एक वोट गो माता के लिए
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एक वोट गो माता के लिए
द मुजफ्फर हुसैन
डन दिनों सम्पूर्ण देश में चुनाव का वातावरण है। उत्तर प्रदेश एवं कई अन्य राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। वहीं महानगर मुम्बई की महापालिका के चुनाव भी इस समय होने जा रहे हैं। यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है कि जहां चुनाव होगा वहां मुम्बई का पैसा होगा। काला होगा या सफेद यह केवल समझने की बात है। इसलिए महानगर मुम्बई अपने आपमें भारतीय लोकतंत्र का स्तम्भ है। इस महत्वपूर्ण अवसर पर आपके द्वार पर गोमाता ने दस्तक दी है। वह चुनाव में न तो उम्मीदवार है और न ही कोई राजनीतिक पार्टी। लेकिन फिर भी आपसे विनती कर रही है कृपया एक वोट मेरे लिए भी। भारत की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस ने वर्षो तक दो बैलों की जोड़ी को अपना चुनाव चिह्न बनाया। उसके बाद गो और उसका बछड़ा भी इसका चुनावी निशान बने। कांग्रेस ने ही नहीं, लोकदल ने भी बैल का उपयोग किया। चुनाव चिह्न बना देने से न तो गाय का भला हुआ और न ही बछड़े का। समय के साथ ये दोनों चिह्न गायब हो गए। लेकिन भारतीय लोकतंत्र की जड़ों में गाय का महत्वपूर्ण स्थान कल भी था और आज भी है। भारतीय कृषि हमारी प्राचीन संस्कृति का एक अंग है। पिण्ड कभी बदल नहीं सकता, इसलिए न तो कृषि बदली और न ही उस पर आधारित संस्कृति। चुनाव के मौसम में सभी को अपना दर्द कहने का अवसर है। इसलिए आज गाय भी जनता-जनार्दन के दरबार में आई है और यह मांग कर रही है कि एक वोट मेरे लिए भी। वह वोट की मांग इसलिए कर रही है ताकि यह देश बचा रहे।
कुछ लोगों को भ्रम है कि गाय की गाथा पोंगापंथ की बात है। लेकिन ऐसा नहीं है। उसने तो मुंह से नहीं बोला लेकिन गाय पर अनुसंधान करने वालों ने अपने प्रयोगों से यह बता दिया कि वह आपकी तरह ही व्यावहारिक, प्रगतिशील और आपके जीवन को बदल देने में सक्षम है।
गाय और आभामण्डल
प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक डा. मानीमपूर्ति द्वारा आभामंडल को नापने के यंत्र “यूनिवर्सल स्केनर” से यह पता चलता है कि किसी व्यक्ति के आभा मंडल का दायरा कितना है। आभा मंडल का दायरा जितना अधिक होगा व्यक्ति उतना ही अधिक सक्षम, मानसिक रूप से क्षमतावान व स्वस्थ होगा। इस मापक यंत्र के परीक्षणों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि कोई व्यक्ति गाय की नौ बार परिक्रमा कर ले तो उसके आभामंडल का दायरा बढ़ जाता है। देशी गाय की नौ परिक्रमा करने के बाद जब एक व्यक्ति की आभामंडल को मापा गया तो आश्चर्यजनक रूप से आभामंडल के प्रभाव क्षेत्र में बढ़ोतरी पाई गई।
देवी-देवताओं के चित्रों में हम उनके सिर के पीछे एक चमकीला गोल घेरा देखते हैं। यह घेरा ही आभामण्डल कहलाता है। अब यदि आपको इस वैज्ञानिक खोज पर विश्वास हो तो अपना आभामण्डल बढ़ाने के लिए न केवल गाय के निकट रहिए और उसका दूध पीजिए, बल्कि उसकी सेवा कीजिए। क्योंकि उसकी छाया और उसकी निकटता इस आभामण्डल को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
सम्पूर्ण भारत में मतदान करने की प्रथा जाति और सम्प्रदाय पर आधारित है। उत्तर प्रदेश तो इसका गढ़ है। वहां जाति के आधार पर उम्मीदवार तय किए जाते हैं और जाति के आधार पर ही मतदान होता है। इस समय उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण 13 प्रतिशत, राजपूत 7.2, वैश्य 2.5, कायस्थ 1, भूमिहार 3, यादव .08, कहार 2.3, लोध 3.2, गड़रिये 2, कोरी 2.8, जाट 1.6, गूजर 1.2, खत्री 0.8, कुर्मी 3.5, मुराव 1.3, तेली 2, माली 2, कलाल 1 प्रतिशत हैं। उत्तर प्रदेश में वंचित 21.15 और मुस्लिम 18.5 प्रतिशत हैं। यदि सरकारी अधिकारियों की बात की जाए तो सरकारी कर्मचारियों के 11 लाख परिवारों के वोट हैं। यदि जातियां आपको इतने वोट दिलाती हैं तो देश में शाकाहारियों की 26 और जिनके लिए गो मांस जीवन में स्पष्ट रूप से वर्जित ही नहीं, बल्कि उसकी आस्था भी है, ऐसा पालन करने वालों का प्रतिशत 33.6 है। इसलिए चुनावी मैदान में खड़े लोगों को इस पर भी विचार करना चाहिए कि भारत में सबसे बड़ा वोट बैंक शाकाहारियों का है। यदि आपका वोट गो माता के लिए जाता है तो मान कर चलिए इन जातियों और सम्प्रदायों की तुलना में यह वोट बैंक भारी रहेगा। केवल आवश्यकता है इसको संगठित और सक्रिय करने की। शाकाहारियों के इस वोट बैंक की ताकत का अनुमान इस तरह से भी लगाया जाना चाहिए कि यही वे लोग हैं, जो देश में सर्वाधिक उद्योग और धंधे संचालित करते हैं।
शाकाहारी वर्ग की ताकत
सम्पूर्ण दुनिया की आबादी में यहूदियों का प्रतिशत केवल डेढ़ है। लेकिन उनकी इतनी प्रतिष्ठा, छाप और दबदबा है कि अमरीका जैसी महाशक्ति को उसके हर प्रस्ताव और कथन पर विचार करना पड़ता है। यथार्थ तो यह है कि अमरीका की अर्थव्यवस्था यहूदियों पर ही निर्भर है। यहूदी जो कहेगा उसे अमरीका को मानना ही होगा। अमरीका इस कारण से ईरान हो या फिर कोई अन्य मुस्लिम देश उसकी बात नहीं मानता है। विश्व स्तर पर उसके लिए राष्ट्र संघ में वीटो करता है। अब यदि भारत पर निगाह डालें तो भारत में उद्योग से लेकर छोटे-बड़े व्यवसाय और भारी उथल-पुथल मचाने वाले शेयर बाजार को कौन चलाता है? तब पता लगेगा कि जैन, माहेश्वरी, अग्रवाल, पालीवाल, खंडेलवाल एवं अन्य वर्ग जो शुद्ध रूप से शाकाहारी हैं। यदि वे गो माता की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाएंगे तो क्या भारत सरकार उनकी बातों को अनुसना कर देगी, यह वर्ग वही भूमिका निभा सकता है, जो अमरीका की अर्थव्यवस्था में यहूदी निभाते हैं। भले ही वे सम्पूर्ण देश को शाकाहारी बनाने की वकालत न करें तब भी गो माता की रक्षा के लिए तो अपना प्रस्ताव सरकार के सम्मुख रख ही सकते हैं। इस वर्ग की मांग को भारत में किसी भी पार्टी और विचारधारा की सरकार हो, वह अमान्य नहीं कर सकती है। इसलिए आज चुनाव के मौसम में गाय आपके दरवाजे पर खड़ी यह मांग कर रही है कि एक वोट मेरे लिए भी।
भारत में दुनिया की कुल 17 प्रतिशत गायें हैं। साथ ही हमारी भैसों का प्रतिशत 50 है। इन दोनों पशुओं से प्रति व्यक्ति भारत में 190 ग्राम दूध मिलता है। दिलचस्प बात तो यह है कि भारतीय चिकित्सा परिषद् ने 275 ग्राम दूध प्रति व्यक्ति की सिफारिश की है। डा. कूरियन के “आपरेशन फंड” सम्बंधित गांवों में प्रति व्यक्ति 121 ग्राम दूध मिलता है, जबकि अमरीका और यूरोप में 1500 से 2000 ग्राम दूध प्रति व्यक्ति के लिए उपलब्ध है।
भारत की काया और माया
भारत में 40 प्रतिशत ही तरल दूध उपयोग में लिया जाता है। शेष 39 प्रतिशत घी के लिए, 9 प्रतिशत दही के लिए 6 प्रतिशत मक्खन के लिए और 4 प्रतिशत मावा बनाने के काम में आता है। भारत में गोपालन का आधार बैल है, जिसे कत्लखाने में कटने के लिए मजबूर हो जाना पड़ता है। एक अच्छा बकरा त्योहार के दिनों में 50 हजार से सवा लाख में बिकता है। जबकि बैल जिसका वजन कम से कम 200 किलो होता है वह 6 से 10 हजार में मिल जाता है। गरीब आदमी को जो सस्ता मिलेगा वही तो खाएगा, यह अर्थव्यवस्था का नियम है। यदि बैल का उपयोग वैज्ञानिक ढंग से होगा तो उसका मूल्य एक से डेढ़ लाख रुपया हो सकता है।
प्रति मिनट विश्व में एक लाख मुर्गियां काटी जाती हैं। मुम्बई में मटन और फिश मार्केट अवश्य हैं, लेकिन चिकन मार्केट नहीं। शराब की दुकान मन्दिर, मस्जिद, पाठशाला और सार्वजनिक स्थलों से कितनी दूर हों, इसका नियम है, लेकिन चिकन की दुकानों के लिए कोई नियम नहीं। यदि आने वाली महापालिका में इसके लिए कोई व्यवस्था होगी तो मुम्बई के लोग आभारी रहेंगे।
भारत में सुख और शांति के दिन कब लौटेंगे? यह सवाल बहुधा लोग पूछा करते हैं। उसका उत्तर अत्यंत सरल है। आज तो हम जब किसी बंगले और फ्लैट की घंटी बजाते हैं तो भीतर से कुत्ते के भोंकने की आवाज आती है, लेकिन जब घंटी बजाने पर गाय के रम्भाने की आवाज आ जाए तो समझ लेना उस दिन भारत की काया और माया पलट गई है। द
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