उजाड़ने की साजिश
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दिल्ली में कट्टरपंथी रच रहे हैं रिहायशी इलाकों से
हिन्दुओं को
अरुण कुमार सिंह
नई दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास से मात्र दो किमी.की दूरी पर स्थित है बटुकेश्वर दत्त (बी.के.) कालोनी। किंतु ऐसा लगता है कि इन दिनों यह कालोनी दिल्ली का भाग नहीं है, बल्कि पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद का एक ऐसा हिस्सा है, जहां कट्टरवादियों को हिन्दुओं को प्रताड़ित और अपमानित करने की खुली छूट दे दी गई है। 1956 में बनी यह कालोनी पहले कर्बला के नाम से जानी जाती थी। यहां 1947 में पश्चिमी पंजाब से अपने सगे-संबंधियों की लाशों के ढेर को पारकर अपनी जान की रक्षा के लिए सिर्फ पहने हुए कपड़ों के साथ दिल्ली आए हिन्दुओं को बसाया गया था। जिन लोगों ने उन दिनों इस्लामी बर्बरता देखी और भुगती थी, उनमें से अधिकांश लोग अब नहीं रहे। ऐसे लोग स्वर्ग में सोच रहे होंगे कि हिन्दू-बहुल भारत की राजधानी दिल्ली में उनके बाल- बच्चे उनकी तरह इस्लामी बर्बरता के शिकार नहीं होंगे और वे अपने अभागे पूर्वजों की तरह घर-द्वार छोड़ने को मजबूर नहीं होंगे। किन्तु अब उन्हें अपनी यह सोच बदल देनी पड़ेगी। उनके बच्चों के सामने पलायन की नौबत धीरे-धीरे आ रही है। एक खास वर्ग के लोग मजहबी स्थल की आड़ में बी.के. दत्त कालोनी के आसपास के सरकारी भूखंडों पर जबरदस्ती कब्जा कर चुके हैं। किसी त्योहार के बहाने ये लोग पूरी कालोनी में दहशत फैला रहे हैं। उन भूखंडों पर स्थानीय लोगों को जाने से रोक रहे हैं। खुलेआम माइक से कहा जाता है , “कर्बला खाली करो,” “इस्लाम से जो टकराएगा चूर-चूर हो जाएगा”…। भूखंडों पर इस्लामी झंडा गाड़ दिया गया है। दूर-दूर से लोगों को बसों में ठूसकर वहां ले जाया जाता है। कालोनी की गलियों में हजारों कट्टरपंथी बेमतलब घूमते हैं, शोर मचाते हैं। पूरी रात वहां मजमा लगा रहता है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह सब लोगों को आतंकित करने के लिए किया जाता है।उल्लेखनीय है कि 1100 घरों वाली इस कालोनी में सिर्फ एक ही घर किसी मुस्लिम का है। शेष सभी घर हिन्दुओं के हैं।
दहशत का माहौल
कालोनी के बीचोंबीच “दरगाह-शाहे-मरदान” है और इसका क्षेत्रफल चार बीघा सत्रह बीसवा है। इसकी देखरेख वक्फ बोर्ड की एक एजेंसी “अंजुमन हैदरी” करती है। दरगाह के उत्तर और दक्षिण में सरकारी भूखंड हैं और इन दोनों का क्षेत्रफल लगभग 5 बीघा है। इन दोनों खाली भूखंडों पर पहले कालोनी के लोग शादी-विवाह करते थे और बच्चे खेलते थे। किंतु पिछले एक साल से इन भूखंडों पर अंजुमन हैदरी ने कब्जा कर लिया है। गत 15 जनवरी को दरगाह में चेहल्लुम का त्योहार मनाया गया। इस अवसर पर हजारों लोगों को वहां बुलाया गया और कालोनी में दहशत फैलाने के लिए दरगाह के पश्चिमी दरवाजे (जो वर्षों से बंद पड़ा है) को तोड़ दिया गया। पुलिस ने जब उन्हें रोकने का प्रयास किया तो दरगाह के अंदर से पुलिस पर पत्थर फेंके गए। इस कारण 13 पुलिसकर्मी घायल हो गए। इस संदर्भ में आपराधिक दंड संहिता 154 के तहत लोधी कालोनी पुलिस थाने में प्रथम सूचना रपट (एफ.आई.आर.) दर्ज कराई गई। भारतीय दंड संहिता 1860(186/353/332/308/147/148/149/356/379) के तहत भीड़ को उकसाने के लिए बहादुर अब्बास नकवी, दिलावर अब्बास नकवी, नैयर अली, जहरूल हसन, तहशीन मोहम्मद, हैदर, मौलाना काजिम, पप्पू और मौलाना अतहर को नामजद किया गया। इस एफ.आई.आर. को रद्द कराने के लिए 13 फरवरी को शिया नेता कल्बे जव्वाद लखनऊ से दिल्ली आए और उनके नेतृत्व में कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड के सामने मुसलमानों ने प्रदर्शन किया।
दरअसल, पूरा मामला कालोनी के कुछ और सरकारी भूखंडों पर अवैध कब्जे की नीयत पर टिका है। कालोनी में कनाती मस्जिद, बड़ी कर्बला, छोटी कर्बला और नक्कारखाना भी है। कनाती मस्जिद संरक्षित सम्पत्ति है, फिर भी उस पर मुसलमानों ने कब्जा कर रखा है। बड़ी कर्बला कानूनन उनकी है। बड़ी कर्बला के साथ लगी छोटी कर्बला सरकारी भूमि है। किंतु 2011 में बड़ी कर्बला और छोटी कर्बला के बीच की दीवार को तोड़कर छोटी कर्बला पर जबरन कब्जा कर लिया गया। 15 जनवरी 2012 को उसी भूमि पर एक ऊंचा इस्लामी झंडा गाड़ दिया गया है। शहरी विकास मंत्रालय के भूमि एवं विकास कार्यालय, निर्माण भवन, नई दिल्ली से आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के अनुसार के-29 से के-95 (यहीं छोटी कर्बला है) सरकारी भूमि है। विभाग द्वारा 24 अप्रैल, 2007 को भेजे पत्र (एलएंडडीओ/पीएस-1/आरटीआई/01/27) के अनुसार दरगाह-शाहे- मरदान के आसपास की भूमि भी सरकारी है।
अंजुमन हैदरी की चालाकी
नक्कारखाना भी दिल्ली विकास प्राधिकरण, (डीडीए) की जमीन पर है। किंतु अंजुमन हैदरी गजट नोटिफिकेशन 1975 के आधार पर उपरोक्त सभी जगहों को अपनी होने का दावा करती है। इसी आधार पर अंजुमन हैदरी ने 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया। मुकदमे में नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) को वादी बनाया गया। जबकि एनडीएमसी उपरोक्त भूखंडों की मात्र देखरेख करती है। सारे भूखंड तो शहरी विकास मंत्रालय और डीडीए के हैं। किंतु इन दोनों को वादी नहीं बनाया गया। अंजुमन हैदरी की यही चालाकी काम आ गई। न्यायालय ने एनडीएमसी के अनापत्ति प्रमाणपत्र के आधार पर 2005 में ही आदेश दिया कि भूखंडों की चारदीवारी कर अंजुमन हैदरी को सौंपा जाए। न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ बी.के. दत्त कालोनी विकास समिति और आर.डब्ल्यू.ए. ने याचिका दायर की। इनका कहना था कि भूखंड के मालिकों (डीडीए और शहरी विकास मंत्रालय) के बिना किराएदार (एनडीएमसी) के अनापत्ति प्रमाणपत्र के आधार पर किसी को कैसे जमीन दी जा सकती है? इस बीच 2009 में शहरी विकास मंत्रालय ने न्यायालय में एक शपथपत्र दाखिल कर 1975 के गजट नोटिफिकेशन को चुनौती दी है। मंत्रालय ने कहा है कि इस नोटिफिकेशन की कोई जानकारी उसके पास नहीं है। मंत्रालय की जानकारी के बिना उसकी जमीन कैसे किसी को दी गई? इन सबके बावजूद न्यायालय ने 11 जनवरी, 2012 को फिर कहा कि भूखंडों की चारदीवारी की जाए। इसके बाद से ही वहां का माहौल खराब हो गया है। पुलिस का पहरा लगा हुआ है और एनडीएमसी ने चारदीवारी के लिए टैंडर भी निकाल दिया है।
विकास समिति और आर.डब्ल्यू.ए. ने 1 फरवरी, 2012 को दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर निवेदन किया है कि कालोनी में जितने भी सरकारी भूखंड और पार्क हैं उन्हें विकसित कर कालोनी वासियों को दिया जाए। याचिका में न्यायालय से कालोनी वासियों को सुरक्षा देने का भी निवेदन किया गया है। याचिका पर विचार करने के बाद 1 फरवरी को ही न्यायालय ने शहरी विकास मंत्रालय के भूमि एवं विकास कार्यालय, डीडीए और एनडीएमसी को यह बताने का निर्देश दिया है कि मास्टर प्लान के तहत इन भूखंडों का क्या उपयोग है। इस मामले की अगली सुनवाई 12 मार्च, 2012 को होगी।
हिन्दुओं में आक्रोश
वास्तव में देखा जाए तो यह मामला कुछ भू माफियाओं की वजह से बढ़ा है। पता चला है कि “अंजुमन हैदर” की कमेटी में कुछ ऐसे लोग आ गए हैं जो बी.के. दत्त कालोनी के सरकारी भूखंडों पर कब्जा करना चाहते हैं। स्थानीय लोगों को जब से इनकी मंशा का पता चला है तब से टकराव बढ़ा है। मालूम हो कि बी.के. दत्त कालोनी की कर्बला में दिल्ली भर के ताजिया पहुंचते हैं। ताजिया में आए लोगों के लिए स्थानीय हिन्दू पानी, शरबत आदि की व्यवस्था करते थे। मुस्लिम महिलाओं को अपने घरों में बिठाते थे। उन्हें जिस चीज की जरूरत होती थी वह भी देते थे। यानी इस कालोनी में सदैव सौहार्द का माहौल रहता था। किंतु अब स्थानीय हिन्दुओं को लग रहा है कि पता नहीं कब क्या हो जाएगा। हिन्दू दहशत के मारे अपने घरों में रहने को मजबूर हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले यहां साल में तीन ही त्योहार (मुहर्रम, चेहल्लुम और मासूम का ताजिया) मनाने के लिए लोग आते थे। किंतु मार्च 2011 से एक नया त्योहार यहां शुरू हो गया है। नवचंदी की रात (हर महीने की पहली जुमेरात) को हजारों लोग दरगाह-शाहे-मरदान में आते हैं और रातभर तकरीर दी जाती है। कानफोड़ू आवाज के साथ नारे लगाए जाते हैं। पूरी कालोनी में बेमतलब मोटर साइकिल और गाड़ियां तेज हॉर्न के साथ दौड़ाई जाती हैं। यह सब इसलिए किया जाता है कि हिन्दू दहशत में रहें और जिस दिन दहशत न झेल सकें उस दिन किसी मुस्लिम के हाथों अपना घर बेचकर यहां से भागें।
इस मामले को गंभीरता से देखने के बाद यह भी पता चलता है कि दहशतगर्दों के पीछे कुछ कथित सेकुलर नेता खड़े हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि एनडीएमसी पर कांग्रेसी नेताओं का दबाव है। इसलिए वह उन सरकारी भूखंडों पर तुरंत अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी कर देती है। सूत्रों के अनुसार 10 जनपथ के करीबी कई कांग्रेसी नेता इस मुद्दे पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। इसलिए कट्टरपंथी खुलेआम कालोनी में दहशत फैला रहे हैं। जबकि प्रताड़ित हिन्दुओं के पक्ष में कोई राजनीतिक आवाज नहीं उठ रही है। सेकुलर मीडिया भी मामले को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं कर रहा है। इस कारण स्थानीय हिन्दुओं में बड़ा आक्रोश है। द
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