया बाओ ने 14 मार्च को कहा कि दलाई लामा और तिब्बत की निर्वासित सरकार तिब्बत और (चीन में बसे) तिब्बतियों को चीन से दूर कर रही है। चीन में हाल के तिब्बती प्रदर्शनों, आत्मदाह की घटनाओं, जुलूसों, बंदों और धरनों के बाद पहली बार वेन ने मुंह खोला और जो बोला वह बिना मोला-तोला। लेकिन इसके साथ ही मरहमपट्टी के अंदाज में वेन ने आगे कहा- “जवान तिब्बती तो मासूम हैं। हमें उनके बर्ताव को देख बेहद पीड़ा होती है।” ये वेन के ही अधिकारी थे जिन्होंने बौद्ध लामाओं को “अपराधी” तक कह डाला था। वेन ने धर्मशाला में तिब्बत की निर्वासित सरकार पर सीधी उंगली उठाई, कहा- “हमारा मानना है कि उसका मकसद तिब्बत और तिब्बती बाशिंदों को चीन से अलग करना है।” वेन ने कहा कि तिब्बत के पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने पर ध्यान देने की जरूरत है। थ्

मलेशिया में रह रहे एक जाने-माने भारतवंशी विपक्षी नेता करपाल सिंह पर सुल्तान की भत्र्सना करने पर राजद्रोह का आरोप मढ़ा गया है। मलेशिया की एक बड़ी अदालत ने उच्च न्यायालय के उन्हें बरी करने के फैसले को किनारे करते हुए उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने को कहा है। पुत्रजया में तीन सदस्यीय “कोर्ट ऑफ अपील” ने एक मत से कहा कि 2009 में पेराक के सुल्तान के खिलाफ राजद्रोही भाषा बोलने पर 71 साल के करपाल सिंह के खिलाफ प्रथम दृष्ट्या मामला बनता है। जून 2010 में क्वालालम्पुर उच्च न्यायालय ने राजद्रोह के आरोप से सिंह को बरी कर दिया था। राजद्रोह के जुर्म में मलेशिया में तीन साल तक की कैद का प्रावधान है। सिंह मलेशिया की डेमोक्रेटिक एक्शन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।थ्

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