बात बेलाग
|
बात बेलाग
समदर्शी
भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए सशक्त लोकपाल की मांग को लेकर गांधीवादी समाजसेवी अण्णा हजारे के आंदोलन ने बार-बार इस बाबत मनमोहन सिंह सरकार की अनिच्छा को उजागर किया है। चार दशक से भी ज्यादा समय से ठंडे बस्ते में पड़े लोकपाल विधेयक पर सरकार शीर्षासन की मुद्रा में नजर आयी तो उसका श्रेय अण्णा के नेतृत्व में उठ खड़े हुए अभूतपूर्व जन-आंदोलन को ही जाता है। जो सरकार और उसकी अगुआ कांग्रेस इस जन आंदोलन को संसदीय प्रणाली को चुनौती के रूप में पेश करने की साजिश से भी बाज नहीं आयी, उसी ने बाद में शीर्षासन भी किया। पर कहावत है न कि चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए, सो बीच-बीच में गिरगिट की तरह रंग बदलने में भी उसने कोई संकोच नहीं किया। जन आंदोलन के दबाव की मजबूरी में लाए गए सरकारी लोकपाल विधेयक के लिए बेशर्मी के साथ अपनी पीठ थपथपाने वाली सरकार और कांग्रेस अपनी फितरत का परिचय भी लगातार देती रही। 27 दिसम्बर से लोकपाल विधेयक पर संसद में चर्चा होनी थी। चर्चा से पहले सरकार और कांग्रेस भयभीत नजर आ रही थीं, लेकिन टीवी न्यूज चैनलों ने जैसे ही दिखाना शुरू किया कि इस बार मुम्बई में अण्णा के अनशन में वैसा जन समूह नहीं उमड़ा रहा जैसा कि अगस्त में दिल्ली में उमड़ा था, तेवर बदल गए। सरकार और कांग्रेस के बड़बोलों ने निष्कर्ष भी देना शुरू कर दिया कि अण्णा का जादू अब नहीं रहा और लोगों को तो लोकपाल विधेयक मात्र से मतलब है, उसके प्रावधानों की बारीकियों से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं। साफ-साफ कहें तो सरकार ने मान लिया कि वह जन दबाव में ही काम करती है, वरना मनमानी पर उतर आती है। बीमार अण्णा ने डाक्टरों की सलाह पर दूसरे दिन ही अपना अनशन समाप्त कर दिया तो उस पर भी कांग्रेसी यह अमानवीय कटाक्ष करने से नहीं चूके कि फ्लाप शो के बाद मुंह छिपाने के लिए ही उन्होंने अनशन भी तोड़ दिया और जेल भरो भी रद्द कर दिया।
कैसे-कैसे बोल बचन
आपको याद होगा कि पहले अण्णा के अनशन को संसद के विरुद्ध बताकर उन्हें तिहाड़ जेल भिजवा देने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बढ़ते जन समर्थन से देश का मूड भांप कर उनकी प्रशंसा करते हुए उन्हें सलाम भी पेश किया। पर उनके ही एक केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने सामान्य शिष्टाचार व भाषा की मर्यादाओं को ताक पर रखते हुए पहले तो टीम अण्णा को कांग्रेस के विरुद्ध प्रचार करने पर “देख लेने” की धमकी दी और फिर उन्हें युद्ध-भगोड़ा करार दे दिया। हैरत बेनी के बोल वचन पर कम, दूसरों को भाषा की शालीनता की नसीहत देने वाले दस जनपथ और सात रेसकोर्स रोड के मौन पर ज्यादा हुई। ध्यान रहे कि केन्द्र में जो कांग्रेस संप्रग सरकार का नेतृत्व कर रही है, उसी के एक प्रवक्ता मनीष तिवारी ने अगस्त में अनशन से पहले अण्णा को “तुम” संबोधित करते हुए ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त बताया था, बाद में वह खुद अरसे तक लापता रहे और फिर लिखित में माफी मांगनी पड़ी। अब देखते हैं, समाजवादी से कांग्रेसी बने बेनी भूल सुधार करते हुए माफी मांगते हैं या फिर “युवराज” के दरबार में नबंर बढ़ाने के लिए अण्णा के विरुद्ध और दुष्प्रचार करते हैं।
माया की माया
माया का एक अर्थ जादू भी होता है। शायद उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री एवं बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती भी जादूगर हैं। वर्ष 2007 में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए ढूंढ-ढूंढ कर अपराधियों को बसपा में शामिल किया। धनबलियों और बाहुबलियों के प्रति उनका यह मोह उसके बाद भी जारी रहा। तभी तो विधानसभा में स्पष्ट बहुमत होने के बावजूद तमाम लोगों को बसपा में शामिल किया जाता रहा, लेकिन अब जब फिर चुनाव आ गए हैं, माया मेमसाब ने सफाई अभियान छेड़ दिया है, ताकि राजनीति के अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के दाग को धोया जा सके। विधायक ही नहीं, मंत्रियों तक को बर्खास्त किया जा रहा है, पर आंकड़े डराने वाले हैं। साढ़े चार साल तक सभी को लूट की खुली छूट के बाद अब हाल में ही एक-दो नहीं, बल्कि एक दर्जन से अधिक मंत्री बर्खास्त किए जा चुके हैं।
टिप्पणियाँ