स्वास्थ्य
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स्वास्थ्य
* डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
गत लेख में हमने मधुमेह की बुनियादी जानकारी पर चर्चा की थी। प्रस्तुत लेख में हम मधुमेह रोग में योग की महत्ता पर चर्चा करेंगे। योग अब शोध एवं विज्ञान का विषय बन चुका है। चिकित्सा जगत भी योग की अहमियत को समझने लगा है। यही कारण है कि चिकित्सक भी योग को अपने जीवन में आत्मसात करने लगे हैं। देश में तीव्र विकास के बावजूद दूर-दराज के क्षेत्रों में उन्नत चिकित्सा व्यवस्था का अभाव है। ऐसे में मधुमेह के प्रति जागरूकता अत्यंत आवश्यक है एवं योग के माध्यम से मधुमेह पर नियंत्रण-सहज, सुलभ है। योग मधुमेह में ब्लड ग्लूकोज स्तर को हर परिस्थिति जैसे उपवास, भोजन के उपरांत, व्यायाम, भावुकता पैदा करने वाली परिस्थितियां आदि में सामान्य बनाये रखता है। योग का यही उद्देश्य होता है कि शरीर के आंतरिक वातावरण (ग्लूकोज मेटाबौलिज्म अथवा लिपिड्स अथवा हामोन्र्स या अन्य रासायनिक उत्पादन) में संतुलन स्थापित हो। वस्तुत: योग वह तकनीक है, जिसके माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों में गहन विश्राम और प्रोत्साहन की स्थिति होती है, जिससे शरीर के अंगों को नवीनता मिलती है, आंतरिक रासायनिक प्रक्रिया में उत्पन्न विकार दूर होता है तथा सभी अंगों में संतुलन विकसित होता है।
योग के माध्यम से मधुमेह पर नियंत्रण की दिशा में बंगलौर स्थित विवेकानन्द योग अनुसंधान संस्थान (वी.वाई.ए.एस.ए.), पिछले दो दशक से अधिक समय से प्रयत्नशील है तथा निरंतर सुव्यवस्थित शोध के माध्यम से संस्थान द्वारा शारीरिक एवं मानसिक अभ्यास का पैकेज विकसित किया गया है जो अनेक मनोदैहिक (साइकोसोमेटिक) रोगों में अत्यंत उपयुक्त है। इस संस्थान द्वारा “स्टॉप डायबिटीज” नामक अभियान पूरे देश में संचालित किया गया है तथा इसके माध्यम से हजारों मधुमेह रोगियों को मधुमेह पर नियंत्रण पाने में सफलता मिली है। इससे जुड़े विषयों पर संस्थान के द्वारा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में 400 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किये गये हैं।
मधुमेह में योग
1.सभी शिथिलीकरण व्यायाम एवं योगासन में स्थिति और शिथिल अवस्था (पोस्चर)- ताड़ासन, शिथिल ताड़ासन, दण्डासन, शिथिल दण्डासन, मकरासन, शवासन का अभ्यास मधुमेह रोग में उपयुक्त रहता है। शिथिलीकरण व्यायाम के निरंतर अभ्यास से उदर क्षेत्र की चर्बी घटती है जो “डायबिटिज मेलाइटिस” के लिए अत्यंत लाभप्रद है। यह व्यायाम शरीर का वजन कम करने में सहायक होता है। शरीर की शक्ति एवं क्षमता में वृद्धि होती है। इससे एक अच्छे “ग्रेडियन्ट” का निर्माण होता है जिससे ग्लूकोज को रक्त से कोशिकाओं (सेल्स) तक पहुंचने में सहायता मिलती है तथा अतिरिक्त इंसुलिन के बिना ही शरीर में उपलब्ध इंसुलिन का प्रभावी उपयोग होता है।
2. शिथिलन अभ्यास-
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“जॉगिंग” (ताड़ासन स्थिति)-(स्लो जॉगिंग, बैकवर्ड जॉगिंग, फारवर्ड जॉगिंग, साइड जॉगिंग)-यह पैर की मांसपेशियों के लिए अच्छा व्यायाम है। इससे पिण्डली (कॉफ) एवं जांघ की मांशपेशियां मजबूत होती हैं।
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“फारवर्ड एंड बैकवर्ड बेÏन्डग” (ताड़ासन स्थिति)-इससे कमर, पश्च भाग और खासकर उदर क्षेत्र की चर्बी कम होती है तथा उदर भाग मजबूत बनता है।
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“साइड बेÏन्डग” (ताड़ासन स्थिति)
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“ट्विÏस्टग” (ताड़ासन स्थिति)-इससे कमर और पेट की चर्बी घटती है तथा रीढ़ में लचीलापन आता है।
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पवनमुक्तासन क्रिया (सूपाइन पोस्चर)-संकुचन एवं विश्राम से “पैंक्रियाज” को लाभ मिलता है तथा पेट की चर्बी घटती है।
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धनुरासन Ïस्वग (प्रॉन पोस्चर)-इससे पेट की चर्बी घटती है।
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सूर्य नमस्कार (ताड़ासन स्थिति)-इससे समूचे शरीर में पुनर्सक्रियता उत्पन्न होती है।
3. श्वास क्रिया-
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“हैण्ड स्ट्रैच ब्रीदिंग” (ताड़ासन स्थिति में खड़े होकर, “हॉरिजॉन्टल, वर्टिकल)”
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* “हैण्ड्स इन एंड आउट ब्रीदिंग” (ताड़ासन स्थिति)
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* “एंकल्स स्ट्रैच ब्रीदिंग” (ताड़ासन स्थिति)
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* “टाइगर स्ट्रैच ब्रीदिंग” (ताड़ासन स्थिति)
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* “रैबिट ब्रीदिंग” (वज्रासन स्थिति)-इससे पेट पर दबाव होता है, जिससे “पैंक्रियाज” को प्रोत्साहन मिलता है।
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* “स्टैट लेग रेज ब्रीदिंग” (सूपाइन पोस्चर)-इससे पेट की चर्बी घटती है तथा पेट की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। “इन्ट्रा-अब्डॉमिनल प्रेशर” बढ़ता है तथा इस क्षेत्र में खासकर “पैंक्रियाज” प्रोत्साहित होती है और उसे विश्राम भी मिलता है।
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* “शशकासन ब्रीदिंग” (वज्रासन स्थिति)-इससे “पैंक्रियाज” में जागरूकता आती है तथा विश्राम मिलता है।
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थ् “इंस्टेन्ट रिलैक्सेशन टेक्निक” (शवासन स्थिति)-इससे रक्त में आक्सीजन की सघनता बढ़ती है। शरीर तथा मस्तिष्क को विश्राम मिलता है।
4. योगासन
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थ् अद्र्धकटि चक्रासन (स्थिति ताड़ासन)-इस आसन से कमर के आसपास की चर्बी घटती है। “लीवर” की क्रिया सुदृढ़ होती है।
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थ् अद्र्ध चक्रासन (स्थिति ताड़ासन)-इससे मेरुदण्ड में लचीलापन आता है। रीढ़ संबंधी स्नायु प्रोत्साहित होते हैं। “पैंक्रियाज” में रक्त संचार सुदृढ़ होता है। गर्दन की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। श्वास में सुधार होता है।
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थ् पद हस्तासन (स्थिति ताड़ासन)-यह आसन मेरुदण्ड में लचीलापन लाता है, जांघ की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। कब्ज तथा स्त्रियों में मासिक धर्म संबंधी परेशानियों को दूर करता है। पाचन शक्ति को ठीक करता है। पैंक्रियाज में रक्त संचार को सुदृढ़ करता है। सिर के भाग में रक्त संचार को बढ़ाता है।
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थ् परिवृत त्रिकोणासन (स्थिति ताड़ासन)-इससे पैंक्रियाज को अत्यधिक लाभ मिलता है।
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थ् वक्रासन (स्थिति दण्डासन)-इस आसन से मेरुदण्ड में लचीलापन आता है। मेरूदण्ड के स्नायु सुदृढ़ बनते हैं। कब्ज और अपच की परेशानी दूर होती है। “पैंक्रियाज” प्रोत्साहित होता है।
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थ् अद्र्ध मत्स्येन्द्रासन (स्थिति दण्डासन)-इससे मेरुदण्ड के स्नायु सुदृढ़ बनते हैं। कब्ज और अपच की परेशानी दूर होती है। “पैंक्रियाज” प्रोत्साहित होता है।
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थ् उष्ट्रासन (स्थिति दण्डासन)-यह आसन “पैंक्रियाज” को सुदृढ़ बनाता है। सिर के भाग में रुधिर संचार को बढ़ाता है।
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थ् हम्सासन (स्थिति वज्रासन)-इससे पैंक्रियाज की कोशिकाओं के पुनर्नवीन होने की क्रिया प्रोत्साहित होती है। कलाई में लचीलापन तथा भुजाओं में मजबूती आती है। पाचन क्रिया सुदृढ़ होती है।
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थ् मयूरासन (स्थिति वज्रासन)-यह भूखवद्र्धक आसन है। पेट को सुदृढ़ बनाता है। शरीर की चर्बी को घटाता है। यह अग्रबाहु, कोहनी तथा कलाई को मजबूत बनाता है। पेट में गैस का संचय नहीं होता है। “एंडोक्राइन्स” को सक्रिय करता है।
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थ् भुजंगासन (स्थिति प्रॉन पोस्चर)-इससे स्पाइनल मांसपेशियां मजबूत होती हैं। “पैंक्रियाज” को लाभ मिलता है। श्वांस संबंधी एवं पीठ से संबंधित परेशानियों में लाभदायक होता है।
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थ् धनुरासन (स्थिति प्रॉन पोस्चर)-“पैंक्रियाज” प्रोत्साहित होता है तथा इसकी कोशिकाओं को विश्राम मिलता है। शरीर को पतला रखने में सहायक होता है।
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थ् मत्यासन (स्थिति सूपाइन पोस्चर)-मधुमेह रोग में खास लाभकारी है। इसके अलावा अस्थमा एवं श्वास संबंधी विकारों में भी इससे लाभ मिलता है।
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थ् प्राणायाम में कपालभाति, नाड़ीशुद्धि, भ्रामरी आदि भी अत्यंत लाभकारी है।
उपरोक्त योगासन, व्यायाम एवं श्वास क्रियाओं के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी यहां संभव नहीं है, इसलिए मैं पाठकों से यह अनुरोध करना चाहूंगा कि उपरोक्त किसी भी विधि का अभ्यास शुरू करने से पूर्व किसी कुशल योगाचार्य का मार्गदर्शन जरूर प्राप्त करें, क्योंकि इसमें कुछ ऐसे भी आसन एवं योग क्रिया हैं जो शरीर में किसी विकार के रहने पर उनका अभ्यास करना वर्जित है। अत: पाठक किसी भी आसन को शुरू करने से पूर्व कुशल योगाचार्य को अपनी शारीरिक स्थिति के बारे में अवश्य बतायें ताकि शरीर के अनुसार उचित आसन अथवा व्यायाम का मार्गदर्शन मिल सके। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि अपनी दिनचर्या, खान-पान में भी परिवर्तन करना पड़ेगा लेकिन यह सत्य है कि परहेज एवं निर्धारित योगासन का यदि निरंतर अभ्यास किया गया तो मधुमेह पर नियंत्रण संभव है और इस बीमारी के रहते हुए भी एक सामान्य जीवन जिया जा सकता है। द
(लेखक दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री रहे हैं।)
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