स्वास्थ्य
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डा. हर्ष वर्धन एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
मधुमेह में अक्सर लोग किसी अंग में होने वाली परेशानी के प्रति लापरवाही कर देते हैं, इस कारण उसमें कई प्रकार की परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं तथा जब वह परेशानी एक सीमा को पार कर जाती है, तब उसका इलाज भी कठिन हो जाता है। इसी के मद्देनजर हमने पिछले अंक में मधुमेह में अंगों की रक्षा पर चर्चा की थी तथा इस अंक में भी हम अंगों की रक्षा पर ही चर्चा करेंगे। पेट का दर्द मधुमेह रोगी खासतौर पर 40 से 70 साल उम्र के मध्य के लोगों (ज्यादातर महिलाओं) को पेट दर्द की शिकायत रहती है। महिलाओं में यह दर्द पित्त की थैली अथवा किडनी में पथरी होने की वजह से भी होता है। पेट दर्द “अपेन्डिक्स” में सूजन की वजह से भी संभव है। आंत का कैंसर, महिलाओं में बच्चेदानी (ओवरी) का “ट्यूमर” होने से भी पेट में दर्द होता है। आंतों में घाव (अल्सर) के कारण भी पेट दर्द हो सकता है। पेशाब की थैली में सूजन एवं संक्रमण भी पेट दर्द का कारण बन सकता है। भोजन के पन्द्रह मिनट या आधे घंटे के उपरांत भी पेट दर्द शुरू हो जाता है। कुछ लोग ऐसी परिस्थिति में भोजन करना ही छोड़ देते हैं, इस कारण उनका वजन गिरता चला जाता है। अनेक दवाइयों के प्रयोग के बावजूद लाभ नहीं मिलता है। ऐसी परिस्थिति में एक कुशल विशेषज्ञ से “अल्ट्रासाउंड” करवानी चाहिए। यदि अल्ट्रासाउंड में पेट दर्द का कोई कारण नहीं मिलता है तथा मधुमेह होने के साथ-साथ धूम्रपान की आदत है तो इस बात की संभावना हो सकती है कि आंतों को शुद्ध रक्त पहुंचाने वाली रक्त नलियों में रुकावट या संकुचन हो। मधुमेह रोग में रक्त की नलियों की दीवारों में चर्बी हमेशा इकट्ठा होती रहती है। हृदय से निकलने वाली रक्त की नली, छाती से होकर उदर में प्रवेश करती है। उदर में स्थित अंगों यकृत (लीवर), छोटी आंत, बड़ी आंत, “स्टमक”, किडनी और तिल्ली को यह नली (एओरटा) हमेशा शुद्ध रक्त पहुंचाती रहती है। इससे इन सभी अंगों में आक्सीजन की उपलब्धता बनी रहती है तथा सभी अंग (आंतों की पाचन क्रिया, गुर्दे का रक्त शोधन आदि) अपना कार्य निरंतर करते रहते हैं। जब शुद्ध रक्त की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने लगती है तथा आवश्यकतानुसार रक्त नहीं पहुंच पाता है, तब पेट दर्द प्रारम्भ हो जाता है। खून की कमी से आंतों में होने वाले दर्द को आंतों का “एंजाइना” कहा जाता है। “एंजाइना” के होने पर यदि कोई कारगर उपाय नहीं किया गया तो आंतों की गैंगरीन होने की संभावना बढ़ जाती है। इसमें आंतों का अधिकांश हिस्सा काला पड़ जाता है। ऐसी परिस्थिति में शीघ्र आपरेशन की आवश्यकता होती है और आपरेशन में इस काले भाग को काट दिया जाता है। मरीज द्वारा लापरवाही करना जानलेवा सिद्ध हो सकता है। अत: मधुमेह होने पर पेट दर्द की परेशानी बनी हुई है तो संबंधित चिकित्सक के साथ-साथ “वैसकुलर सर्जन” से भी परामर्श लेना चाहिए। पैरों का घाव मधुमेह रोगियों में “डायबिटिक न्यूरोपैथी” के कारण पैर की त्वचा की संवेदनशीलता कम हो जाती है, जिससे पैरों पर पड़ने वाले दबाव, मामूली चोट एवं खरोंच महसूस नहीं हो पाती है। ऐसे में ध्यान न देने के कारण घाव बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त “डायबिटिक न्यूरोपैथी” के कारण पैरों की मांसपेशियों में कमजोरी एवं लकवापन आ जाता है, इस कारण मांसपेशियों में संकुचन आ जाता है तथा इससे पैरों की हड्डियां नीचे की ओर ज्यादा उभर जाती हैं,जिससे उन पर अनावश्यक दबाव बढ़़ जाता है और घाव गहरे हो जाते हैं। पैरों की रक्त धमनियों के संकरी हो जाने के कारण पैरों में गैंगरीन व मवाद जमा हो जाता है। पैर का रक्त प्रवाह भी बाधित होने लगता है। इस तरह पैरों में “इन्फेक्शन” तेजी से होता है और भयानक रूप ले लेता है। “डायबिटीज” के मरीजों के पैर में इस प्रकार की परेशानी उत्पन्न हो तो उन्हें संबंधित चिकित्सकों के अलावा “वैसकुलर सर्जन” से सलाह जरूर लेनी चाहिए। मधुमेह रोगी निम्नलिखित सावधानियों के माध्यम से अपने पैरों में जख्म होने से बचाव कर सकते हैं- -प्रतिदिन अधिक से अधिक प्रात:कालीन सैर करें। इससे पैरों में खून का प्रवाह बढ़ता है, जो अत्यधिक लाभप्रद है। -धूम्रपान तथा तम्बाकू के किसी भी उत्पाद का सेवन पैरों के लिए खतरनाक है। नशीले पदार्थों का इस्तेमाल भी बंद कर देना चाहिए। -प्रतिदिन अपने पैर की अंगुलियों के बीच की जगह पर गौर करें। त्वचा कहीं से सख्त दिखाई दे या उसमें खरोंच या फफोले अथवा घाव दिखाई दे तो देर न करें और किसी विशेषज्ञ या “कार्डियो वैसकुलर सर्जन” से सलाह लें। -रक्त में शुगर की मात्रा नियंत्रित रखें। खून में अनियंत्रित शुगर की मात्रा पैरों के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकती है। -नंगे पैर चलने से परहेज करें तथा पैर की अंगुलियों में किसी तरह की बाहरी चोट लगने से बचायें। -जूते बगैर मोजे के न पहनें। पैरों को सूखा व साफ रखें। गीले व पसीनेदार जुराब का प्रयोग न करें। साफ-सुथरे मोजे ही पहनें। -सख्त और कष्टदायक जूते न पहनें। मधुमेह में पैरों की संवेदनशीलता कम होने के कारण सख्त जूतों के कारण होने वाले घाव का पता नहीं चल पाता है। अत: मुलायम, गद्देदार और आरामदेह जूते का इस्तेमाल करें। साथ ही यह ध्यान रहे कि जूते के कारण अंगुलियों पर किसी प्रकार का अनावश्यक दबाव न हो। महिलाओं को भी सही नाप वाली एवं आरामदायक जूतियों का प्रयोग करना चाहिए, “फैशनेबल” और “डिजाइनदार” जूतियों के इस्तेमाल से बचना चाहिए। -मोटापा और अधिक वजन पैरों को नुकसान पहुंचाता है, अत: वजन को नियंत्रण में रखें। अधिक तेल और घी के प्रयोग से परहेज करें। रक्त में “कोलेस्ट्रोल” की ज्यादा मात्रा होने से पैरों में संचारित होने वाले रक्त की मात्रा कम हो जाती है। अत: प्रत्येक छह माह पर “कोलेस्ट्रोल” की जांच अवश्य करानी चाहिए तथा जरूरत पड़ने पर चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। -पैरों में गोखरू (कार्न) हो तो स्वयं न निकालें। यदि निकलवाने की जरूरत हो तो किसी सर्जन से ही निकलवायें। गोखरू पर चिपकने वाला प्लास्टर व टेप न लगायें। पैर की त्वचा को इससे नुकसान पहुंच सकता है। -पैर की त्वचा सूखी और खुश्क रहती हो तो जैतून का तेल अथवा विटामिन ई का तेल अथवा लेनोलिन लगाया जा सकता है। अंगुलियों के बीच के स्थान पर किसी प्रकार की क्रीम न लगायें। पैरों पर किसी प्रकार का रासायनिक पदार्थ प्रयोग न करें। शक्तिशाली “एंटीसेप्टिक” घोल जैसे बीटाडीन, आयोडीन तथा गोखरू हटाने वाले पदार्थों का प्रयोग न करें। पाठकों से कहना चाहूंगा कि मधुमेह इतनी भयंकर बीमारी नहीं है, जिससे कि वह अत्यधिक चिन्तित हों। यदि वह मधुमेह में सतर्क हैं और आवश्यक शारीरिक क्रियाकलाप के साथ-साथ परहेज कर रहे हैं तो वह एक सामान्य जीवन जी सकते हैं लेकिन लापरवाही बरतने वाले लोगों के लिए मधुमेह जानलेवा सिद्ध हो सकता है। आगामी लेख में हम मधुमेह से आंख पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव एवं उपाय पर विस्तृत चर्चा करेंगे। द
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