गो मांस निर्यात के खिलाफ हिन्दू लामबन्द
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गो मांस निर्यात के खिलाफ हिन्दू लामबन्द
भारत सरकार के पशुपालन विभाग द्वारा गोमांस के निर्यात की संस्तुति से आहत दिल्ल्ी के प्रमुख धार्मिक व सामाजिक संगठन लामबन्द हो गए हैं। सभी ने एक स्वर से प्रस्ताव पारित कर सरकार की निंदा करते हुए इसे हिन्दुओं की आस्था पर चोट व देश की अर्थव्यवस्था के खिलाफ एक घिनौना षड्यंत्र करार दिया। लगभग एक दर्जन से अधिक प्रमुख हिन्दुवादी व राष्ट्र प्रेमी गोभक्तों के संगठनों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों तथा पूज्य संतों ने सरकार को चेतावनी भरे स्वर में कहा कि यदि सरकार गोमाता की हत्या पर उतारू रहती है तो देशभर में एक ऐसा लोकतांत्रिक अलख जगाएंगे कि संप्रग सरकार तो क्या, इसको समर्थन देने वाले भी धराशायी नजर आएंगे।
दिल्ली के झण्डेवालां देवी मन्दिर के सभागार में संतों की अध्यक्षता में भारतीय गोवंश रक्षण एवं संवर्धन परिषद दिल्ली द्वारा बुलाई गई इस बैठक में जब सबने अपनी-अपनी बात रखी तो उपस्थित गोभक्त सरकार के इस कुकृत्य के खिलाफ अपने क्रोध को रोक न सके। सभी ने एक स्वर से प्रस्ताव पारित कर सरकार से आग्रह किया कि अपने पशुपालन विभाग व योजना आयोग को तुरन्त निर्देश दे कि वे गो मांस निर्यात संबंधी अपने प्रस्ताव को अविलम्ब निरस्त कर देश के सौ करोड़ हिन्दुओं व कृषि पर आधारित जनता से माफी मांगे, अन्यथा इसके गंभीर लोकतांत्रिक परिणाम भुगतने पड़ेंगे। यह भी तय किया गया कि यदि सरकार नहीं चेती तो हम न्यायालय की शरण में भी जाएंगे।
उधर विश्व हिन्दू परिषद ने भारत सरकार के पशुपालन विभाग द्वारा गो मांस के निर्यात को खोले जाने की संस्तुति पर अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को एक पत्र भेजा है। विहिप के वरिष्ठ सलाहकार श्री अशोक सिंहल, उपाध्यक्ष श्री ओम प्रकाश सिंहल व अन्तरराष्ट्रीय महामंत्री श्री चंपतराय द्वारा हस्ताक्षरित यह ज्ञापन प्रधानमंत्री के साथ योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री मोन्टेक सिंह अहलूवालिया को भी भेजा गया। ज्ञापन में यह मांग की गई है कि सौ करोड़ से अधिक भारतीयों की आस्था व विश्वास का केन्द्र, देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की नींव, पर्यावरण की रक्षक व संविधान तथा न्यायालयों के निर्णयानुसार संरक्षित गो माता के मांस के निर्यात संबंधी घृणित प्रस्ताव को अविलम्ब निरस्त किया जाए।
उल्लेखनीय है कि बारहवीं पंच वर्षीय योजना (2012-2017) के लिए भारत सरकार के पशुपालन व डेयरी विभाग के वर्किंग ग्रुप ने योजना आयोग को एक रपट प्रस्तुत की है जिसके अध्याय-12 के पैरा 12.3.1 के अन्तर्गत यह कहा गया है कि वतर्मान में गो मांस निर्यात पर प्रतिबंध है, अत: आयात-निर्यात नीति में आवश्यक संशोधन कर गो मांस के निर्यात की स्वीकृति दी जाए। इस प्रस्ताव पर विहिप ने चेताया है कि यदि इस प्रस्ताव को तुरन्त निरस्त नहीं किया गया तो संतों के नेतृत्व में हिन्दू समाज सड़कों पर उतरने को मजबूर होगा।द प्रतिनिधि
वेद और पुराणों को कपोलकल्पित बताना भ्रामक
-बालमुकुंद, राष्ट्रीय संगठन सचिव, इतिहास संकलन योजना
भारतीय इतिहास संकलन समिति, काशी प्रान्त, महारानी बनारस महिला महाविद्यालय और महाराज बलवन्त सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “पुराणों में इतिहास एवं संस्कृति के मूलतत्व” राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर विशिष्ट अतिथि (राष्ट्रीय संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना) बालमुकुन्द ने अपने उद्बोधन में कहा कि अंग्रेजों के द्वारा विकृत भारतीय इतिहास आजादी के 65 वर्षोंं बाद भी पढ़ाया जा रहा है और तथाकथित प्रगतिशील इतिहासकार भारत के धर्मग्रन्थों, आराध्यों और इतिहास के मूल स्रोत वेद और पुराणों को कपोलकल्पित बताकर भारत के सही इतिहास को भ्रमित रूप दे रहे हैं, लेकिन अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना इनके इन प्रयासों को धराशायी करती आ रही है और वर्तमान में पुराणों के शोध के विषय को लेकर योजना द्वारा किया जा रहा कार्य उसी की एक कड़ी है। श्री बालमुकुन्द ने इतिहासकारों का आह्वान किया कि वे योजना के साथ जुड़कर भारत के वास्तविक इतिहास को प्रकट करने में सहायक बनें।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता प्रो. टी.पी.वर्मा ने अपने उद्बोधन में बताया कि पुराणों के पांच लक्षण बताये गये हैं। सर्ग, प्रतिसर्ग, मनवन्तर, वंश और वंशानुचरित। ये सभी इतिहास से सम्बन्धित हैं। मानव इतिहास की दृष्टि से मन्वन्तर तथा वंश और वंशानुचरित ही महत्वपूर्ण हैं। इसे अन्तिम दो में से राजाओं एवं ऋषियों के वंश एवं चरित से सम्बन्ध हैं जबकि मन्वन्तर पृथ्वी के जीवनकाल का विज्ञान है। हम सब जानते हैं कि पृथ्वी सौरमण्डल का एक ग्रह है जो सूर्य का चक्कर लगाती रहती है और इसी कारण धरती पर वर्ष तथा मौसम में बदलाव होता रहता है। सौरमंडल हमारी आकाश गंगा का एक अतिक्षुद्र भाग है जिसमें एक खरब सूर्य हैं। उसकी चार भुजाएं हैं जिनमें एक भुजा में एक किनारे पर स्थित हमारा सौरमण्डल है। यह आकाश गंगा का चक्कर लगाता रहता है। एक चक्कर पूरा करने में हमारे पुराणों के अनुसार 30,67,20,000 वर्ष लगते हैं। इसे एक मन्वन्तर कहा गया है। आधुनिक विज्ञान इस अवधि को पहले 22 करोड़ वर्ष मानता था अब 28 करोड़ वर्ष मानता है। हमारी धरती अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में ऐसे 14 चक्कर लगाती है अर्थात् उसका सम्पूर्ण जीवनकाल चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष का होता है। प्रो. वर्मा ने कहा कि पौराणिक कालगणना के अनुसार अब तक ऐसे छ: मन्वन्तर बीत चुके हैं और सातवां मन्वन्तर चल रहा है जिसके 12,05,33,113 वर्ष (2012 ई. में) व्यतीत हो चुके हैं। इस मन्वन्तर की सबसे बड़ी उपलब्धि मानव का उद्भव है जो अब तक का सबसे विकसित प्राणी है। वर्तमान मन्वन्तर वैवस्वतमनु का मन्वन्तर कहा जाता है। वैवस्वतमनु पहले मनुष्य थे जिनसे मानवता का इतिहास शुरू होता है। इसका लेखा-जोखा पुराणों में मिलता है।
महात्मा गांधी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. पृथ्वी नाग ने भी सत्र को सम्बोधित किया और उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भूगोल को इतिहास के साथ जोड़कर इसे और सशक्त बनाया जा सकता है। बिना भूगोल की सहायता के इतिहास वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अधूरा लगता है। योजना के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. देवी प्रसाद सिंह ने अतिथियों का परिचय और संगोष्ठी के विषय में जानकारी दी। मंच संचालन डा. सरोज उपाध्याय ने किया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में 100 से अधिक शोधपत्र पढ़े गये और उपस्थित विद्वान/छात्रों की संख्या 350 रही।दप्रतिनिधि
पाञ्चजन्य-आर्गेनाइजर के प्रतिनिधियों की अ.भा. बैठक सम्पन्न
प्रखर राष्ट्रवादी साप्ताहिक पाञ्चजन्य और आर्गेनाइजर की प्रकाशन संस्था भारत प्रकाशन (दिल्ली) लि. के तत्वावधान में अखिल भारतीय प्रतिनिधि बैठक 16 फरवरी 2012 को दीनदयाल शोध संस्थान में सम्पन्न हुई। देश के विभिन्न क्षेत्रों में पाञ्चजन्य और आर्गेनाइजर के लिए विज्ञापन व प्रसार से जुड़े 75 प्रतिनिधियों ने बैठक में हिस्सा लिया। इस बैठक के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. प्रचार प्रमुख डा. मनमोहन वैद्य थे। श्री वैद्य ने दोनों समाचार पत्रों की राष्ट्र निर्माण में भूमिका पर प्रकाश डालते हुए इनके विस्तार के लिए पूरी तत्परता से जुटने का प्रतिनिधियों का आह्वान किया। एक सत्र में उत्तर क्षेत्र के प्रचार प्रमुख श्री नरेन्द्र ने प्रतिनिधियों से चर्चा की। एक अन्य सत्र में विज्ञापन तथा प्रसार विभाग के प्रतिनिधियों को विभाग प्रमुखों के द्वारा विज्ञापन व प्रसार की अनेकानेक योजनाओं की जानकारी दी गई, जिसे सभी प्रतिनिधियों ने सराहा व पूरे मनोभाव से निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने का संकल्प व्यक्त किया। समापन कार्यक्रम में विज्ञापन व प्रसार में विशेष योगदान के लिए श्री आशाराम जैन, श्री तिलक भट्ट तथा श्री सुभाष मल्होत्रा को सम्मानित किया गया। द प्रतिनिधि
भारत नीति प्रतिष्ठान की वेबसाइट का लोकार्पण
बुद्धिजीवी सच बोलने व लिखने की हिम्मत रखें
-सहसरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
भारत नीति प्रतिष्ठान द्वारा विगत दिनों नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में “वर्तमान समाज में बुद्धिजीवी वर्ग” विषय पर परिचर्चा तथा प्रतिष्ठान की वेबसाइट का लोकार्पण किया गया। वेबसाइट का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले ने किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर हिंदी न्यूज चैनल आईबीएन7 के प्रबंध संपादक श्री आशुतोष और मुख्य वक्ता के तौर पर भारत सरकार के पूर्व सचिव श्री आर. वेंकट नारायणन मौजूद थे।
इस अवसर पर अपने उद्बोधन में श्री दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि बुद्धिजीवी वह हैं जो न तो वामपंथी हैं और न दक्षिणपंथी। उन्होंने कहा कि भारत में ज्ञान प्राप्ति के बाद व्यक्ति संत बन जाता है और भौतिक बातों से ऊपर उठकर वस्तुनिष्ठ बातें करता है। वह सत्ता के साथ गीत नहीं गाता बल्कि सच बोलने या लिखने की हिम्मत रखता है। लोभ रहित होना उसकी एक बड़ी खूबी होनी चाहिए। शहर केन्द्रित मानसिकता पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा की पिछले सालों में एक लाख किसानों ने आत्महत्या की, तब यह मात्र एक समाचार बनकर रह गया। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि अगर एक हजार उद्योगपति या साफ्टवेयर इंजीनियरों ने आत्महत्या की होती तो देश में हलचल मच गयी होती और भूचाल आ जाता। अन्नदाताओं के साथ यह निर्दयता और संवेदनहीनता क्यों?
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में भारत सरकार के पूर्व सचिव आर. वेंकट नारायणन ने भारत के वर्तमान बुद्धिजीवियों के ऊपर दोहरेपन का आरोप लगाये हुए कहा कि कोई भी जो हिन्दू हितों की बात करता है वह बुद्धिजीवी नहीं माना जाता और जो वामपंथी है वह स्वत: बुद्धिजीवी बन जाता है। उन्होंने बुद्धिजीवी होने के लिए तए किए जा रहे इन हथकण्डों पर अफसोस जताया।
श्री आशुतोष ने कहा कि हमें अपने इतिहास में झांक कर दुबारा देखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जो विचारधारा के तय पैमाने से ऊपर उठकर कर खुली चर्चा की परंपरा शुरू करता है वही सही मायने में बुद्धिजीवी है और वही सत्ता को रास्ता दिखा सकता है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि अब खुल कर चर्चा की परंपरा खत्म हो गई है। उन्होंने बौद्धिक दोहरेपन पर जमकर प्रहार किया और कहा कि आज देश का अंग्रेजी भाषा से ग्रस्त बुद्धिजीवी विनायक सेन जैसे लोगों का समर्थन करता है, जो संविधान विरोधी, हिंसा समर्थक और देश विरोधी हैं उन्हें जब न्यायालय सजा देती है तो वे अदालत के खिलाफ खड़े हो जाते हैं, पर जब एक साधारण व्यक्ति अण्णा देश के लोगों का नेतृत्व करते हैं तो वे ही बुद्धिजीवी उन पर तरह तरह के आरोप लगाते हैं। उन्होंने वैचारिक जगत को बौद्धिकता का विरोधी बताया।
प्रतिष्ठान के निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि आजादी के बाद बुद्धिजीवियों का सत्ता के साथ सहयोग तो स्वाभाविक था क्योंकि नव स्वतंत्र देश में सबको साथ मिलकर राष्ट्र निर्माण में लगना होता है, पर बाद में यह अपवाद सामान्य परंपरा में तब्दील हो गया। बुद्धिजीवियों को सत्ता प्रतिष्ठान सहयोग करने लगा और वे पूरी तरह से सत्ता के सुर में सुर मिलाते गए। उन्होंने कहा कि बुद्धिजीवियों को आलोचनात्मक तरीके से नीतियों पर विमर्श करना चाहिए। अमेरिका का उदहारण देते हुए उन्होंने कहा की ओबामा ने पूंजीवादी देश में समाजवादी स्वस्थ नीति लागू करने का दुस्साहस इसलिए दिखा पाए क्योंकि बुद्धिजीवियों के थिंक टैंक्स ने उनका साथ दिया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. शीला राय तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राजवीर शर्मा ने दिया। द प्रतिनिधि
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