तिब्बत से फिर गूंजी
July 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

तिब्बत से फिर गूंजी

by
Feb 18, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

चर्चा सत्र

दिंनाक: 18 Feb 2012 17:46:12

चर्चा सत्र

आजादी की आवाज

द कुलदीप चंद अग्निहोत्री

तिब्बत से एक बार फिर आजादी की आवाज गूंजी है। एक बार फिर लाशों के अंबार लग रहे हैं। कुछ महीने पहले पूर्वी तिब्बत में ऐतिहासिक कीर्ति मठ पर चीनी सेना ने कब्जा कर लिया था। वहां से अनेक शिक्षकों के रहस्यमय ढंग से लुप्त हो जाने की खबरें आने लगी थीं। साधारण जन में यह आशंका व्याप्त हो रही थी कि चीनी सेना इन शिक्षकों को अज्ञात स्थान पर ले जाकर या तो मार रही है या फिर उन्हें वहीं नजरबंद किया जा रहा है। पिछले साल-डेढ़ साल में लगभग 25 शिक्षक-शिक्षिकाएं आत्मदाह कर चुकी हैं। पूर्वी तिब्बत के खम प्रांत से चीन के खिलाफ भड़का जनविद्रोह अब धीरे-धीरे पूरे तिब्बत में फैल गया है। ल्हासा में भी तनाव देखने में आ रहा है। दरअसल, चीन में ओलंपिक खेलों के आयोजन के समय चीनी सुरक्षाबलों ने तिब्बतियों पर जो अमानुषिक अत्याचार किये, उसकी प्रतिक्रिया की आग भीतर ही भीतर सुलग रही थी जो अब अनेक स्थानों पर ज्वालामुखी के रूप में फूट रही है। तिब्बत में निरंतर चल रहे स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र इससे पहले आम तौर पर ल्हासा के सेरा, द्रेपुंद और गांदेन विश्वविद्यालय रहा करते थे। इस बार यह केंद्र कीर्ति मठ में पहुंच गया है। तिब्बत में स्थिति इतनी भयंकर हो रही है कि चीन सरकार तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए, अखबारी रपटों के अनुसार, हजारों की संख्या में चीनी सैनिकों को तिब्बत के प्रमुख स्थानों पर तैनात कर रही है, कई स्थानों पर सेना ने फ्लैग मार्च भी किया है। तिब्बती स्वतंत्रता संग्राम पर लंबे अरसे से नजर रखने वाले विश्लेषकों का मत है कि इस हिस्से में चीन सरकार ने एक प्रकार से अघोषित मार्शल लॉ लागू कर दिया है।

नृशंसता के बीच सुलगती चिंगारी

1959 में जब ल्हासा में भयंकर विद्रोह हुआ था तो उस समय चीनी सेना के हाथों 10 से 15 हजार के बीच तिब्बती शहीद हुए थे। उन दिनों चीन में माओ का राज था और चीनी सेना ने अत्यंत क्रूरता से तिब्बती विद्रोह को दबा दिया था, लेकिन इससे भी पूर्व जब 1950 के आसपास चीनी सेना तिब्बत में घुसी थी उस समय पूर्वी तिब्बत के लोगों ने एक अत्यंत सुसंगठित क्रांतिकारी दस्ते का गठन कर लिया था। इस दस्ते ने चीन के खिलाफ तिब्बत में लंबी लड़ाई लड़ी और हजारों जवान शहीद हुए। तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन में यह लड़ाई “चार नदियां, छह पर्वत श्रंृंग” के नाम से जानी जाती है। उस तिब्बती जांबाज सेना के अब बूढ़े हो चुके सैनिक आज भारत की तिब्बती बसाहटों में मिल जाएंगे। इसी प्रकार के तिब्बती स्वतंत्रता सेनानियों के एक सुसंगठित दल ने मुस्तांग में अपना अड्डा बना कर अनेक वर्षों तक चीनी सेना के लिए सिर दर्द पैदा कर रखा था। 1988 के आसपास ल्हासा में जोखांग मंदिर की ओर भिक्षुओं ने जान हथेली पर लेकर परिक्रमा का संकल्प लिया था। उस स्वतंत्रता अभियान में अनेक तिब्बती भिक्षु शहीद हुए थे। इसके बाद पूरे तिब्बत में एक प्रकार से तिब्बती लोग सड़कों पर आ गये थे। आज के चीनी राष्ट्रपति हू जिन ताओ उन दिनों तिब्बत में पार्टी का कामकाज देखते थे। चीनी सेना ने दर्रों से निकाल-निकाल कर तिब्बती युवकों को गोलियों से छलनी कर दिया था। पूरे तिब्बत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था।  तिब्बती स्वतंत्रता के रणबांकुरों की वह गाथा शेष दुनिया न जान सके, इसलिए सभी विदेशी संवाददाताओं को जबरन वहां से निकाल दिया गया था। आज राष्ट्रपति हू का कार्यकाल जब 2013 में समाप्त होने जा रहा है तब तिब्बती स्वतंत्रता का वह आंदोलन नये रूप में फिर भड़क उठा है।

उत्तेजनाओं के बावजूद अहिंसक

इस तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि तमाम चीनी उत्तेजनाओं के बावजूद यह अहिंसक ही बना हुआ है। यदि तिब्बती युवा चाहते तो चीनी अधिकारियों को गोली मार कर स्वयं आत्महत्या कर सकते थे, लेकिन हिंसा का यह रास्ता उन्होंने नहीं चुना। वे सबसे कष्टकारी ढंग से अपने जीवित शरीर को जलाकर, प्राणोत्सर्ग करके चीनी सरकार और विश्व की सरकारों की आत्मा को जागृत करना चाह रहे हैं। सत्ता के नैतिक अधिकारों की दुहायी देने वालीं विश्व की अनेक लोकतांत्रिक सरकारें चीन द्वारा तिब्बत को गुलाम बनाकर, उसके बाशिंदों पर किये जा रहे इस प्रकार के अत्याचारों पर भला चुप कैसे रह सकती हैं? संयुक्त राष्ट्र संघ, जो मध्य एशिया के जनविद्रोह को लेकर इतना चिंतित है, वह तिब्बत में उठ रहे इस जन विद्रोह पर चुप कैसे रह सकता है? इसे चीन सरकार का दुर्भाग्य कहें या फिर तिब्बती स्वतंत्रता का सौभाग्य कि इस बार चीनी सेना आजादी के इस आंदोलन की खबरों को दुनिया में फैलने से रोक नहीं सकी। पिछले अनेक वर्षों से भिक्षुओं द्वारा निरंतर आत्मदाह करते रहना कोई साधारण घटना नहीं है। दुनिया भर में अनेक देशों द्वारा लड़े गये आजादी के आंदोलनों का यह सबसे मार्मिक इतिहास है। महात्मा गांधी ने लड़ाई में जिस अहिंसक सेना की कल्पना की थी, तिब्बत के भिक्षुओं ने उसे साकार करके दिखा दिया है। परन्तु इसे क्या कहा जाए कि भारत के विदेश मंत्री कृष्णा, जो कुछ दिन पहले चीन में थे, ने बीजिंग में यह कहकर, कि भारत का तिब्बत से लेना-देना नहीं है, भारत और तिब्बत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में सनसनी पैदा कर दी। 1950 में जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया था तब जवाहर लाल नेहरू ने यही कहा था कि भारत का तिब्बत से कुछ लेना-देना नहीं है और यह इन दो देशों का आतंरिक मामला है। उस वक्त नेहरू दलाई लामा को भी यही सलाह देते रहे कि तिब्बतियों को चीन के साथ मिलकर रहना सीखना चाहिए। उस समय भी सरदार पटेल कहते रहे कि भारत को तिब्बत से लेना-देना है और यदि भारत सरकार ने तिब्बत से लेना-देना न रखा तो चीन भारत को घेर लेगा। 1962 की लड़ाई इस बात की साक्षी है कि नेहरू गलत थे और सरदार पटेल सही। तिब्बत से इस कुछ न लेने-देने का दुष्परिणाम आज पूरा भारत भुगत रहा है। भारत सरकार चाहे कबूतर की तरह आंखें बंद करके तिब्बत से पल्ला झाड़ कर अपने आप को सुरक्षित मान ले, लेकिन चीन अपना भारत विरोध छोड़ने को तैयार नहीं है। चीन का अरुणाचल प्रदेश पर दावा बदस्तूर जारी है। जाहिर है कि अपनी रणनीति से चीन तिब्बत की सीमा के साथ-साथ भारत की घेराबंदी पूरी कर लेगा। सरकार चीन की भारत के प्रति इस शत्रुतापूर्ण नीति को समझे और उसके प्रतिकार में तिब्बत में चीनी रणनीति का विरोध ही न करे, बल्कि विश्व मंच पर इसे केंद्र बिन्दु पर लेकर आए। यह भारत का नैतिक कर्तव्य भी है, उसकी प्रतिरक्षात्मक हित-पूर्ति भी। द

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Udaipur Files की रोक पर बोला कन्हैयालाल का बेटा- ‘3 साल से नहीं मिला न्याय, 3 दिन में फिल्म पर लग गई रोक’

कन्वर्जन की जड़ें गहरी, साजिश बड़ी : ये है छांगुर जलालुद्दीन का काला सच, पाञ्चजन्य ने 2022 में ही कर दिया था खुलासा

मतदाता सूची मामला: कुछ संगठन और याचिकाकर्ता कर रहे हैं भ्रमित और लोकतंत्र की जड़ों को खोखला

लव जिहाद : राजू नहीं था, निकला वसीम, सऊदी से बलरामपुर तक की कहानी

सऊदी में छांगुर ने खेला कन्वर्जन का खेल, बनवा दिया गंदा वीडियो : खुलासा करने पर हिन्दू युवती को दी जा रहीं धमकियां

स्वामी दीपांकर

भिक्षा यात्रा 1 करोड़ हिंदुओं को कर चुकी है एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने का संकल्प

पीले दांतों से ऐसे पाएं छुटकारा

इन घरेलू उपायों की मदद से पाएं पीले दांतों से छुटकारा

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Udaipur Files की रोक पर बोला कन्हैयालाल का बेटा- ‘3 साल से नहीं मिला न्याय, 3 दिन में फिल्म पर लग गई रोक’

कन्वर्जन की जड़ें गहरी, साजिश बड़ी : ये है छांगुर जलालुद्दीन का काला सच, पाञ्चजन्य ने 2022 में ही कर दिया था खुलासा

मतदाता सूची मामला: कुछ संगठन और याचिकाकर्ता कर रहे हैं भ्रमित और लोकतंत्र की जड़ों को खोखला

लव जिहाद : राजू नहीं था, निकला वसीम, सऊदी से बलरामपुर तक की कहानी

सऊदी में छांगुर ने खेला कन्वर्जन का खेल, बनवा दिया गंदा वीडियो : खुलासा करने पर हिन्दू युवती को दी जा रहीं धमकियां

स्वामी दीपांकर

भिक्षा यात्रा 1 करोड़ हिंदुओं को कर चुकी है एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने का संकल्प

पीले दांतों से ऐसे पाएं छुटकारा

इन घरेलू उपायों की मदद से पाएं पीले दांतों से छुटकारा

कभी भीख मांगता था हिंदुओं को मुस्लिम बनाने वाला ‘मौलाना छांगुर’

सनातन के पदचिह्न: थाईलैंड में जीवित है हिंदू संस्कृति की विरासत

कुमारी ए.आर. अनघा और कुमारी राजेश्वरी

अनघा और राजेश्वरी ने बढ़ाया कल्याण आश्रम का मान

ऑपरेशन कालनेमि का असर : उत्तराखंड में बंग्लादेशी सहित 25 ढोंगी गिरफ्तार

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies