सम्पादकीय
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सम्पादकीय
बल्देव भाई शर्मा
अभी सर्दी ठीक से पड़नी भी शुरू नहीं हुई, लेकिन कोहरे ने रेल के पहियों को थाम सा लिया है और रेल यात्रियों पर मानो आफत आ गई है। राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनें भी घंटों विलम्ब से चल रही हैं। अन्य कई प्रमुख ट्रेनें तो 18 से 30 घंटे तक विलम्बित हैं। सुबह की गाड़ी रात को गंतव्य पर पहुंच रही है। दर्जनों गाड़ियां रोज रद्द हो रही हैं। स्टेशनों पर प्रतीक्षा कर रहे यात्रियों का बुरा हाल है जिनमें बुजुर्ग, बच्चे और महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ रही है। लेकिन रेलवे की तरफ से कोई आश्वस्तकारी व्यवस्था दिखाई नहीं दे रही जिससे कोहरे में गाड़ियों का सुचारू संचालन किया जा सके। संरक्षा और सुरक्षा का दावा करने वाली रेलवे यात्रियों की सुरक्षित यात्रा में भी किस तरह विफल हो रही है, 22 व 23 नवम्बर के दरम्यान 24 घंटों में ही 3 रेल दुर्घटनाएं हो जाना इसका प्रमाण है, जिनमें 7 यात्री जिंदा जल गए और दो दर्जन से ज्यादा घायल हो गए। 21 नवम्बर को देर रात हावड़ा से देहरादून जा रही देहरादून एक्सप्रेस के वातानुकूलित कोच में लगी आग यात्रियों का काल बन गई, इसमें रेलवे अधिकारियों की लापरवाही सामने आ रही है, क्योंकि इस गाड़ी के यात्रियों ने पूर्व में ही गाड़ी में शार्ट सर्किट होने की सूचना दी थी, लेकिन रेल प्रबंधन ने समय रहते न तो उसकी जांच की और न शिकायत पर ध्यान दिया अन्यथा असमय काल का ग्रास बने यात्रियों की जान लेने वाली इस दुर्घटना से बचा जा सकता था। रेल महानिदेशक ने भी इस लापरवाही को ही दुर्घटना का कारण माना है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि शुरुआती जांच में धनबाद में ही कोच में आग लगने की बात सामने आई है, स्टेशन मास्टर को इसकी सूचना दिए जाने के बाद भी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया और कह दिया कि अगले स्टेशन पर देखा जाएगा। दूसरी ओर, रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी इसे अराजक तत्वों की करतूत बता रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि वह रेल विभाग की लापरवाही को नकार रहे हैं। जब रेल मंत्री ही रेल दुर्घटनाओं के प्रति गंभीर न हों तो रेल भगवान भरोसे ही चलेगी।
उधर, 24 घंटों के अंदर ही जम्मू-कश्मीर व उड़ीसा में भी दो गाड़ियां दुर्घटनाग्रस्त हो गईं। ये दोनों ही दुर्घटनाएं मानवीय भूल यानी अचानक ब्रेक लगाने व सिग्नल का उल्लंघन किए जाने से हुईं, जिनमें क्रमश: 20 व 4 लोग घायल हो गए। आखिर रेल मंत्रालय कब तक यात्रियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ता रहेगा? वह न तो रेल बजट के समय बड़ी-बड़ी परियोजनाएं घोषित कर उन्हें पूरा करने के प्रति गंभीर है और न यात्रियों की सुरक्षा के लिए। इतना ही नहीं, तो रेलयात्रियों के खानपान की भी व्यवस्था व गुणवत्ता इतनी खराब है कि रेलवे की संसदीय सलाहकार समिति से जुड़े सांसदों ने रेल मंत्री से अपनी नाराजगी प्रकट की है और कहा कि रेलवे का खाना अभी भी ठीक नहीं है, मंत्रालय अपना वादा निभाने में नाकाम रहा है। उल्लेखनीय है कि 2010 की नई खानपान नीति के अंतर्गत ट्रेनों व स्टेशनों पर खानपान की व्यवस्था रेलवे ने स्वयं अपने हाथों में ले ली है। दरअसल रेल मंत्रालय राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है और जिम्मेदारियों के लिए न तो रेल मंत्री प्रतिबद्ध हैं, न संप्रग सरकार। प्रधानमंत्री गठबंधन के दलों को खुश रखकर अपनी सरकार चलाए रखने में ही अपनी काबिलियत मान रहे हैं। यही कारण है कि ममता बनर्जी के कोप से बचने के लिए तृणमूल कांग्रेस को रेल मंत्रालय सौंपा हुआ है, जिसका दायरा पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने व चलाने से बाहर जा ही नहीं पाता। जब स्वयं ममता बनर्जी रेल मंत्री थीं तो कोलकाता से ही रेल मंत्रालय चलाते हुए वह राज्य की राजनीति में संलग्न रहीं और जब वहां उनकी सरकार बन गई तो भी जिद करके रेल मंत्रालय अपनी पार्टी के पास ही रखा। यह पूरा दौर अनगिनत दुर्घटनाओं व रेल प्रबंधन की खामियों के लिए जाना जाता है। इससे पूर्व संप्रग-1 के कार्यकाल में लालू यादव ने रेल मंत्रालय को जिस लापरवाही से चलाया, उसका खामियाजा रेलवे अभी तक भुगत रही है कि उसके पास कर्मचारियों को वेतन देने के भी पैसे नहीं हैं। रेलवे में करीब ढाई लाख पद खाली पड़े हैं। रेलवे को जब तक राजनीति के इस खेल से बाहर नहीं निकाला जाएगा तब तक यात्रियों की जिंदगी और सुविधाओं से इसी तरह खिलवाड़ होती रहेगी।
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