आवरण कथा
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आवरण कथा
गृह मंत्रालय से संबंधित संसद की स्थाई समिति ने शत्रु सम्पत्ति विधेयक को खारिज करते हुए कहा
अरुण कुमार सिंह
पाञ्चजन्य की रपट का असर
शत्रु सम्पत्ति (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक पूरी तरह उन लोगों के वारिसों को लाभ पहुंचा रहा था, जो लोग विभाजन के समय भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे। इससे देश के अनेक भागों, विशेषकर उत्तर प्रदेश (जहां सबसे अधिक शत्रु सम्पत्ति है) में लाखों लोग प्रभावित होते। सोनिया-मनमोहन सरकार की इस करतूत को सबसे पहले आम आदमी और सांसदों तक ले जाने में पाञ्चजन्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 29 अगस्त, 2010 के अंक में शत्रु सम्पत्ति विधेयक पर एक विस्तृत रपट प्रकाशित की गई। भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने इस रपट की छायाप्रतियां बड़ी संख्या में सांसदों के बीच बंटवाई थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि जब शत्रु सम्पत्ति विधेयक का संशोधित रूप संसद में रखा गया तो सांसदों ने उसका जोरदार विरोध किया। संसद के बाहर भी इस विधेयक के खिलाफ संगोष्ठियां हुईं। विरोध के ऊंचे स्वर को देखते हुए ही इस विधेयक को संसद की स्थाई समिति को सौंपा गया था। अब परिणाम सामने है।द
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए सोनिया-मनमोहन सरकार ने शत्रु सम्पत्ति (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक के रूप में जो जाल फेंका था, फिलहाल वह जाल कट गया है। इस कारण उन लाखों लोगों ने राहत की सांस ली है, जिनके मकान-दुकान शत्रु सम्पत्ति के नाम पर जबर्दस्ती छीने जा रहे थे। इस जाल को काटा है केन्द्रीय गृह मंत्रालय से संबंधित संसद की एक स्थायी समिति ने। समिति ने शत्रु सम्पत्ति विधेयक को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया है। समिति ने यह भी कहा है कि सरकार उसके सुझावों के अनुसार इस विधेयक की जगह एक नया विधेयक लाए। समिति ने अपनी रपट 3 नवम्बर को राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को सौंप दी है। वरिष्ठ भाजपा नेता श्री वेंकैया नायडू की अध्यक्षता वाली इस समिति में राज्यसभा के 9 और लोकसभा के 21 सदस्य शामिल थे। इनमें कांग्रेस के 10, भाजपा के 7, माकपा के 2, राकांपा, तृणमूल कांग्रेस, भाकपा, बसपा और अन्नाद्रमुक के 1-1 सदस्य, 1 मनोनीत, 1 निर्दलीय और कुछ अन्य सांसद थे।
समिति ने शत्रु सम्पत्ति विधेयक को विभाजन के समय पाकिस्तान गए लोगों के वारिसों की तरफ झुकाव वाला बताते हुए कहा है कि हजारों करोड़ रुपए की शत्रु सम्पत्ति, उन लोगों को नहीं मिलनी चाहिए, जिनका उस पर कानूनन अधिकार नहीं है। समिति ने भारत सरकार की उस दलील को भी नहीं माना, जिसमें कहा गया था कि विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए लोगों की सम्पत्ति पर उनके उत्तराधिकारियों के अधिकार को उच्चतम न्यायालय ने मान्यता दे दी है। समिति ने साफ कहा है कि जो लोग हिन्दुस्थान छोड़कर पाकिस्तान चले गए यहां उनकी सम्पत्ति पर उनका हक समाप्त हो चुका है। न्यायालयों ने ऐसी सम्पत्तियों पर मौजूदा अधिकार वालों के अधिकार को कम किया है, जिसे बहाल किया जाना चाहिए।
समिति की इन सिफारिशों से केन्द्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम और कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को सबसे अधिक धक्का लगा है। मालूम हो कि ये दोनों शत्रु सम्पत्ति विधेयक के सबसे बड़े हिमायती थे। हिमायती इसलिए नहीं थे कि इससे भारत का हित सध रहा था, बल्कि इसलिए थे कि इससे उनके मुव्वकिल अमीर मोहम्मद खान को अपनी पैत्तृक सम्पत्ति वापस मिल रही थी। पी. चिदम्बरम और सलमान खुर्शीद सर्वोच्च न्यायालय में अमीर मोहम्मद खान के वकील रह चुके हैं। इन दोनों ने सर्वोच्च न्यायालय में अमीर मोहम्मद खान के मामले की वकालत की और न्यायालय ने खान के पक्ष में निर्णय दिया था। इसके बाद जो परिस्थितियां बनीं वे खान के विपरीत जा रही थीं। इसलिए शत्रु सम्पत्ति विधेयक का जाल फेंका गया।
विभाजन के समय बड़ी संख्या में लोग भारत से पाकिस्तान गए थे। यहां छूटी उनकी सम्पत्ति को 1968 में एक कानून बनाकर शत्रु सम्पत्ति घोषित किया गया था। शत्रु सम्पत्ति अधिनियम 1968 और सरकारी स्थान (अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली) अधिनियम 1971 के अनुसार यह सम्पत्ति पाकिस्तान गए लोगों के भारतीय वारिसों को भी नहीं दी जा सकती है। किन्तु जिस देश में सरकार चलाने वाले ही शत्रु सम्पत्ति की मांग करने वालों की ओर से मुकदमा लड़ेंगे तो वहां कुछ भी हो सकता है। वकील बुद्धि कोई न कोई छेद खोज ही लेती है। यही हुआ था अमीर मोहम्मद खान के मामले में। ये महमूदाबाद (उ.प्र.) के राजा अली खान के बेटे हैं। विभाजन के समय अली खान सपरिवार पाकिस्तान चले गए थे। वहां से वे ब्रिटेन जा बसे और वहीं उनकी मौत हो गई थी। इधर उनकी सम्पत्ति को भारत सरकार ने शत्रु सम्पत्ति घोषित कर अपने अधीन ले लिया। किन्तु बाद में अमीर मोहम्मद खान (जो पाकिस्तानी नागरिक हो चुके थे) भारत लौट आये और अपनी पैत्तृक सम्पत्ति पाने के लिए हाथ-पैर मारने लगे। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा और न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय दिया। इस निर्णय से भारत सरकार को उनकी पैत्तृक सम्पत्ति (लगभग 30,000 करोड़ रु.) लौटानी पड़ती। इससे हजारों लोग प्रभावित होते। किसी का घर उजड़ जाता, किसी की रोजी-रोटी मारी जाती। कई सरकारी दफ्तरों के लिए जगह खोजनी पड़ती। इसलिए राष्ट्रपति ने 2 जुलाई, 2010 को शत्रु सम्पत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण) अध्यादेश जारी किया। इस अध्यादेश के बाद किसी को भी शत्रु सम्पत्ति वापस नहीं की जा सकती थी। फिर इस अध्यादेश को कानून में बदलने के लिए 2 अगस्त, 2010 को संसद में शत्रु सम्पत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक-2010 प्रस्तुत किया गया। इस विधेयक का अधिकांश राजनीतिक दलों के मुस्लिम सांसदों ने जबर्दस्त विरोध किया। इसलिए इस विधेयक पर आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस कारण एक समय-सीमा के बाद अध्यादेश भी निष्प्रभावी हो गया। सरकार ने घोषणा की कि वह इस मामले पर दूसरा विधेयक लाएगी। पहले विधेयक के कई प्रावधानों को संशोधित कर दूसरा विधेयक तैयार किया गया और इसे 15 नवम्बर, 2010 को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया। किन्तु इस दूसरे विधेयक से अमीर मोहम्मद खान जैसे लोगों को फायदा और भारतीय हित प्रभावित हो रहे थे।
समिति ने राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश को स्वत: समाप्त होने देने और दूसरा विधेयक लाए जाने के मामले को बड़ी गंभीरता से लिया। समिति ने गृह मंत्रालय से यह जानने की भी कोशिश की कि आखिर क्या कारण थे कि अध्यादेश को रद्द होने दिया गया और दूसरा विधेयक लाया गया? केन्द्रीय गृह सचिव के जवाबों से समिति सन्तुष्ट नहीं हुई। समिति ने यह टिप्पणी भी की कि सरकार दूसरे विधेयक के जरिए क्या प्राप्त करना चाहती है?
दरअसल, कांग्रेस इस दूसरे विधेयक के जरिए मुसलमानों का वोट प्राप्त करना चाहती थी, भले ही इसके कारण भारतीय हित प्रभावित होते हों। इस समय पूरे देश में कुल 2186 शत्रु सम्पत्तियां हैं। इनमें सबसे अधिक उ.प्र. में 1468। इसके बाद पश्चिम बंगाल में 351, दिल्ली में 66, गुजरात में 63, बिहार में 40, गोवा में 35, म.प्र. में 29, महाराष्ट्र में 25, केरल में 24, आं.प्र. में 21 और अन्य राज्यों में 64। इन सम्पत्तियों पर पाकिस्तान गए लोगों के नाते-रिश्तेदार दावा ठोंक रहे हैं। ऐसे लोग फर्जी कागज के आधार पर अपने को भारतीय नागरिक बताते हैं और अपने कथित पुरखों की सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं। ऐसे सैकड़ों मामले देश के कई उच्च न्यायालयों में लम्बित हैं। वेंकैया नायडू की अध्यक्षता वाली समिति ने जैसी सिफारिशें की हैं, यदि उनको ध्यान में रखकर कोई कानून बनाया जाए तो शत्रु सम्पत्ति का मामला ही सदा के लिए दफन हो जाएगा। किन्तु इस सरकार के रवैये को देखकर ऐसा नहीं लगता कि शत्रु सम्पत्ति के संबंध में कोई कड़ा कानून बनेगा। द
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