धराशायी हुआ कांग्रेसी दंभ
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महाराष्ट्र में महानगर पालिकाओं और जिला पंचायत चुनावों में कांग्रेस ने मुंह की खाई
केसरिया की चली लहर
मुम्बई में भाजपा–शिवसेना गठबंधन सब पर भारी
पुणे से द.वा.आंबुलकर
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों की तर्ज पर गत दिनों हुए दस महानगर पालिकाओं एवं जिला पंचायतों के चुनावों में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने शानदार जीत हासिल करते हुए सत्ताधारी कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस को जोरदार चुनौती दी है। इन चुनावों के परिणामों से सत्तापक्ष पर, खासकर कांग्रेस के राज्य स्तरीय नेतृत्व पर सीधे तौर पर असर पड़ा है, साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की राजनीतिक काबिलियत पर पहली बार उनके अपने ही साथियों द्वारा सार्वजनिक तौर पर सवालिया निशान लगा दिया गया है।
चुनाव परिणामों के अनुसार, राजधानी मुम्बई के अलावा ठाणे, उल्हासनगर तथा अकोला में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने बहुमत प्राप्त किया तो उपराजधानी नागपुर में भाजपा ने जोरदार बढ़त के साथ अपनी सत्ता बरकरार रखी।
धूल में मिली कांग्रेसी ठसक
इस बार राज्य की दस महानगर पालिकाओं में से मुम्बई, पुणे तथा नागपुर के चुनाव राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं के लिए निजी तौर पर भी प्रतिष्ठा का विषय बने थे। जैसे कि मुम्बई में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने यह दावा बार-बार किया था कि चुनाव के बाद शिवसेना एवं उसके प्रमुख बालासाहब ठाकरे को कोई पूछेगा तक नहीं। मतदाताओं ने शिवसेना के साथ भाजपा को भी अपना जबरदस्त समर्थन देते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि इस महानगरी में आज भी शिवसेना और भाजपा को भारी जनसमर्थन प्राप्त है।
इसके विपरीत पुणे में राज्य के उप मुख्यमंत्री अजित पवार तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार द्वारा अपनी पूरी ताकत झोंकने तथा अपने सत्ता सहयोगी दल कांग्रेस पर चुनाव प्रचार के दौरान कई बार तीखे प्रहार करने के बावजूद मतदाताओं ने कांग्रेस को अपने बलबूते पर पुणे की राजनीतिक बागडोर संभालने हेतु सक्षम नहीं समझा।
उधर राज्य की उप राजधानी नागपुर में भाजपा ने 2007 के महानगर पालिका चुनाव में प्राप्त 56 स्थानों के बदले 62 स्थान जीतकर अपनी स्थिति और मजबूत कर ली है। इसके चलते भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी की विकास की राजनीति की संकल्पना पर उनके अपने गृहनगर में मतदाताओं ने बहुमत की मुहर भी लगा दी है।
नागपुर महानगर पालिका के चुनाव इस बार इसलिए भी दिलचस्प बन गए थे क्योंकि यहां कांग्रेस के महामंत्री विलास मुत्तेमवार ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को चुनौती दी थी। विलास नागपुर से मौजूदा कांग्रेसी सांसद भी हैं। यहां हुई सीधी टक्कर में भाजपा की जीत ने महानगर में भाजपा की बढ़ती ताकत को बुलंद स्वर में गुंजा दिया।
जिला पंचायत चुनावों में भी इस बार उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने लोकसभा में भाजपा संसदीय दल के उप नेता गोपीनाथ मुंडे के प्रभाव क्षेत्र में सेंध लगाने हेतु राजनीतिक पैंतरेबाजी चलते हुए मुंडे परिवार में दरारें डालने की घिनौनी करतूत की थी। गोपीनाथ मुंडे के भाई पंडितराव तथा उनके भतीजे भाजपा विधायक धनंजय मुंडे को राजनीतिक लालीपाप दिखाते हुए अजित पवार द्वारा चुनाव के ठीक पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस में शामिल किया जाना मतदाताओं को बिल्कुल रास नहीं आया। जिला पंचायत चुनावों में मतदाताओं ने अजित पवार के राजनीतिक चंगुल में गये भाजपा के इन बागी कार्यकर्त्ताओं तथा उनके समर्थकों को हराकर एक ओर जहां उनको उनकी सही जगह दिखा दी, वहीं दूसरी ओर भाजपा तथा गोपीनाथ मुंडे की साख भी बढ़ा दी।
महानगरों में भाजपा आगे
चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट हुआ कि भाजपा ने सभी महानगरों में अपनी ताकत काफी बढ़ा ली। मुम्बई में 2007 के 28 स्थानों की तुलना में भाजपा ने इस बार 32 स्थान, ठाणे में 5 की जगह 8, पुणे में 25 की जगह 26, नागपुर में 56 की जगह 62 तथा अकोला महानगर पालिका में 11 की जगह 18 स्थान जीतकर अधिकांश महानगर पालिकाओं में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। नासिक महानगर पालिका में भी भाजपा 14 स्थानों के साथ निर्णायक स्थिति में आ गई।
जिला पंचायतों में गठबंधन दमदार
जिला पंचायत चुनावों में भी इस बार भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने नागपुर के अलावा जलगांव, जालना, बीड, हिंगोली, परभणी, ठाणे, रत्नागिरि, रायगढ़ आदि जिला पंचायतों में जीत दर्ज की है। यह स्थिति सत्ता पक्ष कांग्रेस के साथ-साथ कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस के लिए केवल चुनौती ही नहीं, खतरे की घंटी भी है।
महानगर पालिकाओं एवं जिला पंचायतों के चुनाव में करारी हार के लिए राज्य के कांग्रेसी मुख्यमंत्री को जवाबदेह माना जा रहा है। राज्य के उद्योग मंत्री तथा पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने महाराष्ट्र के इन चुनावों के संदर्भ में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष माणिकराव ठाकरे तथा मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इन नेताओं ने इस चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया। उन्हें (नारायण राणे को) चुनाव प्रचार अभियान में पूरी तरह शामिल तक नहीं किया था, जिसके नतीजे अब सबके सामने हैं।
राज्य की महानगर पालिकाओं तथा जिला पंचायतों के चुनाव में कांग्रेस के पिछड़ जाने पर अब कांग्रेसी आलाकमान ने राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को जिम्मेदार ठहराते हुए उनसे कांग्रेस की हार के कारणों की रपट भिजवाने को कहकर पृथ्वीराज चव्हाण की राजनीतिक मुसीबतें बढ़ा दी हैं।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य की कांग्रेस सरकार और केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार महाराष्ट्र में अब किस मुंह से अपनी तारीफों के पुल बांधेगी। महाराष्ट्र की समझदार जनता ने कांग्रेस को उसकी सही जगह दिखाकर अपनी राजनीतिक सूझबूझ की कमाल की मिसाल दी है। देश की जनता को इस तरफ नजर डालकर मौकापरस्त और देश-विरोधी कार्य करने वाले राजनीतिज्ञों को धूल चटाने की मानसिकता बनानी होगी, क्योंकि ये अवसरवादी जनता की नकार को मौके पर मलाई लूटने की गरज से भयंकर विरोधी विचारधाराओं के चलते भी हाथ मिलाकर जनमत के अपने पक्ष में होने का दम भरते हुए मीडिया के कैमरों के आगे खीसें निपोरते हैं।
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