राज्यों से
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पंजाब/राकेश सैन
पंजाब कांग्रेस में खुली बगावत
दामाद, पुत्र से पौत्र तक पहुंचा परिवारवाद
विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा होते ही पंजाब कांग्रेस युद्ध के मैदान में उतर आई, परन्तु तलवारें प्रतिद्वंद्वियों के बीच नहीं बल्कि अपनों के खिलाफ ही खिंची हुई दिख रही हैं। हालांकि अकाली दल (बादल) और भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों में भी मतभेद हैं, लेकिन कांग्रेस की कलह पार्टी के राजनीतिक भविष्य को एक बड़ा झटका लगाती दिख रही है। सत्ता की लड़ाई में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे कैप्टन अमरिन्दर सिंह के भाई मालविन्द्र सिंह के अकाली दल (बादल) में शामिल होने से स्पष्ट हो गया है कि अंदरूनी कलह चरम सीमा तक पहुंच गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बेटों, बहनों, भाइयों, बेटियों, दामादों व पत्नियों को ही टिकट मिलने के कारण जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले लोगों को मायूसी हाथ लगी है। पंजाब में उन 11 उम्मीदवारों को टिकट मिली हैं जिनके परिवार का कोई सदस्य पार्टी का बड़ा नेता रहा है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह तथा केन्द्रीय मंत्री श्रीमती परनीत कौर के पुत्र रणइंदर सिंह, विपक्ष की नेता श्रीमती राजिन्दर कौर भट्ठल के दामाद बिक्रमजीत सिंह बाजवा, सांसद प्रताप सिंह बाजवा की धर्मपत्नी श्रीमती चरणजीत कौर बाजवा, सांसद महेन्द्र सिंह के.पी.की पत्नी श्रीमती सुमन के.पी., कांग्रेस की केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य जगमीत सिंह बराड़ के भाई रिपजीत सिंह बराड़, सांसद रवनीत बिट्टू के भाई गुरकीरत सिंह कोटली, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष शमशेर सिंह दुल्लो की पत्नी श्रीमती हरबंस कौर, पूर्व मंत्री जगजीत सिंह व उनके भाई चौधरी संतोख सिंह, पूर्व मंत्री श्री खुशहाल बहल के पुत्र रमन बहल, चौधरी बलराम जाखड़ के पुत्र सुनील कुमार जाखड़ प्रमुख हैं। कांग्रेस में असंतोष का दूसरा चरण है कार्यकत्र्ताओं की अनदेखी कर दल-बदलुओं को टिकट देना। कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि एक को छोड़कर सभी दल-बदलू टिकट पाने में सफल रहे हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह की तमाम कोशिशों के बावजूद सिर्फ कुशलदीप सिंह ढिल्लो को फरीदकोट या कोटकपूरा से टिकट नहीं मिला। जबकि वह इसी उम्मीद में पीपुल्स पार्टी आफ पंजाब को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। उनके साथ आए जगबीर बराड़ जालंधर छावनी से कांग्रेस के उम्मीदवार हो गए। महिला कांग्रेस की अध्यक्ष डा.मालती थापर को धर्मकोट से टिकट मिलने की पूरी उम्मीद थी लेकिन उनकी सीट पर दल-बदलू काका सुखजीत सिंह लोहगढ़ भारी पड़ गए। आदमपुर सीट पर यूथ कांग्रेस के प्रधान बिक्रम चौधरी की जगह बसमो से आए सतनाम सिंह कैंथ को टिकट दिया गया। इस कारण से कांग्रेस को जालंधर, लुधियाना, अमृतसर, पठानकोट, जलालाबाद, कोटकपूरा, डेरा बस्सी, फतेहगढ़ साहिब, अमलोह, बठिंडा, मौड़ मंडी, मानसा, बलाचौर, भदौड़ सहित 35-36 स्थानों पर विद्रोह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। असंतुष्टों की सूची बहुत लम्बी है, लेकिन कुछ प्रमुख असंतुष्टों की प्रतिक्रिया देखिए- थ् पठानकोट- अशोक शर्मा ने रमन भल्ला को टिकट दिए जाने के विरोध में इस्तीफा देकर आजाद लड़ने का एलान कर दिया है। शर्मा 2002 में विधायक रह चुके हैं। थ् जलालाबाद-पूर्व विधायक हंसराज जोसन ने मलकीत सिंह को टिकट दिए जाने पर विरोध जताते हुए बगावत कर दी है। थ् कोटकपूरा-जगमीत सिंह बराड़ के भाई रिपजीत सिंह बराड़ को टिकट देने से उपेन्द्र शर्मा ने कहा है कि अब तो हद हो गई है। उनके समर्थकों ने “कोटकपूरा हलका बचाओ मोर्चा” का गठन कर पोस्टर लगाने शुरू कर दिए हैं। शर्मा 1992 में जीते और बेअंत सिंह सरकार में मंत्री थे। थ् डेरा बस्सी- जसजीत रंधावा को टिकट देने पर दीपइन्द्र सिंह ढिल्लो ने आजाद चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। थ् फतेहगढ़ साहिब- कुलजीत सिंह नागरा को टिकट देने के विरोध में पूर्व विधायक व मंत्री हरबंस लाल ने इस्तीफा दे दिया है और आजाद चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। थ् अमलोह- नाभा से आए काका रणदीप सिंह को टिकट देने के विरोध में 15 साल पुराने कांग्रेसी जगमीत सिंह सहोता ने कांग्रेस छोड़ने का ऐलान किया और पंजाब पीपुल्स पार्टी में शामिल हो गए। थ् अमृतसर सैंट्रल- अब तक छह बार चुनाव लड़ चुके और तीन बार जीत चुके वरिष्ठ कांग्रेसी प्रोफेसर दरबारी लाल यहां से ओमप्रकाश सोनी को टिकट देने से नाराज हैं। दरबारी लाल कई बार मंत्री और एक बार विधानसभा उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। थ् बठिंडा शहर- टिकट पाने वाले हरमिंदर जस्सी के खिलाफ पंजाब प्रदेश कांग्रेस के सचिव और टिकट के दावेदार टहर सिंह संधू मैदान में डट गए हैं। विद्रोह के चलते पार्टी नेतृत्व भारी दबाव में है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अभी तक तीन विधानसभा क्षेत्रों से घोषित उम्मीदवारों के नाम बदले जा चुके हैं। इससे हर विद्रोही को लगने लगा है कि उसकी बारी भी आ सकती है, जिसके चलते वह और जोर से विद्रोह की बातें करने लगे हैं। द
उत्तर प्रदेश/सुभाष चंद्र
निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कालेधन के प्रयोग पर काफी गंभीर है। उसने इस चुनाव में 10 हजार करोड़ रु. के कालेधन के इस्तेमाल की आशंका जताई है तथा इस संबंध में रिजर्व बैंक को पत्र भी लिखा है। इसी संदर्भ में आयकर विभाग राज्य में पूरी तरह सक्रिय है। आयोग चाहता है कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव के दौरान कालेधन का कतई इस्तेमाल न हो। एक प्रत्याशी के लिए चुनाव में खर्च की सीमा 16 लाख रुपये निर्धारित की गई है और एक ही बैंक से चुनावी खर्च के संचालन की बाध्यता रखी गई है। लेकिन ज्यादातर प्रत्याशी चाहते हैं कि वह मतदाताओं को प्रभावित कर उसका वोट हासिल कर ले, इसलिए कालेधन का प्रयोग करना चाहता है। इसका एक ही उपाय है कि धन बैंक या लिखा-पढ़ी की बजाय नकदी के रूप में प्रयोग किया जाए। लेकिन चुनाव आयोग की सख्ती ने राजनीतिक दलों और पैसे के दम पर चुनाव जीतने वाले प्रत्याशियों के होश उड़ा दिए हैं। आयोग की सख्ती के कारण ही प्रदेश की राजधानी लखनऊ, नई दिल्ली से सटे गाजियाबाद, औद्योगिक नगरी के कानपुर, अंबेडकरनगर, उन्नाव, प्रबुद्धनगर (शामली), बिजनौर, सुल्तानपुर, बाराबंकी, इलाहाबाद, गोरखपुर, लखीमपुर-खीरी, गोंडा, बलरामपुर, बस्ती, मेरठ, मुरादाबाद समेत करीब पूरे प्रदेश के हर जिले से कमोवेश अघोषित रुपयों की बरामदगी हो रही है। चुनाव आयोग के निर्देश पर अब तक 42 करोड़ रुपये से अधिक ऐसा धन बरामद किया गया है जिसके बारे में संबंधित व्यक्तियों द्वारा पर्याप्त कागजात नहीं प्रस्तुत किए जा सके। यह नहीं बताया जा सका कि वे किस काम से उन्हें ले जा रहे थे। अकेले गाजियाबाद से 15 करोड़ रुपयों की बरामदगी की गई है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के अमेठी क्षेत्र से करीब डेढ़ करोड़ रुपए की बरामदगी हो चुकी है। अमेठी से कांग्रेस सांसद संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं। माना जा रहा है कि यह धन बगैर टैक्स दिए चुनाव में वोटों को प्रभावित करने के लिए ले जाया जा रहा था। ऐसे में राजनीतिक दलों ने सीधे कुछ कहने की बजाय अब व्यापारियों को आगे कर दिया है। उनके माध्यम से चुनाव आयोग को प्रभावित कर पूरी प्रक्रिया को रुकवाना चाहते हैं। तर्क दिया जा रहा है कि व्यापारी अपने कारोबार या रजिस्ट्री आदि के लिए रुपये ले जा रहे हैं, जिन्हें आयोग के निर्देश के बहाने पुलिस अपने कब्जे में ले रही है। लेकिन इनके पास आयोग के इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि आखिर उनके पास पहचान पत्र, बैंक के कागजात, निकासी पर्ची क्यों नहीं है? सीधा-सा मतलब है कि वह काला धन है, जिसे चुनाव में उपयोग के लिए ले जाया जा रहा था। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि चुनाव आयोग पर दबाव बनाने के लिए समाचार पत्रों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। पत्रकारों को बताया जा रहा है कि इससे कारोबार ठप सा हो गया है। रजिस्ट्रियां रुक-सी गई हैं। व्यापारी त्रस्त हो चुका है। कई राजनीतिक दलों ने इसे व्यापारी उत्पीड़न का मामला बता दिया है। हालांकि व्यापारिक संगठनों, विशेष रूप से व्यापारी नेता बनवारी लाल कंछल और संदीप बंसल द्वारा मुख्य निर्वाचन अधिकारी उमेश सिन्हा से मिलने के बाद उन्होंने इसमें एहतियात बरतने का आश्वासन दिया है। उन्होंने बताया कि आयोग की मंशा साफ है। वह चाहता है कि चुनाव में काले धन का इस्तेमाल न हो। व्यापारियों का उत्पीड़न नहीं होगा, लेकिन आयोग यह भी सुनिश्चत करेगा कि काले धन का प्रवाह पूरी तरह बंद हो। उन्होंने कहा कि अब प्रत्यशियों के मददगारों पर भी आयोग की नजर रहेगी।द
अमेठी में महाराणा प्रताप धर्म रक्षा समिति ने कराई
घर वापसी
अमेठी और उसके आसपास के गांवों में विगत दो वर्षों से रायबरेली की ईसाई मिशनरियों ने बहुत से परिवरों को ईसाई बनाया था। इसलिए छह माह पहले स्थानीय हिन्दू जनता ने ईसाई मिशनरियों का बहिष्कार किया और मतांतरितों से संबंध विच्छेद कर लिए। गत 1 जनवरी को नववर्ष के दिन महाराणा प्रताप धर्म रक्षा समिति (अमेठी) के संयोजक श्री विजय सिंह, श्री रामराज और श्री संजय चौहान के संयुक्त प्रयासों से 4 स्थानों पर परावर्तन यज्ञ आरंभ हुआ। इसमें 4 गांव के 118 परिवरों के 448 सदस्य वापस घर आए। यज्ञ का आयोजन कटरा, बरियारपुर, वार्ड नं. 2 (अमेठी) और राजा हिम्मतसिंह मैदान पर हुआ। स्थानीय पुरोहित पं. श्रवण कुमार एवं विनोद कुमार ने सभी की घर वापसी सम्पन्न कराई। इस अवसर पर समिति के संयोजक एवं स्थानीय जाति-बिरादरी के सभी प्रमुख उपस्थित थे। अमेठी की ब्लाक प्रमुख श्रीमती रश्मि सिंह पूरे समय तक चारों स्थानों पर भ्रमण करती रहीं। जिला पंचायत सदस्य श्री राजीव शुक्ल एवं भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य श्री राघवेन्द्र प्रताप सिंह भी सक्रियता के साथ पूरे समय उपस्थित रहे। श्री राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने अमेठी/रायबरेली में ईसाइयों के “जोसुआ प्रोजेक्ट” एवं पिन कोड (चर्च) योजना को लागू करने का विरोध किया एवं हिन्दू समाज की रक्षा के लिए सामथ्र्यशील व जाति प्रमुखों का आवाह्न किया कि वे अपने पूर्वजों को स्मरण करते हुए रायबरेली से लेकर अयोध्या तक के क्षेत्र को पुण्यभूमि क्षेत्र बनाये रखें। कोरारी के पूर्व प्रधान श्री अनिल पाण्डेय ने कहा कि प्रत्येक हिन्दू परिवार के घर में बाइबिल और क्रास पहुंचाने के प्रयासों को रोका जाना चाहिए। जागरूक नागरिक मंच के श्री अंबिका प्रसाद ने कहा कि राजीव गांधी फाउण्डेशन एवं वेलकम टू गांधी फैमिली द्वारा ईसाई मिशनरियों को सहयोग दिया जा रहा है। महाराणा प्रताप धर्म रक्षा समिति ने निर्णय किया है कि प्रत्येक गांव में प्रत्येक सप्ताह भारत माता आरती एवं हनुमान चालीसा का पाठ किया जाएगा। जाति-बिरादरी के प्रमुखों ने डीह एवं चौरा माता पर हनुमान पताका फहराई एवं संकल्प लिया कि अपनी न्याय पंचायत में मिशनरियों की गतिविधियां नहीं चलने देंगे।
प.बंगाल/बासुदेब पाल
ममता सरकार का शुरुआती प्रदर्शन निराशाजनक
अंग्रेजी की एक कहावत है- “वैल विगन, हाफ डन”, यानी अच्छी शुरुआत का अर्थ है कि आधा काम खत्म। इस नजरिये से देखा जाए तो बहुत संघर्ष के बाद और बड़ी उम्मीद के साथ पश्चिम बंगाल में हुआ सत्ता परिवर्तन अब लोगों में वैसा उत्साह नहीं जगा पा रहा है जैसा कि होना चाहिए। सुश्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस और सोनिया कांग्रेस गठबंधन की राज्य सरकार के शुरुआती 6 महीने का लेखा-जोखा देखें तो आधारभूत सुविधाओं के लिए कोई नई शुरूआत नहीं हुई, बल्कि विभिन्न योजनाओं के लिए जो धन आवंटित हो गया था, वह धन भी खर्च नहीं हुआ और वे परियोजनाएं जहां की तहां हैं। इसीलिए दिसम्बर माह के अंत में कोलकाता के टाउन हाल में संयुक्त सचिवों से ऊपर के अधिकारियों की एक बैठक में मुख्यमंत्री ने सबको आईना दिखाया और कहा कि अनेक विभागों का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा है। ऐसे में उस विभाग के मंत्रियों को कार्य शीघ्र पूर्ण कराने का निर्देश तो दिया ही जा रहा है, पर सचिवों को भी कार्य में तेजी लानी होगी। मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा तैयार एक रपट से पता चलता है कि स्कूलों-कालेजों का विकास, सड़क निर्माण, सिंचाई के लिए नहरों की खुदाई, नगरों में सुविधाएं, कृषि एवं स्वास्थ्य विभाग का प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक रहा है। कुल 61 विभागों में से 39 विभागों ने उनके अंतर्गत आने वाले कार्यों के लिए आवंटित धनराशि का 10 प्रतिशत भी खर्च नहीं किया है। आंकड़े बताते हैं कि चालू वित्तीय वर्ष में राज्य की कुल बजट राशि 20 हजार 949 करोड़ रुपए निर्धारित की गई थी, जिसमें से सितम्बर, 2011 तक मात्र 2 हजार 377 करोड़ रुपए ही विभिन्न योजनाओं पर खर्च हुए और 18 हजार 572 करोड़ रुपए की योजनाएं वित्त विभाग तक पहुंचीं ही नहीं। जबकि राज्य के वित्त विभाग का कहना है कि राज्य योजना आयोग द्वारा स्वीकृत विभिन्न विभागों की योजनाओं की कुल राशि का 75 प्रतिशत दिसम्बर माह तक संबंधित विभागों को दे दिया गया है। कार्यों के मामले में सामाजिक सुरक्षा से जुड़े 6 विभागों का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा है। कृषि, खाद्य, स्वास्थ्य, अल्पसंख्यक विकास, पंचायत एवं ग्राम विकास तथा शहरी विकास विभाग को दिया गया धन 10 प्रतिशत भी खर्च नहीं हो पाया। पंचायत विभाग को 2592 करोड़ रु. दिए गए और उसने खर्च किए मात्र 356 करोड़ रु. यानी 13.77 प्रतिशत। शहरी विकास विभाग 1650 करोड़ रुपए आवंटित किए गए और खर्च हुआ मात्र 178.54 करोड़ रुपया, मात्र 10.82 प्रतिशत। स्कूली शिक्षा के लिए तो आवंटित धनराशि का मात्र 3 प्रतिशत ही खर्च हुआ- आवंटित हुए 2686 करोड़ रुपए और खर्च हुए 104 करोड़ रुपए। उच्च शिक्षा का हाल भी कमोवेश यही है। उसे मिले 220 करोड़ रुपए, खर्च हुए 6.69 करोड़ रुपए, मात्र 3.04 प्रतिशत। कृषि क्षेत्र के लिए आवंटित धनराशि का तो मात्र 0.5 प्रतिशत ही खर्च हो पाया। इस सबके बारे में मंत्रियों का कहना है कि पहले काम तो समझ लें कि करना क्या है और कैसे करना है। अभी तो ठीक से काम ही समझ नहीं आया है। उल्लेखनीय है कि ममता सरकार के 42 मंत्रियों में से अधिकांश पहली बार मंत्री बने हैं। उधर कांग्रेस के साथ भी सुश्री ममता बनर्जी की अनबन शुरू हो गयी है। ऐसे में सरकार का कामकाज जिस गति से चलना चाहिए, वैसा नहीं चल पा रहा है। ममता बनर्जी के प्रति लोगों के रुझान में तेजी से गिरावट आ रही है। सरकार को अभी संभलना होगा वरना लोगों की आशा को निराशा में बदलते देर नहीं लगती। द
असम-अरुणाचल सीमा पर
बांध के विरोध में आंदोलन
असम की अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर 2000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने के लिए निर्माणाधीन सुवनसिरि जल विद्युत परियोजना का काम अब जनांदोलन के कारण रुक गया है। लोगों का कहना है लोअर सुवनसिरि प्रोजेक्ट के लिए अगर विशालाकार बांध का निर्माण किया जाएगा तो असम की सबसे बड़ी ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी छोर का सारा इलाका अनुर्वर और बंजर हो जायेगा। उल्लेखनीय है कि यह बांध गेस्कामुख में बन रहा है। असम,अरुणाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर के अन्य दूसरे प्रान्तों में छोटे-बड़े कुल मिलाकर 168 बांध बनाने की योजना प्रस्तावित है। सारा काम पूरा होने पर प्रतिवर्ष 50,000 मेगावाट बिजली उत्पादन की संभावना है। विशेषज्ञों का कहना है सन् 2030 तक असम की बिजली की आवश्यकता बढ़कर 9,50,000 मेगावाट तक हो जाएगी, जो अभी केवल 1,50,000 मेगावाट है। थर्मल पावर के मामले में 2017 तक कोयले का उत्पादन 250 लाख टन कम हो जाएगा। इसलिए बांध और पनबिजली समय की आवश्यकता है। लेकिन इसे क्षेत्र व भूमि के लिए खतरनाक बताते हुए किसान मजदूर संग्राम समिति की अगुआई में असम की आम जनता सड़कों पर उतर चुकी है। असम और अरुणाचल प्रदेश में सक्रिय अलगाववादी संगठन प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से बांध-विरोधी आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं। बांध निर्माण के लिए सामग्री पहुंचाने वाले ट्रकों को सुवनसिरि में रोकने और धरना-प्रदर्शन करने वाले लोगों पर पिछली 30 नवम्बर को पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया तो जनता और भड़क गयी। यहां तक कि असम के लखीमपुर जिला प्रशासन का भी उस रास्ते से गेस्कामुख तक का आवागमन बंद करवा दिया। 26 दिसम्बर को प्रशासन ने पुन: प्रयास किया, बांध विरोधी फिर रास्ते पर उतरे और लाठी चार्ज के बाद कुछ प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। किसान मजदूर संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई का कहना है कि सरकार को सुवनसिरि प्रोजेक्ट बंद करना ही पड़ेगा, हम इसके लिए अपना खून तक वहा देंगे। उधर “राष्ट्रीय पनबिजली नगम” के अधिकारियों का कहना है कि जिस सुवनसिरि परियोजना का काम सन् 2012 तक पूरा करने का लक्ष्य था वह बढ़ाकर सन् 2014 होने से अनुमानित लागत 6285.33 करोड़ रु. से बढ़कर 10,000 करोड़ रु. तक हो जायेगी। उधर आई.आई.टी. (गुवाहाटी) एवं डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों का भी कहना है कि इस परियोजना के लिए जहां बांध बनाया जा रहा है वह उच्च भूकंपीय क्षेत्र है। यहां पर बड़ा जलाशय बनने से पूरे इलाके में दबाव बढ़ेगा, भू-क्षरण एवं बाढ़ की भरमार होगी। असम विधानसभा की एक समिति ने भी कहा है कि असम और उससे सटे राज्यों में नदियों पर बड़ा जलाशय बनने से निचले क्षेत्र में बहने वाली नदियों के प्रवाह पर बुरा असर पड़ेगा। जबकि राज्य सरकार का कहना है कि इस परियोजना से पूर्वोत्तर राज्यों के उद्योग एवं वाणिज्य को फायदा होगा।
असम/मनोज पाण्डेय
उल्फा फिर हुआ सक्रिय तिनसुकिया में बम विस्फोट
असम में उल्फा एक बार फिर अपने खूनी इरादों को अंजाम देने की कोशिश में लग गया है। इसलिए हिन्दीभाषियों को फिर निशाना बनाया जा रहा है। ईस्वी सन् 2012 के पहले ही दिन (1 जनवरी को) तिनसुकिया शहर में बम विस्फोट कर इसकी शुरुआत की गई है। इस घटना में पांच लोग घायल हुए। वहीं डिब्रूगढ़ को दहलाने के लिए भेजे जा रहे शक्तिशाली आई.ई.डी. को सेना ने तलाशी के दौरान बरामद किया। उल्लेखनीय कि गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस के समय अलगाववादी-आतंकवादी अपनी खूनी योजना को अंजाम देने के लिए अधिक लालायित हो उठते हैं। असम में उनका निशाना हिन्दीभाषी व बिहार मूल के लोग होते हैं। उल्लेखनीय है कि पाञ्चजन्य ने लगभग तीन वर्ष पहले ही अपने विश्लेषण में बताया था कि उल्फा व सरकार के बीच चल रही शांति वार्ता सिर्फ एक छलावा है, जिसके चलते उल्फा अपने संगठन के बीमार व वृद्ध प्रमुखों व गुर्गों को बाहर निकाल कर पुन: शक्तिशाली संगठन बनाना चाहता है। पिछले दिनों हुए सैन्य अभियानों से उल्फा को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। वह ताकत पुन: प्राप्त करने के लिए उसे समय की आवश्यकता थी, जो शांतिवार्ता ने उपलब्ध करवायी। अब एक बार फिर उल्फा शक्तिशाली होता दिख रहा है। नतीजतन एक बार फिर असम में खूनी खेल शुरू हो गया है। जहां तक उल्फा और सरकार के बीच चल रही शांति वार्ता का प्रश्न है, तो वह सिर्फ खानापूर्ति तक ही सीमित रह गयी है। शांतिवार्ता के नाम पर आत्मसमर्पण कर आए उल्फाई अब प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से व्यापार व ठेकेदारी में अपने पैर जमा रहे हैं। एक प्रकार से उल्फा में रहते उगाहे गये रुपयों को वे अपने व्यवसाय में लगा रहे हैं, जिसका सीधा लाभ उन उल्फाईयों को मिलेगा जो अभी भी जंगलों में विचर रहे हैं और संगठन को मजबूत कर रहे हैं। द
रक्षकों के हाथ में भीख का कटोरा
असम में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई चुनाव के दौरान बेरोजगारों को नौकरी देने का ढोल पीटते रहे, पर उनकी कथनी-करनी एकदम विपरीत है। इसका नजारा न सिर्फ राजधानी गुवाहाटी बल्कि पूरे राज्य के लोगों ने सड़कों पर देखा, जब विशेष पुलिस अधिकारी दल के जवान वर्दी पहने, हाथों में कटोरा लिए भीख मांगते नजर आये। गौरतलब है कि कुछ समय पहले तक राज्य के उत्तरी कछार पहाड़ी क्षेत्र में जनता अलगाववादियों के आतंक से त्रस्त थी। घने जंगल व दुर्गम इलाकों में रहने वाले आतंकवादियों से राज्य के पुलिसकर्मियों व सुरक्षा बलों का संघर्ष आसान नहीं था। तब 2003 में असम में विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) का गठन किया गया। सैकड़ों स्थानीय युवकों को सैन्य प्रशिक्षण दिया गया ताकि वे आतंकवादियों का स्वयं मुकाबला कर सकें व अपने गांव-क्षेत्र की रक्षा करें। उनके साहस व जुझारू रवैये से वहां उग्रवादियों का जीना मुहाल हो गया, जिसके कारण डेढ़ वर्ष पहले आतंकवादी संगठन डीएचडी (जे) ने शांति वार्ता की पहल की। शांति स्थापित होने के बाद इन लोगों को एसपीओ की नौकरी से हटा दिया गया। अचानक हटाए जाने से इनके जीविकोपार्जन व परिवार के भरण-पोषण के मानसिक तनाव से ये दो-चार होने लगे। जिसके बाद विशेष पुलिस अधिकारी कल्याण समिति (असम) का गठन किया और उसमें इन्हें भर्ती किया गया। सरकार ने उन्हें विभिन्न जगहों पर नौकरी दिये जाने का आश्वासन दिया, पर वह भी पानी का बुलबुला ही साबित हुआ, जिसके बाद ये लोग पूर्ण नियुक्ति की मांग करते हुए आंदोलन करने को बाध्य हो गये। इसके तहत पुलिस महानिदेशालय के समक्ष धरना-प्रदर्शन किया गया, पर सरकार अभी भी मौन धारण किये हुए है। वहीं कई एसपीओ के जवानों ने यह भी कहा है कि यदि सरकार उनकी सुरक्षा बलों में भर्ती नहीं करती तो वे बाध्य होकर किसी भी सशस्त्र आतंकवादी संगठन में शामिल हो जाएंगे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राज्य के पुलिस विभाग में हजारों पद रिक्त हैं, जिन पर नियुक्ति की हर चुनाव के समय में सरकार घोषणा करती है, फिर भूल जाती है। वहीं पुलिस बल में कमी के कारण पुलिस विभाग की व्यवस्था भी चरमराई हुई है, पर प्रशिक्षण प्राप्त एसपीओ जवानों को पूर्ण नियुक्ति के लिए आंदोलन करना पड़ रहा है।द
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