बात बेलाग/दृष्टिपात
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बात बेलाग
* समदर्शी
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कांग्रेस के “युवराज” राहुल गांधी का “मिशन-2012” है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस को अप्रत्याशित रूप से 22 सीटें मिलने के बाद से ही इस मिशन का ढोल पीटा जा रहा है। तमाम दलों के दागियों और बागियों को चुनाव मैदान में उतारने के बाद “युवराज” राज्य का तूफानी दौरा भी कर रहे हैं। सोनिया गांधी गैर कांग्रेसी दलों पर उत्तर प्रदेश को तबाह करने के आरोप लगा रही हैं तो राहुल कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राज्य में कायाकल्प का सपना बेच रहे हैं, पर हाथ की असली हसरत इतनी भर सीटें पा लेने की है कि अगली सरकार उसके समर्थन के बिना न बन पाए। चुनाव प्रचार के बीच ही कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता अनिल शास्त्री की जुबान से यह हसरत बयां भी हो गयी। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री के मान लिया कि कांग्रेस अगली सरकार बनाने के लिए मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी को समर्थन दे सकती है। कांग्रेस का गणित सीधा है: अगर किस्मत के करिश्मे से उत्तर प्रदेश विधानसभा में उसकी सीटों का आंकड़ा 50 तक पहुंच जाता है और सपा की साइकिल 150 पर अटक जाती है तो वह केन्द्र में समर्थन लेकर राज्य में समर्थन दे देगी, ताकि दिल्ली में ममता बनर्जी की वीटो पावर से मुक्ति मिल सके और लखनऊ में कांग्रेसियों की दुकान चल सके। वैसे 2002 से उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा की ही सरकारें रही हैं तो साइकल और हाथी, दोनों से सौदेबाजी में कांग्रेस अपना हाथ आजमाती रही है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाताओं की जागरूकता के आगे हाथ की हसरतें कितनी दूर तक जा पाती हैं।
खामोश, सच बोलना मना है
कांग्रेसी अपनी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी की “विनम्रता” का गुणगान करते नहीं थकते। चाटुकारिता की बुनियाद पर टिकी कांग्रेस में टिके रहने के लिए कांग्रेसियों की मजबूरी समझी जा सकती है, पर सच को कब तक छिपाया जा सकता है? एक हैं राशिद अल्वी। वह कभी बसपा प्रमुख मायावती के भक्त होते थे। प्रसाद के रूप में उन्हें राज्यसभा की सदस्यता भी दी गयी थी, पर कुछ ज्यादा पाने का लालच उन्हें कांग्रेस में ले आया। कांग्रेस ने निराश भी नहीं किया। राज्यसभा की सदस्यता के साथ-साथ अपने राष्ट्रीय प्रवक्ताओं के पैनल में भी जगह दे दी। अपने “अनमोल बोल” से वह कैसे-कैसे विवाद खड़े करते रहे हैं, वह सबको पता है, पर आत्ममुग्ध अल्वी को “युवराज” के सामने सच बोलना भारी पड़ गया। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक समुदाय का समर्थन पाने के लिए कांग्रेस जिस बेशर्मी से मुस्लिम कार्ड खेल रही है, उसमें निहित खतरों के मद्देनजर आलोचना तो सभी समझदार कर रहे हैं, पर उसी प्रदेश से आने वाले अल्वी ने सच बोलकर राहुल की नजर में अपने नंबर बढ़ाने के लिए बता दिया कि मुसलमान कांग्रेस से उतने खुश नहीं हैं, जितना बताया जा रहा है। “युवराज” के दरबार में सन्नाटा पसर गया। आखिर उनके “मिशन 2012” का भविष्य तो टिका ही अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के कार्ड पर है, फिर भी वे खुश नहीं हैं तो “युवराज” के राजनीतिक भविष्य का क्या होगा? कोई और बोलता, उससे पहले खुद “युवराज” ने अल्वी को खामोश करते हुए कहा कि वह कई महीनों से उत्तर प्रदेश में घूम रहे हैं और मुसलमान कांग्रेस की ओर वापस लौट रहे हैं। जाहिर है, “युवराज” की खुशफहमी अल्वी नहीं तोड़ पाये, अब चुनाव नतीजों का इंतजार करना पड़ेगा।
कांग्रेस के कितने मुंह
मिजाज भांप कर मौके के अनुकूल बोलना वैसे तो राजनीतिक दलों की फितरत ही बन गयी है, पर कांग्रेस का तो इस मामले में भी कोई जवाब नहीं। कांग्रेस शासित राजस्थान की राजधानी जयपुर में आयोजित साहित्य उत्सव में विवादास्पद लेखक सलमान रुश्दी के आने-न आने को लेकर हुए विवाद में कांग्रेस और उसकी सरकारों की ओर से इतने बयान आये कि चर्चा ही चल पड़ी कि कांग्रेस के आखिर कितने मुंह? रुश्दी की भारत में प्रतिबंधित पुस्तक “सैटेनिक वर्सेज” से नाराज कुछ मुस्लिम संगठनों ने उनके जयपुर साहित्य उत्सव में आने के विरोध का ऐलान क्या किया, कांग्रेस को उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में तुष्टीकरण का एक और मौका मिल गया। रुश्दी भारत न आने पायें, इसके लिए बाकायदा साजिशी कोशिश की गयी। कांग्रेस के नेतृत्ववाली केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय ने, जिसके मंत्री कांग्रेसी पी.चिदम्बरम हैं, राजस्थान की कांग्रेस सरकार को एक-दो नहीं, छह बार “एडवायजरी” भेजी। फिर पुलिस ने रुश्दी को बताया कि उनकी जान को आतंकियों से खतरा है। रुश्दी नहीं आये तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि न आने का फैसला उनका अपना था, सरकार उन्हें सुरक्षा देने को तैयार थी। पर प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता ने दो टूक कहा कि पार्टी नहीं चाहती थी कि वह आयें। इसी बीच सुर्खियां बटोरने के इरादे से दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का बयान आ गया कि रुश्दी का दिल्ली में स्वागत है, पर विधानसभा चुनावों में हानि-लाभ के गणित के मद्देनजर ऊपर से जवाब-तलब किया गया तो खंडन भी कुछ ही देर में आ गया।
दृष्टिपात
* आलोक गोस्वामी
पाकिस्तान पसोपेश में
डा. शकील के साथ क्या करे
पाकिस्तानी हुकूमत पसोपेश में है कि उस डाक्टर शकील अफरीदी का क्या करे जिसने ओसामा-वध से पहले उसकी खुफिया जानकारी पाने में अमरीका की मदद करके “मुल्क के साथ गद्दारी” की थी? उस पर मुकदमा चलाया जाए या नहीं? पाकिस्तान पर डा. शकील को लेकर अमरीका का जबरदस्त दबाव है, जो चाहता है कि उस डाक्टर को बेवजह परेशान न किया जाए। डा. शकील ने, बताते हैं कि लादेन के एबटाबाद के गुप्त अड्डे के आस-पास टीकाकरण शिविर लगाकर मुहल्ले के बाशिंदों के साथ ही लादेन के अड्डे की महिलाओं के भी डी.एन.ए. नमूने लिए थे। मुहल्ले की एक महिला शाजिया बीबी ने बताया कि पिछले साल अप्रैल में दो महिलाएं हेपेटाइटिस-बी का टीका लगाने उसके घर आई थीं और चूंकि वह घर पर अकेली थी, लिहाजा उसे ही टीका लगाकर चली गईं। वे महिलाएं आस-पास के घरों के लोगों को भी टीके लगाने गईं।
इसी अभियान में लादेन के अड्डे में रह रहे उसके परिवार वालों के डी.एन.ए. नमूने लेने की योजना बनी थी। अमरीकी एजेंसी सी.आई.ए.की उस डाक्टर की मदद से डी.एन.ए. नमूने लेकर उन्हें 2010 में बोस्टन में प्राण त्याग चुकी लादेन की बहन के डी.एन.ए. से मेल करा कर यह पक्का करने की योजना थी कि दरअसल उस अड्डे में छुपा संदिग्ध आदमी लादेन ही था। यह विवरण अमरीका के एक अखबार ने दिया। लादेन-वध के बाद पाकिस्तान के सूचना मंत्रालय ने कहा था कि डा. शकील के खिलाफ “पाकिस्तान राज्य से आला दर्जे की गद्दारी और षड्यंत्र” का मामला बनाया गया है।” यह लादेन-वध की जांच को बैठे आयोग की रपट के लब्बो-लुबाब के आधार पर दिया बयान था। अमरीकी कार्रवाई में लादेन के मारे जाने के बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने कई लोगों को हिरासत में ले लिया था, उन्हीं में एक था, डा. शकील। तबसे वह बंद है, न मुकदमा न सुनवाई। अमरीका तबसे ही डा. शकील को छोड़ने की पैरवी करता आ रहा है। अमरीका के रक्षामंत्री लियोन पेनेटा सार्वजनिक रूप से डा. शकील की पूरी योजना में अहम भूमिका की बाबत बयान दे चुके हैं। उन्हें चिंता है कि पाकिस्तान न जाने उस शख्स के साथ क्या सलूक करने वाला है। पेनेटा कहते हैं कि जिस आदमी ने आतंकवाद पर कार्रवाई करने में मदद की है, उसके साथ पाकिस्तान जो कर रहा है वह उसकी बड़ी भूल है। थ्
उइगर में 8000 पुलिसकर्मी तैनात
चीन ने अपने यहां मजहबी उन्माद के गढ़ मुस्लिम बहुल उइगर में कड़ी चौकसी के लिए 8000 की तादाद वाला खास पुलिसबल तैनात किया है। ये सिपाही सिंक्यांग प्रांत के उत्तर-पश्चिम में उइगर क्षेत्र के चप्पे-चप्पे पर तैनात होंगे ताकि कोई मजहबी उन्माद भड़काने की जुर्रत न कर सके। चीनी सरकार किसी भी प्रकार के इस्लामी उन्माद पर लगाम लगाने को कमर कसे हुए है। उसकी योजना है कि प्रांत का कोई गांव ऐसा न रहे जहां पुलिसकर्मी गश्त न करें। उइगर में घुसपैठियों की भी बड़ी खेप पहुंचती रही है जो हिंसा भड़काती रहती है।थ्
वंदना बनीं पहली अंतरराष्ट्रीय शिक्षक
भारत के लिए यह वाकई गर्व का विषय है कि महाराष्ट्र के एक माध्यमिक स्कूल की शिक्षिका को अमरीका में एक प्रतिष्ठित अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए चुना गया है। 20 साल से स्कूल में जीव विज्ञान, भू-विज्ञान और सामान्य विज्ञान की शिक्षिका वंदना सूर्यवंशी उन 19 शिक्षकों के साथ अंतरिक्ष कार्यक्रम में भाग लेंगी जिन्हें “स्पेस फाउंडेशन” ने अंतरिक्ष और विज्ञान की शिक्षा में बढ़-चढ़कर भाग लेने और इन विषयों को प्रसारित करने में खास भूमिका अदा करने पर अलग-अलग देशों से चुना है। वंदना भारत की ओर से पहली अंतरराष्ट्रीय शिक्षक बन गई हैं। दस साल पुरानी संस्था “स्पेस फाउंडेशन” ने पहली बार इस प्रतिष्ठित फैलोशिप के लिए अंतरराष्ट्रीय शिक्षकों का चयन किया है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत “स्पेस फाउंडेशन” का “टीचर लायजन” कार्यक्रम काफी मायने रखता है और इसमें 270 से ज्यादा सक्रिय भागीदार हैं। इन 20 शिक्षकों का चयन अंतरिक्ष और सैन्य क्षेत्र के प्रतिनिधियों के समूह ने किया है। यह “2012 टीचर लायजन” कार्यक्रम आगामी 16 से 19 अप्रैल तक कोलाराडो (अमरीका) में सम्पन्न होगा। थ्
लाल सामंतवाद
नेपाल के माओवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल “प्रचण्ड” इन दिनों काठमांडू में अपने नए निवास को लेकर खूब चर्चा में हैं। नेपाल के समाचार पत्रों में इसे “लाल सामंतवाद” का परिचायक बताया जा रहा है। यह भव्य “महल” प्रधानमंत्री निवास, राष्ट्रपति भवन और नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेन्द्र के राजमहल के आस-पास के महत्वपूर्ण इलाके में है, जो 1500 वर्गमीटर में लगभग 20 करोड़ की लागत से निर्मित है। इसमें लम्बी चौड़ी पार्किंग और एक टेनिस कोर्ट भी है। राजधानी में ऐसी शानोशौकत वाले आवास में रहने वाले प्रचण्ड की नेपाली मीडिया में खूब आलोचना हो रही है। कुछ अखबार तो यहां तक टिप्पणी कर रहे हैं कि राजशाही के खिलाफ लड़ाई छेड़ने वाले प्रचण्ड एक ऐसी पार्टी के अगुआ हैं जो “गरीबों और वंचितों” के लिए काम करने का दम भरती है। उन्हें यह भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि ऐसे विशाल भवन को हासिल करने के लिए उनकी आय के स्रोत क्या हैं, क्योंकि माओवादी पार्टी में पारदर्शिता नहीं है। प्रधानमंत्री रहने के दौरान प्रचण्ड पर कई आरोप लगे थे कि उन्होंने विभिन्न तरीकों से अकूत सम्पत्ति जमा की। एक समाचार पत्र के संपादक के अनुसार, हालांकि यह आलीशान महल दूसरे व्यक्ति के नाम से खरीदा गया है, लेकिन इसके असली मालिक प्रचण्ड हैं।थ्
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