अकाली दल-भाजपा गठबंधन नेरचा इतिहास
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पंजाब विधानसभा चुनाव
अकाली दल-भाजपा गठबंधन ने
राकेश सैन
2007 के बाद अब 2012 में लगातार दो बार पंजाब विधानसभा चुनाव जीतकर शिरोमणि अकाली दल- भाजपा गठबंधन ने राज्य में नया इतिहास रच डाला है। हालांकि मतगणना शुरू होने से पहले तक सत्तारूढ़ अकाली दल-भाजपा गठबंधन को कम आंका जा रहा था, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतता गया, पलड़ा गठबंधन के पक्ष में झुकता चला गया। गिनती खत्म हुई तो अकालियों के नेतृत्व वाला गठबंधन 68 सीटों के साथ मुस्कुराता नजर आया, जबकि कांग्रेस को महज 46 सीटों पर सब्र कर लेना पड़ा। हालांकि इस बार उसके हाथ पिछली बार की तुलना में दो सीटें ज्यादा आई हैं। कुल 117 सदस्यीय विधानसभा में शेष तीन सीटों पर निर्दलियों ने कब्जा जमाया है।
भाजपा हालांकि पिछले प्रदर्शन (19 सीटों) से 7 सीटें कम प्राप्त कर सकी, परंतु गठबंधन की नैया पार लगाने में पिछली बार की तरह इस बार भी भाजपा ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। पिछली बार यहां अकाली दल विधायकों की संख्या 48 रही थी, वह इस बार बढ़कर 56 पर पहुंच गई यानी सीधे आठ सीटों का फायदा।
अकाली दल से दामन छिटका लेने के बाद पंजाब पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) का गठन करने वाले मनप्रीत सिंह बादल के दुर्दिन और दुर्गति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे राज्य में खाता खोलना तो दूर स्वयं अपनी गिदड़बाहा की परंपरागत सीट भी नहीं बचा पाए। ऊपर से छीछालेदर यह कि उनके पिता एवं मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के ही छोटे भाई श्री गुरदास सिंह बादल की लंबी में जमानत तक जब्त हो गई।
लंबी से मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 24,682 वोटों के अंतर से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के महेश इंदर सिंह बादल को हरा दिया। जबकि उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने जलालाबाद सीट पर 50,269 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की। पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह खुद तो पटियाला से जीत गए, पर उनके लाड़ले रण इंदर सिंह को समाना में हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस पार्टी के महासचिव राहुल गांधी की पसंद के 6 प्रत्याशियों में से 4 शैलेंद्र सिंह (मजीठा), लखबीर सिंह (बलाचौर), सतकार कौर (फिरोजपुर देहात) व लखविन्द्र सिंह लक्खा (पायल) बुरी तरह पराजित हुए।
पंजाब पीपुल्स पार्टी खुद कांग्रेस के लिए भस्मासुर साबित हुई। यह किसी से छिपा नहीं है कि अंदरखाने कांग्रेस की शह पर ही मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत बादल ने पीपीपी का गठन किया था। कांग्रेस को आशा थी कि नई पार्टी राज्य में अकाली वोटों में सेंधमारी करेगी, परंतु हुआ इसके उलट। दूसरी ओर इस बार सत्तारूढ़ दल ने पंजाब के मालवा इलाके में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हुए 69 में से 34 सीटों पर कब्जा जमाया। पिछली बार डेरा सच्चा सौदा के प्रभाव के चलते यहां कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था, परंतु अबकी बार वह पिछड़ गई। इसी तरह माझा की 25 में से 16 और दोआबा इलाके में 23 में से 16 सीटों पर गठजोड़ ने कब्जा जमाया है।द
ऐसी उम्मीद न थी-अमरिन्दर
कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार कैप्टर अमरिंदर सिंह ने कहा कि परिणाम उनकी उम्मीदों के उलट आए हैं। उन्होंने कहा, इस हार की जिम्मेदारी मैं लेता हूं। अगर आलाकमान चाहे तो पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा भी देने को तैयार हूं।
सटीक रहा पाञ्चजन्य का आकलन
पाञ्चजन्य ने पंजाब में अकाली दल (बादल) व भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार के फिर से जीतकर आने की जो भविष्यवाणी की थी वह बिल्कुल सटीक बैठी। पाञ्चजन्य ने पहले ही बता दिया था कि राज्य में सत्ता विरोधी लहर न के बराबर है और कांग्रेस को इसका लाभ नहीं मिलने वाला। मनप्रीत बादल के नेतृत्व वाले दल का अधिक नुकसान कांग्रेस को होने का आकलन किया गया था और यह भी बताया गया था कि मालवा इलाके में डेरा सच्चा सौदा के वोट अबकी बार कांग्रेस के पक्ष में नहीं जाएंगे।
जनता की मोहर-अश्विनी शर्मा
भारतीय जनता पार्टी के प्रांत अध्यक्ष व पठानकोट से विधायक चुने गए अश्विनी कुमार शर्मा के अनुसार, प्रदेश की जनता ने विकास पर स्वीकृति की मोहर लगा दी है। जनता ने नकारात्मक राजनीति को हराया है। ये परिणाम कांग्रेस पार्टी के लिए सबक होने चाहिए कि अब देश की जनता को बेसिरपैर की बातों में नहीं उलझाया जा सकता।
विकास की जीत-बादल
मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल ने इसे नकारात्मक राजनीति पर विकास की जीत बताया है। श्री बादल ने कहा कि हम विकास और अमन के मुद्दे को लेकर जनता के बीच गए और लोगों ने हमें स्वीकार किया। लोगों ने विश्वास व्यक्त किया कि अकाली-भाजपा गठबंधन के नेता जो कहते हैं उसे पूरा करते हैं, इसीलिए हम जीत पाए। अब विकास ही नई सरकार का एजेंडा रहेगा।
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