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जिंदगी

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Mar 3, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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साहित्यिकी

दिंनाक: 03 Mar 2012 16:03:11

साहित्यिकी

द डॉ. तारादत्त “निर्विरोध”

हर दफा पूरी उजड़ कर फिर बसी है जिंदगी,

कौन जाने किस तरह कब-कब बची है जिंदगी।

है नहीं समतल जमीं की एक भी कोई सतह,

किन्तु मेहंदी की तरह मन में रची है जिंदगी।

लोग आए, बस गए, बिखरा चमन तो चल दिए,

सान पर अपनी ही जब-जब यों कसी है जिंदगी।

आखिरी मंजिल पे इसकी रूप मिट्टी का बना,

और ऊपर, और ऊपर यों मिली है जिंदगी।

छोड़ कर इसको अकेला वक्त जैसे चल दिया,

फिर नदी के साथ ही आगे चली है जिंदगी।

रुक न पाए जो कभी, वे भी कहां खुशहाल थे?

जो रहे हर हाल में उनको फली है जिंदगी।

तुम न जाने किस तरह कुछ दिन रहे थे पास में,

दूर रहकर बारहा तुमसे मिली है जिंदगी।

फर्श से अर्श तक का सफर

जीवन की यात्रा में ऐसे ही कुछ अनपेक्षित मोड़ आते हैं, जो हमें किसी मंजिल की ओर ले जाते हैं। इसीलिए बाहर निकलिए, ज्यादा से ज्यादा काम कीजिए, ज्यादा से ज्यादा अनुभव प्राप्त कीजिए। जीवन के चित्र पटल पर बहुत सारे बिन्दु बना डालिए। उनमें आत्मविश्वास के साथ अपनी पसंद के रंग भरिए। जीवन को ऐसा बना दीजिए कि वह किसी कलाकार की कृति जैसा दिखाई दे। यह कहना है रश्मि बंसल का, जिनकी कुछ समय पूर्व प्रकाशित पुस्तक “स्टे हंग्री स्टे फुलिश” बहुत लोकप्रिय हुई थी। हाल में ही उनकी नई पुस्तक “जीरो टू हीरो” प्रकाशित होकर आई है। इस पुस्तक में 20 ऐसी शाख्सियतों की जीवन गाथा संकलित है, जिनके पास कोई एमबीए या व्यवसाय प्रबंधन से जुड़ी डिग्री-डिप्लोमा नहीं था। बावजूद इसके उन्होंने उद्यमिता की मिसाल गढ़ते हुए मनचाहे क्षेत्र में कदम रखा और उसमें शिखर तक पहुंचे।

जुगाड़, जुनून और जुबान खण्डों में विभाजित इस पुस्तक में क्रमश: 8,8 और 4 व्यवसायियों की कहानी मौजूद है। इन सभी की जीवनगाथाओं में जो एक बात समान है, वो है-कुछ नया करने का जज्बा। इसी जज्बे की बदौलत ही इन सभी ने असंभव को संभव कर दिखाया। इन सभी सफल व्यवसायियों की कहानी से यह भी सिद्ध होता है कि बड़े सपने देखने और उसमें सफल होने के लिए न तो किसी प्रकार की प्रबंधन डिग्री की जरूरत होती है और न ही रईस खानदान की। सब कुछ आपकी सोच पर ही निर्भर करता है। यानी क्षेत्र या काम कोई सा भी हो, उसमें सफलता का आधार आपकी सोच ही तय करती है। हालांकि पुस्तक में मौजूद सभी “बिजनेसमैन” की कहानियां अपने आपमें विशिष्ट और प्रेरक हैं लेकिन उनमें से कुछ तो बेहद प्रेरणादायी और अविश्वसनीय लगती हैं। उनके शुरुआती संघर्ष और मिलने वाली असफलता किसी भी पाठक को अपने आस-पास की या अपनी जैसी ही लग सकती है। अब मिसाल के तौर पर “प्रेमगणपति” को ही ले सकते हैं, जो बेहतर भविष्य बनाने की चाहत में दूसरे लाखों लोगों की तरह मुम्बई आए थे। बर्तन धोने वाले एक अति सामान्य लड़के के जीवन से ऊपर उठकर देशभर में फैले “फास्ट फूड चेन” “डोसा प्लाजा” के मालिक बन चुके हैं। या फिर रंजीव रामचंदानी की जीवनगाधा भी पढ़कर उनके भीतर मौजूद व्यवसायी के जुनून का अहसास कर सकते हैं। माइक्रोबायलोजी से पढ़ाई करने के बाद भी मन को संतुष्टि नहीं मिली। कुछ दिन विज्ञापन भी बनाए और अब मजाकिया व अनूठे किस्म के टी शट्र्स बनाने वाली “तंत्रा” कम्पनी के मालिक बन चुके हैं। कुछ ऐसा ही अजीबोगरीब और अपनी मर्जी के मालिक कल्याण वर्मा की भी दास्तान है। 22 साल की उम्र में ही “याहू” जैसे कम्पनी में किसी तरह नौकरी पर गए थे लेकिन जंगली वनस्पतियों, पशुओं, पक्षियों के बीच रहना उनके चित्र खींचने का शौक इस कदर सवार हो गया कि “याहू” की नौकरी छोड़कर “वाइल्ड लाइफ” फोटोग्राफी करने लगे। आज वह अपनी “हॉवी” के साथ जीते हैं और कमाई भी करते हैं। आर. श्रीराम की कहानी भी अपने आपमें अनोखी और जुनून की मिसाल पेश करती है। उन्हें व्यवसाय शुरू करने का कोई शौक नहीं था लेकिन खुद को किताबों का दीवाना बना रखा था। आगे चलकर कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया और जुट गए लोगों को किताबों से प्रेम करना सिखाने में। वह भारत की सबसे बड़ी बुक स्टोर श्रृंखला बनाकर दूर-दूर तक लोगों को किताबों से जोड़ने का काम करने लगे।

यही नहीं, रघु खन्ना, कुंवर सचदेव, गणेश राम, सुनीता रामनाथकर, सत्य जीत सिंह, सौरभ व्यास, गौरव राठौड़, सुनील भू, चेतन मैनी और समर गुप्ता जैसे कई लोगों की अचरजकारी सफलता की कहानी पढ़कर प्रेरणा ली जा सकती है। यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए खूबसूरत उपहार की तरह है, जो जीवन में कुछ अलग करने का सपना देखता है। द

पुस्तक का नाम –   जीरो टू हीरो

लेखिका        –   रश्मि बंसल

प्रकाशक      –     प्रभात पेपर बैक्स

      4/19, आसफअली रोड, दिल्ली -2

मूल्य  –     200 रुपए,  पृष्ठ – 327

बेसाइट-www.prabhatbooks.com

विलक्षण व्यक्ति की संघर्षकथा

वीसवीं सदी के विलक्षण व्यक्तियों की सूची में नेल्सन-मंडेला का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। किसी व्यक्ति का जीवन किवदंती और महानता, कौन से सोपानों से होकर गुजरने पर बनता है, यह मंडेला के जीवन को जानकर मालूम पड़ सकता है। रंगभेद की नीति को मिटाने के लिए अहिंसक आंदोलनकर्ता के रूप में 27 वर्ष तक जेल में गुजारने वाले नेल्सन मंडेला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने स्वयं को कभी भी महान नहीं समझा। एक ऐसा साधारण मनुष्य माना, जिसको अपने सपनों, आदर्शों पर भरोसा था और उसे सही सिद्ध करने के लिए अपने जीवन की तमाम खुशियों और सुखों की आहुति दे डाली। कुछ समय पूर्व प्रकाशित होकर आई पुस्तक “नेल्सन मंडेला” (मेरा जीवन बातों-बातों में) में कई मुलाकातों, उनके द्वारा लिखे गए पत्रों, उनकी अप्रकाशित आत्मकथा की पांडुलिपियों के अंशों और कैलेंडर पर दर्ज की गई टिप्पणियों के जरिए उनके जीवन का एक “कोलॉज” उभरता है। इनके जरिए उनके व्यक्तित्व, उनके सिद्धांत, उनकी मान्यताओं से परिचित हुआ जा सकता है। हालांकि इन्हें पढ़कर बार-बार मन में उत्कंठा जगती है कि काश! नेल्सन मंडेला ने अपनी कोई आत्मकथा लिखी होती तो वह विश्व साहित्य की निधि बन सकती थी लेकिन उनकी आत्म स्वीकृति है कि “मैं अपने व्रत का पालन करूंगा, किसी के बारे में, किसी भी परिस्थिति में, कुछ भी बुरा नहीं कहूंगा, कभी नहीं, कभी भी नहीं कहूंगा। दरअसल, सफल व्यक्ति अधिकतर किसी न किसी गुरूर के आदी हो जाते हैं, उनके जीवन में एक समय आता है जब वे यह मान लेते हैं कि अपनी विलक्षण उपलब्धियों के कारण उन्हें उनका सार्वजनिक बखान करने का और घमण्ड दिखाने का अधिकार मिल गया है। आत्मप्रशंसा के लिए अंग्रेजी भाषा में एक बहुत मीठा शब्द स्वीकार कर लिया है। ऑटोबायोग्राफी (आत्मकथा)।” लेकिन मंडेला इसका अपवाद है।

इसी से प्रमाणित हो जाता है कि वह ताउम्र आत्मप्रशंसा से दूर रहे हैं। स्वयं को वह एक सामान्य मनुष्य ही मानते हैं। पुस्तक में अधिकांशत: रिचर्ड स्टेंगल से बातचीत के अंश मौजूद हैं। इनमें विभिन्न सवालों पर मंडेला के जवाब संक्षिप्त हैं, लेकिन उनके जीवन दर्शन को प्रमाणित करते हैं। दक्षिण अफ्रीका में उपनिवेशवाद से लेकर रंगभेद की नीति से होते हुए स्वतंत्र राष्ट्र बनने तक के सफर को नेल्सन मंडेला की जिंदगी को जाने-समझे बिना, पूरी तरह समझा नहीं जा सकता है। हालांकि स्वतंत्रता के बाद उन्होंने पहले राष्ट्रपति पद की गरिमा बढ़ाई। उन्हें नोबुल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित भी किया गया लेकिन किसी भी पद, प्रतिष्ठा के लिए उनके मन में कभी कोई लालसा नहीं रही। वह अपनी संघर्ष को कर्म समझकर इस तरह करते रहे, जैसे वह केवल इसे पूरा करने के लिए ही दुनिया में आए हैं।

पुस्तक में अनेक ऐसे प्रसंग मौजूद हैं, जिन्हें पढ़कर, जानकर किसी को भी सहज भरोसा करना कठिन है। वह कहते हैं, नेल्सन मंडेला ने अपनी जीवन यात्रा को एक साधनापथ के रूप में जिया है, जिसमें बगैर किसी भी चीज की कामना किए देने के लिए ही कर्म किए जाते हैं। उनके बारे में पुस्तक की भूमिका में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने लिखा है, “अपने कार्यों के द्वारा मंडेला ने स्पष्ट कर दिया कि हमें दुनिया को उसी रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए जैसी वह है, बल्कि हमें उसे जैसी वह होनी चाहिए, बनाने के लिए अपना योगदान देना चाहिए। उन्होंने अपने देश और दुनिया को बदलने के लिए इतना कुछ किया है कि पिछले कई दशकों के इतिहास का उनके बिना विचार करना संभव नहीं है।” कह सकते हैं, यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए जरूरी है, जिसकी आंखों में बेहतर दुनिया को रचने का सपना पलता है। द

पुस्तक का नाम -नेलसन मंडेला

            (मेरा जीवन बातों-बातों में)

अनुवाद            –     महेंद्र कुलश्रेष्ठ

प्रकाशक            –     ओरिएंट पब्लिशिंग

                  5ए/8, अंसारी रोड,

            दरियागंज, नई दिल्ली-2

मूल्य  –     595 रु.        पृष्ठ-368

बेसाइट-www.orientpublishing.com

विभूश्री

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