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नागपुर में 'विश्व, भारत और हम' पर व्याख्यान
-मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, रा.स्व.संघ
सुषमा पाचपोर
'अपने देश के नेतृत्व में राष्ट्रीय दृष्टि का अभाव तथा सामान्य जनों में अपनी राष्ट्रीयअस्मिता और देशात्मबोध का सही आकलन न होना आज भारत को विश्व का नेतृत्व करने से वंचित कर रहा है।' उक्त उद्गार रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने गत दिनों उत्तर नागपुर में भारतीय विचार मंच के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। 'विश्व, भारत और हम' विषय पर सम्पन्न हुए व्याख्यान में श्री भागवत को सुनने के लिए बौद्ध, सिंधी, पंजाबी तथा मुस्लिम समाज के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित हुए।
श्री भागवत ने आगे कहा कि आज भारतीय विचार की हम, हमारे देश तथा विश्व को भी आवश्यकता अनुभव होती है। भारत अपना मार्ग स्वयं तय करे तथा उसका आधार भारतीय विचार एवं चिंतन होना चाहिए, लेकिन ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं देता। उन्होंने कहा कि सामान्य व्यक्ति स्वयं तक विचार करता है, परन्तु मानव अकेला नहीं जीता, दुनिया की सभी बातों और घटनाओं का उस पर प्रभाव पड़ता है। आज विश्व भी प्रगति कर रहा है। विज्ञान से मानव जीवन के कष्ट कम हो रहे हैं। सम्पर्क सुलभ हो गया है। मनुष्यों और देशों में भी सामरिक, सांस्कृतिक, वैचारिक तथा आर्थिक आदान-प्रदान बढ़ गया है। इसके कारण हम एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि जहां एक ओर सुख-सुविधाएं बढ़ी हैं, वहीं दूसरी ओर समस्याएं भी बढ़ती हुई नजर आ रही हैं। स्वार्थ, कट्टरपन, आतंकवाद, अपनी बात को मनवाने के लिए हिंसा का उपयोग करना, विश्व के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना अधिकार जमाने की चेष्टा करना इत्यादि समस्याओं से आज भारत जूझ रहा है।
श्री भागवत ने कहा कि पंथ-सम्प्रदाय के लिए लालच देकर तथा बंदूक की नोक पर दुनियाभर में मतांतरण के प्रयास चल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनुभव हो रहा है कि इन लोगों ने भगवान को भी व्यापार की वस्तु बना दिया है। उन्होंने कहा कि पिछले 2 हजार सालों में मानव को सुख-शांति और समृद्धि मिले इसके बहुत प्रयास हुए पर अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिली इसलिए पश्चिम के विद्वान और चिंतक अब भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दू चिंतन मानता है कि सृष्टि, प्रकृति और मनुष्य का परस्पर संबंध है, जोकि जैविक है। हम सभी जड़-चेतन इस प्रकृति के अंग हैं और उन सबका पोषण करते हुए हमें अपना विकास करना चाहिए। इस प्रकार का विचार, तत्वज्ञान तथा चिंतन भारत में प्राचीन काल से उपलब्ध है, इसलिए दुनियाभर के चिंतक आज भारत के जीवन को इस विचार पर खड़ा होने की राह देख रहे हैं, ताकि आने वाले दिनों में भारत विश्व का मार्गदर्शन कर सके।
भारत की वर्तमान स्थिति का जिक्र करते हुए श्री भागवत ने कहा कि जिन अंग्रेजों के साम्राज्य का कभी सूर्यास्त नहीं होता था, उनको इस देश ने सामान्य व्यक्ति को रास्ते पर उतारकर स्वतंत्रता प्राप्त की। प्रजातंत्र से देश को चलाया। इस प्रजातंत्र के सहारे हमने पिछले 64 सालों में देश को प्रगति के मार्ग पर बढ़ाया। स्वतंत्रता के साथ प्रगति भी की। आज भी लोग यह मानते हैं कि दुनिया को सही रास्ता दिखाने की क्षमता भारत में है। परन्तु आज हमारी स्थिति ठीक नहीं है। हम संकट में हैं। दुनिया के बड़े देश यह जानते हैं कि भारत एक विशाल बाजार है और उस पर हमें अधिकार करना चाहिए। विश्व व्यापार संगठन के जरिए दुनिया के बड़े देश छोटे देशों की अर्थव्यवस्था पर कब्जा करने और उनको नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जैसे उनके ध्यान में आया कि विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से यह संभव नहीं हो सकता तो उन्होंने उसे छोड़कर अपना स्वतंत्र रास्ता अपना लिया है। चीन तथा अमरीका जैसे बड़े देश विश्व बाजार पर अपना अधिकार जमाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।
चीन के मंसूबों के प्रति सावधान करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि चीन ने दुनिया पर अपना प्रभाव जमाने की नीति अपनाई है और वह मानता है कि भारत उसका प्रतिस्पर्धी है। अत: भारत को कमजोर करने की उसकी नीति है। भारत के बाजार में चीनी वस्तुओं का अनियंत्रित प्रवेश इसी नीति का हिस्सा है। भारत में अगर चीन का व्यापार बढ़ा तो भारत का आर्थिक विकास कैसे होगा, यह सोचने का विषय है। सामरिक दृष्टि से भी चीन भारत की घेराबंदी कर रहा है। भारत के सभी पड़ोसी देशों में चीन ने अपनी गहरी पैठ जमाई है। भारत की जमीन पर भी उसने कब्जा जमा रखा है। अरुणाचल प्रदेश पर अपना अधिकार जताने की वह कई बार कोशिश कर चुका है और लगातार कर रहा है।
श्री भागवत ने कहा कि जब देश आजाद हुआ तो कश्मीर पर कबाइलियों का आक्रमण हुआ था। उसके पूर्व ही कश्मीर का भारत में सम्पूर्ण और वैधानिक विलय हो चुका था और वह भारत का अभिन्न अंग बन चुका था। हमें कश्मीर पर हुए आक्रमण का उचित जबाव देकर अपनी भूमि को पुन: स्वाधीन कराना चाहिए था, पर हमारे नेताओं ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर इसको विवादास्पद बना दिया। हमने तिब्बत, जोकि वर्षों से भारत का मित्र है, चीन के हाथों में सरलता से सौंप दिया। सरदार पटेल ने पत्र लिखकर पंडित नेहरू को चीन के उद्देश्यों के प्रति सचेत किया था, परन्तु सरदार पटेल के पत्र की उन्होंने उपेक्षा की, जिसके चलते ऐसा हुआ।
श्री भागवत ने कहा कि दुनिया को ठीक करना है तो पहल अपने से करनी होगी। हम स्वयं को ठीक करें तो विश्व अपने आप ठीक हो जाएगा। भारत के जल, जमीन, जंगल, जानवर, मनुष्य सबके प्रति अपने मन में आत्मीयता का भाव जाग्रत करना पड़ेगा।
कार्यक्रम में मंच पर श्री भागवत के साथ भारतीय विचार मंच, उत्तर नागपुर इकाई के अध्यक्ष डा. सत्यप्रकाश मंगतानी तथा मुख्य अतिथि श्री वज्रबोधी मेश्राम आसीन थे। श्री मेश्राम ने अपने प्रास्ताविक उद्बोधन में कहा कि दुनिया साम्यवाद और पूंजीवाद को परख चुकी है और उससे असंतुष्ट है। अब दुनिया को तीसरे विकल्प की खोज करनी है और इसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।
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