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Feb 11, 2012, 12:00 am IST
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बात बेलाग

दिंनाक: 11 Feb 2012 22:44:46

हवा में तीरंदाजी

चुनाव में राजनीतिक दल और उम्मीदवार के बाद सबसे अहम होता है चुनाव चिन्ह। निर्दलीय उम्मीदवारों के चुनाव चिन्हों से तो अनेक रोचक किस्से चल निकलते हैं। खैर, यहां बात एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल, जनता दल (यूनाइटेड) और उसके अध्यक्ष शरद यादव की हो रही है। जद (यू) वैसे तो भाजपा की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का घटक दल है, पर जनाधार से ज्यादा सीटें न मिल पाने के कारण उत्तर प्रदेश में अकेले दम चुनाव लड़ रहा है। जब राजनीतिक हसरतें बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतार देती हैं तो फिर एक राष्ट्रीय दल को उम्मीदवार मिलने पर आश्चर्य कैसा? जद (यू) को भी अनेक सीटों पर उम्मीदवार मिल गये हैं। बेशक उनमें से ज्यादातर उन जिलों के बागी हैं या फिर राजनीति में शुरुआत करने वाले नव उत्साही। मुहावरेदार भाषणों के चलते शरद यादव की गिनती जनता के बीच तालियां बटोरने वाले नेता के रूप में भी होती है। फिर उत्तर प्रदेश में तो वह ही जद (यू) के स्टार प्रचारक हैं। सो निकल पड़े हैं उड़नखटोले पर सवार होकर अपने उम्मीदवारों के प्रचार में तीर चलाने। पर पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक चुनाव सभा में तो “मुद्दई चुस्त और गवाह सुस्त” वाला मुहावरा ही चरितार्थ हो गया। शरद पहुंचे तो पाया कि उड़नखटोले को देखने आये कुछ दर्जन गांव वालों के अलावा वहां कोई है ही नहीं। शरद की गरमी तब आसमान पर पहुंच गयी, जब पता चला कि जिस उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने आये हैं, वह भी नदारद है। सो, बिना वक्त गंवाये वापस उड़ लिये।

मेंढक ही मेंढक

कांग्रेस के “युवराज” की डायलॉगबाजी की चर्चा तो अक्सर होती ही रहती है, पर इस बार आम तौर पर शालीनता से अपना काम और बातें करने वाली उनकी बहन प्रियंका वाड्रा-गांधी भी नहीं चूकीं, पर हाजिरजवाब बनने की यह कोशिश हास्यास्पद ही रही। प्रियंका अक्सर चुनाव के दौरान ही दिखती हैं और वह भी मां व भाई के चुनाव क्षेत्रों में। सो, किसी ने उन्हें बरसाती मेंढक कह दिया। अच्छा तो यह होता कि वह इस टिप्पणी को गलत साबित करतीं, पर सच को झुठलायें भी कैसे? सो जवाबी टिप्पणी से काम चलाना चाहा-हां, मैं हूं बरसाती मेंढक, पर राहुल ऐसा नहीं है। बहन बोलीं तो भाई कैसे चुप रहे। राहुल की भी टिप्पणी आ गयी, अगर प्रियंका मेंढक हैं तो मैं भी हूं। भाई-बहन कहना क्या चाह रहे हैं, कोई नहीं समझ पाया, पर नेहरू परिवार की डायलॉगबाजी यहीं नहीं थमी। नये किरदार के रूप में बोल पड़े प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा। पेशे से कारोबारी राबर्ट ने अमेठी में चुनाव प्रचार के दौरान फरमाया कि लोग उनसे अक्सर आग्रह करते रहते हैं, इसलिए वह भी राजनीति में आने पर विचार कर सकते हैं। अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह चल रही है कि यह डायलॉगबाजी महज डायलॉगबाजी है या फिर अंत:पुर की राजनीति में पक रही किसी नयी खिचड़ी की गंध?

वंशवाद की बेल

आजाद भारत में गैर कांग्रेसी राजनीति का एक प्रमुख मुद्दा रहा है कांग्रेस में नेहरू वंश का परिवारवाद। देश और प्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकारें भी बनीं, पर इस वंशवाद पर कोई लगाम नहीं लग पायी। दरअसल इसका उलटा ही हुआ है। पहले कांग्रेस में शिखर पर ही वंशवाद होता था, पर अब यह नीचे तक पसर गया है। हर कांग्रेसी का एक ही सूत्रीय राजनीतिक एजेंडा है, अपने परिवारवाद का पोषण। अब उत्तर प्रदेश में सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस, बेनीप्रसाद वर्मा के बेटे राकेश, रीता बहुगुणा के भाई शेखर, प्रवीण ऐरन की पत्नी सुप्रिया, रशीद मसूद के भतीजे इमरान, हर्षवर्धन सिंह के पुत्र राज्यवर्धन सिंह और जगदंबिका पाल के बेटे अभिषेक पाल विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं तो पंजाब में कैप्टन अमरिन्दर के पुत्र रणइंदर, प्रताप सिंह बाजवा की पत्नी चरणजीत कौर, मोहिंदर के.पी. की पत्नी सुमन के अलावा संतोष चौधरी के पति और राजिन्दर भट्ठल के दामाद समेत दर्जनों कांग्रेसियों के परिजन या रिश्तेदार मैदान में हैं। इसके बावजूद लोकतंत्र के नाम पर वंशवाद का पोषण अब पहले जैसा चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता, क्योंकि दूसरे दलों का दामन भी इस मामले में बेदाग नहीं है।

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