आवरण कथा
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अब कृष्णा ने उछाली
मनमोहन सरकार की पगड़ी
कृष्णा पर खनन कंपनियों को लाभ पहुंचाने का दाग
* वेणुगोपालन
कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस में राजनीतिक एकाधिकार की बात करने वाले कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केन्द्रीय विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा के लिए राज्य में राजनीतिक जमीन खिसकती जा रही है। जाहिर है कि 1999 में पाञ्चजन्य यात्रा के बाद कृष्णा की राजनीतिक यात्रा को राज्य में जिस तरह से जनसमर्थन मिला था, उसी का परिणाम था कि राज्य की राजनीति में कांग्रेस की वापसी दमखम से हुई थी। तब मुख्यमंत्री बने एस.एम.कृष्णा ने “मिस्टर क्लीन” की छवि बना ली थी। उनका उदाहरण एक अनुभवी प्रशासक और राजनीतिक निर्णय करने वाले राजनेता के रूप में दिया जाने लगा था। कोई नहीं जानता था कि इस तथाकथित “बेदाग” छवि वाले कृष्णा अपने पारिवारिक सदस्यों तथा लौह एवं अयस्क का व्यापार करने वाली 10 कम्पनियों को लाभ पहुंचाने के लिए संरक्षित वनभूमि को अनारक्षित करने का गैरकानूनी निर्णय लेंगे। प्रशासनिक अनुभव का लाभ उठाते हुए मुख्यमंत्री कृष्णा ने हजारों एकड़ वनभूमि अनारक्षित कर खदान व्यवसायी कम्पनियों को सौंप दी थी। 1999 से 2004 के बीच लिए गए उस गैरकानूनी निर्णय के विरुद्ध किसी ने भी आवाज नहीं उठाई थी। यहां तक कि कर्नाटक लोकायुक्त को भारतीय जनता पार्टी एवं जनता दल की संयुक्त सरकार ने 2001 से 2008 तक के दौरान बेल्लारी और राज्य के अन्य क्षेत्रों में अवैध खनन की गतिविधियों की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी थी, तब भी किसी को यह गुमान नहीं था कि कृष्णा ने वनभूमि का घोटाला किया होगा। कर्नाटक लोकायुक्त ने अपनी अंतरिम रपट में इस बात का जिक्र किया था, परन्तु अंतिम रपट में कांग्रेसी मुख्यमंत्री एस.एम.कृष्णा तथा जनता दल एवं कांग्रेस की संयुक्त सरकार के मुख्यमंत्रियों एन.धरमसिंह एवं एच.डी. कुमारास्वामी के नामों का जिक्र नहीं किया गया था। तत्कालीन लोकायुक्त संतोष हेगड़े द्वारा इन नामों को अंतिम रपट में शामिल न किये जाने पर जनता ने सवालिया निशान भी लगाया।
जांच का आदेश
लोकायुक्त की रपट में भले ही इन पूर्व मुख्यमंत्रियों का नाम शामिल न किया गया हो, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता टी.जे.अब्राहम द्वारा लोकायुक्त के विशेष न्यायालय में दाखिल मुकदमे ने इन पूर्व मुख्यमंत्रियों की नींद हराम कर दी है। लोकायुक्त अदालत के विशेष न्यायाधीश के.सुधीन्द्रराव ने मुकदमे की सुनवाई करने के बाद पुलिस को इन आरोपियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार नियंत्रण कानून 1988 के तहत आपराधिक मामले दर्ज कर जांच करने का आदेश जारी कर दिया। लोकायुक्त न्यायालय का यह आदेश पूर्व मुख्यमंत्री कृष्णा के लिए सिरदर्द इसलिए भी बन गया क्योंकि वे हमेशा से खुद को “बेदाग” राजनेता के रूप में स्थापित करते आए थे।
राज्य में विकास की राजनीति का दांव खेलने वाली कांग्रेस को यह प्रथम दृष्ट्या रपट इसलिए भी नहीं हजम हो रही थी क्योंकि वह संरक्षित भूमि को अनारक्षित कर खदान मालिकों को सौंपे जाने के आरोप में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ववर्ती येदियुरप्पा सरकार के मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को त्यागपत्र देने पर मजबूर करती रही है। कांग्रेस ने ही येदियुरप्पा के विरुद्ध लोकायुक्त न्यायालय में दाखिल एक निजी मुकदमे के बाद उनके इस्तीफे की मांग भी की थी और इसी संदर्भ में पूरे राज्य में आंदोलन भी किया था।
येदियुरप्पा को पद से हटाने के लिए जिस व्यक्तिगत मुकदमे को कांग्रेस ने हथियार बनाया था, अब वही हथियार उनके “बेहद बेदाग” छवि वाले भारत के विदेश मंत्री एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा के गले की फांस बन गया है।
कृष्णा का बेमानी तर्क
8 दिसम्बर, 2011 को लोकायुक्त न्यायालय द्वारा कृष्णा के विरुद्ध प्रथम दृष्ट्या मामला दर्ज कर जांच करने के आदेश के विरुद्ध 9 दिसम्बर को कर्नाटक उच्च न्यायालय में कृष्णा की ओर से प्रथम दृष्ट्या रपट को दर्ज न करने की अपील की गई। अपील में कृष्णा ने कहा कि संरक्षित वनभूमि को अनारक्षित करने का निर्णय मंत्रिमंडल में लिया गया था, यह सामूहिक निर्णय था, इस निर्णय में उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं बनती है। इस अपील पर सुनवाई करने के बाद उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश आनंद ने कहा कि वनभूमि को अनारक्षित किया जाना, वनसंरक्षण कानून एवं वनसंरक्षण नियमावली के विरुद्ध है। संरक्षित वनभूमि को अनारक्षित जानबूझकर किया गया है, या यह निर्णय कानूनी तौर पर सही है इसका फैसला तत्काल नहीं किया जा सकता है। यह निर्णय सामूहिक रूप से लिया गया है अथवा व्यक्तिगत रूप से, इस पर भी अभी विचार नहीं किया जा सकता है। आरोपी को आपराधिक जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं किया जा सकता है, आरोप की जांच होनी ही चाहिए। अपील में लोकायुक्त की जांच रपट में उनका नाम नहीं होने का भी तर्क देते हुए प्रथम दृष्ट्या रपट को खारिज करने का निवेदन किया गया था, जिस पर उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए कहा कि लोकायुक्त को जांच के दौरान सामूहिक निर्णय सम्बंधी कार्यवाही की फाइल गायब मिली थी, जबकि संरक्षित वनभूमि को अनारक्षित करने संबंधी प्रपत्र फाइल में ही मिला। विद्वान न्यायाधीश ने निर्णय में कहा कि इस प्रकार से आरोपी के विरुद्ध लोकायुक्त कानून की धारा 12(3) के तहत जांच कार्रवाई होनी चाहिए। उच्चन्यायालय के इस निर्णय के विरुद्ध विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा ने उच्चतम न्यायालय में अपील दाखिल की।
एक और घोटाला
कृष्णा पर जहां हजारों एकड़ संरक्षित वनभूमि को अनारक्षित कर खदान कम्पनियों को सौंपने के गंभीर आरोप की जांच का आदेश लोकायुक्त न्यायालय ने दिया है वहीं उनकी राजनीतिक “बेदाग” छवि पर “दाग” लगाने वाला एक और मामला प्रकाश में आया है। यह मामला है आर्थिक घोटाले का। राज्य की मशहूर चित्रकला परिषद के कोष में घोटाले का आरोप लगाते हुए परिषद के संस्थापक सचिव एम.एस. नन्जुंडराव की पुत्री एस.एन.श्रीदेवी राव ने स्थानीय दीवानी अदालत में एस.एम.कृष्णा एवं अन्य 53 के विरुद्ध आर्थिक घोटाले का आरोप लगाते हुए मुकदमा दाखिल किया है। श्रीदेवी ने आरोप में कहा कि परिषद के आजीवन सदस्य कृष्णा ने चित्रकला परिषद के दैनिक क्रियाकलापों में हस्तक्षेप करते हुए आर्थिक अनियमितता बरती है। श्रीदेवी की अपील को स्वीकार करते हुए दीवानी अदालत ने अगली सुनवाई 9 फरवरी को करने का आदेश दिया है। मुकदमे में एस.एम. कृष्णा के साथ प्रसिद्ध कलाकार यूसुफ अराकल, दक्षिण की प्रख्यात अभिनेत्री बी.सरोजा देवी एवं अन्य लोगों को भी परिषद को आर्थिक घाटा पहुंचाने का दोषी ठहराया गया है। एक अन्य आरोप में कहा गया है कि कृष्णा एवं अन्य लोग ऐतिहासिक चित्रों को नुकसान पहुंचाने के साथ ही रूस के प्रसिद्ध कलाकार स्वेस्तोव रोरिक की कलाकृतियों को नष्ट कर रहे हैं और कला की समृद्धि के लिए आवंटित राशि को अन्य उद्देश्यों पर व्यय कर रहे हैं। वादी श्रीदेवी राव ने न्यायालय से अपील की है कि वह कृष्णा को चित्रकला परिषद की दैनिक गतिविधियों में हस्तक्षेप न करने का आदेश दे।
कृष्णा के रूप में साफ और स्वच्छ छवि का जो कथित हथियार राज्य कांग्रेस के पास था वह अब कृष्णा के अवैध वनभूमि आवंटन एवं राज्य की मशहूर चित्रकला परिषद के आर्थिक घोटाले से सम्बंधित मामले को लेकर अदालतों में दाखिल मुकदमे ने धूमिल कर दिया है।
कृष्णा ने लोकायुक्त न्यायाधीश द्वारा संरक्षित वनभूमि घोटाले की प्रथम दृष्ट्या रपट लिखकर जांच कराने के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय जाकर अपनी राजनीतिक किरकिरी ही कराई है। उच्च न्यायालय द्वारा लोकायुक्त न्यायालय की कार्रवाई की पुष्टि किए जाने के बाद कृष्णा को अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए था। अदालत में दाखिल मुकदमे ने कृष्णा को यहां तक हतोत्साहित कर दिया है कि वे अब राज्य की राजनीति में अपनी वापसी से भी इनकार करने लगे हैं। यही कृष्णा जब तक केन्द्र में मंत्री नहीं बने थे तब तक राज्य की कांग्रेसी राजनीति में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जताने से नहीं चूक रहे थे। इन पंक्तियों के लिखे जाने के वक्त उच्चतम न्यायालय ने कृष्णा के विरुद्ध जांच कार्रवाई को स्थगित करते हुए कहा है कि अभी लोकायुक्त की आगे की रपट आनी शेष है। बहरहाल, कृष्णा की “बेदाग” छवि अब वापस लौटती नजर नहीं आती। उच्चतम न्यायालय में कृष्णा की प्रथम दृष्ट्या रपट को खारिज करने की अपील इसी बात को दर्शाती है।द
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