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मालेगांव मामले में खरी-खरी

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Dec 10, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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मालेगांव मामले में खरी-खरी

दिंनाक: 10 Dec 2011 15:50:10

मुजफ्फर हुसैन

मालेगांव में हुए बम धमाकों के अधिकांश अपराधी जेल में हैं। उनमें से सात अपराधियों को जमानत मिल गई है। जब वे जेल से छूटे तो उनका बड़े पैमाने पर मुस्लिम समाज द्वारा स्वागत किया गया। महाराष्ट्र के मंत्री नसीम खान ने उक्त अवसर पर मालेगांव जाकर वहां की मुस्लिम जनता को विश्वास दिलाया कि एक दिन दूध का दूध और पानी का पानी हो जाने वाला है। उक्त अवसर पर मालेगांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री बंसीलाल कांकरिया से उर्दू टाइम्स, जो मुम्बई से प्रकाशित होता है, के प्रतिनिधि ने एक विशेष भेंटवार्ता की। इसमें मालेगांव के अरोपियों की रिहाई पर मालेगांव के हिन्दुओं की क्या सोच और प्रतिक्रिया है, यह उभरकर सामने आती है। मालेगांव के श्रीकृष्ण नगर क्षेत्र में संघ की शाखा में अब्दुल हलीम सिद्दीकी द्वारा ली गई यह विस्तृत भेंटवार्ता वार्ता उर्दू टाइम्स के रविवारीय अंक 27नवम्बर, 2011 में प्रकाशित की     गई है-

कौन हैं असली कातिल

कड़ी सर्दी में सवेरे साढ़े छह बजे खाकी नेकर पहने हुए 67 वर्षीय श्री बंसीलाल प्रतिदिन के नियमानुसार शाखा में उपस्थित थे। पौन घंटे चली यह शाखा सूर्य नमस्कार के पश्चात् एक हिन्दी गीत पर समाप्त हुई, जिसके बोल कुछ इस तरह थे-हिन्दू जगेगा देश जगेगा।

इस शाखा में पच्चीस से पचास साल के लोग शामिल थे। सबसे वयोवृद्ध व्यक्ति का नाम बालासाहब भूरे है, जिन्होंने अपनी आयु 70 वर्ष बताई। उनका कहना था कि मैं निरंतर पिछले 60साल से शाखा में आ रहा हूं। इस बातचीत में शाखा के अन्य लोग भी शामिल रहे। लेकिन असली बातचीत श्री बंसीलाल कांकरिया से ही हुई। उन्होंने प्रारंभ में कहा कि कब्रिस्तान बम धमाकों के दूसरे दिन मैं कय्यूम सलीम सेठ के घर पर शोक व्यक्त करने के लिए गया जिनके दो युवा पोते इस धमाके के शिकार हुए थे। मैंने उनके सामने दु:ख व्यक्त करते हुए कहा कि बहुत बुरा हुआ। बालासाहब भूरे का कहना था कि उस दिन का दृश्य विचित्र था। बहुत से हिन्दू अपने घरों से निकल आए थे। कोई मेडिकल सहायता के लिए अस्पतालों में था, तो कोई रक्तदान के लिए लम्बी पंक्तियों में खड़ा था। दोनों बुजुर्गों का कहना था कि ये धमाके हिन्दुओं ने नहीं कराए होंगे। तब प्रतिनिधि ने कहा तो क्या यह मुसलमानों की करतूत है? तो तीसरी जगह से जवाब मिला कि क्या पाकिस्तान की मस्जिदों में बम धमाके नहीं होते? और क्या हैदराबाद की मस्जिद में मुसलमानों ने धमाका नहीं किया? जब उन्हें याद दिलाया गया कि हैदराबाद की मक्का मस्जिद के मामले में तो पकड़े गए सभी 19 लोग रिहा कर दिये गए। हुकूमत ने क्षमा याचना कर ली। तो कांकरिया जी ने कहा नहीं। कलीमुद्दीन नाम का एक लड़का रिहा हुआ है जिसकी सिफारिश स्वामी असीमानंद जी द्वारा की बतायी जाती है।

जब उस प्रतिनिधि ने कहा कि मालेगांव के सभी अपराधियों को जमानत मिल गई है और नगर में उनका हीरो की तरह स्वागत हुआ है। आप लोग इस घटना को किस दृष्टि से देखते हैं? बंसीलाल जी ने कहा जिस शैली में मालेगांव के नागरिकों ने जमानत पर रिहा अपराधियों का स्वागत किया है, ऐसा लगता है मानो वे लोग कोई बहुत बड़ा कारनामा करके वापस आए हैं। अब हम स्वागत करने वालों से पूछते हैं कि बम धमाकों में जो 31 लोग मर गए उनका क्या? उनके असली कातिल कहां हैं? कांकरिया जी ने कहा अपराधियों का स्वागत कोई अर्थ नहीं रखता है। जब उन्हें याद दिलाया गया कि स्वामी असीमानंद ने इस संबंध में कोई कबूलनामा दाखिल किया है। तो जवाब था बाद में स्वामी जी ने अपना कबूलनामा वापस ले लिया है और यह कहा कि मुझ पर दबाव डालकर यह सब कहलवाया था।

राजनीतिक स्वार्थ

 एक और सवाल के जवाब में श्री बंसीलाल कहते हैं यदि स्वामी असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा सिंह, कर्नल पुरोहित आदि दोषी हैं तो उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया जाए। हमको कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन सच तो यह है कि इन लोगों के संबंध में कोई सबूत नहीं है। मालेगांव के बंदियों को जिस तरह उ.प्र. के चुनाव से पहले छोड़ा गया है साफ नजर आता है कि हुकूमत मुस्लिम वोट बैंक मजबूत करके इसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है। बंसीलाल जी ने सवाल उठाया कि यदि ये लोग निर्दोष थे तो पांच साल तक जेल में क्यों रखे गए? साल दो साल में  इन्हें छोड़ क्यों नहीं दिया गया? क्या हुकूमत को मालूम नहीं था? वास्तव में सरकार को सब कुछ मालूम था लेकिन अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए वह हिन्दू और मुसलमानों की भावनाओं से खेल रही है। मालेगांव की स्थानीय राजनीति पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा ये लोग तो आपस में 72 खानों में बंटे हुए थे, राजनीति ने उन्हें एक और खाने में विभाजित कर दिया है-दखनी मूमिन का खाना।

कांकरिया जी ने आगे कहा कि जमाते इस्लामी हिंद वालों के ईद मिलन के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद मैंने फिरोज आजमी को कहा था कि तुम्हारी जमाते इस्लामी हिंद, हमारा संघ जमाते इंसानी हिंद है। तुम लोग केवल इस्लाम के बारे में सोचते हो, हम सम्पूर्ण विश्व और मानवता की चिंता करते हैं। मेरा उनको परामर्श है कि पुस्तिकाएं और पेम्फलेट पर हजारों रुपया बर्बाद करने की बजाए अपनी मुस्लिम बस्तियों के रहन-सहन का स्तर ठीक करें। जहां छोटे-छोटे झोपड़ों में दस-दस लोग जानवरों की तरह अपना जीवन जी रहे हैं। मदरसों के नगर में रहने वाले बंसीलाल जी कांकरिया को आज भी भरोसा नहीं है कि आखिर मदरसों में क्या सिखाया जाता है। वे कहते हैं कि ये लोग केवल अपने पैगम्बर साहब की ही बातें करते रहते हैं। जबकि जमाना कहां से कहां चल पड़ा है? कांकरिया जी का यह भी मानना था कि यहां के सारे मुसलमान चार-पांच सौ साल पहले हिन्दू ही थे। मुगलों के दौर में उनका मतान्तरण हुआ। यहां के प्रसिद्ध सेठ यासीन मारवाड़ी (नेशनल वाले) भी हिन्दू ही थे। लेकिन उन्हें एक व्यक्ति ने गोद लिया, अपनापन दिया इसलिए मुसलमान हो गए। ऐसी असंख्य मिसालें मौजूद हैं।

श्री कांकरिया ने कहा कि मुसलमानों को हर पार्टी में शामिल होना चाहिए। भाजपा में आज जो शाहनवाज और  मुख्तार अब्बास नकवी जैसे लोग हैं उन्हें देश के मुसलमान मुसलमान मानने से ही इनकार करते हैं, उन्हें काफिर कहते हैं यह बात गलत है। भारतीय मुसलमानों की तो यह शोकांतिका है कि वे अपने कृपालुओं को भूल जाते हैं। उन्होंने जीते जी मौलाना आजाद का सम्मान नहीं किया। हमें नहीं लगता कि देश पर यदि पाकिस्तान हमला करेगा तो देश के मुसलमानों का रवैया कैसा रहेगा? जब उन्हें याद दिलाया गया कि कैप्टन हनीफ से लेकर शहीद हवालदार अब्दुल हमीद तक ने अपने प्राणों की आहुति देकर पाकिस्तान को पाठ पढ़ाया है। तो कांकरिया कहते हैं कि मालेगांव के मुसलमान तो अब्दुल हमीद का नाम भी नहीं लेते। उनकी नजर में तो वही सात शहीद थे, जो अंग्रेजों के युग में एक दंगे के आरोप में दंडित किये गए थे।

एक और सवाल के जवाब में कांकरिया जी ने कहा हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता। विशेषतया रा.स्व.संघ से जुड़े लोग तो शांतिप्रिय होते हैं, उन्हें मारना नहीं बचाना सिखाया जाता है। हां, यदि कोई हम पर तलवार ताने तो हम भी अपनी रक्षा करने का अधिकार रखते हैं। नहीं तो सिद्धांतत: हम एक चींटी को भी मारना पाप समझते हैं।

समाप्त हो अविश्वास का वातावरण

हम देख रहे हैं कि देश पर हमला करने वाले अफजल और अजमल कसाब का इस देश में अतिथि सत्कार हो रहा है। अदालत का फैसला आ जाने के बाद भी उन्हें फांसी नहीं दी जाती। क्योंकि वोट की राजनीति इसकी आज्ञा नहीं दे रही है। मालेगांव वालों को क्यों छोड़ दिया उन्होंने भी तो कनफेशन दिया था। अब देखिये मुसलमानों के दबाव के चलते मामला एटीएस से लेकर सीबीआई को दिया गया। इस पर भी उनको भरोसा नहीं रहा। अब एनआईए इसकी जांच कर रही है। ये लोग क्या निकालेंगे पता नहीं। मालेगांव के धमाके के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि हिन्दू-मुस्लिम ने मिलकर किया है। यह भी एक हास्यास्पद बात है। इस प्रकार के काम में हिन्दू-मुस्लिम किस प्रकार से मिल सकते हैं, यह कैसा तर्क है?

आज इन धमाकों के बाद से मालेगांव की मिलीजुली मुस्लिम-हिन्दू आबादियां खत्म हो रही हैं। सारे हिन्दू अपने घर बार बेचकर सुरक्षित स्थानों में स्थानांतरित हो रहे हैं। कोई मुस्लिम नेता अथवा संगठन आगे नहीं आया, जो हिन्दुओं को सुरक्षा का विश्वास दिलाए। आपसी अविश्वास बढ़ता जा रहा है, जबकि यह गांव ऐसा है कि हिन्दू-मुस्लिम लड़ ही नहीं सकते। इनके सारे कारोबार एक-दूसरे से चलते हैं। हम कच्चा माल देते हैं, कपड़ा मुसलमान बुनकर तैयार करते हैं, फिर हमारे ही लोग उसे खरीदकर बाजार में लाते हैं। तानेबाने का यह रिश्ता सदियों से मजबूत है। लेकिन बीच-बीच में ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं कि दिलों में दूरियां बढ़ती जाती हैं। मैं संघ का जिम्मेदार कार्यकर्ता होने के नाते बराबर मुसलमानों से मिलता जुलता रहता हूं और लोगों से आपसी मेल-जोल की बात करता हूं। कांकरिया जी का कहना था कि हम जिस प्रकार से एकता और भाईचारे का प्रयास करते हैं, इसी प्रकार की कोशिश सामने वालों को भी करने की आवश्यकता है, ताकि अविश्वास का वातावरण समाप्त हो। हमारे स्कूलों में विद्यार्थियों को क्या सिखाया जा रहा है यह देखना पड़ेगा। इस संबंध में आपको एक घटना बताना चाहता हूं। मालेगांव के ऐतिहासिक किले में संघ का एक कार्यक्रम चल रहा था जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में डा.इफ्तिखार अहमद भी मौजूद थे। लेकिन कुछ समय पश्चात् किले के पीछे की बस्ती से किले पर पथराव हुआ। कुछ लोग दौड़े और एक लड़के को पकड़ लिया। पुलिस में ले जाने के बाद मालूम हुआ कि वह उर्दू मीडियम स्कूल में 11वीं कक्षा का छात्र था। वहां के मुसलमान नहीं चाहते थे कि किले के भीतर संघ की गतिविधियां चलें। दंगा न भड़के इसलिए मैं पुलिस स्टेशन गया और उस लड़के को पुलिस से छुड़ा लिया। इससे यह पता चलता है कि आज शिक्षण संस्थाओं में किस प्रकार के संस्कार दिए जाते हैं? कांकरिया जी का अंत में कहना था कि कोई बच्चा अपनी पसंद से हिन्दू- मुसलमान नहीं होता। यह सबकी जिम्मेदारी है कि इन बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर समाज में ऐसा माहौल पैदा करें कि इनसानियत हम पर गर्व कर सके। द

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