स्वास्थ्य
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स्वास्थ्य जागरण पर्व : पोलियो मुक्त भारत
मकर संक्रांति पर मिला शुभ संदेश
डा. हर्ष वर्धन
वर्ष 2011 समूचे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलनों का वर्ष रहा है तथा पिछले वर्ष ए. राजा एवं सुरेश कलमाड़ी जैसे लोगों के जेल जाने की खबर को छोड़ देश के लिए कोई भी अच्छी खबर सुनाई नहीं दी। भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की दिशा में देशवासियों की मानसिकता बदली है। देश के अनेक झंझावातों एवं तकलीफों के बीच 2012 ईस्वी प्रारम्भ हो गया है। देश के भविष्य को लेकर कहीं से कोई भी उत्साहवर्धक समाचार नहीं प्राप्त हो रहा है लेकिन इस वर्ष की मकर संक्रान्ति (14 जनवरी) का दिन विशेष खुशखबरी लेकर आया।
पोलियो जैसी बीमारी ने लाखों लोगों को अपंग जीवन जीने के लिए बाध्य कर दिया है। पोलियो से अपंग हुए लोगों की पीड़ा किसी भी हृदय को द्रवित कर देती है। डा. जोनस साल्क एवं डा. एलबर्ट सेबिन के निरंतर शोध एवं पोलियो वैक्सीन गुणवत्ता में निरंतर सुधार की प्रक्रिया से अंतत: पोलियो वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में सफलता मिली है। सदियों से माता-पिता को स्वस्थ बच्चे की कामना रही है। आज अस्पतालों में जब स्वस्थ बच्चे पैदा होते हैं तो चिकित्सक एवं नर्स उनके माता-पिता को बधाई देते हैं। भारत सहित समूची दुनिया के लोग ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि वह स्वस्थ एवं चिरायु रहें। प्राचीन काल से हमारे समाज में ऋषियों-मुनियों, संतों-महात्माओं के आशीर्वाद में आरोग्य एवं चिरायु होना समाहित रहा है। अनेक पुस्तकों का लेखन, विविध चिकित्सा पद्धतियों व शारीरिक व्यायाम का विकास तथा संतुलित आहार की व्यवस्था आदि भी एक स्वस्थ जीवन की प्राप्ति के लिए ही अस्तित्व में आये। हर व्यक्ति की यही अभिलाषा होती है कि उसके शरीर के सभी अंग सामान्य रूप से अपना कार्य करते रहें। इस बात के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है कि किसी भी जीवन के लिए हाथ और पांव दैनिक क्रियाकलाप को सुचारु रखने के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं और हम सबकी यह इच्छा होती है कि यह अंग सामान्य रहें। कुछ बीमारियां हैं जो इन अंगों को दुष्प्रभावित करती हैं और जो लोग इन बीमारियों से ग्रस्त हैं, उनको जीवन जीना कठिन हो गया है। उन बीमारियों में एक बीमारी पोलियो भी है, जिसने सरकारों और चिकित्सा विशेषज्ञों के ध्यान को खींचा है और वह इस धरती से पोलियो नामक बीमारी का उन्मूलन करना चाहते हैं।
वर्ष 1988 में 166 देशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में विश्व स्वास्थ्य संगठन की 41वीं असेम्बली में समूची दुनिया से वर्ष 2000 तक पोलियो को समाप्त करने का संकल्प लिया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन इस तथ्य से अवगत था कि 1988 तक पूरे संसार में 3,50,000 पोलियो के मामले पाये गये थे तथा अधिकांश पोलियो के मामले दर्ज नहीं हो रहे थे। उस समय यह अनुमान लगाया गया कि कुल मामलों का मात्र 10 प्रतिशत ही प्रतिवर्ष दर्ज हो पाता है। दो सौ पोलियो संक्रमण के मामलों में से एक संक्रमित व्यक्ति लाइलाज लकवा (पैरालाइसिस) का शिकार होता है, जिसमें से 5 या 10 प्रतिशत लोगों की श्वसन मांसपेशियां (ब्रीदिंग मसल्स) गतिहीन हो जाने के कारण मृत्यु हो जाती है। खास तौर पर हमारे देश में कुछ बीमारियों को सामाजिक कलंक समझा जाता है और इस कारण उनके परिवारजन उस तथ्य को समाज से छिपाते हैं। वर्ष 2000 तक पोलियो उन्मूलन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भूमंडलीय साझेदारी शुरू की तथा इसमें रोटरी इंटरनेशनल, यूनीसेफ, द यूएस सेन्टर फॉर डिजीज कन्ट्रोल एंड प्रिवेन्शन (सी.डी.सी.), गैर-सरकारी संस्थाओं, दान देने वाली सरकारों तथा पोलियो प्रभावित देश के स्वास्थ्य मंत्रालयों को शामिल किया। इन सभी एजेन्सियों ने न केवल पहल की अपितु तकनीकी दक्षता, समर्थन और स्वयंसेवक भी उपलब्ध कराये।
भारत की स्थिति
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सारे संसार के साथ-साथ भारत में भी अपनी आवाज इस विषय पर बुलंद करने का सरकारों के सामने प्रयास किया लेकिन संभवत: उनकी आवाज के सामने सरकार के कान बहरे ही रहे और फिर वर्ष 1993 के अंत में दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तथा मुझे दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री का दायित्व मिला। उस समय विश्व के कुल पोलियो मामलों में भारत का प्रतिशत 50 था तथा अकेली दिल्ली के पोलियो ग्रस्त बच्चों की संख्या भारत के ऐसे बच्चों का 10 प्रतिशत थी। दिल्ली के यमुना पार क्षेत्र में पूरे विश्व के सबसे अधिक पोलियो प्रभावित बच्चे होते थे। दिल्ली की सरकार ने दिल्ली को भारत का पहला पोलियो मुक्त प्रान्त बनाने का संकल्प लिया और एक न्यायसंगत तर्क से अपने आंदोलन की नींव रखी। यह तर्क और सोच थी- देश में यदि हर व्यक्ति को देश के हर कोने में एक ही दिन में उसके घर के पास अपनी सरकार चुनने के लिए मत पत्र उपलब्ध कराया जा सकता है तब बच्चों की रक्षा के लिए एक ही साथ एक ही दिन में छोटे बच्चों के घर के पास उन्हें पोलियो की दो बूंद क्यों नहीं पिलाई जा सकती? संभवत: यही वह पल्स पोलियो तकनीक थी जो पोलियो उन्मूलन के लिए आवश्यक थी। इसका ध्यान रखते हुए दिल्ली सरकार ने वृहद पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई। वर्ष 1994 में दिल्ली के प्रत्येक नागरिक, सरकारी एवं गैरसरकारी संगठन, सभी सरकारी विभागों ने मिलकर पल्स पोलियो अभियान में अपनी उपस्थिति दर्ज की और 2 अक्टूबर, 1994 और 4 दिसंबर, 1994 को एक ही दिन में 12 लाख बच्चों को पोलियो की खुराक देने में ऐतिहासिक सफलता हासिल हुई। यह उस समय संभव हुआ जब दिल्ली पर प्लेग का खतरा मंडरा रहा था और बहुत सारे भविष्यवक्ता उसकी वजह से कार्यक्रम की असफलता की आशंका भी व्यक्त करते थे। दिल्ली की भारी सफलता ने वर्ष 1995 में केन्द्र सरकार को इस कार्यक्रम को राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने पर मजबूर किया और ऐसा होते ही दक्षिणी पूर्व एशिया के देशों ने इससे प्रेरणा लेकर वर्ष 1995-1996 में अपने देशों में पल्स पोलियो कार्यक्रम प्रारम्भ किये। विश्व में पोलियो मामलों में 50 प्रतिशत योगदान देने वाले भारत की पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम की ऐतिहासिक सफलता से प्रभावित होकर नेल्सन मंडेला ने अपने देशवासियों को ‘पोलियो को अफ्रीका से बाहर निकालने” का आह्वान किया। कार्यक्रम के अनुसार वर्ष 2000 तक संसार को पोलियो मुक्त करना था लेकिन समयबद्ध तरीके से वर्ष 2000 तक सफलता नहीं मिल पायी। यह स्मरण करना आवश्यक होगा कि वर्ष 2000 में भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता एवं कुशल नेतृत्व में भारत सरकार की कैबिनेट की बैठक बुलाई गयी, जिसमें पोलियो उन्मूलन के संदर्भ में विस्तृत चर्चा की गयी तथा पोलियो के अभिशाप से देशवासियों को बचाने के लिए एक दृढ़ संकल्प लिया गया तथा स्वयं प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोस्टरों और बैनरों के माध्यम से देशभर में पोलियो अभियान को सफल बनाने के लिए विशेष प्रयास किये। पोलियो उन्मूलन अभियान में पिछले दशक में विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार की प्रगति तथा पोलियो ड्राप्स के प्रति झूठे प्रचार के कारण अल्पसंख्यक विरोध की खबरें प्रमुख रहीं।
रा.स्व.संघ का सहयोग
इस अभियान में देशभर में अनेक संस्थाओं के साथ-साथ प्रारम्भ से ही महत्वपूर्ण सहयोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों का मिला। रा.स्व.संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह ‘उपाख्य रज्जू भैया” ने लेखक को सदैव प्रोत्साहित किया तथा उन्होंने स्वयं स्वयंसेवकों को इस दिशा में सहयोग करने के लिए मार्गदर्शन किया। संघ के वरिष्ठ प्रचारक (स्व.) हो.वे. शेषाद्रि ने प्रारंभ के समय से ही इस कार्यक्रम की बारीक योजनाओं के संदर्भ में भी मार्गदर्शन किया और जीवनपर्यन्त इस कार्यक्रम की सफलता की चिन्ता करते रहे। सन् 2002 में जब अचानक पल्स पोलियो अभियान को एक झटका लगा तथा उत्तर प्रदेश व बिहार में पोलियो के मामले बड़ी संख्या में बढ़ते दिखाई दिये, तब शेषाद्रि जी ने ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के सलाहकार के रूप में लेखक से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 2002 में हुई कर्णावती (अमदाबाद) बैठक में देशभर के सभी प्रमुख संघ प्रचारकों के बीच में विषय चर्चा के लिए रखवाया। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन एवं सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत ने पूरे देश में और विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में स्वयंसेवकों को पोलियो उन्मूलन अभियान में विशेष सहयोग एवं रुचि लेने के लिए अपील की। यह स्मरण कराना भी प्रासंगिक होगा कि वर्ष 2002 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया के एक वरिष्ठ निदेशक डा. पालिथा एबेकून ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं उसके सहयोगी संगठनों के 185 वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से देशभर में कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए औपचारिक सहयोग मांगा। संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री सोहन सिंह, उत्तर भारत क्षेत्र के तत्कालीन क्षेत्र प्रचारक श्री प्रेम गोयल सहित अनेक स्वयंसेवकों ने इस अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
शुभ दिन
एक लंबी प्रतीक्षा एवं लंबे इतिहास की रचना के बाद इस वर्ष 14 जनवरी, 2012 मकर संक्रान्ति का दिन देश के लिए एक अत्यंत सुखद खबर लाया। देश ने पूरा एक वर्ष (13 जनवरी, 2011 से लेकर 13 जनवरी, 2012 तक) देखा जब देश भर में एक भी पोलियो का मामला नहीं हुआ है। 13 जनवरी, 2011 को हावड़ा (पश्चिम बंगाल) में आखिरी बार पोलियो का एक मामला सामने आया था। यह भारत के लिए बहुत बड़ा सुखद समाचार है तथा देश को इस खबर के साथ अपने पोलियो उन्मूलन के संकल्प को और अधिक गंभीरतापूर्वक एवं दृढ़तापूर्वक पालन करने की आवश्यकता हैे। तथा कम से कम आगामी दो वर्षों तक संपूर्ण सावधानी के साथ वैज्ञानिक तरीकों से इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, जब तक विश्व स्वास्थ्य संगठन से पोलियो उन्मूलन का प्रमाण पत्र भारत को प्राप्त न हो जाये। यह जानकारी योग्य है कि वर्ष 1988 में विश्व के पोलियो प्रभावित 125 देशों में से वर्ष 2011 में मात्र 4 देश अफगानिस्तान, भारत, नाइजीरिया तथा पाकिस्तान ही शेष बचे थे, जहां पोलियो संक्रमण की संभावनाएं विशेषरूप से बनी हुई हैं।
एक बार पोलियो का उन्मूलन हो गया तो विश्व एक वृहद सार्वजनिक अच्छाई के वितरण का उत्सव मना सकेगा, जो विश्व के सभी लोगों के लिए लाभप्रद होगा। यह वास्तव में स्वास्थ्य जागरण पर्व होगा। एक आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार न्यूनतम आय वाले देशों में पोलियो उन्मूलन से आगामी पांच वर्षों में 40 से 50 बिलियन अमरीकी डालर बच सकेंगे। समय आ गया है कि हम सभी देशवासियों की ओर से पोलियो उन्मूलन के लिए उठाये गये कदम के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन, रोटरी इंटरनेशनल, सीडीसी एवं यूनीसेफ का धन्यवाद करें।
विकासशील देशों में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम भूमिका निभायी। 1980 में विश्व से चेचक के उन्मूलन के उपरांत पोलियो उन्मूलन स्वास्थ्य के क्षेत्र की विश्व की दूसरी सबसे बड़ी खबर हो सकती है। पोलियो उन्मूलन के प्रयास में शामिल रहने वाले लोगों के प्रति संसार के बच्चे आजीवन ऋणी रहेंगे लेकिन इस बात का ध्यान रखना होगा कि विश्व के किसी भी कोने में कोई भी बच्चा पोलियो से संक्रमित हुआ तो विश्व के सभी देशों के बच्चों के लिए पोलियो का खतरा पुन: उत्पन्न हो जाएगा। वर्ष 2009-2010 में पोलियो मुक्त देशों में वायरस के आयात से पुन: 23 ऐसे देश, जो पोलियो मुक्त हो गये थे, वह पोलियो संक्रमण के शिकार हुए। इसीलिए आवश्यकता है कि पूरी सावधानी से पोलियो उन्मूलन के लिए आने वाले समय में भी आवश्यक कदम उठाये जाएं। द (लेखक दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री रहे हैं।)
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