बात बेलाग
|
समदर्शी
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी खासियत यही गिनायी जाती है कि वह परंपरागत
राजनेता नहीं, बल्कि एक बुद्धिजीवी पेशेवर हैं, जो काम करने में विश्वास रखते हैं। पर सरकार की रीति-नीति फिर भी बदहाल है। भ्रष्टाचार और महंगाई पर नियंत्रण में तो यह सरकार पूरी तरह नाकाम साबित हुई ही है, अपनी तथाकथित पहलकदमियों पर भी उसकी चाल सुस्ती से भी आगे सुप्तावस्था में नजर आती है। जरा याद करें कि किस तरह उसने न सिर्फ बिना किसी को विश्वास में लिये, बल्कि विपक्ष के विरोध के बावजूद, जम्मू-कश्मीर समस्या का राजनीतिक समाधान सुझाने के लिए तीन सदस्यीय वार्ताकार दल बनाया था। कश्मीर में हिंसा और पत्थरबाजी में सौ से भी ज्यादा लोगों के मारे जाने के बाद बनाये गये उस दल की बयानबाजी ने देश में कई तरह की आशंकाओं को भी बल दिया, लेकिन एक साल की कवायद के बाद उसने जो रपट सौंपी, उस पर विचार करने की फुर्सत तक मनमोहन सिंह सरकार के पास नहीं है। अब तो वार्ताकार दल भी इंतजार कर थक गया है और चाहता है कि सरकार कम से कम उसकी रपट सार्वजनिक तो कर दे। वैसे यह वही सरकार है जिसने कश्मीर समस्या के प्रति अपनी गंभीरता दिखाने के लिए गोलमेज सम्मेलन समेत पहलें तो कई कीं, पर परिणाम तक कोई नहीं पहुंची।
नहीं सीखा सबक
उत्तर प्रदेश के “मिशन 2012” की कसौटी से पहले कांग्रेस के “युवराज” ने पिछले साल बिहार में भी काफी जोर लगाया था। उनके भाषण लेखकों ने संवाद तो कई लिखे थे, पर सबसे ज्यादा चर्चित हुआ था यह आरोप कि राज्य सरकार केन्द्र सरकार की योजनाओं के तहत भेजी जा रही धनराशि का भी दुरुपयोग कर रही है। उस पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने पलटवार भी किया था। बाकी जवाब बिहार के मतदाताओं ने कांग्रेस का लगभग सूपड़ा साफ कर के दे दिया, पर लगता है कि “युवराज” और उनके भाषण लेखकों ने कोई सबक नहीं सीखा। उत्तर प्रदेश में भी मायावती के भ्रष्टाचार के साथ साथ यह राहुल का तकिया- कलाम ही बन गया है कि दिल्ली से तो राज्य के विकास और कल्याण के लिए भारी रकम भेजी जा रही है, पर वह सही ढंग से खर्च नहीं की जा रही। वह बोलते भी इस अपमानजनक अंदाज में हैं, मानो धनराशि केन्द्र सरकार द्वारा नहीं, बल्कि कांग्रेस या फिर नेहरू खानदान द्वारा निजी कोष से भेजी जा रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश के मतदाता उनके इस संवाद का जवाब किस अंदाज में देते हैं।
मनमोहन और माया
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती में क्या समानता है? आप कहेंगे, शायद कोई नहीं। बेशक प्रथम दृष्ट्या कोई समानता नजर भी नहीं आयेगी, लेकिन दोनों में एक गजब की समानता है। समानता यह है कि सबसे भ्रष्ट सरकार का नेतृत्व करते हुए ये दोनों खुद को ईमानदार की तरह पेश करते हैं। आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल में ही हुआ। देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने के नाम पर आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में भी भ्रष्टाचार का खेल खुलकर उनके ही प्रधानमंत्रित्वकाल में खेला गया, लेकिन न तो वह खुद को ईमानदार बताने का कोई मौका चूकते हैं और न ही उनकी पार्टी कांग्रेस। यही हाल मायावती का है। मायावती के चौथे मुख्यमंत्रित्वकाल में उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड टूट गये। खुद वह भ्रष्टाचार व आपराधिक मामलों में डेढ़ दर्जन से भी अधिक मंत्रियों को बर्खास्त कर चुकी हैं, जो अपने आपमें एक रिकार्ड है, लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस “आपरेशन क्लीन” के जरिये वह खुद को ईमानदार साबित करना चाह रही हैं। है न दोनों में गजब की समानता?
टिप्पणियाँ