सत्ता से बेदखली के बाद बचाव की तरकीबें
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सत्ता से बेदखली के बाद बचाव की तरकीबें
लखनऊ से शशि सिंह
पांच साल में हुए घपलों और घोटालों से जिस तरह पर्दा उठ रहा है, हो न हो, चुनाव बाद सत्ता से बेदखल होने पर मायावती को भी जेल की ओर रूख करना पड़े। अब चुनावी दौरे के साथ ही वह अपने बचाव की तरकीबों पर भी सोचने लगी हैं। लेकिन उससे मुक्ति मिलती नहीं दिख रही है।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनएचआरएम) में हुए करोड़ों रुपये के घोटाले में दो सीएमओ की हत्या व एक डिप्टी सीएमओ की जेल में मौत सहित 6 लोगों की जान जाने के बाद ताजा मामला शराब व्यवसायी पोंटी चड्ढा का सामने आया है। अभी हाल ही में पोंटी के गाजियाबाद, मुरादाबाद, उरई, लखनऊ समेत 19 ठिकानों पर आयकर विभाग की टीम ने छापेमारी की तो उसकी 11 करोड़ की सम्पत्ति मिली। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सी.बी.डी.टी.) के अनुसार तलाशी अभियान के दौरान 2.03 करोड़ रु. नकद, 5.18 करोड़ रु. के जेवरात और 4.4 करोड़ रु. के सावधि जमा और अन्य कागजात जब्त किए गए। पोंटी तो विदेश भाग गया है लेकिन आयकर विभाग की टीम सच का पता लगाने में जुटी हुई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता किरीट सोमैया पत्रकारों से वार्ता में लगातार पोंटी और मुख्यमंत्री मायावती के भाई आनंद के साझा व्यापार और घपलों पर तथ्यपरक जानकारी देते आ रहे हैं। हालांकि मायावती सरकार और बसपा की ओर से उसे केवल आरोप बताकर नकारा जाता रहा है। लेकिन पोंटी के यहां आयकर छापे के बाद सरकार और बसपा की ओर से चुप्पी साध ली गई है।
मूल रूप से शराब का कारोबारी पोंटी सपा की मुलायम सरकार में भी सत्ता के करीब रहा लेकिन मई 2007 में बसपा सरकार बनते ही उसके कारोबार को जैसे पंख लग गए। पूरे प्रदेश के शराब ठेकों पर उसके समूह का कब्जा हो गया। उसके ही इशारे पर सारे ठेके तय होने लगे। उसने बेतहाशा संपत्ति कमाई। पूरे प्रदेश में चर्चा रही कि पोंटी के इस कारोबार में मायावती परिवार विशेष रूप से उनके भाई आनंद की परोक्ष हिस्सेदारी है। पोंटी ने पांव पसारा तो रीयल एस्टेट, सड़क निर्माण, बंद चीनी मिलों की खरीद, खनिज उत्खनन यहां तक कि फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम बढ़ाता गया और सफल होता गया।
नोएडा में बेवसिटी नाम से आवासीय परियोजना की शुरुआत की। यह परियोजना नौ हजार एकड़ से भी अधिक क्षेत्रफल में विकसित हो रही है।
गाजियाबाद जैसे तीन शहर का क्षेत्रफल इसमें समा सकता है। यही नहीं, उसको लाभ पहुंचाने के लिए मनमाफिक शराब नीति तक बनाई गई। बताते हैं पांच साल में इतना बड़ा औद्योगिक साम्राज्य बिना सत्ता की नजदीकी के नहीं हो सकता है। चर्चा तो यहां तक है कि पोंटी का मामला एनएचआरएम (राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन) घोटाले जैसा ही है। इसीलिए उसकी संवेदनशीलता बढ़ गई है। जैसे-जैसे आयकर विभाग उस पर शिकंजा कसने लगा है तो सत्ता शीर्ष से उसके रिश्तों की चर्चा भी ताजा हो गई है।
उधर “गंगा एक्सप्रेस वे” को हालांकि मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट बताया गया था लेकिन वह भी सरकार में खास दखल रखने वाले जेपी समूह को लाभ पहुंचाने और उसमें हिस्सेदारी के लिए अमल में लाने का फैसला माना गया। उसके तहत बलिया से लेकर नोएडा तक गंगा नदी के बाएं किनारे पर आठ लेन की 1047 किलोमीटर हाइवे तथा टाउनशिप विकसित की जानी थी। इसमें 17 जिलों की 1239 गांवों की जमीन अधिग्रहीत की जानी थी। टेंडर पड़ा तो लार्सन टुब्रो जैसी नामी रीयल एस्टेट कंपनी को दरकिनार कर जेपी समूह को दे दिया गया। इसमें भी मायावती के परिवार की परोक्ष हिस्सेदारी की चर्चा रही। वह परियोजना भी अब अधर में लटकती दिख रही है। सत्ता बदलने की आहट मात्र से संबंधित डेवलपर ने 894 करोड़ रुपये की अपनी बैंक गारंटी वापस मांग ली और सरकार को उसे वापस करनी पड़ी। अब जेपी समूह एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) की धनराशि लेने की जुगत में है लेकिन चुनाव के चलते उसमें रुकावट आ गई है। दरअसल शुरुआती दौर से ही विवादों और प्रभावित किसानों के विरोध के चलते गंगा नदी के तलहटी क्षेत्र में कृषि भूमि पर कब्जा पाने में नाकाम जेपी समूह अब निराश हो चला है। उसने परियोजना से हाथ खींच लिया है। वह अब एनओसी की करोड़ों रुपये की धनराशि की वापसी में जुट गया हैं। लग रहा है कि मायावती के पतन की आशंका से उनके सगों ने भी अब हाथ खींचना शुरू कर दिया है। द
श्रद्धाञ्जलि
प्रेरणास्रोत थे अश्विनी जी
द देवेन्द्र स्वरूप
शनिवार 5 फरवरी की रात में अश्विनी जी ने लखनऊ में अपना शरीर छोड़ दिया। प्रिय मित्र चिंतामणि से यह सूचना पाकर आश्चर्य तो नहीं हुआ क्योंकि पिछले कुछ महीनों से वे काफी अस्वस्थ चल रहे थे। काफी समय अपोलो अस्पताल में भर्ती रहे थे। बहिन डा.रोमा ने बताया कि अंतिम पखवाड़े में उनका शारीरिक कष्ट इतना अधिक बढ़ गया था कि जितना लम्बा उनका शरीर खिंचता, उनकी यातना उतनी ही अधिक बढ़ जाती। 18 नवम्बर, 1928 को जन्मे अश्विनी जी आयु में मुझसे डेढ़ वर्ष छोटे थे पर संघ यात्रा में वे मुझसे कई वर्ष आगे थे। 1945 में जब मैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बी.एस.सी का छात्र बना तब अश्विनी जी दो वर्ष पूर्व 1943 में ही इंटरमीडियेट के छात्र बनकर आ चुके थे। गोरखपुर में नानाजी देशमुख के सान्निध्य में 1941 में ही वे किशोरावस्था में संघ के स्वयंसेवक बन गये थे। एक सम्पन्न, सुशिक्षित पंजाबी परिवार में जन्मे अश्विनी जी कोमल शरीर, सौम्य स्वभाव और अत्यंत मधुर प्रकृति का सुदर्शनीय व्यक्तित्व थे। मुझे संघ में लाने का श्रेय चिंतामणि और उनकी मित्र मंडली को जाता है। उनके साथ ही 1947 में मैं भी प्रचारक निकला। 1949 में जब मुझे बलिया के जिला प्रचारक का दायित्व मिला तब मेरे जैसे अनगढ़ कार्यकत्र्ता को संभालने के लिए अश्विनी जी को बलिया नगर का दायित्व देकर भेजा गया। 1945 से 2012 तक काशी, बलिया, लखनऊ और दिल्ली में अश्विनी जी को निकट से देखने-जानने का अवसर मिला। 67 वर्ष लम्बा सम्पर्क आंखों के सामने खड़ा है। दिल्ली आने के बाद चिंतामणि के घर पर मित्र मंडली जमती। अश्विनी जी के स्वभाव में गहरायी थी। वे बहुत ही मितभाषी और शांत स्वभाव के थे। वे मंच के नेता नहीं थे, शांत, निस्पृह संगठक थे। उनकी संगठन कुशलता का साक्षी बिहार राज्य है। जहां कई वर्षों तक जनसंघ के संगठन मंत्री और बाद में बिहार प्रांत के अध्यक्ष के नाते उन्होंने गहरी छाप छोड़ी। चाहे वे राज्यसभा के सदस्य रहे, चाहे भाजपा संसदीय कार्यालय के सचिव, चाहे अंतिम दिनों में भाजपा के केन्द्रीय कार्यालय में सम्पर्क प्रमुख वे उसी शांत धीर गति से अपने प्रत्येक दायित्व का निर्वाह करते रहे। कार्यकत्र्ताओं के मन में उन्होंने अपने लिए जो स्थान बनाया उसकी कुछ झलक 9 फरवरी को भाजपा के मुख्यालय 11 अशोक रोड पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री नितिन गडकरी, श्री केदारनाथ साहनी, श्री भुवन चन्द्र खंडूरी, श्री करिया मुंडा, श्री सूर्यकृष्ण एवं श्री देवदास आप्टे के भाव विह्वल उद्गारों से मिली। जीवन के अंत तक अडिग निष्ठा के साथ, परिवार की सुख-सुविधाओं से मुंह मोड़कर एकाकी ही राष्ट्रसेवा के पथ पर डटे रहे। उनका जीवन राष्ट्रसेवाव्रतियों के लिए प्रेरणास्रोत है। अपने 67 वर्ष पुराने साथी की पुण्यस्मृति को नमन्।
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