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अरुणाचल प्रदेश में संघ का “अरुण चेतना शिविर” सम्पन्न
रा.स्व.संघ के अरुणाचल प्रदेश संभाग के तत्वावधान में गत दिनों तीन दिवसीय अरुण चेतना शिविर पासीघाट में सम्पन्न हुआ। इसमें अरुणाचल प्रदेश के 16 जिलों के 77 स्थानों से आए कुल 500 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। शिविर में ऐसे स्वयंसेवक भी सम्मिलित हुए जिन्हें आने-जाने में ही पूरे 6 दिन का समय लगा। अरुणाचल प्रदेश में संघ का इतनी अधिक संख्या का यह पहला शिविर था। शिविर में स्वयंसेवकों को रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत का भी विशेष मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
तीन दिवसीय अरुण चेतना शिविर के समापन समारोह को संबोधित करते हुए सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि किसी भी समाज का नियमित और बारहमासी विकास उसकी पहचान की मजबूत नींव पर ही संभव है। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश के लोग प्रकृति पूजक हैं, उन्हें अपने मूल्यों तथा गुणों को कायम रखने के लिए खड़ा होना चाहिए। इसके लिए रा.स्व.संघ अरुणाचलवासियों के साथ हमेशा खड़ा रहेगा।
श्री भागवत ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। इसका किसी और से कोई संबंध नहीं है। अरुणाचलवासियों को भी इस बात को समझकर देश के साथ खड़ा रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि अरुणाचल की आज जो स्थिति है, इसके लिए सरकार की गलत नीतियां जिम्मेदार हैं। चीन की कुटिल मंशा से भी उन्होंने स्वयंसेवकों को अवगत कराया। साथ ही पूर्वोत्तर के सुदूर क्षेत्र में संघ द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों की भी जानकारी दी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे नागरिक स्वागत समिति के अध्यक्ष एवं पूर्व भारतीय प्रशासनिक अधिकारी श्री ओसोंग इयरिंग ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश का चीन से कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत का अभिन्न अंग है। नागरिक स्वागत समिति के सचिव श्री अतिक परतिन ने समिति के ओर से श्री भागवत का स्वागत किया। इस अवसर पर संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी तथा अरुणाचल प्रदेश के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
शिविर के दौरान पासीघाट में स्वयंसेवकों का पूर्ण गणवेश में पथ संचलन निकला, जिसकी अरुणाचलवासियों ने हृदय से सराहना की। जगह-जगह स्वयंसेवकों का पुष्पावर्षा कर स्वागत किया गया। द प्रतिनिधि
मणिपुर में संस्कृत भारती का दस दिवसीय “संस्कृत संभाषण शिविर”
संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए संस्कृत को अपनाना ही होगा
संस्कृत भारती, मणिपुर के तत्वावधान में गत दिनों 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर चारहजारे में सम्पन्न हुआ। इसमें इम्फाल पूर्व, इम्फाल पश्चिम, विष्णुपुर, थौबाल, उखुल, चुराचांदपुर और सेनापति जिलों से कुल 85 शिक्षार्थियों ने भाग लिया। इनमें 41 बालक तथा 44 बालिकाएं सम्मिलित थीं।
शिविर के समापन समारोह में संस्कृत भारती के अखिल भारतीय प्रकाशन प्रमुख श्री चमू कृष्ण शास्त्री विशेेष रूप से उपस्थित रहे। श्री शास्त्री ने अपने संबोधन में कहा कि वेद हमारे मार्गदर्शक हैं। वेद का कथन है कि मनुष्य वेद द्वारा प्रतिपादित सौ वर्ष या इससे भी अधिक आयु तभी प्राप्त कर सकता है, जब वह शुद्ध वायु में श्वास ले, शुद्ध जल का पान करे एवं शुद्ध अन्न ग्रहण करे। परन्तु आज न केवल हमारे देश में, अपितु समस्त भूमंडल पर पर्यावरण प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि मनुष्य को जल, वायु, अन्न, मिट्टी कुछ भी शुुद्ध रूप से सुलभ नहीं है। कल-कारखानों से निकले अपदृव्य, धुआं, गैस, कूड़ा-कचरा, वन विनाश आदि इस प्रदूषण के कारण हैं।
श्री शास्त्री ने कहा कि भारत को महाशक्ति बनना है तो संस्कृत, संस्कृति और संस्कार को अपनाना होगा। यह काम विशेष रूप से युवकों को करना चाहिए। हमें अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए संस्कृत को अपनाना ही होगा। यदि संस्कृत को समझेंगे तो भारत को समझ पाएंगे। संस्कृत सेवा ही राष्ट्रीय सेवा है।
मुख्य अतिथि डा. कुलचंद्र सिंह ने कहा कि संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं, अपितु भारत का प्राण है। संस्कृत दुनिया की सभी भाषाओं की माता है। अध्यक्षता कर रहे श्री इबोपिशक ने कहा कि संस्कृत सीखना सबके लिए बहुत जरूरी है। द प्रतिनिधि
रा.स्व.संघ का “शाखा टोली शिविर” सम्पन्न
चरित्रवान युवकों को तैयार कर रहा है संघ
-डा. मनमोहन वैद्य, अ.भा. प्रचार प्रमुख, रा.स्व.संघ
गत दिनों रा.स्व.संघ के मणिपुर संभाग के तत्वावधान में “शाखा टोली शिविर” खुमन लम्पाक में सम्पन्न हुआ। इसमें मणिपुर की विभिन्न शाखाओं से आए कुल 185 शाखा टोली के स्वयंसेवकों ने भाग लिया। संघ के अ.भा. प्रचार प्रमुख डा. मनमोहन वैद्य शिविर में विशेष रूप से उपस्थित रहे।
शिविर के समापन समारोह को संबोधित करते हुए डा. मनमोहन वैद्य ने कहा कि 12 जनवरी, 2013 से 12 जनवरी, 2014 तक स्वामी विवेकानंद का साद्र्ध शती वर्ष है। इस साद्र्ध शती वर्ष का मुख्य ध्येय “भारत जागो! विश्व जगाओ!” है। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में हुआ। स्वामी जी जब अमरीका गए, तब उन्होंने पश्चिम के समाज को नजदीक से देखा।
डा. वैद्य ने कहा कि स्वामी जी ने समाज को बदलने के लिए 100 ऐसे युवकों की मांग की थी, जो चरित्रवान हों। संघ चरित्रवान युवकों को तैयार करने का काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि किसान मेहनत करता है, तब उसे अच्छी फसल प्राप्त होती है। शाखा भी एक तरह से मनुष्यों की खेती है, जिसके जरिए अच्छे कार्यकर्ता तैयार होते हैं। शिविर में स्वयंसेवकों को संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा अच्छी शाखा चलाने के लिए क्या-क्या करना चाहिए, इसकी जानकारी दी गई। द प्रतिनिधि
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