सम्पादकीय
दिंनाक: 10 Dec 2011 17:11:37 |
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नियति क्षमा नहीं करती, उसका विधान तो दण्ड है।
-लक्ष्मीनारायण मिश्र (आधीरात, प्रथम अंक)
*बल्देव भाई शर्मा
आखिर कब तक कांग्रेस और संप्रग सरकार केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम का रक्षा कवच बनकर खड़ी रहेगी? अब वह कवच दरकने लगा है और डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सीबीआई की विशेष अदालत से इस मामले में स्वयं को गवाह के रूप में प्रस्तुत होने व 2 जी स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने में तत्कालीन संचार मंत्री ए.राजा के साथ साजिशकत्र्ता के तौर पर (तब के वित्तमंत्री) चिदम्बरम की भागीदारी के सबूत पेश करने की अनुमति प्राप्त कर ली है। यह अपने को “दूध का धुला” मान रहे चिदम्बरम के लिए तो बड़ा संकट है ही, कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के लिए भी करारा झटका है, जो अपनी नाक बचाने के लिए न केवल चिदम्बरम पर आरोपों को नकारती रही है, बल्कि उन्हें निर्दोष बताती रही है। दस जनपथ के विश्वस्त और चहेते चिदम्बरम को बचाने के लिए सरकार किस तरह आतुर है कि विशेष अदालत द्वारा प्रथमदृष्ट्या डा. स्वामी की दलीलों से संतुष्ट होने के बाद भी सरकार की तरफ से प्रतिक्रिया देते हुए कानून मंत्री सलमान खुर्शीद कह रहे हैं कि सरकार चिदम्बरम के साथ खड़ी है। हालांकि मार्च में वित्त मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखे एक पत्र में ही 2 जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस दिए जाने के मामले में तत्कालीन वित्त मंत्री चिदम्बरम की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे। तभी यह बात पुष्ट हो गई थी कि दाल में कुछ काला अवश्य है और वित्तमंत्री रहते हुए चिदम्बरम की भूमिका 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन में संदिग्ध है। यदि वह चाहते तो इस महाघोटाले को रोक सकते थे, क्योंकि निर्णयों में उनकी सहमति खुलकर सामने आई। ऐसे ही कारणों से डा.स्वामी ने चिदम्बरम के विरुद्ध जो याचिका दायर की थी, उस पर उन्हें अदालत के समक्ष चिदम्बरम के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए दो प्रमुख गवाहों को अदालत में बुलाने की जरूरत समझाने का मौका दिया गया है।
इससे यह तो साफ है कि कानूनी स्तर पर चिदम्बरम के खिलाफ जमीन तैयार होने लगी है। यदि डा.स्वामी अपने प्रस्तावित गवाहों के बारे में अदालत को संतुष्ट कर सके और तब उन्हें अदालत में बुलाए जाने के बाद उनके माध्यम से कुछ ऐसे साक्ष्य सामने ला सके जिनसे चिदम्बरम पर अभियोग पुष्ट हों, तो चिदम्बरम का संकट और बढ़ेगा। तब चिदम्बरम को भी ए.राजा के साथ अभियुक्त बनाए जाने से सरकार कैसे बचाएगी? इसलिए भ्रष्टाचार के मामलों में आकंठ फंसी संप्रग सरकार को नैतिकता के आधार पर चिदम्बरम से तत्काल त्यागपत्र मांग लेना चाहिए। लेकिन संप्रग सरकार के चरित्र को देखते हुए यह उम्मीद करना दिवास्वप्न जैसा ही है, क्योंकि प्रधानमंत्री तो अंत तक ए.राजा को भी निर्दोष मानते रहे थे। वास्तव में यदि अदालतों का रुख कड़ा न होता तो राष्ट्रमंडल खेल घोटाला हो या 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन महाघोटाला अथवा हसन अली जैसे महा करचोरों का मामला, कोई सामने भी नहीं आ पाता और यह सरकार अंदर ही अंदर खूब लीपापोती कर देती। लेकिन अदालतों ने सरकार की गर्दन मरोड़ी तो सच्चाई बाहर आने लगी और अब तो यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार स्वतंत्र भारत की सबसे भ्रष्ट सरकार है। यदि विपक्ष संसद में चिदम्बरम के बहिष्कार या अब उनके इस्तीफे की मांग पर अड़ा है तो यह लोकतंत्र की मांग है। भारत के संविधान में जिस लोक कल्याणकारी राज्य की संकल्पना प्रस्तुत की गई है, वह लोकतंत्र की मूल अवधारणा है। लेकिन स्वाधीनता के बाद 50 से ज्यादा वर्षों तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस ने इस अवधारणा को पलीता लगाते हुए भ्रष्ट सत्तातंत्र को ही मजबूत किया है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल से ही जीप घोटाले जैसे कांडों की जो शुरुआत हुई, वह आज 2 जी स्पेक्ट्रम जैसे महाघोटालों तक पहुंच चुकी है। इस भ्रष्ट कार्यशैली को कांग्रेस ने अपनी सत्तालोलुप राजनीति से लगातार पाला-पोसा है,चिदम्बरम उसका सबसे ताजा संस्करण हैं।
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