|
जम्मू-कश्मीर/ विशेष प्रतिनिधि
सीमा पार गए उग्रवादियों का पाकिस्तानी
पत्नियों के साथ वापस आना आरंभ
सीमा पार पाकिस्तान तथा पाक अधिकृत कश्मीर में प्रशिक्षण लेने तथा शस्त्र लाने गए उग्रवादियों के पुनर्वास के फलस्वरूप गत तीन-चार मास में 50 से अधिक उग्रवादी रहस्यमय परिस्थितियों में जम्मू-कश्मीर पहुंच गए हैं। इनमें अधिकतर ने नेपाल तथा बंगलादेश के मार्गों से भारत में प्रवेश किया और कुछ ऐसे भी हैं जो नियंत्रण रेखा से घुसपैठ करके इस ओर आ गए हैं।
सरकार की पुनर्वास नीति का लाभ उठाने के लिए ये उग्रवादी न केवल स्वयं वापस आए हैं, अपितु अपने साथ पाकिस्तानी पत्नियां और उनके बच्चे भी साथ लाए हैं। वापस लौटने के इस घटनाक्रम में जो व्यक्ति इन दिनों यहां पहुंचे हैं उनमें बड़गाम कश्मीर का सलीम भट्ट और इसी क्षेत्र का नजीर अहमद भट्ट शामिल है। वह कराची से नेपाल के रास्ते पहले उत्तर प्रदेश और फिर जम्मू पहुंचे यहां वह एक स्थानीय होटल में ठहरे थे। पुलिस ने छापा मारकर पूछताछ के लिए उन्हें अपने नियंत्रण में ले लिया है। उनके साथ ही सलीम भट्ट की पाकिस्तानी पत्नी आशमा (निवासी कराची) तथा उसके तीन बच्चे शफवान अहमद आयु 7 वर्ष, शमा भट्ट आयु पांच वर्ष तथा हमजा भट्ट आयु तीन वर्ष भी पकड़े गए हैं।
कहा जाता है कि यह दोनों कश्मीरी उग्रवादी 1995 में नियंत्रण रेखा पार करके पाक अधिकृत कश्मीर तथा कुछ अन्य स्थानों पर आई.एस.आई. द्वारा चलाए जा रहे शिविरों में प्रशिक्षण प्राप्त करते रहे और फिर वहां से कराची चले गए। वहां इन दोनों ने पाकिस्तानी लड़कियों के साथ विवाह किया और उनके बच्चे हुए। सलीम भट्ट की पत्नी तथा 3 बच्चे उसके साथ आए हैं जबकि नजीर भट्ट की पत्नी ने तलाक दे दी है। वास्तविक स्थिति क्या है यह तो गहराई से पूछताछ पर पता चलेगा, किन्तु इन उग्रवादियों की वापसी के साथ ही और भी कई प्रश्न उत्पन्न होने लगे हैं। यद्यपि राज्य सरकार ने उनके पुनर्वास के लिए एक बड़ी योजना बनाई है जिसके अन्तर्गत उन्हें सरकारी सहायता तथा अन्य कई सुविधाएं प्राप्त होंगी। इन उग्रवादियों की वापसी के साथ सबसे बड़ा प्रश्न यह उत्पन्न हो रहा है कि उनकी पाकिस्तानी पत्नियों तथा वहां पैदा होने वाले बच्चों की नागरिकता क्या होगी।
भारतीय संविधान के अंतर्गत ये भारतीय नहीं माने जा सकते हैं और इससे भी बढ़कर इस राज्य के अपने संविधान के अनुसार भी ये जम्मू-कश्मीर के नागरिक नहीं कहला सकते।
इस संबंध में उल्लेखनीय है कि भारत बंटवारे के समय पीड़ादायक परिस्थितियों के बीच जम्मू के साथ लगने वाले सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तान से सैकड़ों परिवार इस ओर आ गए थे। इनमें हिन्दू-सिखों के अधिकतर हरिजन तथा पिछड़े वर्गों से संबंध रखने वाले शामिल हैं। लगभग 65 वर्ष का लम्बा समय बीत जाने के पश्चात भी इन शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर में अभी तक नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं। वह विधान सभा तथा अन्य संस्थानों के चुनाव में भाग नहीं ले सकते। उनके बच्चे आदि सरकारी नौकरियां प्राप्त नहीं कर सकते। उन्हें नागरिकता के अधिकारों के अंतर्गत सुख-सुविधाओं से वंचित रखा गया है।
किन्तु पंथनिरपेक्ष भारत के इस भूभाग जम्मू-कश्मीर में बहुत कुछ निराला भी है। 1960 के दशक में तिब्बत तथा सिक्यांग से जो मुसलमान शरणार्थी कश्मीर घाटी तथा अन्य स्थानों में आए थे उन्हें तो नागरिकता की लगभग सभी सुविधाएं प्राप्त हो गई हैं किन्तु पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थी अब भी इनसे वंचित हैं।
पाकिस्तान गए कितने उग्रवादी वापस आना चाहते हैं तथा इस राज्य के उस पार गए ऐसे कुल व्यक्ति कितने हैं, इसकी कोई पक्की सूची तथा संख्या सरकार के पास नहीं है। अनुमानों के अनुसार यह संख्या 3000 से अधिक बताई जाती है अपितु उस पार गए उग्रवादियों के जिन परिजनों ने उनकी पाकिस्तान व पाक अधिकृत कश्मीर से पुलिस तथा अन्य सुरक्षा संगठनों के पास अपने आवेदन पत्र जमा करवाए हैं उनकी संख्या 850 बताई जा रही है। द
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की दयनीय स्थिति
सिद्धांतों तथा राष्ट्र हित की उपेक्षा करते हुए किसी भी स्थिति में सत्ता से चिपके रहने की लालसा ने जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के मंत्रियों को एक विचित्र सी स्थिति में ला खड़ा किया है। वह भ्रष्टाचार के आरोपों में न केवल पंगु बनकर रह गए हैं अपितु गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही नेशनल कांफ्रेंस की हर विषय पर हां में हां मिलाने पर विवश हो रहे हैं जिनमें अलगाववादी सोच से संबंधित कई प्रश्न शामिल हैं।
इस स्थिति का सबसे उल्लेखनीय पक्ष यह है कि कांग्रेस के अधिकतर मंत्रियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप लगाने में विपक्ष से कहीं अधिक गुटों में बंटी स्वयं कांग्रेस के कई कार्यकर्ता शामिल हैं और इन आरोपों को लेकर कुछ नेशनल कान्फ्रेंस के प्रमुख नेता इन मंत्रियों को सत्ता से बाहर करने तथा उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने पर बल देने लगे हैं।
आधा दर्जन के लगभग जिन मंत्रियों को घेरने का प्रयास किया जा रहा है उनमें कांग्रेस के प्रमुख नेता तथा पीएचई, सिंचाई तथा बाढ़ नियंत्रण मंत्री ताज मोहिदीन के अतिरिक्त पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा शिक्षा मंत्री पीरजादा मोहम्मद सईद भी शामिल हैं।
ताज मोहिदीन के विरुद्ध भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाने वालों में प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष तथा विधान परिषद के सदस्य अब्दुल गनी वकील तो खुलकर मैदान में आ गए हैं। समाचारों के अनुसार श्री वकील ने कहा है कि भ्रष्टाचारियों का पर्दाफाश करना है। ये तो उनके बड़े नेताओं का भी आदेश है।
पीरजादा मोहम्मद सईद के विरुद्ध इन दिनों जो बड़ा आरोप लगाया जा रहा है वह यह है कि उन्होंने अपने पुत्र को मैट्रिक की परीक्षा पास करवाने के लिए अपने विभाग का दुरुपयोग किया है।
इस संबंध में उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार के कुछ आरोपों के आधार पर गत वर्ष कांग्रेस के एक वरिष्ठ मंत्री को त्याग पत्र देना पड़ा था। रोचक स्थिति यह सामने आ रही है कि कांग्रेस के कई मंत्रियों के विरुद्ध आरोप लग रहे हैं और वह अपने को दयनीय स्थिति में पाकर नेशनल कान्फ्रेंस के नेतृत्व को प्रसन्न रखने में लगे हैं तथा नेशनल कान्फ्रेंस के कई विवादित मुद्दों का भी समर्थन करने लगे हैं, किन्तु इसके पश्चात भी नेशनल कान्फ्रेंस के कुछ नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे कांग्रेसियों को मंत्रिमण्डल से बाहर निकालने पर बल दे रहे हैं। ऐसे नेताओं में डा. फारुख अब्दुल्ला के छोटे भाई और पूर्व मंत्री डा. मुस्तफा कमाल भी शामिल हैं। नेशनल कान्फ्रेंस के इस विधायक तथा नेता ने यहां तक कह दिया है कि इन मंत्रियों की उपस्थिति में उमर अब्दुल्ला की सरकार पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष प्रो. सेफुद्दीन सोज को भी अपनी आलोचना का निशाना बना डाला। द
प.बंगाल/ बासुदेब पाल
ग्रामीण इलाकों की स्थिति खराब
नहीं हो रहा कोष का पूरा उपयोग
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश की लगातार निगरानी तथा स्वयं प. बंगाल के गांव-गांव में जाकर जायजा लेने के बावजूद इस विषय पर ममता बनर्जी काफी उदासीन हैं। अब तो पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने स्वयं पिछड़ेपन की बातें स्वीकार कर ली है।
कुछ जगहों पर विकास निधि रखी है, तो कुछ स्थानों पर धन का उपयोग करना ही संभव नहीं हुआ। ऐसी रपट राज्य सरकार की ओर से केन्द्र सरकार को दी गई है। यद्यपि- इसमें “हम कर नहीं पाए” ऐसा नहीं बताया गया। परन्तु कुल मिलाकर 100 दिन काम दिलवाने के मामले में दिसम्बर 2011 तक राज्य सरकार केन्द्र से प्राप्त धन का 52.14 प्रतिशत ही खर्च कर पाई। यानी आधा धन लगभग रखा रह गया। गरीबी रेखा के नीचे वालों को काम देने के मामले में 45.55 प्रतिशत ही सफलता मिली। इस असफलता और नाकामी के लिए राज्य विधानसभा के चुनाव को जिम्मेदार बताया। मगर 20 मई 2011 को नई सरकार ने शपथ ली थी। उसके बाद 6 महीने बीत गए, मौजूदा वित्त वर्ष में सिर्फ एक महीने का समय है और लगभग आधा पैसा खर्च करना बाकी है। यद्यपि इस काम को गति देने के लिए राज्य के पंचायत और ग्राम विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी चन्द्रभान सिंह से छीनकर राज्य के अनुभवी मंत्री सुब्रत मुखर्जी को दे दी गई। केन्द्रीय ग्राम विकास मंत्री जयराम रमेश की लगातार निगरानी से राज्य की मुख्यमंत्री नाराज हैं, क्योंकि 2 फरवरी को दिल्ली में आयोजित पंचायत मंत्रियों के सम्मेलन में प. बंगाल के प्रतिनिधि सुब्रत मुखर्जी गये ही नहीं क्योंकि सबके समक्ष बेनकाव होने का डर था।
2010 के दिसम्बर तक चालू वित्तीय वर्ष में 100 दिन कार्य योजना के काम में 1705 करोड़ 95 लाख रुपए खर्च किए गए थे, इस वार 2011 में दिसम्बर तक 1270 करोड़ 29 लाख रुपए ही खर्च हुए हैं। जिसमें 27 लाख 69 हजार 279 परिवार लाभान्वित हुए हैं। अब राज्य सरकार जी जान से मनरेगा के काम में जुटी है। जिला अधिकारी, प्रखण्ड उन्नयन अधिकारी, ग्राम पंचयात व जिला परिषद को इस काम में लगाया जा रहा है।
राज्य के पंचयात एवं ग्रामोन्नयन कार्यालय के सचिव सौरभ कुमार दास के साथ इस विषय पर केन्द्र की बैठक भी हो चुकी है। केन्द्र को जो रपट राज्य के ग्रामोन्नयन कार्यालय की ओर से भेजी गयी उसमें कहा गया है कि इस समय राज्य की 85 ग्राम पंचायतें एकदम निष्क्रिय हैं। 25 नवम्बर, 2011 को जिला अधिकारी को पत्र भेजकर ऐसी ग्राम पंचायतों की सूची बनाने के लिए कहा गया। इसके साथ राज्य ने केन्द्र से दिसम्बर माह में धन मांगा जबकि राज्य के पास रखा हुआ अधिकतर धन खर्च ही नहीं हुआ। राज्य ने पिछले आर्थिक वजट में खर्च के हिसाब का ब्योरा नहीं दिया- इस कारण केन्द्र से 600 करोड़ रुपए प्राप्त ही नहीं हुए। इससे चालू वित्तीय वर्ष में काम की रफ्तार धीमी पड़ गयी। एक साल के अन्दर राज्य में पंचायत चुनाव भी होने वाले हैं। पंचायत एवं ग्रामोन्नयन मंत्री सुब्रत मुखोपाध्याय ने प्रत्येक उन्नयन प्रखंड में काम की गति तेज करने के निर्देश दिए हैं। जानकार लोगों का तो कहना है कि इससे पिछले छह माह की नाकामी को छिपाया नहीं जा सकता। द
टिप्पणियाँ