मनमानी नहीं, संविधान की भावना पर चलें राज्यपाल
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

मनमानी नहीं, संविधान की भावना पर चलें राज्यपाल

by
Jan 28, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

चर्चा सत्र

दिंनाक: 28 Jan 2012 15:52:37


 

* डा. हरबंश दीक्षित

राज्यपाल का पद एक बार फिर विवादों में है। इस बार गुजरात की राज्यपाल श्रीमती कमला बेनीवाल की नीयत पर उंगली उठाई जा रही है। घटना की पृष्ठभूमि में गुजरात के लोकायुक्त की नियुक्ति में की जाने वाली कथित मनमानी है। 25 दिसम्बर, 2011 को राज्यपाल ने अवकाश प्राप्त न्यायाधीश आर.ए.मेहता को गुजरात का लोकायुक्त नियुक्त कर दिया। इस मामले में उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री या मंत्रिमण्डल से कोई मशविरा नहीं किया। राज्यपाल का तर्क है कि उन्होंने गुजरात लोकायुक्त अधिनियम- 1986 के अनुसार काम किया है। अपनी दलील को आगे बढ़ाते हुए उनका कहना है कि गुजरात लोकायुक्त अधिनियम की धारा-3(1) में लोकायुक्त की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा किये जाने की व्यवस्था है और यह भी कि ऐसा करते समय गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा विधान सभा में विपक्ष के नेता से परामर्श किये जाने की बाध्यता है। उसमें मुख्यमंत्री का कहीं भी नाम नहीं है, इसलिए मुख्यमंत्री से परामर्श करना उनके लिए जरूरी नहीं था। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि भारतीय संविधान के अंतर्गत क्या राज्यपाल मुख्यमंत्री के परामर्श के बिना इस तरह की नियुक्तियां कर सकता है? यदि हां, तो यह विवेकाधिकार किस सीमा तक है? मामला उच्च न्यायालय के सामने है और अपने जवाब में राज्यपाल ने कहा है कि यद्यपि आमतौर पर राज्यपाल को मुख्यमंत्री की सलाह पर ही काम करना चाहिए, किन्तु “राज्य का शासन सही तरीके से नहीं चलाया जा रहा हो” तो राज्यपाल मूकदर्शक नहीं बना रह सकता।

दखलंदाजी की आशंका

संविधान निर्माण के शुरुआती दौर में चुने हुये राज्यपालों की नियुक्ति का प्रस्ताव आया था। जयप्रकाश नारायण उन कुछ लोगों में से थे जो इस बात के हिमायती थे। उनका मानना था कि राज्य विधान मंडलों द्वारा चुनाव करके चार लोगों का एक पैनल तैयार किया जाये और राष्ट्रपति उनमें से किसी व्यक्ति को राज्यपाल के रूप में नियुक्त करे। प्रारूप समिति ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और मौजूदा व्यवस्था स्वीकार की गयी, जिसमें राज्यपाल को राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त किये जाने की व्यवस्था है। संविधान सभा में आशंका व्यक्त की गयी थी कि केन्द्र और राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकार होने पर केन्द्र राज्यपालों के माध्यम से राज्य के कामकाज में दखलंदाजी कर सकता है। डा. भीमराव अम्बेडकर ने 30 दिसम्बर 1948 को संविधान सभा में इन आशंकाओं से जुड़े बिन्दुओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि राष्ट्रपति की तरह ही राज्यों में राज्यपाल केवल संवैधानिक तथा प्रतीकात्मक प्रधान होगा। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डा. अम्बेडकर ने कहा कि संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्राध्यक्ष के पास सीमित विशेषाधिकार ऐसे होते हैं जिनका इस्तेमाल वे अपने विवेक के अनुसार कर सकते हैं। उन्हें विश्वास था कि हमारे देश में ऐसी नौबत नहीं आयेगी। 

डा. अम्बेडकर के इस स्पष्टीकरण के बाद जब उनसे एक बार पुन: राज्यों में राज्यपालों के विवेकाधिकार के बारे में पूछा गया तो उनका उत्तर था कि राज्यपालों की स्थिति और उनके विवेकाधिकार वही होंगे जो राष्ट्रपति के हैं। उनका स्पष्ट मत था कि राज्यपाल को राज्य मंत्रिमण्डल के परामर्श से ही काम करना होगा।

संवैधानिक प्रावधान

राज्यपाल और राज्य मंत्रिपरिषद के अंतर्सम्बन्धों की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद-163 में की गयी है। उसमें तीन महत्वपूर्ण बातें हैं। पहली यह कि राज्यपाल की सलाह के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी और कुछ मामले ऐसे भी हो सकते हैं जिनमें उसे अपने विवेक के अनुसार काम करने का अधिकार होगा। दूसरी यह कि उन मामलों को तय करने का अधिकार राज्यपाल के पास होगा कि कहां पर उसे मंत्रिपरिषद की सलाह माननी है और कहां पर उसे अपने विवेक के अनुसार काम करना है, और तीसरी बात यह कि मंत्रियों द्वारा राज्यपाल को दी गयी सलाह के सम्बन्ध में जांच करने का अधिकार न्यायालय को हासिल नहीं होगा। गुजरात की राज्यपाल अनुच्छेद-163 का अर्थ अपने तरीके से निकाल रही हैं जो संविधान निर्माताओं की मंशा के अनुकूल नहीं है। उनकी मान्यता है कि चूंकि अनुच्छेद-163 उन्हें न केवल विवेकाधिकार देता है बल्कि अपने विवेकाधिकार को परिभाषित करने का अधिकार भी देता है।

गुजरात की राज्यपाल ऐसी अकेली राज्यपाल नहीं हैं जिन्होंने अनुच्छेद-163 का अपने मन मुताबिक अर्थ निकाला हो। कभी जनता का समर्थन खो देने के नाम पर, तो कभी विधान सभा के बहुमत का समर्थन नहीं होने का बहाना लेकर राज्यपालों ने राज्य शासन के साथ सैकड़ों बार खिलवाड़ किया है। हमारा संवैधानिक ताना-बाना ऐसा है जिसमें कुछ बातों को अनकहा छोड़ दिया गया है। जिम्मेदार संवैधानिक पदों पर रहने वाले लोगों के न्याय और शालीनता पर भरोसा करते हुए उनसे अपेक्षा की गयी है कि वे अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं करेंगे। दुर्भाग्यवश हमारे यहां ठीक उसका उल्टा हुआ। इसकी शुरुआत संविधान के लागू होने के तुरंत बाद ही हो गयी थी, जब सन् 1952 में तत्कालीन मद्रास राज्य के राज्यपाल श्रीप्रकाश ने स्पष्ट बहुमत नहीं होने के बावजूद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया था। सन् 1959 में केरल में ईएमएस नंबूदिरीपाद के नेतृत्व वाली सरकार को गैर कानूनी तरीके से बर्खास्त कर दिया गया था। सन् 1998 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रमेश भण्डारी ने मंत्रिमण्डल को बर्खास्त करके दूसरे मंत्रिमण्डल को शपथ दिला दी थी।

आपसी तालमेल जरूरी

श्री एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (सन् 1994) वाद ने राज्यपाल के अधिकार और उसकी मर्यादा से जुड़े विषयों पर व्यापक दिशानिर्देश जारी किया। मंशा यह थी कि राज्यपाल अपने को तानाशाह न समझे बल्कि संवैधानिक मर्यादा के अनुरूप आचरण करे। आमतौर पर यह माना जाता है कि समय बीतने के साथ संवैधानिक संस्थाओं में परिपक्वता आनी चाहिए, विवादों की सम्भावना कम होनी चाहिए और आपसी तालमेल की संस्कृति विकसित होनी चाहिए, किन्तु दुर्भाग्यवश हमारे देश में ऐसा नहीं हो पा रहा है। पिछले 62 वर्षों में राज्यपालों पर पद के दुरुपयोग के अनेक मामले प्रकाश में आते रहे हैं, कई बार उन्हें मुंह की भी खानी पड़ी है, उनकी प्रतिष्ठा भी कम हुई है। किन्तु अभी हमने उससे कुछ सीख नहीं ली है। गुजरात की राज्यपाल के फैसले के गुण-दोष पर आने वाले समय में व्यापक बहस होगी। उसका कोई न कोई निर्णय भी आयेगा। निर्णय जो भी हो, किन्तु इतना तय है कि इस तरह के मनमाने आचरण देश के इतिहास में अच्छी परम्पराओं के रूप में दर्ज नहीं किये जायेंगे। द

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

मिशनरियों-नक्सलियों के बीच हमेशा रहा मौन तालमेल, लालच देकर कन्वर्जन 30 सालों से देख रहा हूं: पूर्व कांग्रेसी नेता

Maulana Chhangur

कोडवर्ड में चलता था मौलाना छांगुर का गंदा खेल: लड़कियां थीं ‘प्रोजेक्ट’, ‘काजल’ लगाओ, ‘दर्शन’ कराओ

Operation Kalanemi : हरिद्वार में भगवा भेष में घूम रहे मुस्लिम, क्या किसी बड़ी साजिश की है तैयारी..?

क्यों कांग्रेस के लिए प्राथमिकता में नहीं है कन्वर्जन मुद्दा? इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रहे अरविंद नेताम ने बताया

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

मिशनरियों-नक्सलियों के बीच हमेशा रहा मौन तालमेल, लालच देकर कन्वर्जन 30 सालों से देख रहा हूं: पूर्व कांग्रेसी नेता

Maulana Chhangur

कोडवर्ड में चलता था मौलाना छांगुर का गंदा खेल: लड़कियां थीं ‘प्रोजेक्ट’, ‘काजल’ लगाओ, ‘दर्शन’ कराओ

Operation Kalanemi : हरिद्वार में भगवा भेष में घूम रहे मुस्लिम, क्या किसी बड़ी साजिश की है तैयारी..?

क्यों कांग्रेस के लिए प्राथमिकता में नहीं है कन्वर्जन मुद्दा? इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रहे अरविंद नेताम ने बताया

VIDEO: कन्वर्जन और लव-जिहाद का पर्दाफाश, प्यार की आड़ में कलमा क्यों?

क्या आप जानते हैं कि रामायण में एक और गीता छिपी है?

विरोधजीवी संगठनों का भ्रमजाल

Terrorism

नेपाल के रास्ते भारत में दहशत की साजिश, लश्कर-ए-तैयबा का प्लान बेनकाब

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies