आवरण कथा-1'मुझे निर्वस्त्र करके उल्टा टांगा और…'
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अम्बाला जेल से स्वामी असीमानंद की राष्ट्रपति को चिट्ठी
आलोक गोस्वामी
डरा–धमकाकर झूठे बयान पर जबरन दस्तखत कराए
सीबीआई, एनआईए और एटीएस पर शारीरिक और मानसिक यातनाएं देने का आरोप
l सीबीआई के अधिकारियों ने मुझे हरिद्वार से (18 नवम्बर 2010) को गिरफ्तार किया और जब मुझे हरिद्वार से दिल्ली लाया जा रहा था, तो सीबीआई अधिकारियों ने कई मौकों पर वाहन को सड़क किनारे घुप अंधेरे में रोककर, मुझे जमीन पर घुटनों के बल बैठाया। मेरी कनपटी पर पिस्तौल तानकर उन्होंने कहा कि या तो उनका कहा मानूं या जान से हाथ धोऊं। उन्होंने धमकाया कि वे मुझे तेजी से दौड़ते वाहनों की तरफ धक्का दे देंगे और मेरी मौत एक दुर्घटना मानी जाएगी। मैंने मौत के भय को इतने करीब से कभी नहीं जाना था। मैं दृढ़ रहा।
l सीबीआई अधिकारियों ने मुझे कहा कि मैं न तो किसी से कुछ बोलूं, न ही कोई वकील लूं। सीबीआई अधिकारी हर समय मुझे घेरे रहते और अदालत में पेशी के वक्त मेरे अंदर डर बैठा हुआ था। मेरी बड़ी इच्छा हो रही थी कि अदालत में सब बता दूं, लेकिन उनको चारों ओर घेरा डाले देखकर हिम्मत नहीं हुई कि उनके खिलाफ जाकर अपने परिवार के सदस्यों की सलामती को जोखिम में डालूं।
l हैदराबाद की अदालत ने सीबीआई को सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक पूछताछ करने की अनुमति दी, लेकिन सीबीआई रात–रात भर मुझे यातना देती रही और मुझे अपनी हिरासत में रखे रही। सीबीआई अधिकारियों ने मेरा अपमान किया।…शारीरिक और मानसिक यातना का उनका सिलसिला तब तक जारी रहा जब तक कि मैं न्यायिक हिरासत में नहीं पहुंच गया।…यह देखकर मैं हैरान रह गया कि न्यायिक हिरासत में भी सीबीआई और बाद में एनआईए कर्मियों को जेल में मुझ तक आने की खुली छूट मिली हुई थी। कई मौकों पर आधी रात के बाद मुझसे अपमानजनक व्यवहार किया जाता और विस्फोट के कई मामलों में शामिल होना स्वीकारने को धमकाया जाता। उन्होंने धमकी दी कि अगर उनकी बात नहीं मानी तो मेरी मां, भाइयों और दूसरे परिजनों को भी खत्म कर देंगे। उन्होंने मुझे धमकाया कि यातना दिए जाने की बात मजिस्ट्रेट को न बताऊं।
l मेरे आश्रम से लाया गया एक व्यक्ति हिरासत में था। मुझे आतंकित करने के लिए उसे मेरे सामने निर्वस्त्र करके बुरी तरह मारा–पीटा गया, यातनाएं दी गईं। मुझे उससे भी ज्यादा गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दी गई। सीबीआई अधिकारी इस हद तक गए कि मुझे निर्वस्त्र करके, उल्टा टांगा और मेरे…..।
l दिल्ली की तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत के दौरान, मुझे एक कोठरी में दो मुस्लिम कैदियों के साथ रखा गया। वे जानते थे कि मैं कौन हूं। उन्होंने कहा, अगर मैंने सीबीआई का कहा नहीं माना तो वे जेल में ही मुझे आसानी से खत्म कर सकते हैं। मैं बेहद सदमे की हालत में था और धमकियों का सामना करने की हिम्मत नहीं थी। मैंने अदालत में उनके मन–माफिक बयान दे दिया।
l उन्होंने मुझ पर ताने कसे, 'कहां हैं तुम्हारे हिन्दू अनुयायी और समर्थक?' ऐसी निरीह हालत में जहां मेरी जान पर बनी थी, उन्होंने मुझपर अजमेर बम कांड की जिम्मेदारी स्वीकारने वाला प्रार्थना पत्र लिखने का दबाव डाला।
l मेरा बयान उस शारीरिक और मानसिक यातना का नतीजा था जो अकल्पनीय है। उस बयान को वापस लिया जा चुका है। मेरे उस बयान पर किसी न्यायिक अदालत ने किसी तरह का फैसला नहीं दिया है। आखिर मालेगांव के आरोपियों को मेरे वापस लिए बयान के आधार पर जमानत कैसे दी जा सकती है, जबकि वे खुद उस मामले में इकबालिया बयान दे चुके थे?
ऊपर जो अंश दिए गए हैं वे स्वामी असीमानंद की चिट्ठी से हैं। ये और ऐसे कितने ही विवरण हैं उस चिट्ठी में जो स्वामी असीमानंद ने 26 नवम्बर, 2011 को अम्बाला जेल से देश की राष्ट्रपति को लिखी है। ये ऐसे कई रोंगटे खड़े कर देने वाले घटनाक्रमों की कलई खोलती है जो, चिट्ठी के अनुसार, केन्द्रीय गृहमंत्री के निर्देश पर सीबीआई, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और आतंक निरोधी दस्ते (एटीएस), राजस्थान के अधिकारियों द्वारा मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस और अजमेर बम विस्फोट मामलों में हिरासत में लिए गए एक हिन्दू संन्यासी स्वामी असीमानंद को दी गई शारीरिक और मानसिक यातनाओं की कहानी कहते हैं। हिरासत से अब तक, लगभग एक साल से कुछ ज्यादा वक्त के दौरान स्वामी असीमानंद को, उनके अनुसार, उक्त मामलों में दोषी साबित करने के लिए कितनी ही अदालतों, जेलों, शहरों के चक्कर कटाए गए, बद से बदतर सलूक किया गया और झूठे बयानों और मनगढ़ंत आरोपों को मानने का दबाव डाला गया, जबरन दस्तखत कराए बयानों को 'उनका' इकबालिया बयान कहकर मीडिया में हिन्दू संत का (और उसके जरिए राष्ट्रभक्त संगठनों और हिन्दू समाज) का अपमान कराया गया, अदालत के सामने सच उगलने के भयंकर नतीजे भुगतने की धमकी दी गई और उनके वापस लिए जा चुके उस बयान के आधार पर अभी पिछले दिनों मालेगांव मामले में आरोपी सात मुस्लिम दोषियों को जमानत दे दी गई। ऐसे न जाने कितने खुलासे हैं जो पहली बार उचित कानूनी मदद मिलने के बाद स्वामी असीमानंद ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर बताए हैं। 9 पन्नों की इस विस्तृत चिट्ठी की प्रतियां भारत के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, कैबिनेट सचिव, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजी गई हैं।
चिट्ठी से साफ है कि स्वामी असीमानंद को यातना देने और तीनों मामलों का जिम्मा अपने ऊपर लेने का जो दबाव डाला गया उसका उद्देश्य, पिछले दिनों के दिग्विजय सिंह, चिदम्बरम और संप्रग के दूसरे नेताओं के बयानों के प्रकाश में, केवल और केवल हिन्दू समाज पर कीचड़ उछालना, उसे 'आतंकवाद का जिम्मेदार' ठहराना और राष्ट्रनिष्ठ संगठनों को लांछित करना ही था। कई मौकों पर स्वामी असीमानंद ने सच-सच बोलना चाहा, पर हर बार जान से मारने की धमकी दी गई, कभी मां, परिजनों को खत्म करने की धमकी दी गई तो कभी शारीरिक यातनाएं देकर उन्हें सदमे की स्थिति में पहुंचाकर गढ़े हुए बयानों पर दस्तखत लिए गए। सरकार की धमक के नीचे काम करने वाला मीडिया का एक वर्ग उनके 'स्वीकारोक्ति' बयान को तो कई कई दिन तक दिखाता/छापता रहा, पर सच बयान करने वाली चिट्ठी पर उसकी तंद्रा नहीं टूटी।
नब कुमार सरकार उपाख्य स्वामी असीमानंद ने राष्ट्रपति को साफ लिखा है कि उन्हें 'सीबीआई, एनआईए और एटीएस, राजस्थान ने एक गहरे राजनीतिक षड्यंत्र के फलस्वरूप झूठे आरोपों में फंसाया है।' क्योंकि, स्वामी असीमानंद के अनुसार, वे संन्यासी हैं और मतान्तरित वनवासी ईसाइयों की हिन्दू धर्म में घर वापसी करवा रहे थे इसलिए उन्हें निशाना बनाकर बेवजह आरोपी बनाया गया है। चिट्ठी में वे लिखते हैं, 'मीडिया और मेरे वकीलों से पता चला कि मालेगांव विस्फोट मामले के कई आरोपियों को अदालत ने छोड़ दिया है। इससे पहले केन्द्रीय गृहमंत्री ने सार्वजनिक बयान दिया था, जो काफी प्रमुखता से प्रसारित हुआ था, कि एनआईए अदालत में उनकी जमानत अर्जियों का विरोध नहीं करेगी। केन्द्रीय गृहमंत्री के निर्देश पर चलते हुए, एनआईए ने उनकी जमानत का विरोध नहीं किया, मेरे जबरन लिए गए इकबालिया बयान के आधार पर।' स्वामी असीमानंद ने राष्ट्रपति से संवैधानिक प्रमुख होने के नाते कुछ बिन्दुओं पर अविलम्ब गौर करने का अनुरोध किया है। ये हैं-
l केन्द्रीय गृहमंत्री को क्या अधिकार था कि वे एनआईए को मालेगांव आरोपियों, जो सभी मुस्लिम हैं, की जमानत अर्जी का विरोध न करने का निर्देश दे रहे थे?
l क्या एनआईए, जो केन्द्रीय गृहमंत्री के आदेशों पर काम करती है, को एक निष्पक्ष जांच एजेंसी माना जा सकता है?
l आखिर मेरे जबरन लिए बयान, जिसे वापस लेे लिया गया था, को मालेगांव आरोपियों की जमानत के लिए कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है, जबकि किसी अदालत ने मेरी बयान वापस लेने की अर्जी पर किसी तरह का कोई फैसला नहीं सुनाया है?
l एनआईए उन मुस्लिम आरोपियों (मालेगांव मामले में) की जमानत अर्जी का समर्थन कैसे कर सकती है, इन आरोपियों के इकबालिया बयान और भारत सरकार द्वारा अमरीका और संयुक्त राष्ट्र को दी गई सूचनाओं (कि समझौता विस्फोट के पीछे लश्करे तोएबा और 'हूजी' आतंकवादियों का हाथ है) को देखते हुए?
वे लिखते हैं, 'न्याय का यह कैसा मजाक है। एक तरफ जांच एजेंसियों और सरकारी हस्तकों द्वारा मुझसे बयान उगलवाने को मेरे जैसे हिन्दू संन्यासी का अकल्पनीय और असहनीय अपमान व उत्पीड़न किया जा रहा है, और दूसरी तरफ मालेगांव मामले के मुस्लिम आरोपियों को जबरन उगलवाए (वापस लिए जा चुके) बयान के आधार पर जमानत दी जा रही है…ऐसी स्थिति में शर्म की बात है कि हिन्दू होने के नाते मेरे कोई मानवाधिकार नहीं हैं। मेरे धर्म की वजह से मुझे यातनाएं दी गईं।…उन्होंने इशारा किया कि अगर मैंने उनके कहे पर चलने से मना किया तो हुगली से मेरी मां को लाया जाएगा, उसके सामने निर्वस्त्र करके मुझे अपमानित किया जाएगा।'
चिट्ठी के अनुसार, 'ये सब राजनीति और मेरे वापस लिए बयान को मुस्लिम आतंकवादियों को छोड़ने और हिन्दुओं को बेवजह फंसाने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।…मुझसे किया गया अमानवीय बर्ताव हमारे लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है।…मुझे पीड़ित किया जा रहा है क्योंकि मैं हिन्दू हूं। मानवाधिकार आयोग को इस सबकी जांच करनी चाहिए।'
स्वामी असीमानंद की सच की परतें खोलती इस चिट्ठी पर केन्द्र की संप्रग सरकार क्या कार्रवाई करेगी, यह देखना बाकी है।
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