सम्पादकीय
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सम्पादकीय
उत्पीड़न की चिंगारी को अत्याचारी अपने ही आंचल में छिपाए रहता है।
-जयशंकर प्रसाद (चन्द्रगुप्त, तृतीय अंक)
घोटाला तो धन का होता है, 2 जी स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमंडल खेल घोटालों में पैसे का इतना बड़ा लेन-देन हुआ कि उन्हें महाघोटाला कहा जाने लगा। लेकिन उत्तर प्रदेश में करीब 10 हजार करोड़ का बताया जा रहा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाला इस मामले से जुड़े लोगों की मौतों के कारण “खूनी घोटाला” कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। पिछले करीब सवा साल में इस घोटाले ने 6 लोगों की बलि ले ली। हाल ही में स्वास्थ्य विभाग के लेखा विभाग के एक अधिकारी महेन्द्र शर्मा, जो पिछले एक सप्ताह से ज्यादा समय से लापता थे, का लहूलुहान शव मिलना इस संदेह को और गहरा करता है कि घोटालेबाजों का तंत्र सच्चाई को सामने आने देने से रोकने के लिए नृशंस हत्याएं करने से भी नहीं चूक रहा। पूर्व में दो मुख्य चिकित्साधिकारियों की हत्या और इसी मामले में जेल भेजे गए एक उप चिकित्साधिकारी की जेल में संदिग्ध मौत, बीती जनवरी में ही योजना के एक परियोजना अधिकारी द्वारा आत्महत्या तथा उसी माह वाराणसी के उप चिकित्साधिकारी की सड़क दुर्घटना में मौत और अब महेन्द्र शर्मा की संदिग्ध मौत इसकी पुष्टि करती है। शर्मा के पुत्र का यह कहना कि कुछ कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए उन पर लगातार दबाव डाला जा रहा था, इन मौतों और हत्याओं के पीछे किसी गंभीर षड्यंत्र की ओर संकेत करता है। इस संदर्भ में लगातार स्थानांतरणों के द्वारा उनका मानसिक उत्पीड़न किए जाने की बात भी सामने आई है। इससे स्पष्ट है कि शासन-प्रशासन में गहरी पैठ बनाए बैठे घोटालेबाजों का तंत्र इतना व्यापक है कि उनके विरुद्ध कोई चूं भी न कर सके।
मायावती के राज में उ.प्र.किस तरह घोटालों व भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया और सरकारी खजाने व सरकारी योजनाओं से मनचाही लूट का अवसर लोगों को मिला, यह इसी से साबित हो जाता है कि मुख्यमंत्री मायावती को अपने लगभग आधा दर्जन मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त की टिप्पणी के बाद उन्हें हटाना पड़ा। बसपा सरकार के कार्यकाल में जनकल्याण और राज्य के विकास की कितनी अनदेखी की गई, आज लगभग पूरे प्रदेश में उस बर्बादी के चिन्ह देखे जा सकते हैं। इस मुख्यमंत्रित्व काल में मायावती की संपत्ति करीब तीन गुणा तक बढ़ जाना और, एक आकलन के अनुसार, उनका देश के सर्वाधिक धनी मुख्यमंत्री की श्रेणी में पहुंचना क्या दर्शाता है? मुख्यमंत्री रहते उनकी नाक के नीचे घोटालों का चरम पर पहुंचना क्या संकेत करता है? सर्वजन हिताय का नारा देकर उन्होंने जो सत्ता प्राप्त की, उसने प्रदेश की जनता के मुंह का निवाला तक छीनने से भी कोई गुरेज नहीं किया और स्वयं उन्होंने राजसी ठाट-बाट से सत्ता का सुख भोगा। सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी प्रदेश की जनता तरसती रही, लेकिन पार्कों, प्रेरणास्थलों और मूर्तियों के निर्माण पर सरकार ने लगभग चार हजार करोड़ खर्च कर डाले। इस सब पर यदि उंगली उठाई जाती है तो उनकी ओर से कहा जाता है कि एक “दलित” की बेटी की तरक्की लोगों से देखी नहीं जाती। अब जनता उनकी इस भावनात्मक शिगूफेबाजी से बाहर निकलने को छटपटा रही है और उत्तर प्रदेश में परिवर्तन के स्पष्ट संकेत दिख रहे हैं। लेकिन एक गंभीर प्रश्न यह है कि क्या जनता का हजारों करोड़ रुपया हड़पने वालों को केवल सत्ता से बेदखल कर देना है काफी है या उसकी भरपाई भी उनसे हो?
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