पाठकीय (12 फरवरी,2012)
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पाठकीय
अंक-सन्दर्भ
12 फरवरी,2012
स्थिति में देश
पुरस्कृत पत्र
चाणक्य और विदेशी बहू
आज से करीब 2300 साल पहले पैदा हुए चाणक्य भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के पहले विचारक माने जाते हैं। पाटलिपुत्र (पटना) के शक्तिशाली नंद वंश को उखाड़ फेंकने और अपने शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को बतौर राजा स्थापित करने में चाणक्य का अहम योगदान रहा। ज्ञान के केन्द्र तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य रहे चाणक्य राजनीति के चतुर खिलाड़ी थे और इसी कारण उनकी नीति कोरे आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान पर टिकी है। उनका एक प्रसंग पढ़ें.. सम्राट चन्द्रगुप्त अपने मंत्रियों के साथ एक विशेष मंत्रणा में व्यस्त थे कि प्रहरी ने सूचित किया कि आचार्य चाणक्य राजभवन में पधार रहे हैं। सम्राट चकित रह गए। इस असमय में गुरु का आगमन। वह घबरा भी गए। अभी वह कुछ सोचते ही कि लम्बे-लम्बे डग भरते चाणक्य ने सभा में प्रवेश किया।
सम्राट चन्द्रगुप्त सहित सभी सभासद सम्मान में उठ गए। सम्राट ने गुरुदेव को सिंहासन पर आसीन होने को कहा। आचार्य चाणक्य बोले, “भावुक न बनो सम्राट, अभी तुम्हारे समक्ष तुम्हारा गुरु नहीं, तुम्हारे राज्य का एक याचक खड़ा है, मुझे कुछ याचना करनी है।” चन्द्रगुप्त की आंखें डबडबा आईं। बोले “आप आज्ञा दें, समस्त राजपाट आपके चरणों में डाल दूं।” चाणक्य ने कहा, “मैंने आपसे कहा भावना में न बहें, मेरी याचना सुनें।” गुरुदेव की मुखमुद्रा देख सम्राट चन्द्रगुप्त गंभीर हो गए। बोले “आज्ञा दें।” चाणक्य ने कहा, “आज्ञा नहीं, याचना है कि मैं किसी निकटस्थ सघन वन में साधना करना चाहता हूं। दो माह के लिए राजकार्य से मुक्त कर दें और यह स्मरण रहे वन में अनावश्यक मुझसे कोई मिलने न आए। आप भी नहीं। मेरा उचित प्रबंध करा दें।”
चन्द्रगुप्त ने कहा, “सब कुछ स्वीकार है।” दूसरे दिन प्रबंध कर दिया गया। चाणक्य वन चले गए। अभी उन्हें गए एक सप्ताह भी न बीता था कि यूनान से सेल्युकस (सिकन्दर का सेनापति) अपने जामाता चन्द्रगुप्त से मिलने भारत पधारे। उनकी पुत्री हेलेन का विवाह चन्द्रगुप्त से हुआ था। दो-चार दिन के बाद उन्होंने चाणक्य से मिलने की इच्छा प्रकट कर दी। सेल्युकस ने कहा, “सम्राट, आप वन में अपने गुप्तचर भेज दें। उन्हें मेरे बारे में कहें। वह मेरा बड़ा आदर करते हैं। वह कभी इनकार नहीं करेंगे।”
अपने श्वसुर की बात मान चन्द्रगुप्त ने ऐसा ही किया। गुप्तचर भेज दिए गए। चाणक्य ने उत्तर दिया, “ससम्मान सेल्युकस वन लाए जाएं, मुझे उनसे मिलकर प्रसन्नता होगी।” सेना के संरक्षण में सेल्युकस वन पहुंचे। औपचारिक अभिवादन के बाद चाणक्य ने पूछा, “मार्ग में कोई कष्ट तो नहीं हुआ।” इस पर सेल्युकस ने कहा, “भला आपके रहते मुझे कष्ट होगा? आपने मेरा बहुत ख्याल रखा।” न जाने इस उत्तर का चाणक्य पर क्या प्रभाव पड़ा कि वह बोल उठे, “हां, सचमुच आपका मैंने बहुत ख्याल रखा।” इतना कहने के बाद चाणक्य ने सेल्युकस के भारत भूमि पर कदम रखने के बाद वन आने तक की सारी घटनाएं सुना दीं। उसे इतना तक बताया कि सेल्युकस ने सम्राट से क्या बात की, एकांत में अपनी पुत्री से क्या बातें हुईं। मार्ग में किस सैनिक से क्या पूछा। सेल्युकस व्यथित हो गए। बोले, “इतना अविश्वास? मेरी गुप्तचरी की गई। मेरा इतना अपमान।”
चाणक्य ने कहा, “न तो अपमान, न अविश्वास और न ही गुप्तचरी। अपमान की बात मैं सोच भी नहीं सकता। सम्राट भी इन दो महीनों में शायद न मिल पाते। आप हमारे अतिथि हैं। रह गई बात सूचनाओं की तो वह मेरा “राष्ट्रधर्म” है। आप कुछ भी हों, पर विदेशी हैं। अपनी मातृभूमि से आपकी जितनी प्रतिबद्धता है, वह इस राष्ट्र से नहीं हो सकती। यह स्वाभाविक भी है। मैं तो सम्राज्ञी की भी प्रत्येक गतिविधि पर दृष्टि रखता हूं। मेरे इस “धर्म” को अन्यथा न लें। मेरी भावना समझें।”
सेल्युकस हैरान हो गया। वह चाणक्य के पैरों में गिर पड़ा। उसने कहा, “जिस राष्ट्र में आप जैसे राष्ट्रभक्त हों, उस देश की ओर कोई आंख उठाकर भी नहीं देख सकता।” सेल्युकस वापस लौट गया।
मित्रो! आज भारत में फिर से एक “विदेशी बहू” का राज चल रहा है, तो क्या हम भारतीय राष्ट्रधर्म का पालन कर रहे हैं?
-विश्वप्रिय आचार्य
आवरण कथा के अन्तर्गत श्री नरेन्द्र सहगल का विचारोत्तेजक आलेख “संघ का हौवा खड़ा कर मुसलमानों को भड़काने के राहुल के बयान पर “चुनाव आयोग की चुप्पी चिन्ताजनक” एक अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज है। राहुल गांधी सपा और बसपा की साम्प्रदायिक और जातिगत राजनीति को पीछे छोड़ कर मुस्लिम तुष्टीकरण की स्पर्धा में सबसे आगे निकलने के लिए आतुर दिखाई दे रहे हैं। इसलिए उन्होंने उर्दू पत्रकारों के साथ कहा, “संघ ने अपने मोहरे विभिन्न जगहों पर फिट कर रखे हैं जो मुस्लिम समुदाय की राह में रोड़े अटकाते हैं।” देशघातक राजनीति ने देश को एक बार फिर से विभाजन पूर्व की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है।
-आर.सी.गुप्ता
द्वितीय ए-201, नेहरू नगर
गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)
द आज की कांग्रेस जिस दुविधा और विषाद से ग्रस्त है उससे उबरने का कोई कारण नजर नहीं आता। कभी पूरे देश पर एकछत्र राज करने वाली पार्टी, आज सत्ता के लिए मजहबी उन्माद, क्षेत्रीयता और जातीयता फैलाने में सबसे आगे है। जहां उसे वोट की थोड़ी भी उम्मीद दिखती है, वहां कूद पड़ती है। किन्तु वहां से उसके अन्त का “काल” ही निकलता है। जिस मानसिकता ने देश का विभाजन कराया उसे ही कांग्रेस खाद-पानी दे रही है। सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्र आयोग, बनर्जी समिति आदि तरकस के सारे तीर चलाने के बावजूद कांग्रेस रसातल की ओर क्यों जा रही है, यह उन्हें सोचना चाहिए।
-कालीमोहन सिंह
गायत्री मंदिर,मंगलबाग, आरा, भोजपुर-802301 (बिहार)
द राहुल गांधी पूरी तरह साम्प्रदायिक राजनीति कर रहे हैं। वे उ.प्र. की हर चुनावी सभा में “मुस्लिम-राग” अलापते हैं। किन्तु आश्चर्य यह है कि चुनाव आयोग उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव के समय वरुण गांधी को इसी तरह के एक मामले में जेल भेज दिया गया था। अब चुनाव आयोग क्यों नहीं सक्रिय हो रहा है? चुनाव आयोग कांग्रेस को साम्प्रदायिक पार्टी घोषित करे।
-सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर
दिलसुखनगर, हैदराबाद (आं.प्र.)
द तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले लोग बड़ी चालाकी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर मिथ्या आरोप लगाते हैं। उन्हें लगता है कि संघ परिवार को मुस्लिम-विरोधी बताए बिना मुसलमान उन्हें वोट नहीं देंगे। यह सोच भारतीय लोकतंत्र को कमजोर कर रही है, साथ ही देश की एकता और सौहार्द को भी बिगाड़ रही है। ऐसे कथित सेकुलर नेताओं से लोगों को सतर्क रहना चाहिए।
-मनीष कुमार
तिलकामांझी, भागलपुर (बिहार)
द तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को देश में हुए हर दंगे में संघ का हाथ नजर आता था। उन दिनों कहा जाता था कि यदि कांग्रेस सरकार का बस चले तो तूफान, बाढ़ या भूकम्प जैसी प्राकृतिक घटनाओं के पीछे भी संघ को दोषी ठहरा दे। कांग्रेसियों में संघ के प्रति ऐसा द्वेष है। राहुल गांधी भी उसी द्वेष को आगे बढ़ा रहे हैं। वैचारिक विरोधियों पर बेबुनियाद दोषारोपण करना कांग्रेसी राजनीति का हिस्सा है। यह तो डा. हेडगेवार का प्रताप है कि संघ आज लाख विरोध के बावजूद हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है।
-मनोहर “मंजुल”
पिपल्या-बुजुर्ग, पश्चिम निमाड़-451225(म.प्र.)
फारूख के घड़ियाली आंसू
पाञ्चजन्य में एक रपट पढ़ी, जिसमें फारूख अब्दुल्ला कहते हैं, “अगर वे सत्ता में होते तो कश्मीरी पंडितों को कभी भी घाटी से जाने न देते।” यह बयान सिर्फ घड़ियाली आंसू है। कौन नहीं जानता है कि फारूख अब्दुल्ला के अब्बा शेख अब्दुल्ला के समय से ही हिन्दुओं को कश्मीर से भगाने की साजिशें रची जा रही हैं। कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार का राज वर्षों तक रहा है और अभी भी है। जो लोग विस्थापित हो गए हैं, उन्हें क्यों नहीं ससम्मान बसाया जा रहा है?
-कुन्ती रानी
कटिहार (बिहार)
संगठित हिन्दू
हुबली (कर्नाटक) में आयोजित “हिन्दू शक्ति संगम” में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने मन को अन्दर तक स्पर्श करने वाली बात कही है कि हिन्दुत्व ही देश को संगठित रखे हुए है। यह भी बात सत्य है कि हिन्दुओं के कारण ही यह देश प्रजातांत्रिक और पंथनिरपेक्ष है। भले ही सत्ता के लालची पंथनिरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण में लगे हैं। संगठित हिन्दू ही भारत की हर समस्या का समाधान है।
-बी.एल. सचदेवा
263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली-110023
पूर्वाञ्चल की चिन्ता
श्री जगदम्बा मल्ल की रपट “बारूद के ढेर पर पूर्वाञ्चल” में जो तथ्य दिए गए हैं, वे किसी भी राष्ट्रभक्त को चिन्ता में डाल देते हैं। पूरा पूर्वाञ्चल तस्करों, विद्रोही गुटों, अलगाववादियों और जिहादियों की करतूतों से परेशान है। किन्तु देश की मुस्लिमपरस्त सरकार पूर्वाञ्चजल की ओर कभी देखती भी नहीं है। पूर्वाञ्चल में बंगलादेश और पाकिस्तान के आतंकवादी स्थानीय युवाओं को भी आतंकवाद की ओर धकेल रहे हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। पूर्वाञ्चल सुरक्षित रहेगा, तभी भारत भी सुरक्षित रहेगा।
-हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार-854105 (बिहार)
मां मुझको मत दुत्कार
श्री अरुण कुमार सिंह की रपट “बच्चियों के प्रति बेदर्द दिल्ली” एक बार फिर स्त्रियों के प्रति समाज की संवेदना को झकझोर गई। बच्ची फलक के साथ जो हुआ वह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। मरणासन्न अवस्था में पड़ी फलक रुदन करती होगी”तेरे वृक्ष की कोपल हूं मैं, तेरे बाग की कोयल हूं मैं, तू भी बेटी मैं भी बेटी, तेरी परछाई मेरी पहचान, मां मुझको मत दुत्कार।”
-ममता कोचर
बी-33, नारायणा विहार, नई दिल्ली-110028
चुनाव में चंदा
स्विस बैंकों से आ सके, यदि वापस धन-माल
तब भारत हो जाएगा, इतने से खुशहाल।
इतने से खुशहाल, स्कूल-सड़कें विकसेंगी
गांव-नगर में लोगों की किस्मत चमकेगी।
कह “प्रशांत” पर इतना सरल नहीं यह धंधा
इससे ही तो मिलता है चुनाव में चंदा
-प्रशांत
पञ्चांग
वि.सं.2068 तिथि वार ई. सन् 2012
चैत्र कृष्ण 3 रवि 11 मार्च, 2012
“” “” 4 सोम 12 “” “”
“” “” 6 मंगल 13 “” “”
(पंचमी तिथि का क्षय) बुध 14 “” “”
“” “” 7 गुरु 15 “” “”
“” “” 8 शुक्र 16 “” “”
“” “” 9 शनि 17 “” “”
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