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होम Archive

बन्द करो मजहबी आरक्षण

by
Mar 10, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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पाठकीय (19 फरवरी,2012)

दिंनाक: 10 Mar 2012 15:44:10

पाठकीय

अंक-सन्दर्भ

थ्19 फरवरी,2012

आवरण कथा के अन्तर्गत “नहीं चल पा रहा आरक्षण का मजहबी दांव” और चर्चा सत्र में श्री हृदयनारायण दीक्षित का आलेख “चुनावों में उल्टा पड़ा मुस्लिमों को रिझाने का पासा” उस कांग्रेस के लिए एक सबक भी है और चेतावनी भी, जो जिन्ना की मुस्लिम लीग की राह पर चल पड़ी है। चुनावों में अल्पसंख्यकों का समर्थन पाने के उद्देश्य से कांग्रेस बेशर्मी से मुस्लिम कार्ड खेल रही है। इससे मुसलमान भी संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि वे जानते हैं कि संविधान में मजहब आधारित आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है और कांग्रेस का यह महज एक चुनावी हथकंडा है। कांग्रेस द्वारा उछाला गया आरक्षण का मजहबी दांव उसकी हताशा एवं निराशा का परिणाम है।

-आर.सी.गुप्ता

द्वितीय ए-201, नेहरू नगर, गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)

द जिस कांग्रेस पार्टी ने देश में सर्वाधिक शासन किया है, वही मुसलमानों को पिछड़ा हुआ बता रही है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए कुछ किया ही नहीं है। जब चुनाव का समय होता है तो कांग्रेस मुसलमानों को ललचा कर उनका वोट ले लेती है और सरकार बनते ही उन्हें भूल जाती है। मुसलमान कांग्रेस के इस दोहरे चरित्र को पहचानें और देश की मुख्यधारा में शामिल हों।

-कुलदीप मिश्रा

417/272, कंघी टोला, निवाजगंज चौक, लखनऊ-226003 (उ.प्र.)

द लाख कोशिशों के बावजूद केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद मुसलमानों के सर्वमान्य नेता नहीं बन पाए हैं। मुसलमानों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए ही उन्होंने सोनिया गांधी के आंसुओं पर तैरने का फैसला किया। किन्तु वे मझधार में ऐसे फंसे कि उन्हें कांग्रेसियों ने धिक्कारा कि बात-बात में “मैडम” की आड़ क्यों लेते हो? सलमान खुर्शीद जानते हैं कि इस देश के मुसलमानों ने किसी भी उदार विचार वाले मुस्लिम को अपना नेता नहीं माना है। इसलिए खुर्शीद ने कट्टरवाद को ही हवा देना उचित समझा है।

-कालीमोहन सिंह

गायत्री मंदिर, मंगलबाग, आरा,

भोजपुर-802301 (बिहार)

द कांग्रेस ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण में से 4.5 प्रतिशत मुसलमानों को देने की घोषणा करके अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकारों पर डाका डालने का प्रयास किया है। किन्तु दु:ख इस बात का है कि कांग्रेस के इस निर्णय का विरोध उन नेताओं ने किया, जो अपने को पिछड़ों का नेता मानते हैं। लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, ओम प्रकाश चौटाला जैसे नेताओं ने कांग्रेस के खिलाफ विरोध दर्ज नहीं कराया। लालू तो बिहार में पिछड़ों के नाम पर राजनीति करते हैं और उन पर कभी कोई आरोप लगता है तो वे कहते हैं एक पिछड़े समाज के “मसीहा” पर गलत आरोप लगाए जा रहे हैं?

-गोपाल

गांधीग्राम, गोड्डा (झारखण्ड)

द मुसलमानों को आरक्षण देकर संप्रग सरकार देश को खंडित करना चाहती है। मजहब के आधार पर एक विशेष वर्ग को विशेष सुविधाएं देने से देश कमजोर होगा। यह बात समझ नहीं आती कि ये नेता इस बात पर ध्यान क्यों नहीं देते कि विकास का आधार आर्थिक बने? जो व्यक्ति आर्थिक रूप से पिछड़ा है, उसे आगे बढ़ाना चाहिए, उसे रोजगार दिया जाना चाहिए। चाहे वह किसी भी मत-पंथ का हो। उससे समाज में टकराव नहीं बढ़ेगा और देश का विकास भी होगा।

-प्रदीप सिंह राठौर

3जी, एम.आई.जी. पनकी, कानपुर (उ.प्र.)

द सलमान खुर्शीद केन्द्रीय मंत्री होते हुए भी सिर्फ मुसलमानों के हित की बात करते हैं और उनके हित के लिए ही काम करते हैं। कानून मंत्री रहते हुए उन्होंने कहा, “पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण मिलना ही चाहिए।” अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहते हुए उन्होंने केवल मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए काम किया है। मार्च 2010 में उन्होंने 25 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले 90 जिलों में 3500 करोड़ रु. मुस्लिमों के बीच बांटे। अन्य अल्पसंख्यकों (ईसाई, जैन, बौद्ध, सिख) के लिए उन्होंने एक पैसा भी आवंटित नहीं किया। इनका पूरा काम साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने वाला है, फिर भी ये “सेकुलर” हैं।

-महेश सत्यार्थी

टैक्नो इंडिया इनवर्टर सर्विस,

पुरानी अनाज मण्डी उझानी, बदायूं (उ.प्र.)

द सम्पादकीय “सोनिया गांधी के आंसू” में यह बताने का प्रयास किया गया है कि कांग्रेस पार्टी को देश की जनता से कोई लेना-देना नहीं है, चाहे जैसे हो उसे मुस्लिम वोट चाहिए। मुस्लिम वोटों के लिए सोनिया-मनमोहन सरकार हिन्दुओं को प्रताड़ित करने वाले कानून बना रही है। यह बड़ी विडम्बना है कि जो लोग दिन-रात सिर्फ “मुस्लिम-मुस्लिम” कर रहे हैं, वे अपने आपको पंथनिरपेक्ष कहते नहीं थकते। यही लोग उन लोगों को साम्प्रदायिक कहते हैं, जो हिन्दू हित की बात करते हैं। भारत में सेकुलरवाद के नाम पर यह दोहरा चरित्र बहुत खतरनाक हो चुका है।

-वीरेन्द्र सिंह जरयाल

28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर, दिल्ली-110051

द पाञ्चजन्य ने यह बड़ा अच्छा सवाल उठाया है कि सोनिया गांधी के आंसू सिर्फ आतंकवादियों के लिए फूटते हैं? और जिहादी आतंकवाद के शिकार हुए निर्दोष नागरिकों व उनसे लड़ते हुए शहीद होने वाले वीर जवानों के लिए उनके आंसू सूख जाते हैं? कांग्रेस पार्टी के चाल-चलन से तो यही लगता है कि कांग्रेसी तभी रोते हैं, जब कोई आतंकवादी मारा जाता है। किसी सैनिक के शहीद होने पर ये लोग दु:ख तक भी प्रकट नहीं करते, क्योंकि उन्हें यह डर सताता है कि यदि ऐसा किया तो मुस्लिम कांग्रेस को वोट नहीं देंगे।

-मनीष कुमार

तिलकामांझी, भागलपुर (बिहार)

इतने संशोधन क्यों?

श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख “संविधान हमारा या अंग्रेजों का?” में भारतीय संविधान की पृष्ठभूमि से लेकर आज तक की यात्रा का समग्र मंथन किया है। मेरे विचार से भारत के लोगों ने इस संविधान को श्रद्धापूर्वक स्वीकार किया है। इसलिए दुनिया में भारतीय संविधान की एक अलग साख है। किन्तु आश्चर्य तब होता है, जब संविधान में संशोधन की गति को देखते हैं। 63 वर्ष में 109 बार संविधान में संशोधन हो चुके हैं।

-उदय कमल मिश्र

गांधी विद्यालय के समीप, सीधी-486661 (म.प्र.)

मुद्दा-विहीन दल

उत्तर प्रदेश के चुनावों को केन्द्रित शशि सिंह की रपट “मुद्दों की नहीं सत्ता की चिंता” पढ़ी। यहां यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है कि उत्तर प्रदेश में कौन सत्ता पाता है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि सत्ता पाने के लिए राजनीतिक दल कितने मूल्यहीन हो चुके हैं। सत्ता पाने और सत्ता बचाये रखने के लिए जातिवाद, भाषा, मजहब और क्षेत्रीयता का सहारा लिया जा रहा है। जनता से जुड़े जमीनी मुद्दों को लेकर राजनीतिक दलांें में कोई रुचि नहीं है।

-मनोहर “मंजुल”

पिपल्या-बुजुर्ग, प. निमाड़-451-225 (म.प्र.)

हर हालत में गाय की रक्षा हो

श्री मुजफ्फर हुसैन का लेख “एक वोट गाय के लिए भी” बताता है कि आज हमने उस गोमाता को भी याचक की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया है, जो जीवन-दायी दूध उपलब्ध कराती है। गाय के दूध का सेवन करके ही इस देश में कभी भीमसेन और अर्जुन जैसे योद्धा खड़े हुए, तो महर्षि वेदव्यास, महर्षि वाल्मीकि, तुलसीदास जैसे विद्वान पैदा हुए। गाय की रक्षा, गाय के लिए नहीं, बल्कि मनुष्य के लिए जरूरी है। इसलिए गाय हर हालत में बचनी चाहिए।

-बी.आर. ठाकुर

सी-115, संगम नगर, इन्दौर-452006 (म.प्र.)

द पुराने जमाने में दूध की नदियां बहती थीं और आज खून की नदियां बह रही हैं। बेचारे पशु-पक्षी अपने दर्द बता नहीं सकते, यह जानकर भी मनुष्य उन पर अत्याचार कर रहा है। जब तक कोई पशु काम आता है तब तक तो उसे अच्छी तरह रखा जाता है, खिलाया-पिलाया जाता है। पर बेकार होते ही उसे कसाई के हाथों में बेच दिया जाता है। वहां वह महीनों भूख से तड़पता है और एक दिन हलाल कर दिया जाता है। पशु के साथ ऐसी पशुता क्यों?

-हरिहर सिंह चौहान

जंबरी बाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)

द हम भारतीयों को तथाकथित विदेशी गायों के अधिक दूध को नहीं देखना चाहिए। हमारी देशी गाय की कोई तुलना ही नहीं है। देशी गाय का दूध रोग-नाशक और स्वास्थ्य-वद्र्धक है, जबकि विदेशी गायों के दूध में ये चीजें कम होती हैं। हमारी गाय शान्त और हर स्थिति को झेलने वाली होती है। किन्तु विदेशी गायें गर्मी, बरसात को झेल नहीं पातीं है। देशी गाय 15-16 साल तक दूध देती है, जबकि विदेशी गाय 3-4 साल तक ही।

-स्वामी अरुण अतरी

550, सीता नगर, लुधियाना (पंजाब)

यह देशद्रोह है

महात्मा गांधी के एकमात्र वंशज कहलाने का दावा करने वाले कांग्रेस के लोग आपा खोते जा रहे हैं और वे गांधीजी के सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि सिद्धान्तों को त्यागकर गाली-गलौज पर उतरने लगे हैं। वे यह कहते हैं कि रा.स्व.संघ और उससे संचालित संगठनों से जिन लोगों का कभी भी, थोड़े समय या काफी दिनों के लिए संबंध रहा है, वे अछूत हैं। शायद उनका कहना है कि संघ जो गत 85 वर्षों से हिन्दुओं को संगठित, अनुशासित तथा देशभक्त और समाजसेवी बनाने का महत् कार्य कर रहा है वह बुरा है, क्योंकि उनकी भाषा में वह साम्प्रदायिक है। शायद इन लोगों को यह पता नहीं है कि भारत की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी में शायद एक भी घर ऐसा नहीं होगा जिसका एक सदस्य संघ, भाजपा, भारतीय मजदूर संघ आदि से संबंधित न रहा हो। जब पद लोलुपता के कारण, गांधी जी की इच्छा के विरुद्ध कांग्रेसी नेताओं ने घोर मुस्लिम साम्प्रदायिकता के आगे घुटने टेक दिये और देश का विभाजन करा दिया, उस समय संघ के स्वयंसकवकों ने ही पाकिस्तान के हिन्दुओं को बचाने तथा भारत में सुरक्षित लाने का भागीरथ प्रयास किया, उस समय कांग्रेस के ये नेता कहां थे? बाद में हिन्दू शरणार्थियों को सिर छिपाने, खाने आदि की व्यवस्था में भी संघ के स्वयंसेवकों ने योगदान दिया। नेहरू तथा पटेल को भी स्वयंसेवकों के अनुशासन तथा देशभिक्त के कारण दिल्ली में पुलिस के कार्यों को करने के लिए उनकी मदद लेनी पड़ी थी। शायद ही स्वतंत्र भारत में कोई आपदा ऐसी हो जिसमें स्वयंसेवकों ने सक्रिय सहयोग न दिया हो। सरदार पटेल ने गुरुजी को महाराजा कश्मीर को मनाने के लिए भेजा था। उस समय संघ अच्छा था? महात्मा गांधी ने भी स्वयंसेवकों के अनुशासन तथा देशभक्ति से प्रभावित होकर कहा था कि यदि कांग्रेस ऐसा दल होता तो भारत और जल्दी स्वतंत्र हो सकता था। बढ़-चढ़कर बोलने तथा कार्य करने में जो अन्तर है उसे कांग्रेस के नेताओं तथा जनता को समझ लेना चाहिए। सत्ता में पहुंचने के लिए वोट-बैंक की तुच्छ साम्प्रदायिक राजनीति करना देशद्रोह है। प्रजा को वर्गों में बांटना घोर अपराध है। बहुसंख्यक हिन्दुओं को भला-बुरा कहना कांग्रेस को अब महंगा पड़ेगा, यह उन्हें समझ में आना चाहिए।

-शान्ति स्वरूप गुप्त

60, जनकपुरी, अलीगढ़-202001 (उ.प्र.)

पञ्चांग

वि.सं.2068   तिथि   वार    ई.  सन्  2012

चैत्र कृष्ण    11        रवि   18   मार्च, 2012

“”     “”  12        सोम   19        “”    “”

“”     “”  13        मंगल  20        “”     “”

“”     “”  14 बुध 21        “”     “”

चैत्र अमावस्या       गुरु    22        “”     “”

चैत्र शुक्ल    1          शुक्र   23        “”     “”

(वि.सं. 2069 प्रारंभ)

“”     “”  2          शनि   24        “”     “”

चली साइकिल इतरा कर

राहुल की मेहनत गयी, यूपी में बेकार

मायादेवी की हुई, बहुत करारी हार।

बहुत करारी हार, चली साइकिल इतरा कर

कमल नहीं खिल पाया, गरमी से घबराकर।

कह “प्रशांत” जब जनता ने तेवर दिखलाये

बड़े-बड़ों के भाव, लुढ़क धरती पर आये।।

-प्रशांत

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