सेर को सवा सेर
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

सेर को सवा सेर

by
Nov 18, 2011, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

बाल मन

दिंनाक: 18 Nov 2011 17:17:16

बाल कहानी

कुमुद कुमार

 

शीत ऋतु प्रारंभ होने को थी। मौसम सुहावना था। हरित वन के प्राणी इस सुहावने मौसम का आनन्द ले रहे थे। कूची बंदर पेड़ पर अठखेलियां करने में मस्त था। झब्बू भालू मजे से दिवास्वप्नों में खोया हुआ था। रिम्मी गिलहरी के बच्चे चन्दू और नन्दू पेड़ के तनों पर पकड़म-पकड़ाई का खेल खेल रहे थे। हाथी दादा अपने झुण्ड के साथ ताजे रसीले गन्नों की तलाश में निकले हुए थे। हरित वन का प्रत्येक प्राणी खुश था, मस्त था।

चतुर लोमड़ी और रुप्पी हिरणी की दोस्ती पूरे हरित वन में प्रसिद्ध थी। यद्यपि रुप्पी भोली-भाली थी और चतुर लोमड़ी अत्यधिक चालाक थी फिर भी उन दोनों की दोस्ती पक्की थी। कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता था जब एक-दूसरे का हालचाल जानने के लिए वे एक-दूसरे से न मिलती हों। ऐसे सुहावने मौसम में रुप्पी हिरणी घूमने निकली। लेकिन उसे घूमते-घूमते यह ध्यान ही नहीं रहा कि वह कितनी आगे निकल गयी है।

तभी उसे शिकारी कुत्तों के भौंकने की तेज आवाज सुनाई दी। कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनकर रुप्पी के कान खड़े हो गए। वह अपनी जान बचाने के लिए वहां से सरपट भागी। लेकिन शिकारी कुत्तों ने रुप्पी हिरणी को भागते हुए देख लिया। वे उसका शिकार करने के लिए तेजी से उसके पीछे भागे। यद्यपि रुप्पी काफी तेज भाग रही थी फिर भी शिकारी कुत्तों ने उसका पीछा करना नहीं छोड़ा।

भागते-भागते रुप्पी हिरणी को एक तरकीब सूझी। वह उस तरफ दौड़ी जिधर चतुर लोमड़ी रहती थी। वह जानती थी कि इस मुसीबत से यदि कोई छुटकारा दिला सकता है तो वह उसकी प्रिय दोस्त चतुर लोमड़ी ही है।

जैसे ही रुप्पी हिरणी वहां पहुंची तो चतुर लोमड़ी ने देखा कि रुप्पी तो भारी मुसीबत में फंसी है। उसके पीछे तो शिकारी कुत्ते पड़े हैं। उसने रुप्पी हिरणी को शिकारी कुत्तों से बचाने को तुरंत निर्णय लिया। आखिर मुसीबत के समय एक मित्र दूसरे मित्र के काम न आये तो फिर वह मित्र कैसा। इसलिए चतुर लोमड़ी जानबूझकर अपने जीवन की चिन्ता न करते हुए रुप्पी हिरणी और शिकारी कुत्तों के बीच में आ गयी। उसकी इस हरकत से शिकारी कुत्तों का ध्यान बंट गया। वे समझ नहीं पा रहे थे कि रुप्पी हिरणी का पीछा करें कि चतुर लोमड़ी का। शिकारी कुत्तों का ध्यान भंग होने से रुप्पी को वहां से निकल भागने का समय मिल गया।

अब शिकारी कुत्तों के पास यही विकल्प बचा था कि वे चतुर लोमड़ी का ही पीछा करें। लेकिन चतुर लोमड़ी उनके काबू में कहां आने वाली थी। वह कभी झाड़ियों के पीछे छुप जाती, कभी किसी गड्ढे में दुबक कर बैठ जाती। वह शिकारी कुत्तों को चकमे पर चकमा दे रही थी। उसे पता था कि उसे क्या करना है। वह उन कुत्तों को खूब परेशान कर देना चाहती थी। शिकारी कुत्ते जितने उसके चकमों से परेशान होते उनका गुस्सा उतना ही बढ़ता जाता।

जब शिकारी कुत्ते चतुर लोमड़ी का पीछा करते-करते बहुत परेशान हो गये तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। अब चतुर लोमड़ी ने होशियारी से काम लेते हुए जंगल के राजा खूंखार शेर की मांद की ओर दौड़ लगानी शुरू की। शिकारी कुत्ते तो अपने तेज गुस्से के कारण सब कुछ भूल चुके थे। वे तो अन्धे होकर चतुर लोमड़ी का पीछा कर रहे थे। उन्हें यह भी ध्यान न रहा कि वे चतुर लोमड़ी का पीछा करते-करते कहां पहुंच गये हैं।

खूंखार शेर की मांद के निकट पहुंचकर चतुर लोमड़ी तो झाड़ियों में छुप गयी, जबकि शिकारी कुत्ते मांद के सामने आ गये। जब खूंखार शेर ने अपनी मांद के सामने शिकारी कुत्तों को खड़े देखा तो वह क्रोध से आग बबूला हो गया। उसने ऐसे जोर से दहाड़ लगायी कि शिकारी कुत्तों की  सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। वे एक-दूसरे के ऊपर गिरते-पड़ते अपनी जान बचाकर वहां से भागे। चतुर लोमड़ी झाड़ियों के पीछे छिपी सारा दृश्य देख रही थी। वह मन ही मन बुदबुदायी- “अब मिला सेर को सवा सेर।” इसके बाद फिर कभी शिकारी कुत्ते हरित वन में दिखायी नहीं दिये। किसी ने सही कहा है कि जो काम ताकत से नहीं बनते वे जरा सी होशियारी से बन जाते हैं। द

 

बच्चों का सलोना पक्षी मयूर

 बनवारी लाल ऊमर वैश्य

मयूर विधाता की अनुपम रचना है। इस पक्षी के पीछे संस्कृति, सभ्यता, पौराणिक कथाएं और इतिहास जुड़ा हुआ है। मयूर वर्षा, हरियाली और पर्यावरण का वाहक है। यह वनों का नटराज है। इनका मनोहर और नयनाभिराम नृत्य शंकर का ताण्डव है। किसानों का मित्र और सर्पों का शत्रु है। आकाश में उमड़ते और गरजते बादलों को देखकर मयूर उसी प्रकार नाचने लगते हैं जिस प्रकार राजपूत सैनिक तुर्कों के सैन्य दल और ललकार को सुनकर प्रतिशोध में झूमने लगते थे। यह बच्चों का सलोना पक्षी है। यह वीर पक्षी है।

देव पक्षी

मयूर देवपक्षी है। मन्दिरों,मठों और चैत्य गृहों में इसकी कला कृतियां उकेरी रहती हैं। दक्षिण पूर्व एशिया के हिन्दू मन्दिरों की भित्तियों पर इनकी मूर्ति एवं चित्रों का अंकन किया जाता है। यह उन मन्दिरों का मरुनगण यानी देव मयूर कहलाता है। यह इन्द्र पक्षी है। एक बार आकाश में विमान में बैठे रावण को देखकर इन्द्र मयूर बन गए थे। तारकासुर संग्राम में देव सेनापति स्कन्द कार्तिक ने मयूर को वाहन के रूप में प्रयोग किया था। यूनानी आकाश देवी और देवेन्द्र जुपितर की रानी हेरा की यह प्रिय सवारी है। एक बार एक देवांगना मयूर के वेश में अपने प्रिय देव से मिलती-जुलती थी। श्रीकृष्ण के मुकुट को मयूर मुकुट कहते हैं। उन्होंने मयूर नृत्य का प्रदर्शन कर गोपी ग्वाल और गोप बच्चों का मनोरंजन किया था। राजपूत काल में इसे देव पक्षी मानकर महलों में रखा जाता था।

सृष्टि के विकास में योगदान

यूनानी कथा के अनुसार इस धरती पर देवता ही देवता रहा करते थे। धीरे-धीरे ईष्र्या- द्वेष, क्रोध, कलह आदि बुराइयां आकर धरती के शांत पर्यावरण में खलल डालने लगी थीं। अन्त में देवों ने इन बुराइयों पर काबू पा लिया जिन्हें पकड़ कर उन्हें मयूर के पंखों पर चित्रित किया। मयूरों के पंखों पर जो काला रंग है वह ईष्र्या -द्वेष- कलह- क्रोध का है। हरा रंग द्रोह भावना का है। मयूर सृष्टि के विकास के संग सिमटा रहा। जंगलों में रहने वाली जनजाति नारियां इन्हें देखकर घूंघट कर लेती हैं और उन्हें अपना पुरखा मानती हैं। उड़ीसा की कुछ जनजाति नारियों में ऐसी प्रथा है।

मौर्य शासन में मयूर

मौर्य वंश के लोगों में मयूर पालने की प्रथा थी। इस पक्षी को राष्ट्रीय सम्मान मिला था। मयूर वध निषेध का कानून था। उल्लंघन करने वाले को सजाएं मिलती थीं। मौर्य काल में वनों की भरमार थी। मयूर उन वनों के शासक होते थे। वनवासी मोरपंखी टोपी पहनकर मयूरों के संग होते थे और मोर नाच करते थे। जेत वन में मयूरों का बसेरा था जहां वर्षा प्रवास में महात्मा बुद्ध रहते थे। अपने गुणों और कलात्मक प्रतिभा के कारण मयूर भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित है। वन विभाग इनका संरक्षण करता है। पाण्डवों के पास मयूर सिंहासन था।

प्रकृति योद्धा

मयूर कृषि के हानिकारक कीड़ों का भक्षक है। वह स्वतंत्रता का पुजारी है और प्रदूषण का उन्मूलन करता है। वह प्रदूषण फैलाने वाले कृमि समूह को विनष्ट करता है। इनके वीरोचित गुणों में देश के नन्हे-मुन्ने बच्चे देशभक्त और देशरक्षा की प्रेरणा लेते हैं क्योंकि भारत “वीर भोग्या वसुन्धरा” कहा जाता है। विद्यालयों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों  में देश के होनहार बालक मयूर नृत्य की प्रस्तुति देते हैं।द

उल्लू

दिनभर दुबका रहता उल्लू,

रात कुलांचें भरता उल्लू।

सूरज दादा उससे डरते,

ऐसा समझा करता उल्लू।

काला बदन तवे के जैसा,

आहट पाकर डरता उल्लू।

लक्ष्मीजी की बना सवारी,

मन ही मन में हंसता उल्लू।

जब शिक्षक पिंटू को डांटे,

मुख से शब्द निकलता उल्लू।

नन्ही बच्ची रटती अक्सर,

मम्मी “उ” से बनता उल्लू।

अगर प्यार से कभी बुलाओ,

साथी प्यारा दिखता उल्लू।

हर प्राणी में कुछ विशेषता,

बात हमेशा कहता उल्लू।

-घमंडीलाल अग्रवाल

बूझो तो जानें

1.         अनपढ़ लोग मुझे न भाते, पढ़े-लिखों से करती प्यार,

            हाथ पकड़कर चलूं तुम्हारा, अब तो बतलाओ मेरा नाम।

2.         लाल-लाल पर खून नहीं, गोल-गोल पर गेंद नहीं,

            आता हूं खाने के काम, झट बूझो तो मेरा नाम।

            3. करता है जो बुद्धि विकास, बिखराता है ज्ञान प्रकाश। 

4.         बड़े सवेरे उठती हूं मैं, सैर गगन की करती हूं मैं,

            आलस-सुस्ती तनिक न करती, हरदम ही कुछ करती हूं मैं।

5.         लगता है वह भोलाभोला, पर है बड़ा आग का गोला

            सब पर रोब जमाए, जोरों की गरमी फैलाए।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies