दृष्टिपात
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शम्सी से ड्रोन हटाओ, 'नाटो' को समझाओ
पाकिस्तान–अफगानिस्तान सीमा पर 26 नवम्बर को दो पाकिस्तानी चौकियों पर 'नाटो' के हवाई हमले में 24 पाकिस्तानी फौजी मारे गए तो लाहौर से पेशावर तक और इस्लामाबाद से बलूचिस्तान तक पाकिस्तानी आबोहवा में खिसियाई तिलमिलाहट तैर गई। हर नेता ने 'नाटो' को लानतें भेजते हुए हमले को 'पाकिस्तान की संप्रभुता पर हमला' करार दिया। प्रधानमंत्री गिलानी ने आपात बैठक बुलाकर अमरीका को खूब बुरा-भला कहा, तो जनरल कयानी गुस्से में लाल पीले हो अपनी दमदारी की खुद ही 'मिसालें' देते रहे। विदेश मंत्री हिना रब्बानी ने कूटनीतिक बयानों में अमरीकी सरपरस्ती में 'नाटो' की कार्रवाई को ठेस पहुंचाने वाली बताया, तो आंतरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक ने कहा कि 'नाटो' की पाकिस्तान के जरिए आपूर्ति हमेशा के लिए रोक दी गई है। कहा कि 'नाटो' सेना को पाकिस्तान राष्ट्र की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। इतना ही नहीं, पाकिस्तान सरकार ने तेवर कड़े करते हुए अमरीका को कह दिया है कि 15 दिन के अंदर बलूचिस्तान का शम्सी हवाई अड्डा खाली कर दें। यहीं से अमरीका के ड्रोन बमवर्षक विमान उड़कर अफगानिस्तान सीमा पर तालिबान और अल कायदा के जिहादियों को ढेर करते रहे हैं। पाकिस्तान ने 'नाटो' के साथ तमाम कूटनीतिक, फौजी और खुफिया सहयोग पर फिर से विचार करने की धमकी दी है।
पाकिस्तान की इन बेखौफ घुड़कियों के पीछे चीन की शह है, सब जानते हैं। तभी तो सबसे पहले चीन ने 'नाटो' हमले पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि वह पाकिस्तान की आजादी, संप्रभुता और भौगोलिक एकजुटता की हिफाजत में उसके साथ हमेशा खम ठोंककर खड़ा रहेगा। वैसे इस तरह का हवाई हमला सितम्बर 2010 में भी हुआ था जब 'नाटो' के तहत अमरीकी हेलीकाप्टर ने एक पाकिस्तानी सीमा चौकी पर हमला करके दो फौजियों को मार दिया था।
पाकिस्तान के ये तीखे तेवर इसलिए भी हैं क्योंकि वह जानता है कि 5 दिसम्बर से बोन (जर्मनी) में होने वाली अफगानिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय बैठक में उसे खासतौर पर बुलाया गया है। अमरीका और अफगानिस्तान उसकी चिरौरी करेंगे कि रूठना छोड़ो, बोन आओ। अमरीकी विदेश मंत्री हिलेरी ने 29 नवम्बर को कहा भी कि पाकिस्तान बोन बैठक में न आने के अपने फैसले पर फिर से सोचे। 'इस्लामाबाद का इसमें भाग लेना उसी के हित में है और लड़ाई झेलते देश (अफगानिस्तान) के भविष्य के लिए उसकी भागीदारी महत्वपूर्ण है।' हिलेरी ने पाकिस्तान को ताकीद की। वैसे उस बैठक में 85 देश और 15 अंतरराष्ट्रीय संगठन भाग लेने वाले हैं। लेकिन ताजा खबरों के अनुसार, पाकिस्तानी नेता बोन बैठक का जिक्र तक करने पर उखड़ रहे हैं। फिलहाल यही तय किया हुआ है कि नहीं जाएंगे बोन।
नेपाल का नया संविधान
एक आखिरी कोशिश!
पिछले दिनों नेपाल की संसद ने नेपाल सरकार को नया संविधान रचने के लिए पांचवीं और (सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के तहत) आखिरी बार छह महीने का वक्त और दे दिया। 29 नवम्बर को संसद ने नेपाल की भट्टराई सरकार को संभावित संवैधानिक संकट से बचा लिया और लगातार चार बार संविधान न बना पाने के बावजूद पांचवीं बार फिर 6 महीने यानी मई 2012 तक का वक्त दे दिया। दस साल चले माओवादी उग्रवाद की समाप्ति पर हुए शांति समझौते में यह एक वैधानिक शर्त थी कि देश का नया संविधान तैयार किया जाए। पूरे देश में नए संविधान के नाम पर बार-बार की टालमटोल, स्थगन, सरकार बदल और राजनीतिक घुड़कियों से उकता चुकी नेपाल की जनता शांति के साथ जीने की तमन्ना में हर बार संसद से एक आस बांधती है, पर उसे आह ही मिलती है। अबकी बार अगर संसद (मई 2012 तक) ने नया संविधान तैयार करके मान्य नहीं किया तो सर्वोच्च न्यायालय के पिछले हफ्ते के निर्णय के तहत संसद भंग करके सरकार को नए चुनाव कराने होंगे या जनमत संग्रह कराना होगा।
टीवी नाटकों के बीच विज्ञापन
नहीं चाहिए
चीन में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी हमेशा से ही वहां के सांस्कृतिक परिदृश्य पर अपनी पकड़ बनाए हुए है। सांस्कृतिक गतिविधियों में 'सुधार' के नाम पर सरकार ने नए फरमान के तहत टेलीविजन पर आने वाले नाटकों के बीच विज्ञापन दिखाने पर रोक लगा दी है। आने वाली पहली जनवरी से 45 मिनट के कार्यक्रमों के बीच विज्ञापन नहीं दिखाए जाएंगे। 'साम्यवादी संस्कृति' लागू करने की गरज से यह फरमान जारी किया गया है। यह किस मर्ज का नाम है, यह तो सरकार ने साफ नहीं किया, पर टेलीविजन स्टेशनों को यह जरूर साफ हो गया कि इससे उनकी पैसे की आमद खत्म हो जाएगी। चीन के रेडियो, फिल्म और टेलीविजन प्रशासन के हवाले से कहा गया है कि पार्टी की केन्द्रीय समिति ने 'संस्कृति की ओर नए रवैए' की जो लीक डाली है, उसी पर चलते हुए यह नियम लागू किया गया है। प्रशासन के प्रवक्ता के अनुसार, आगे चलकर यह कदम टीवी नाटकों को एक वैज्ञानिक और स्वस्थ रवैया विकसित करने में मदद करेगा। चीन में विज्ञापन उद्योग करीब 78 अरब डालर का है। टेलीविजन स्टेशनों के मालिकों की नए फरमान से नींद उड़ी हुई है, पर उधर टेलीविजन देखने वाले घर-परिवार के लोग खुश हैं कि चलो, बीच में अब रोक-टोक से छुट्टी। जबकि भारत में तो टीवी धारावाहिक शायद पैसा कमाने के लिए ही दिखाए जाते हैं। सास ने एक घुड़की दिखाई नहीं कि ठोक दिए पन्द्रह ठो विज्ञापन। हर तीन मिनट की कहानी के बाद 8 मिनट बस साबुन, तेल, शैम्पू, टायर, बीमा, रंग-रोगन, कार-वार या तीज-त्योहार के नाम पर 'थोड़ा मुंह मीठा हो जाए'।
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