नास्तिक वह है जो स्वयं पर भरोसा न करे
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पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में विवेकानंद जयंती
-दत्तात्रेय होसबले, सह सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
कृषि विज्ञान के क्षेत्र के सुविख्यात और एशिया के सबसे बड़े कृषि शिक्षण संस्थान-पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में गत दिनों एक भव्य और प्रेरक समारोह सम्पन्न हुआ। अवसर था स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती पर आयोजित अन्तरराष्ट्रीय युवक सम्मेलन का। गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय (पंतनगर) के विवेकानंद स्वाध्याय मण्डल ने इस सम्मेलन का आयोजन किया था, ताकि विश्वविद्यालय सहित देश-विदेश के श्रेष्ठ शोधार्थी एवं चिंतनशील युवक एक साथ, एक मंच पर आकर वर्तमान संदर्भों में स्वामी विवेकानंद एवं उनके विचारों की प्रासंगिकता पर विचार विमर्श कर सकें। सम्मेलन में नेपाल, बंगलादेश, केन्या, युगाण्डा के प्रतिनिधियों सहित भारत के सिक्किम से लेकर केरल तक के कुल मिलाकर 300 प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। गायत्री परिवार के प्रमुख तथा देव संस्कृति विश्वविद्यालय (हरिद्वार) के कुलपति डा. प्रणव पण्ड्या ने सम्मेलन का विधिवत् उद्घाटन किया, जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले सम्मेलन के मुख्य वक्ता थे। कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद केन्द्र की उपाध्यक्षा सुश्री निवेदिता भिड़े विशष्टि अतिथि के रूप में उपस्थित थीं और अध्यक्षता की पंतनगर विश्वविद्यालय के उप कुलपति डा. बी.एस. बिष्ट ने।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए श्री दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि वे स्वामी विवेकानंद ही थे जिन्होंने उच्च स्वर में सार्वजनिक उद्घोषणा की थी कि वह भारत ही है जिसने विश्व को अध्यात्म का ज्ञान दिया, और इसलिए, भारत ही आत्मिक-आध्यात्मिक शोधन का मार्ग प्रशस्त करेगा। स्वामी जी कहा करते थे कि प्राचीन धार्मिक मान्यता के अनुसार वह नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता, पर मेरे विचार से, नास्तिक वह है जो स्वयं पर विश्वास नहीं करता। वे कहते थे कि भारतवासियों के लिए यह आवश्यक है कि वे निरन्तर उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पर चलते रहें और इसके लिए आवश्यक है कि शरीर, बुद्धि और आत्मा के बीच परस्पर तालमेल हो। श्री होसबले ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के उपरोक्त विचारों और निर्देशों पर चलकर ही हम अपने भीतर आध्यात्मिक शक्ति पैदा कर सकते हैं, उसका उपयोग कर सकते हैं, जिससे एक समग्र व न्यासंगत भारतीय समाज बनेगा, शुद्ध रूप से भारतीय समाज।
डा. प्रणव पण्ड्या ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि स्वामी विवेकानंद की इस उद्घोषणा से शक्ति मिलती है- स्वयं पर भरोसा करो। इसी के द्वारा स्वामी जी ने भारत की आत्मा को खोजा और झकझोरा। उन्होंने कहा था कि हमें अपने भीतर की आन्तरिक यात्रा पर जाना चाहिए। वस्तुत: मानवता ही पूरी विश्व संस्कृति के लिए उसका नींव-पत्थर है। वे कहते थे कि इस्पात की शिराओं और सिंह से हृदय वाले युवक ही सही मार्ग पर निरन्तर अध्यवसाय एवं अनवरत संघर्ष से ऐसी आत्मिक शक्ति प्राप्त कर सकते हैं, जो सम्पूर्ण विश्व को गति दे दे, उसे बदल दे। उदार और करुणामयी आत्मा ही इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहभागी होगी। डा. पण्ड्या ने कहा कि हम अपने भीतर के ज्ञान को जगाएं, वह आत्मिक शक्ति प्राप्त करें और उन लोगों को प्रकाश दिखाएं जो अज्ञान, अशिक्षा और अकर्मण्यता के अंधकार में डूबे हुए हैं।
सुश्री निवेदिता भिड़े ने प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि मानव विस्तृत ब्रह्मांड का उसी प्रकार एक अंग है जैसे समुद्र का लक्षण है उसमें उठने वाली तरंगें। सुश्री भिड़े ने ब्रह्मांड से एकात्म होने और आत्मा की सनातनता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने उपस्थित प्रतिनिधियों का आह्वान किया कि नि:स्वार्थ सेवा का मार्ग अपनाकर आत्म-साक्षात्कार करें, ताकि अंतिम लक्ष्य अर्थात् मोक्ष प्राप्त हो सके।
इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए बधाई देते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष, पंतनगर विश्वविद्यालय के उप कुलपति डा.बी.एस. बिष्ट ने कहा कि नई पीढ़ी में सच्ची मानवता, ब्रह्मांड से एकात्मता और सामूहिक विकास की भावना के बिना केवल आर्थिक विकास एकपक्षीय, अपूर्ण और अपंग होगा। उन्होंने आगन्तुक महानुभावों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह एक ऐसा आयोजन है जो युवाओं, विशेषकर विश्वविद्यालय के छात्रों को व्यक्तित्व विकास हेतु आत्ममंथन करने के लिए प्रेरित करेगा।
इस सम्मेलन के विभिन्न सत्रों की आई.आई.टी (दिल्ली) के कैमिकल इन्जी. विभाग के अध्यक्ष डा. अशोक एन. भास्करवार, इंडिया टुडे (हिन्दी साप्ताहिक) के पूर्व कार्यकारी सम्पादक श्री जगदीश उपासने, प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयुक्त संयोजक श्री राजेन्द्र चड्ढा, सेवा इन्टरनेशनल के वैश्विक संयोजक श्री रवि अय्यर, हिमाचल प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय के उप कुलपति श्री शशि धीमान, दीनदयाल शोध संस्थान (चित्रकूट) की डा. नंदिता पाठक, शिखर समूह के प्रबंध निदेशक श्री मनोज जोशी सहित अनेक विद्वानों ने सम्बोधित किया व अपने शोध पत्र पढ़े। इस अवसर पर विवेकानंद स्वाध्याय मण्डल द्वारा प्रकाशित अनेक पत्र-पत्रिकाओं का भी लोकार्पण हुआ। इस सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द के जीवन व कार्यों पर समग्रता से चिंतन-मनन किया गया तथा व्यक्ति, समूह-संस्था, समाज, शासन तंत्र तथा वैश्विक समूह के लिए सुझाए गए कुछ उपयोगी सुझावों/निर्देशों को संकलित कर उसका पत्रक तैयार किया गया। पंतनगर छात्र कल्याण परिषद के अध्यक्ष डा. ए.के. कर्नाटका सहित अनेक प्राध्यापकों तथा छात्रों ने विश्वविद्यालय परिसर में इस प्रकार के महत्वपूर्ण अन्तरराष्ट्रीय युवक सम्मेलन एवं स्वामी विवेकानंद पर केन्द्रित विचार गोष्ठी के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की। द प्रतिनिधि
स्वामी विवेकानंद की इस उद्घोषणा से शक्ति मिलती है- स्वयं पर भरोसा करो।
-डा. प्रणव पण्ड्या, कुलपति, देव संस्कृति विश्वविद्यालय
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