बाल मन
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बाल मन
सूरज
सूरज दादा रोज सवेरे,
बड़ी शान से आते हैं।
दुनिया में फैला अंधियारा,
वे ही दूर भगाते हैं।
तेज रोशनी इतनी करते,
बल्ब नहीं कर पाते हैं।
बहुत सो चुके, चलो काम पर,
सुबह-सुबह समझाते हैं।
शाम ढली है, अब सो जाओ,
जाते वक्त बताते हैं।
-नरेन्द्र गोयल
वीर बालक
शेर मारने वाला पृथ्वी सिंह
दिल्ली के मुगल बादशाह औरंगजेब के यहां उसके शिकारी जंगल से पकड़कर एक बड़ा भारी शेर लाये थे। शेर लोहे के पिंजड़े में बन्द था और बार-बार दहाड़ रहा था। बादशाह कहता था, “इससे बड़ा और भयानक शेर दूसरा नहीं मिल सकता।”
बादशाह के दरबारियों ने उसकी हां-में-हां मिलायी, लेकिन बूंदी नरेश महाराज यशवन्त सिंह जी ने कहा, “इससे भी अधिक शक्तिशाली शेर मेरे पास है।” बादशाह को बहुत क्रोध आया। उसने कहा, “तुम अपने शेर को इससे लड़ने को छोड़ो। यदि तुम्हारा शेर हार गया तो तुम्हारा सिर काट लिया जायेगा।” यशवन्त सिंह ने बादशाह की यह बात स्वीकार कर ली।
दूसरे दिन दिल्ली के किले के सामने के मैदान में लोहे की मोटी छड़ों का बड़ा भारी पिंजड़ा दो शेरों की लड़ाई के लिए रखा गया। शेरों का युद्ध देखने बहुत बड़ी भीड़ वहां इकट्ठी हो गयी। औरंगजेब भी ठीक समय पर आकर अपने सिंहासन पर बैठ गया। राजा यशवन्त सिंह अपने दस वर्ष के पुत्र पृथ्वी सिंह के साथ आये। उन्हें देखकर औरंगजेब ने पूछा, “आपका शेर कहां है?”
यशवन्त सिंह बोले- “मैं अपना शेर अपने साथ लाया हूं। आप लड़ाई आरम्भ होने की आज्ञा दीजिये।”
बादशाह की आज्ञा से वह जंगली शेर अपने पिंजड़े से लड़ाई के लिये बनाये गये बड़े पिंजड़े में छोड़ दिया गया। यशवन्त सिंह ने अपने पुत्र को उस पिंजड़े में घुस जाने को कहा। बादशाह और वहां के सब लोग हक्के-बक्के से रह गये, किन्तु दस वर्ष का बालक पृथ्वी सिंह पिता को प्रणाम करके हंसते-हंसते शेर के पिंजड़े में घुस गया।
शेर ने पृथ्वी सिंह की ओर देखा। उस तेजस्वी बालक के नेत्रों को देखते ही एक बार वह पूंछ दबाकर पीछे हट गया, लेकिन शिकारियों ने बाहर से भाले की नोक से ठेलकर उसे उकसाया। वह शेर क्रोध में दहाड़ मारकर पृथ्वी सिंह पर कूद पड़ा। बालक पृथ्वी सिंह झट से एक ओर हट गया और उसने अपनी तलवार खींच ली।
पुत्र को तलवार निकालते देखकर यशवन्त सिंह ने पुकारा- “बेटा! तू यह क्या करता है? शेर के पास तो तलवार है नहीं, फिर तू उस पर क्या तलवार चलाएगा? यह तो धर्मयुद्ध नहीं है।”
पिता की बात सुनकर पृथ्वी सिंह ने तलवार फेंक दी और वह शेर पर टूट पड़ा। उस छोटे से बालक ने शेर का जबड़ा पकड़कर फाड़ दिया और फिर शेर के पूरे शरीर को चीरकर दो टुकड़े करके फेंक दिया।
वहां की सारी भीड़ पृथ्वी सिंह की जय-जयकार करने लगी। शेर के खून से सना पृथ्वी सिंह जब पिंजड़े से निकला तो यशवन्त सिंह ने दौड़कर उसे छाती से लगा लिया।द
बाल कहानी
गवैया गधा
एक धोबी के पास एक बूढ़ा, मरियल गधा था। उस गधे को रोज सवेरे मैले कपड़ों की गठरी लेकर घाट जाना पड़ता था और शाम को धुले कपड़े लाद कर घर लाना पड़ता था। लेकिन रात होने पर उसे घूमने की खुली छूट मिल जाती थी।
एक बार रात को घूमते समय, उसकी एक गीदड़ से भेंट हुई। दोनों अकेले थे इसलिए तुरन्त दोस्त बन गये। अब दोनों दोस्त भोजन की तलाश में साथ-साथ घूमने लगे।
इसी तरह घूमते, फिरते वे ककड़ियों के एक खेत के पास पहुंचे। खेत में ककड़ियों की भरमार थी। दोनों चुपके से खेत में घुसे और ढेर सारी ककड़ियां खा कर बाहर निकल आये। दूसरी बार फिर उसी ककड़ियों के खेत में गये और फिर जी भर ककड़ियां खाकर चल दिये। अब तो रोज ही ककड़ियों की दावत उड़ाने लगे। इसी तरह मुफ्त का माल खा-खा कर मरियल गधा खूब मोटा ताजा हो गया।
एक रात भरपेट ककड़ियां खाने के बाद गधा मस्त हो गया और मौज में आकर गीदड़ से बोला, “प्यारे भांजे देखो, आसमान की तरफ देखो। चांद, कैसा चमक रहा है, कैसी ठंडी हवा चल रही है, अहा! कैसी सुहानी रात है मेरा तो गाने को मन कर रहा है।”
“अरे मामा,” गीदड़ बोला, “कहीं सचमुच ही गाने न लगना। कहीं खेत के रखवालों ने सुन लिया तो बैठे बिठाये आफत गले पड़ जायेगी। हम यहां चोरी कर रहे हैं और चोर को चुप्पी ही भली होती है।”
“क्या बात करते हो?” गधे ने कहा, “इतना प्यारा मौसम है कि मुझ से रहा नहीं जाता। मैं तो एक बढ़िया गाना गा कर ही रहूंगा।”
“ना मामा ना” गीदड़ ने कहा, “मुंह बन्द ही रखो तो अच्छा है इस के अलावा तुम्हारी आवाज भी तो सुरीली नहीं है।”
गधा बोला, “तुम मुझसे जलते हो” तुमको न सुर का पता है न ताल का, संगीत का आनन्द तुम क्या जानो।”
गीदड़ ने कहा, “यह तो खैर ठीक है मामा, लेकिन संगीत का आनन्द तुमको भले ही आये, खेत के रखवालों को नहीं आयेगा। वे तो तुम्हारा गाना सुनकर फौरन यहां आ धमकेंगे और तुम्हें ऐसा इनाम देंगे ऐसा कि बरसों याद रखोगे। इसीलिए कहता हूं, मेरी बात मान लो और गाने का इरादा छोड़ दो।”
“तुम मूर्ख हो, महामूर्ख हो,” गधे ने कहा, “तुम समझते हो कि मैं अच्छा गाना गा नहीं सकता। लो सुनो, मेरा गला मीठा है या नहीं” ऐसा कह कर गधे ने सिर ऊपर उठाया और रेंकने के लिए तैयार हो गया।
गीदड़ ने उसे रोकते हुए कहा, “ठहरो, मामा ठहरो, पहले मैं बाहर चला जाऊं फिर तुम जी भर कर गा लेना। मैं बाहर ही तुम्हारा इन्तजार करूंगा।” इतना कह कर गीदड़ खेत से बाहर निकल गया।
गीदड़ के जाते ही गधे ने ऊंचे स्वर में “गाना” शुरू कर दिया। उसके जोर-जोर से रेंकने की आवाज दूर-दूर तक सुनाई देने लगी। रखवालों ने जैसे ही गधे के रेंकने की आवाज सुनी वैसे ही अपने-अपने भारी डंडे लेकर खेत की ओर दौड़े। गधा अभी भी बेखबर रेंकता जा रहा था कि उसके ऊपर डण्डे बरसने लगे। रखवालों ने गधे को इतना मारा कि वह मार खाते-खाते जमीन पर लुढ़क गया। इसके बाद उन्होंने गधे के गले में एक भारी ओखल बांध दी और वापस चले गये।
काफी देर तक घायल पड़े रहने के बाद गधे को होश आया तो बड़ी मुश्किल से उठकर ओखल से बंधी टांग को घसीटता हुआ खेत से बाहर निकला।
खेत के बाहर खड़ा गीदड़, गधे का इन्तजार कर रहा था। गधा अपने गले से बंधे भारी ओखल के साथ, किसी तरह घिसटता हुआ, उसके पास पहुंचा।
उसे देखते ही गीदड़ बोला, “वाह मामा जी, रखवालों ने तुम्हारे गाने पर इतना सुन्दर इनाम दिया है। बधाई हो बधाई हो।”
“अब और शर्मिन्दा न करो” गधे ने कहा, “मुझे तुम्हारी सलाह न मानने का बहुत अफसोस है।” द (पंचतंत्र से)
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