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ऐसे जगेगा देश

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Jan 21, 2012, 12:00 am IST
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ऐसे जगेगा देश

दिंनाक: 21 Jan 2012 15:39:32

‘देश का भविष्य युवाओं के हाथों में है।” यह पंक्ति हमने अनेक बार विभिन्न मंचों से सुनी होगी। चाहे वह मंच राजनीतिक हो, सामाजिक हो, शैक्षिक हो या फिर धार्मिक। यह कहकर उद्बोधनकर्ता लोगों को इसी बात का अहसास कराना चाहते हैं कि जैसी देश की युवा पीढ़ी होगी, वैसा ही देश का भविष्य होगा। इसलिए युवा पीढ़ी का सर्वतोमुखी विकास हर प्रकार से आवश्यक है। ताकि यह पीढ़ी सक्षम होने पर सकारात्मक सोच के साथ देश की प्रगति में अपना योगदान कर सके। देश के अधिकांश युवाओं की प्रेरणा के स्रोत कहे जाने वाले स्वामी विवेकानंद ने भी युवा पीढ़ी को राष्ट्र के उन्नयन में महत्वपूर्ण माना था। उन्होंने तो अपने उद्बोधन में सर्वगुण सम्पन्न युवाओं के जरिए देश की काया तक पलट देने की बात कही थी। तो ऐसी युवा पीढ़ी, जिसे हर कोई देश का भविष्य कहता है और देश के विकास में उपयोगी मानता है, वह कितनी जागरूक है देश की समस्याओं के प्रति और देश के विकास तथा समाज के लिए उसकी सोच क्या है? पाञ्चजन्य के गणतंत्र दिवस विशेषांक के जरिए हमने कुछ चुनिंदा युवाओं से यही जानने का प्रयास किया। प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंश-सं.। (प्रस्तुति: तरुण सिसोदिया)

सामाजिक जिम्मेदारियों

के प्रति जागरूक रहें

डा. चारू कालड़ा, प्राध्यापिका (वनस्पति विज्ञान)

अपने कॅरियर की प्रगति पर ध्यान देने के साथ-साथ आज के युवा को यह भी समझना होगा कि उन्हें समाज को भी कुछ लौटाना है। मेरा मानना है कि यदि हम अपना कार्य ईमानदारी और सजगता से करते हैं तो समाज निर्माण में ही सहायता कर रहे हैं। वर्तमान में बहुत सी ऐसी समस्याएं हैं, जिनसे समाज जूझ रहा है। उनमें से कुछ छोटे-छोटे ऐसे काम हैं, यदि हम चाहें तो ठीक हो सकते हैं। अपनी व्यस्त दिनचर्या में से युवा बेशक समय न निकाल पाएं, लेकिन वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति तो जागरूक रह ही सकते हैं। जगह-जगह गंदगी के ढेर, टूटी सड़कें, गंदा पानी आदि सामाजिक सहभागिता की आवश्यकता रेखांकित करते हैं, जिसमें युवाओं की अहम भूमिका हो सकती है। वह किसी भी प्रकार की सामाजिक संस्था के साथ जुड़कर, नहीं तो उसके लिए विभिन्न साधन जुटाने में सहायता कर सकते हैं। आज के युवा ‘बेस्ट” बनने की लालसा में ‘वेस्ट” का अनुकरण न करके, यदि अपने अभिभावकों द्वारा संजोए हुए मूल्यों का अनुकरण करते हैं तो वह अवश्य ही देश की तरक्की में अपनी सहभागिता दिखा सकते हैं।  

हम बदलेंगे तो देश बदलेगा

अनुराग, पत्रकार

सबको आगे जाने की जल्दी है। इसके लिए छोटे रास्ते अपनाए जाते हैं, लाइनें टूटती हैं, नियम बिखरते हैं। नियमों को सुधारने के लिए आंदोलन हुए, लेकिन यह बात दूर तलक नहीं गई। वहीं आकर रुक गई, जहां से निकली थी। प्रश्न है कि क्या जो हो रहा है, उसे ऐसे ही होने दिया जाए? शायद नहीं, ऐसा आखिर कब तक चलता रहेगा! स्वतंत्र भारत में हम कब तक ‘परतंत्र” बने रहेंगे। पैसे की अहमियत कुछ ज्यादा ही हो गई है। लेकिन क्या हम ईमानदारी से भ्रष्टाचार से लड़ने की ताकत या नीयत रखते हैं? ऐसा अभी तो बिल्कुल दिखाई नहीं देता है। दरअसल भ्रष्टाचार तो हमारी आत्मा में बसा है। यह सौ फीसदी कड़वी सच्चाई है। यहां भ्रष्टाचार को सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से देखना गलत होगा। यह हमारे समाज, हमारे चरित्र, हमारी सोच और हमारे कर्म में रच-बस गया है। भ्रष्टाचार हमारी रगों में दौड़ रहा है। भले ही कुछ लोग मेरी इस बात से सहमत न हों, लेकिन यही सच है। भ्रष्टाचार में हम आज इतने डूबे हुए हैं कि जब कभी भी हमें मौका मिलता है, हम मौके का लाभ उठाने से नहीं चूकते। नियम हैं, नियमों का क्या, उममें भी रास्ते ढूंढ लिए जाएंगे। मेरा मानना है कि एक कानून बन जाने भर से देश की स्थिति नहीं सुधरेगी। क्योंकि स्वयं में सुधार हम खुद ही ला सकते हैं। हम बदलेंगे, तो ही देश बदलेगा और तरक्की करेगा।

 

संस्कृति और सभ्यता को पहचानें

विकास मित्तल, प्राध्यापक (कम्प्यूटर साइंस)

भारत आज प्रगति तो कर रहा है, लेकिन आज के युवा को भारत की प्राचीन सभ्यता और गौरवशाली इतिहास की याद दिलाई जाए तो उसे विश्वास ही नहीं होता। युवा अपना विश्वास खो रहा है और हर समस्या के समाधान के लिए पाश्चात्य संस्कृति का सहारा ले रहा है। मुझे लगता है कि इससे भारत कभी विकसित राष्ट्र नहीं बन सकता। क्योंकि आज की सामाजिक, वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए हो सकता है कि पाश्चात्य संस्कृति कुछ समय के लिए समाधान कर दे, लेकिन वही समाधान एक अंतराल के बाद जटिल समस्या बन जाती है। भारत की युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति और सभ्यता को पहचानना चाहिए और उस पर विश्वास करके समाज को संगठित करने का काम अपने हाथ में लेकर भारत को न केवल विकसित, बल्कि विश्वगुरु बनाना चाहिए। हमारे सामने दो विकसित राष्ट्र-जापान और चीन हैं, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी अपनी सभ्यता को नहीं भुलाया और आज वे विकसित राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं।

पूरी लगन से करें अपना काम

गौरव शर्मा, इंजीनियर

युवा वर्ग देश के विकास के लिए हमेशा से ही किसी न किसी रूप में तत्पर रहा है। और आज का युवा इस बात को समझ चुका है कि यदि देश के लिए कुछ करना है तो सबसे पहले जो कार्य वह कर रहा है उसे पूर्ण लगन व निष्ठा से करे। यदि वह अपने द्वारा किए जाना वाला कार्य ईमानदारी एवं ठीक प्रकार से करता है, तो वह देश के विकास में ही सहयोग कर रहा है। इसके अलावा अपने घर व समाज को बेहतर दिशा देने के लिए उसे अपनी विचारधारा में भी थोड़ा बदलाव लाने की जरूरत है, क्योकि देश का निर्माण अच्छे समाज से ही होता है। और समाज की मजबूत नींव हम तभी रख सकते हैं, जब हम अपने व्यक्तित्व में अच्छे गुणों का समावेश करें। समाज के लिए कुछ करते वक्त यह न सोचें कि यह काम मैं ही क्यों करूं? इस भावना को अपने भीतर से समाप्त कर युवाओं को आज अपने कॅरियर के साथ-साथ समाज के लिए भी कुछ करने का जज्बा लेकर आगे बढ़ना होगा, तभी एक बेहतर कल का निर्माण हो सकेगा।

जरूरतमंदों की मदद करें

सुनील वशिष्ठ, व्यवसायी

आज के प्रतिस्पर्धा वाले युग में युवाओं का बचपन से जवानी तक का समय सिर्फ कॅरियर की सोच तक ही सीमित रह जाता है। और उसके बाद का समय परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए निकल जाता है। ऐसे में युवाओं को यह समझना होगा कि उनकी सफलता सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि समाज की भी इसमें कुछ हिस्सेदारी है। युवाओं को समझना होगा कि जिस देश और समाज के चलते आज वह स्थापित हुए हैं, उसके प्रति भी उनकी कुछ जिम्मेदारी बनती है। हमें यह सोचना चाहिए कि देश तरक्की करेगा, तो हमारा भी नाम होगा। युवा होने के नाते हमें समाज के ऐसे वर्ग का जीवन स्तर ऊंचा उठाने का प्रयास करना चाहिए, जो भिन्न-भिन्न कारणों से पिछड़ा हुआ है। देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, परन्तु धन की कमी के चलते उनका विकास नहीं हो पाता। जिसके कारण वे अपराध की ओर बढ़ जाते हैं। हमें ऐसी प्रतिभाओं को ढूंढकर इनके विकास में सहयोग करना चाहिए। अब प्रश्न उठता है कि ऐसी प्रतिभाएं ढूंढें कहां से, तो शहरी क्षेत्र में बसी झुग्गी-बस्तियों में ऐसी प्रतिभाएं खूब मिल जाएंगी। अब ऐसी प्रतिभाओं को या तो हम स्वयं जाकर ढूंढें या फिर ऐसे सामाजिक संगठनों की मदद करें जो इस कार्य में लगे हुए हैं। ऐसा करने से हमें लगेगा कि देश के विकास में हम भी कुछ योगदान कर रहे हैं।

सकारात्मक और चरित्रवान हों

रमन पंडित, पत्रकार

किसी भी इंसान के लिए युवा अवस्था जीवन का स्वर्ण काल होती है। ऊर्जा से भरा युवा यदि सकारात्मक और चरित्रवान हो तो देश को नई बुलंदियों पर ले जा सकता है। वहीं नकारात्मक और कुंठित युवा आत्मघाती भी साबित हो सकता है। भारत में अमरीका की सम्पूर्ण जनसंख्या से भी ज्यादा युवा हैं। फिर भी हमारा देश गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और इन सबसे ऊपर भ्रष्टाचार की समस्या से जूझ रहा है। भारत का नाम आते ही सांस्कृतिक विरासतों से परिपूर्ण देश की कल्पना मन में आती है। लेकिन समय के साथ-साथ इन सांस्कृतिक मूल्यों में गिरावट आती दिखाई दे रही है। मुझे लगता है कि सभी समस्याओं का मुख्य कारण सांस्कृतिक मूल्यों में गिरावट का आना है। युवा वर्ग भारतीय संस्कृति के प्रति उदासीन हो रहा है और पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहा है। भारतीय संस्कृति की रीढ़ कहे जाने वाली संयुक्त परिवार व्यवस्था आज लगभग छिन्न-भिन्न हो चुकी है। एकाकी जीवन का आदी युवा सामाजिक जीवन से मुंह मोड़ चुका है। और यही एकाकीपन उसे शराब, नशा और अपराध के संसार में धकेल रहा है। देश से गरीबी और बेरोजगारी को मिटाने के लिए हमें विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की आवश्यकता तो है, लेकिन युवाओं को इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि उनका कोई कदम भारतीय जीवन मूल्यों के विपरीत न हो। हम एक ऐसे देश की कल्पना करें जो एक बार फिर से विश्व की अगुआई करे।

मतदान अवश्य करें

प्रेमनिधि शर्मा, कॉरपोरेट ट्रेनर

आज का युवा अपनी पढ़ाई और कॅरियर तक ही सीमित हो गया है। उसका देश और समाज की तरफ कोई रुझान नहीं है। यहां तक कि वह देश को चलाने वाले नेताओं को चुनने के लिए होने वाले मतदान से भी परहेज करता है। जबकि एक लोकतांत्रिक देश का नागरिक होने के नाते वह इतना तो कर ही सकता है कि मतदान करके एक ऐसे व्यक्ति को चुने जो ईमानदार और देशप्रेमी हो। इस बात पर हर युवा को विचार करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करके वह देश की तरक्की में कुछ तो योगदान कर ही सकता है। क्योंकि यदि देश को चलाने वाले अच्छे लोग होंगे तो देश विकास की ओर अग्रसर होगा। हो सकता है कि मतदान करने में हमारा कुछ कीमती समय नष्ट हो जाए, लेकिन देश के लिए इतना त्याग तो हम कर ही सकते हैं। इसके अलावा जिन युवाओं के पास समय है और उनके मन में समाज की दरिद्रता को देखकर दर्द होता है तो उन्हें सामाजिक गतिविधियों में भी भाग लेना चाहिए। क्योंकि जैसे-जैसे देश से गरीबी और दरिद्रता कम होगी, देश विकसित होता जाएगा।थ्

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