राज्य/विभिन्न
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हथियारबंद माओवादियों पर वार के साथ
विचार पर आघात जरूरी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी के लिए इन दिनों एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है। वार्त्ता के द्वारा माओवादी समस्या का समाधान निकालने के प्रयासों में असफलता मिलने के बाद अब सुरक्षा बलों ने जंगल महल क्षेत्र में कार्रवाई शुरू कर दी है। प्रारंभ में ही सुरक्षा बलों ने कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी जैसे प्रमुख नक्सली नेता को मुठभेड़ में मार गिराया। इससे स्पष्ट हो गया कि ममता सरकार ने अब हथियारबंद माओवादियों पर ममता न दिखाने का मन बना लिया है। हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि बातचीत के रास्ते अभी भी बंद नहीं किए गए हैं। जो भी नक्सली हथियार छोड़कर, शांतिपूर्ण तरीके से जीवनयापन करना चाहते हैं, उनके लिए सरकार विशेष योजनाएं भी घोषित कर रही है। लेकिन हिंसक हो चले माओवादी आंदोलन से कड़ाई से निपटने की भी पूरी तैयारी है।
प.बंगाल में सत्ता परिवर्तन एवं मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद ममता बनर्जी ने माओवादियों के प्रति ममता दिखाई थी। कहा यह भी जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में माओवादियों ने परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया था, इसलिए नई सरकार की नीति माओवादियों के प्रति नरम रही। मुख्यमंत्री के निर्देश पर माओवादियों के गढ़ जंगल महल में चल रहा सुरक्षा बलों का संयुक्त अभियान रोक दिया गया। मुख्यमंत्री ने स्वयं झाड़ग्राम जाकर सभा की, इस क्षेत्र के लिए विशेष आर्थिक पैकेज घोषित किए। लेकिन माओवादी नेता इससे संतुष्ट नहीं हुए। माओवादी सरकार पर दबाव बनाने लगे तो ममता और माओवादी नेताओं के संबंधों में तल्खी आ गई। उधर केन्द्रीय खुफिया विभाग लगातार चेतावनी देने लगा कि जंगल महल में केन्द्र व राज्य के सुरक्षा बलों द्वारा संयुक्त रूप से जारी अभियान के रोके जाने का माओवादी लाभ उठा रहे हैं तथा अपने संगठन को मजबूत करने के काम में तेजी से जुट गए हैं। इस सारी स्थिति पर गौर करने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल के प्रतिष्ठित लोगों के एक 6 सदस्यीय दल को आगे किया ताकि वे माओवादियों व सरकार के बीच मध्यस्थता कर सकें, टूट चुकी वार्ता के तार फिर से जोड़ सकें। लेकिन माओवादियों के अड़ियल रवैये के कारण आखिर मुख्यमंत्री को कठोर रुख अपनाना पड़ा, वरना खुफिया सूत्रों का कहना था कि, हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे। उधर माओवादियों के प्रभाव वाले जंगल महल में माओवादियों और तृणमूल समर्थकों के बीच भी संघर्ष तेज होने लगा था। ऐसे में गत 15 अक्तूबर को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने माओवादियों की धमकी की परवाह न करते हुए उनके गढ़ झाड़ग्राम में ही सभा करके चुनौती दे दी कि एक सप्ताह के भीतर हथियार डालकर वार्ता के लिए आगे आएं वरना सरकार कठोर कार्रवाई के लिए बाध्य हो जाएगी। पर मुख्यमंत्री के इस सुझाव और सख्ती दिखाने की घोषणा से माओवादी बिफर गए और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों पर उनके हमले तेज हो गए। 3 नवम्बर को घाटबेडा गांव के जीतू सिंह नामक तृणमूल कार्यकर्त्ता की माओवादियों ने हत्या कर दी तो पुरुलिया में हुई ममता बनर्जी की सभा के अगले ही दिन (4 नवम्बर) तृणमूल कांग्रेस के दो समर्थकों की बलरामपुर गांव में हत्या कर माओवादियों ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया।
इस बीच ममता बनर्जी की माओवादियों को आत्मसमर्पण की सलाह को भी उल्लेखनीय सफलता मिली। जंगल महल की कुख्यात माओवादी जागरी बारके ने अपने पति राजाराम सोरेन और 4 वर्षीय पुत्र बहादुर के साथ कोलकाता आकर मुख्यमंत्री के समक्ष समर्पण कर दिया। पिछले काफी समय से माओवादी हमलों के दौरान जागरी बारके का नाम काफी चर्चित रहा। बताया जाता है पिछले साल फरवरी में पश्चिमी मेदिनीपुर के सिलदा में स्थित सुरक्षाबलों के एक शिविर पर माओवादी हमले का नेतृत्व व उसकी रचना जागरी बारके ने ही बनाई थी। उस हमले में 24 जवान शहीद हो गए थे। शीर्ष माओवादी के सपरिवार आत्मसमर्पण से माओवादी नेतृत्व को तगड़ा झटका लगा है। अपने समर्पण पत्र में जागरी बारके और राजाराम सोरेन ने लिखा है-
'हम लोग पिछड़े इलाके के रहने वाले हैं। पढ़ाई–लिखाई कुछ ज्यादा नहीं हुई। 10 साल पहले माओवाद की दीक्षा ली। दोनों हाथों से बंदूक चलाई। आम आदमी और पुलिसवालों को मारा। माओवादी नेताओं ने भरोसा दिलाया था कि आम आदमी को स्वतंत्रता देंगे। आदिवासियों एवं जनजातियों की तरक्की होगी, क्षेत्र का विकास होगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि हमारे हाथों हमारे ही अपने लोग मारे जाते थे। माओवादी नेता झूठ बोलकर, बरगलाकर या जबरदस्ती अपने अभियान में लोगों को शामिल करते हैं। हमें अपनी गलती का अहसास हो गया है। हमारा माओवादी भाइयों–बहनों से अनुरोध है कि वे भी अपनी गलती सुधारकर हथियार डाल दें और समाज की मुख्यधारा में शामिल हो जाएं।'
एक तरफ माओवादी हथियार डाल रहे हैं या उनके बड़े स्तर के नेता मारे जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ खुफिया विभाग ने अपनी एक गोपनीय रपट में बताया है कि यादवपुर विश्वविद्यालय माओवादियों के निर्माण का केन्द्र बनता जा रहा है। पिछले 30-40 वर्षों से यादवपुर विश्वविद्यालय में माओवादियों के समर्थन में कार्यक्रम आयोजित होते रहे हैं। विभिन्न नामों से आयोजित होने वाले इन कार्यक्रमों के पीछे माओवादी विचारधारा के लोग व छात्र नेता काम करते हैं। जंगल महल में सक्रिय माओवादियों की युवा शाखा का प्रमुख अभिषेक उर्फ अरण्य के अनेक बार यादवपुर आने और छात्रों के साथ गुप्त बैठक करने के पुख्ता समाचार हैं। खुफिया विभाग के अनुसार जंगल महल क्षेत्र में यादवपुर विश्वविद्यालय के 15-20 पूर्व छात्रों का एक गुट सक्रिय है। इससे पहले, पिछले साल 30 नवम्बर को माओवाद समर्थक छात्रों द्वारा ही मानवाधिकार रक्षा के नाम पर एक आयोजन किया था, जिसे सम्बोधित करने के लिए संसद भवन पर हमले के आरोपी एस.ए.आर.गिलानी को बुलाया गया था। गिलानी का विरोध कर रहे विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्त्ताओं पर माओवाद समर्थक छात्रों ने हमला भी किया था। खुफिया विभाग ने यादवपुर विश्वविद्यालय के कुछ पूर्व छात्र-छात्राओं का नामोल्लेख भी किया है जो माओवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए काम कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार सुस्मिता पश्चिमी मिदनापुर के गोपी बल्लभपुर में सक्रिय है तो निर्मला बेलपहाड़ी में और दीपा बीनापुर में।
इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात खुफिया विभाग ने यह बतायी है कि राजकीय संयुक्त प्रवेश परिक्षा परिषद् के प्रमुख और यादवपुर विश्वविद्यालय के अनेक प्राध्यापक माओवाद के समर्थक हैं। राज्य खुफिया विभाग के प्रमुख वाणीव्रत बसु ने गृहसचिव और पुलिस प्रमुख को भेजी अपनी दो पृष्ठों की गोपनीय रपट में यादवपुर विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों और उन प्राध्यापकों की कड़ी निगरानी करने को कहा है जो माओवादियों के मददगार हैं। राज्य संयुक्त प्रवेश परीक्षा के अध्यक्ष एवं यादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भास्कर गुप्ता एवं एक अन्य प्रोफेसर अमित भट्टाचार्य के नामों का खुलासा करते हुए खुफिया विभाग ने कहा है कि ये लोग छात्रों को माओवादी आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। हालांकि भास्कर गुप्ता ने खुफिया विभाग के इन आरोपों को हास्यास्पद बताते हुए उन्हें खारिज कर दिया है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हिंसक हो चुके माओवादियों से कहीं अधिक खतरनाक है वह विचार, जो उन्हें हथियार उठाने की प्रेरणा देता है। इसलिए राज्य सरकार को जंगल महल में सुरक्षा बलों की कार्रवाई के साथ साथ यादवपुर विश्वविद्यालय में उन तत्वों की भी निगरानी करनी चाहिए जो माओवादी विचार और उसकी गतिविधियों के लिए प्राणवायु (आक्सीजन) प्रदान कर रहे हैं।
'पांचवां स्तंभ' के पांच वर्ष
पर संगोष्ठी संपन्न
गत 26 नवम्बर को दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित मदन मोहन मालवीय स्मारक संस्थान के सभागार में 'साथी' (सोशल एक्शन थ्रू इंटिग्रेटेड नेटवर्क) की ओर से प्रकाशित पत्रिका 'पांचवां स्तम्भ' की पांचवीं वर्षगांठ पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी के मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ पत्रकार एवं राज्यसभा सदस्य श्री चंदन मित्रा। श्री मित्रा ने पांचवां स्तम्भ के पिछले पांच वर्षों के संपादकीयों के संकलन की पुस्तक 'विकास का विश्वास' का लोकार्पण भी किया। वरिष्ठ पत्रकार श्री अवधेश कुमार, पूर्व राज्यसभा सदस्य श्री गौरीशंकर राजहंस तथा बेतिया (बिहार) की विधायक व बिहार की पूर्व कैबिनेट मंत्री श्रीमती रेणुका देवी मुख्य वक्ताओं के रूप में उपस्थित थे। 'साथी' की अध्यक्ष व 'पांचवां स्तंभ' पत्रिका की संपादक श्रीमती मृदुला सिन्हा ने पिछले 5 वर्षों की यात्रा के दौरान हुए अनुभवों और कठिनाइयों से परिचित कराया। समारोह में संविधान विशेषज्ञ श्री सुभाष कश्यप, वरिष्ठ राजनीतिज्ञ श्री केदार नाथ साहनी, वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री रामकृपाल सिन्हा सहित बड़ी संख्या में गण्यमान्य जन उपस्थित थे। प्रतिनिधि
श्री श्री रविशंकर ने सुनी पाकिस्तानी हिन्दुओं की पीड़ा
गत 29 नवम्बर को दिल्ली में यमुना किनारे मजनूं के टीले पर रह रहे पाकिस्तानी हिन्दुओं से प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर मिले। दस वर्षीय एक बच्चे से जब श्री श्री ने पूछा कि आप कहां से आए हैं? तो उस बच्चे ने कहा, 'महाराज, मैं एक ऐसे मुल्क से आया हूं, जहां हमें जबरदस्ती कलमा पढ़ाया जाता है और नमाज अदा कराई जाती है। गले में किसी देवी-देवता की तस्वीर रखने पर पीटा जाता है, और छीनकर वह तस्वीर किसी गंदे नाले में फेंक दी जाती है।' एक वृद्धा ने कहा, 'अपनी जान और धर्म बचाने के लिए हम सब यहां आए हैं। आप हमारी मदद करें।' उनकी पीड़ा सुनकर श्री श्री रविशंकर भी द्रवित हो गए। पाकिस्तानी हिन्दुओं को आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा, 'जो लोग भगवान पर विश्वास करते हैं, उनकी मदद वे जरूर करते हैं। आप अकेले नहीं हैं। आप लोग अपने परिवार में ही आए हैं। एक दिन अवश्य आशा की किरण फूटेगी और सब कुछ ठीक हो जाएगा।' इसके बाद श्री श्री रविशंकर ने उन हिन्दुओं के बीच कम्बल बांटे और खाद्य सामग्री भेंट की। श्री श्री रविशंकर को पाकिस्तानी हिन्दुओं से मिलाने में मानवाधिकार संगठन 'ह्यूमन राइट्स डिफेंस (इंडिया)' की अहम भूमिका रही। इसके महासचिव और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजेश गोगना ने बताया कि उनका संगठन पाकिस्तानी हिन्दुओं के लिए कई तरह के प्रकल्पों का संचालन कर रहा है। उल्लेखनीय है कि पिछले तीन माह से ये पाकिस्तानी हिन्दू दिल्ली में रह रहे हैं। इनका कहना है कि उन्हें भारत हमें स्थायी रूप से रहने दिया जाए, क्योंकि पाकिस्तान में उनके साथ पशु से भी ज्यादा बुरा व्यवहार किया जाता है। प्रतिनिधि
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