मालदीव में भारत विरोधी हवा
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मुजफ्फर हुसैन
पिछले कुछ दिनों से मालदीव में जो हो रहा है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान और बंगलादेश की तरह ही मजहबी उन्मादियों ने अब इस शांत द्वीप को भी अपनी कट्टरता की चारागाह बना लिया है। मालदीव में एक लोकतांत्रिक सरकार थी जिसे अपदस्थ कर दिया गया है। भारतीय उपखंड के देशों में कट्टरवाद की हवाएं चलते रहना कोई नई बात नहीं है। पाकिस्तान और बंगलादेश इसके जीते-जागते उदाहरण हैं। किन्तु भारत एक पंथ निरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है। इसके बावजूद यहां कभी-कभी उन्मादी तत्व अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं। येन-केन प्रकारेण वे भारत को इस काली चादर में लपेट लेने का दुस्साहस करते रहते हैं। आतंकवाद को विश्व राजनीति का अंग बनाने वाले तत्व भारत के आस-पास इस आग को सुलगाए रखते हैं, ताकि समय आने पर वे इस सम्पूर्ण भूंखड को अपनी बांहों में जकड़ लें। पिछले दिनों मालदीव में जो कुछ हुआ है उसने भारत को दहला दिया है। ज्यों ही मालदीव में कट्टरवाद की चिंगारी सुलगी कि अमरीका, चीन और पाकिस्तान ने मालदीव पर मंडराना शुरू कर दिया है। भारत के समुद्री जहाज मालदीव के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहे हैं, क्योंकि मालदीव भारत के लिए एक ज्वालादीव साबित हो सकता है। पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने अंतरराष्ट्रीय विरादरी से लोकतंत्र की बहाली के लिए आग्रह किया है। इसलिए उनकी गिरफ्तारी का खतरा बढ़ रहा है।
भारत के लिए खतरनाक
उधर अमरीका और राष्ट्र संघ के दूतों की एक बड़ी सेना मालदीव के लिए चल पड़ी है। वहां जो स्थिति बनती जा रही है वह भारत के लिए अत्यंत खतरनाक साबित हो सकती है। भारत के लिए मालदीव से राजनीतिक सम्बंध से अधिक महत्वपूर्ण मामला सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। 2011 में दोनों देशों ने हिंद महासागर में संयुक्त निगरानी पर अपनी स्वीकृति प्रदान की थी। लेकिन अब मालदीव की लोकतांत्रिक सरकार, जो पहली बार स्थापित हुई थी, उसे चलाना एक चुनौती बनती जा रही है। इसलिए भारत के लिए यह चिंता के क्षण हैं। भारत इससे एक पल के लिए भी अपनी नजरें नहीं हटा सकता है। आज तक मालदीव का पर्यटकों का स्वर्ग माना जाता था। लेकिन अब वहां मोहम्मद नशीद की सरकार गिर चुकी है और मुस्लिम कट्टरवादियों का जोर बढ़ता जा रहा है। वास्तविकता तो यह है कि नशीद की सरकार को गिराने वाले कट्टरवादी इस्लाम के नाम पर की जा रही राजनीति से प्रेरित हैं। इसलिए भविष्य में ये कट्टरवादी ताकतें भारत के लिए खतरा बनती नजर आ रही हैं। बगावत करने वालों ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यह सरकार उनकी मजहबी आस्था की अनदेखी कर रही थी। भारतीय अधिकारी राजधानी माले पहुंच गए हैं। लेकिन अब तक दोनों दलों में किसी प्रकार का समझौता नहीं हो सका है। विरोधी और सत्ताधारी आपस में गुत्थमगुत्था हैं।
मजहबी बोलबाला
विश्लेषणकर्ताओं का कहना है कि यदि मालदीव में कट्टरवादी सफल हो जाते हैं तो भारत के लिए यह बहुत बड़ा सिरदर्द बन जाएगा। मालदीव में प्रतिवर्ष 9 लाख सैलानी पर्यटक के रूप में आते हैं। पिछली सरकार में विदेश मंत्री रहे अहमद नसीम ने जब मालदीव के पहले मंत्री के रूप में इस्राइल का दौरा किया था तो मजहबी कट्टरवादियों ने बड़ा शोर मचाया था। वास्तविकता तो यह है कि जबसे मालदीव के विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए पाकिस्तान और सऊदी अरब जाने लगे तभी से वहां साम्प्रदायिकता का बोलबाला बढ़ता चला गया। अब मालदीव के सार्वजनिक जीवन में यह छाप स्पष्ट रूप से नजर आने लगी है। एक समय था कि मालदीव में 'स्कार्फ' का नामोनिशान नहीं था, लेकिन अब मालदीव में 'स्कार्फ' और पर्दे का बढ़ता चलन स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।
मालदीव में हुई राजनीतिक उठापटक में पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल कय्यूम के समर्थकों का हाथ बताया जा रहा है। यानी मोहम्मद नशीद को सत्ता से अलग करने वाले मुख्य व्यक्ति कय्यूम ही हैं, जिन्होंने 2005 के आम चुनाव में अपनी हार स्वीकार कर ली थी। पिछले महीने जब तत्कालीन सरकार ने कय्यूम के भ्रष्टाचारों की जांच के लिए आयोग बैठाया तो जांच कर रहे न्यायाधीश ने उसमें बाधा डालने का प्रयत्न किया। सरकार ने उक्त न्यायाधीश को गिरफ्तार करने के आदेश जारी कर दिए, जिसके विरुद्ध प्रदर्शनकारी सड़कों पर निकल आए। तब से उक्त संघर्ष ने राजनीतिक रूप धारण कर लिया है। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कय्यूम विदेश में हैं। लेकिन बताया जाता है कि उनका मालदीव की जनता और प्रशासन पर भारी दबदबा है। नई सरकार के गृहमंत्री मोहम्मद जमील ने यह आरोप लगाया था कि मोहम्मद नशीद की सरकार के दफ्तर से शराब की खाली बोतलें मिली थीं। फिर यह समाचार आया कि मालदीव की सरकार इस्राइल को अपनी जमीन बेच रही है। राष्ट्रपति जो भी काम कर रहे हैं वह इस्लामी शरीयत और इस्लामी कायदे-कानून के विरुद्ध है। चार लाख की आबादी वाले इस दीव में अब रात-दिन इस्लामी शरीयत की चर्चा है। मामून अब्दुल कय्यूम की सरकार में इस्लामी कट्टरवादी तत्व कभी पनप नहीं पाए। मामून ने पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र के आधार पर काम किया। मुस्लिमों का बहुमत होने के बावजूद उन्होंने कभी साम्प्रदायिक तत्वों को पनपने नहीं दिया। मालदीव को 1965 में ब्रिटेन ने स्वतंत्र कर दिया था। 1968 में वह पूर्ण रूप से एक स्वतंत्र देश बन गया। इसके पश्चात् मामून अब्दुल कय्यूम इस टापू पर 30 वर्ष तक एक छत्र राज करते रहे। 2003 में मालदीव में राजनीतिक सुधारों की चर्चा चल पड़ी। उसके पश्चात् मामून अब्दुल कय्यूम के नेतृत्व में वहां लोकतांत्रिक सरकार कायम हो गई। 2008 में अब्दुल कय्यून ने अपने इस छोटे से देश का संविधान तैयार करवा कर अपनी सरकार के माध्यम से लागू करवाया। वहां राजनीतिक दलों की स्थापना हुई। लेकिन पहले ही चुनाव में नशीद ने मामून को पराजित कर दिया। लेकिन अब मोहम्मद नशीद को इस प्रकार सत्ता से हटाना मालदीव और भारत दोनों के लिए खतरनाक बन गया है। नशीद एक ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने मामून के विरुद्ध बगावत के कारण 6 वर्ष की जेल भी काटी थी। नशीद को अनेक प्रकार के कष्ट दिए गए थे। लेकिन जब वे जेल से छूटे और सत्ता में आए तो जेलर सहित अपने सभी विरोधियों को क्षमा कर दिया था।
खतरे में नशीद
अब मालदीव की राजनीतिक स्थिति यह है कि उपराष्ट्रपति महमूद वहीद हसन ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली है। टी.वी. एंकर के रूप में उन्होंने काम किया है। लेकिन अब भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। मालद्वीप की अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद के विरुद्ध गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है। लेकिन वारंट किन अपराधों के लिए जारी किया गया है इसकी जानकारी अब तक किसी को मिली नहीं है। इस बगावत के पश्चात् मोहम्मद नशीद का परिवार श्रीलंका में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहा है, लेकिन नशीद स्वयं अब माले में ही हैं। उनका कहना है कि मैं आजीवन कारावास में रहने के लिए तैयार हूं। किसी भी स्थिति में वे मालदीव छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। वे कहते हैं 'यदि मैंने ऐसा किया तो मेरे देश को ये कुत्ते नोंच खाएंगे।' ऐसा लग रहा है कि नशीद की जान खतरे में है। इसलिए भारत ने राष्ट्र संघ सहित सभी देशों से कहा है कि नशीद के जीवन की रक्षा की जाए। माले में जो हो रहा है उस स्थिति पर भारत ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह मालदीव का भीतरी मामला है। भारत ने नए राष्ट्रपति वहीद हसन का स्वागत किया है। इसके साथ ही इस बात पर भी जोर दिया है कि नशीद के जीवन की रक्षा हर हाल में होनी चाहिए। नशीद ने बगावत से पूर्व भारत की यात्रा की थी। उन्होंने भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी से लम्बी बातचीत भी की थी।
भारत को घेरने का प्रयास
वर्तमान स्थिति पर भारत ने अपना मौन नहीं तोड़ा है। ऊंच किस करवट बैठेगा, नई दिल्ली इसका आकलन नहीं कर पा रही है। भारत के लिए वर्तमान स्थिति इसलिए भी जटिल है कि पिछली बार जब मालदीव में सत्ता परिवर्तन हुआ था तब भारत ने ही उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब नए राष्ट्रपति ने जो नई नियुक्तियां की हैं उससे भारत में बेचैनी है। मालदीव के नए गृहमंत्री मोहम्मद जमील ने पिछले दिनों एक पुस्तिका प्रकाशित कराई है जिसमें कहा गया है कि मोहम्मद नशीद ईसाई और यहूदी ताकतों के साथ इस्लामी मूल्यों के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति का कहना है कि उन्हें इस प्रकार के भूचाल की कोई उम्मीद नहीं थी। उन्हें ताकत के जोर पर त्यागपत्र देने के लिए मजबूर किया गया। सेना उन्हें गोली मारना चाहती थी। दूसरी ओर नए राष्ट्रपति का कहना है कि बगावत नहीं हुई। अब भय यह है कि नई व्यवस्था के तहत दूसरा चुनाव नहीं हो सका तो पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल कय्यूम सेना की सहायता से वापस लौटने का कदम उठा सकते हैं। यह भी सम्भव है कि फौज स्वयं भी बाजी पलट दे। लेकिन समस्या यह है कि नए राष्ट्रपति चुनाव कराने को तैयार नहीं हैं। वे चुनाव को वर्तमान संकट का हल नहीं मानते। वहीद हसन कह रहे हैं कि इस समय माहौल वैसा नहीं है कि चुनाव कराए जा सकें।
दुनिया के मीडिया में मालदीव को लेकर जो आ रहा है उसका सार यह है कि यह सारा नाटक केवल भारत को परेशान करने के लिए किया गया है। आतंकवादी ताकतें मालदीव को अपना अड्डा बनाना चाहती हैं, ताकि भारत को घेरा जा सके। विश्व में मुस्लिम आतंकवादियों ने भारत के विरुद्ध जो घेरा डाला है उसका शिकार इस बार मालदीव को बनाया गया है। भारत विरोधी ताकतें हिंद महासागर में अपने पांव जमाना चाहती हैं। इसलिए मालदीव की घटनाओं से भारत को चौकन्ना रहना है। मुस्लिम आतंकवादी भारत को पश्चिम, पूर्व और उत्तर से घेरने का प्रयास कर रहे हैं। अब उनका निशाना दक्षिण में सम्पूर्ण हिंद महासागर का परिसर है।
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