इमरान का जहरीला बयान
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मुजफ्फर हुसैन
पिछले दिनों प्रशांत भूषण जैसे अवसरवादियों ने अन्ना का समर्थन करके अपनी दागदार कमीज को धोने का प्रयास किया। सफलता के इस नशे में प्रशांत भूषण इतने चूर हो गए कि अपना असली चेहरा छिपाने से भी उन्हें परहेज नहीं रहा। अपनी पाकिस्तान-परस्त सोच को उन्होंने उजागर कर दिया। उन्होंने कहा कश्मीर में जनमत संग्रह होना चाहिए। यह भी कहा कि भारतीय सेना को कश्मीर से हटा लिया जाना चाहिए। प्रशांत भूषण के बयान को भुनाने में पाकिस्तानी नेता भला देर क्यों करते? पाकिस्तान के छोटे-बड़े सभी नेता बिलों से निकल आए और प्रशांत भूषण की प्रशंसा करने लगे। कश्मीर का राग फिर से गाने वाले तम्बूरा लेकर एकत्रित हो गए। अब पाकिस्तानी मीडिया इस बात को उछाल रहा है कि कश्मीर पाकिस्तान का अंग है। इसलिए उसका विलय पाकिस्तान में कर दिया जाना चाहिए। जनमत संग्रह की बातें फिर से ताजा हो गई हैं। प्रशांत भूषण के गुणगान किए जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि भारत में अब भी कुछ ईमानदार लोग शेष हैं, जो समय-समय पर यह मांग करते हैं कि कश्मीर से भारत को अपनी सेना हटा लेनी चाहिए। कश्मीर के सत्ताधारी और अलगाववादी नेता यह मांग करें तब तो बात समझ में आ सकती है। लेकिन प्रशांत भूषण जैसे लोग भी आग में घी डालने से हिचकते नहीं हैं।
लम्बी सोच
प्रशांत भूषण ने ज्यों ही गोला दागा कि इमरान खान बाहर निकल आए। क्रिकेट की पिच की तरह कश्मीर को भी समझा और अपना फतवा देने में तनिक भी विलम्ब नहीं किया। कश्मीर का राग उन्होंने क्यों छेड़ा इसके पीछे इमरान की एक लम्बी सोच है। पाकिस्तान में 2013 में आम चुनाव होने हैं। इमरान पिछले कुछ समय से पाकिस्तान के पंजाब में अपनी स्थिति मजबूत करने में लगे हुए हैं। इसलिए पिछले दिनों उन्होंने लाहौर के ऐतिहासिक मीनारे पाकिस्तान के नजदीक एक विशाल रैली आयोजित की। इसमें लगभग एक लाख लोगों की भीड़ जुटने की खबर है। इस रैली में भ्रष्टाचार और पाकिस्तान की भीतरी समस्याओं पर जहां 50 मिनट तक इमरान खान ने जनता को सम्बोधित किया, वहीं कश्मीर के भावनात्मक मुद्दे को उठाकर यह सिद्ध कर दिया कि पाकिस्तान में चुनाव जीतने और सरकार बनाने के लिए सबसे आसान मार्ग कश्मीर के मुद्दे को जनता के सम्मुख प्रस्तुत करना है। इमरान ने कहा कि मैं भारत को बता देना चाहता हूं कि कश्मीर में सात लाख फौजी तैनात करके तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि कोई भी सेना किसी भी देश की समस्या का समाधान नहीं कर सकी है। इमरान ने सवाल कि क्या अमरीका अपनी सैनिक शक्ति से अफगानिस्तान के हौसले पस्त कर सका है? क्या भारतीय सेना अमरीकी सेना से भी अधिक शक्तिशाली है? क्या हिन्दुस्थान सात लाख फौजियों के दम पर सफल हो सकता है? यदि अमरीका अपनी सेना के बूते पर सफल नहीं हो सकता है, तो क्या भारत सफल होगा? उसके पीछे असली रहस्य क्या है?
प्रशांत भूषण की बात को दोहरा कर उन्होंने भले ही पाकिस्तान की जनता को भावुक बना दिया हो, लेकिन उसमें यथार्थ कितना है यह वे स्वयं भी जानते हैं और पाकिस्तान की जनता भी। पाकिस्तान कुछ भी कर ले उसे कश्मीर न तो भूतकाल में मिला है और न ही भविष्य में मिलेगा। असलियत तो यह है कि कश्मीर के जिस हिस्से पर उसने कब्जा कर रखा है वह भी उसके पास कितने समय तक रहेगा यह वह भलीभांति जानता है। भारत से इतनी कट्टर दुश्मनी है कि कश्मीर के इस अंग को वह चाहे चीन के हवाले कर देने का सपना संजो रहा हो, लेकिन दुनिया की राजनीति में जिस प्रकार के बदलाव आ रहे हैं उसके तहत तो पाकिस्तान को असलियत समझनी ही होगी। पाकिस्तान के अधिकांश लोग इस यथार्थ को जानते हैं। लेकिन भारत में प्रशांत भूषण जैसे लोग भी हैं, जो समय-समय पर पाकिस्तान को कश्मीर की याद दिला ही देते हैं। भारत भली प्रकार जानता है कि जब तक सम्पूर्ण कश्मीर उसे नहीं मिल जाता है उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमाएं सुरक्षित नहीं रह सकती हैं। इमरान खान के मन-मस्तिष्क में कश्मीर के लिए भारत विरोधी हंडिया तो बहुत पहले से ही पक रही थी, लेकिन प्रशांत भूषण ने उन्हें अवसर जुटाकर उनका काम सरल कर दिया।
अमरीकी सपना
इमरान तो क्या पाकिस्तान का हर राजनीतिक दल कश्मीर के नाम पर भारत का विरोध दर्शा कर अपना वोट बैंक यथावत रखना चाहता है। इसलिए 2013 के आम चुनाव को जीतने के लिए इमरान खान ने अपनी बांग लगा दी। 2013 का आम चुनाव इमरान खान अकेले नहीं लड़ने वाले हैं, बल्कि उनकी सांठ-गांठ पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से बहुत पहले ही हो चुकी है। मुशर्रफ इन दिनों अमरीका और यूरोप में अपना अघोषित निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। मुशर्रफ अमरीका में रहकर अपनी शक्तिशाली लॉबी के माध्यम से ओबामा सरकार को यह अवगत करवा चुके हैं कि पाकिस्तान में अमरीका का कोई सपना साकार कर सकता तो वे केवल मुशर्रफ ही हैं। ओबामा प्रशासन भी इस बात को भली प्रकार समझ गया है। पाकिस्तान की सेना और सरकार में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो अमरीका के सपने को साकार कर सके। एक समय था कि अमरीका ने बेनजीर को पाकिस्तान भेजा था। अब फिर समय आ गया है कि अमरीका अपने किसी मोहरे को इस्लामाबाद में तख्तनशीन कर दे। मुशर्रफ के समर्थन में सेना भी है और पाकिस्तान प्रशासन के अधिकारी भी। पाकिस्तान के मुल्ला और आतंकवादियों को कोई ठीक कर सकता है तो केवल मुशर्रफ कर सकते हैं। लेकिन मुशर्रफ को सहायता करने वाला कोई नेता पाकिस्तान में होना चाहिए। इसलिए इमरान खान को इसके लिए तैयार किया गया है। इमरान के लिए इससे बढ़कर कोई और सहारा कौन हो सकता है? इसलिए इमरान अब पाकिस्तान में मुशर्रफ के लिए जमीन तैयार करने में जुट गए हैं। इस सम्बंध में 19 अक्तूबर को डेलिस टेक्सास में प्रकाशित समाचार सारी स्थिति को स्पष्ट कर देता है। पत्र लिखता है कि पाकिस्तान तहरीके इनसाफ के नेता इमरान खान और पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बीच भविष्य में होने वाले आम चुनाव के सम्बंध में सकारात्मक बातचीत हुई है, जिसमें अमरीकी रियासत टेक्सास के नगर पेरिस के मेयर और पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के अंतरंग मित्र डा. अरजुमंद हाशिमी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि इमरान खान पिछले दिनों अपनी पार्टी के जलसे में शामिल होने के लिए डेलिस आए थे। सभा के पश्चात् वे डा. जई के साथ डा. अरजुमंद के घर गए थे, जहां उन्हें भोज पर आमंत्रित किया गया था। इमरान ने रात्रि विश्राम उन्हीं के घर किया। अरजुमंद हाशिमी ने भी इन दोनों नेताओं के बीच लम्बी वार्ता करने की बात को स्वीकार किया है। बातचीत किस मुद्दे पर हुई यह स्पष्ट नहीं किया गया। लेकिन निकतवर्ती सूत्रों का कहना है कि 2013 में होने वाले आम चुनाव के सम्बंध में इनके बीच कोई समझौता हो गया है।
चुनावी कसरत
पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ पिछले कुछ समय से अमरीका में हैं। वे अपनी लॉबिग पर 25000 डॉलर खर्च करने का अनुबंध कर चुके हैं। अमरीका में रहकर मुशर्रफ आने वाले चुनाव में भाग लेने के लिए अपना रास्ता साफ करेंगे। इमरान खान पाकिस्तान में मुशर्रफ के चुनाव में भाग लेने पर उनको सहायता देंगे। मुशर्रफ बहुत पहले ही कह चुके हैं कि वे पाकिस्तान शीघ्र लौटेंगे और 2013 के आम चुनाव में भाग लेंगे। इस प्रकार मुशर्रफ की मुस्लिम लीग और इमरान खान की तहरीके इनसाफ के बीच समझौता हो जाएगा।
इमरान खान ने 15 वर्ष पूर्व पाकिस्तान तहरीके इनसाफ पार्टी का गठन किया था। उन्हें पाक की जनता ने क्रिकेटर के रूप में अवश्य स्वीकार किया है। लेकिन राजनेता के रूप में बिल्कुल नहीं। 15 अप्रैल, 1996 को उन्होंने अपनी तहरीके इनसाफ पार्टी से सात बैठकों पर चुनाव लड़ा लेकिन वे किसी एक पर भी सफल नहीं हुए। 2002 के आम चुनाव में उनकी पार्टी फिर बुरी तरह से हार गई। खुशखबरी यह थी कि इमरान मियांवाली सीट से चुनाव जीत गए। 2008 में जब चुनाव हुए तो इमरान की पार्टी ने चुनावों का बहिष्कार किया। इस प्रकार उनकी लाज बच गई। अब जबकि 2013 में आम चुनाव होंगे तो उनकी पार्टी कितनी सफल होगी, यह समय ही बताएगा। यदि परवेज मुशर्रफ की पीठ अमरीका ने थपथपाई तब तो बात बन सकती है, वरना फिर से उन्हें निराश होना पड़ेगा। इस समय तो ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि मुशर्रफ 2013 में राष्ट्रपति बनेंगे और इमरान प्रधानमंत्री। इसलिए इमरान खान ने अभी से कश्मीर का मुद्दा उछालकर अपनी चुनावी कसरत शुरू कर दी है।
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