भौतिकता के अंधकार में भारतीय अध्यात्म का दीप
July 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

भौतिकता के अंधकार में भारतीय अध्यात्म का दीप

by
Oct 24, 2011, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

भारतीय अध्यात्म का दीप

दिंनाक: 24 Oct 2011 17:50:28

दयाप्रकाश सिन्हा

अंग्रेजी में एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है- ‘सब सड़कें रोम को ले जाती हैं।” एक समय था जब पूरे यूरोप पर रोमन साम्राज्य का एकछत्र राज्य था। उसकी राजधानी रोम- सभ्यता, साहित्य, कला, संस्कृति एवं सैन्यशक्ति का केन्द्र थी। इसलिए पूरा यूरोप रोम की ओर देखता था और ‘सभी सड़कें रोम की ओर जाती हैं’-ऐसा कहा जाता था। फिर औपनिवेशिक काल में, इंग्लैण्ड ने दुनिया के मानचित्र को लाल रंग में रंग दिया। कहा जाने लगा कि अंग्रेजी राज में सूरज नहीं डूबता है। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात और रूस के विघटन के बाद अब अमरीका ने वही स्थान प्राप्त कर लिया है जो कभी रोम और लंदन का होता था। आज अमरीका विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली देश है।

दूसरी तरफ देखें- आज भारत में बढ़ते पश्चिमी चलन से भारतीय जितना चिन्तित हैं, उससे कई गुना अधिक अमरीका में बढ़ते भारतीय चलन से कट्टरवादी अमरीकी चिन्तित हैं। भारतीय अध्यात्म, दर्शन और योग ने आज पूरे अमरीकी समाज को उद्वेलित कर दिया है। उनकी पारंपरिक आस्थाओं और मान्यताओं को विचलित कर दिया है। केवल पढ़े-लिखे उच्च वर्ग के ही नहीं बल्कि साधारण अमरीकी तक भारतीयता के रंग में इतने रंग गए हैं कि प्रतिष्ठित अमरीकी साप्ताहिक ‘न्यूजवीक” में 15 अगस्त, 2009 को एक लेख छपा, जिसके शीर्षक का हिन्दी में अनुवाद है- ‘हम सब हिन्दू हैं अब।” इस आलेख की लेखिका लिजा मिलर ने लिखा कि ‘अब अमरीका ईसाई राष्ट्र नहीं है।” इस कथन को स्पष्ट करते हुए उन्होंने आगे लिखा कि यह सही है कि अभी भी 76 प्रतिशत अमरीकी अपने आपको ईसाई कहते हैं, किन्तु हाल ही में हुए जनमत संग्रहों के अनुसार उनकी ‘ईश्वर” ‘मनुष्य” और ‘परलोक” की मान्यताएं हिन्दुओं जैसी अधिक हैं, ईसाइयों जैसी कम। हिन्दुओं के ऋगवेद में कहा गया है- सत्य एक है, जिसे विद्वान विविध नामों से पुकारते हैं। इसके विपरीत ईसाई अपने ‘संडे स्कूल” में सीखते हैं कि केवल ईसाई विचार सच्चा है और दूसरे सब मत-पंथ झूठे हैं। सामान्य अमरीकी अब इस ईसाई मान्यता को स्वीकार नहीं करता।

बदला अमरीकी मानस

‘प्यू फोरम” नाम संस्था द्वारा कराए गए जनमत संग्रह के अनुसार 65 प्रतिशत अमरीकी अब यह विश्वास करने लगे हैं कि ‘अनन्त जीवन” (मोक्ष) केवल ईसाई पंथों से ही नहीं, अन्य मत-पंथों से भी प्राप्त किया जा सकता है। वह हिन्दुओं की तरह दूसरे मत-पंथों के प्रति उदार हो गए हैं, और अन्य मत-पंथों की अच्छी बातें स्वीकार करने को उद्यत रहते हैं।

लिजा मिलर आगे लिखती हैं कि मरने के बाद आत्मा और शरीर अलग-अलग हो जाते हैं, और ‘अन्तिम न्याय के दिन” पुन: जोड़ दिए जाते हैं। इस तरह ईसाई मत में मृत शरीर का बहुत महत्व है। हिन्दुओं के अनुसार, मरने के पश्चात आत्मा पुनर्जन्म लेती है और नया शरीर प्राप्त करती है। इस तरह हिन्दू मत में मृत शरीर का कोई उपयोग नहीं है, और वे अन्तिम क्रिया में उसका दाह संस्कार कर देते हैं। सन् 2008 में सम्पन्न ‘हैरिस जनमत संग्रह” के अनुसार 24 प्रतिशत अमरीकी हिन्दुओं की तरह पुनर्जन्म में विश्वास करने लगे हैं, और इसलिए लगभग एक तिहाई अमरीकी मृतक का दाह-संस्कार करने लगे हैं।

‘न्यूजवीक” पत्रिका के जनमत संग्रह के अनुसार, सन् 2005 में 24 प्रतिशत अमरीकी अपने आपको ‘आध्यात्मिक” कहते थे, जो किसी पंथ (मजहब) को नहीं मानते थे। यह संख्या (सन् 2009 में किए गए जनमत संग्रह के अनुसार) बढ़कर 30 हो गई है।

लेखिका के अनुसार, अमरीकी मतान्तरण करके हिन्दू नहीं बन गए हैं, किन्तु अपनी आस्थाओं, विचारों और व्यवहार में हिन्दुओं जैसे हो गए हैं। उनके लेख का समापन वाक्य है- ‘हम सबको ‘ओम” कहना चाहिए।”

अमरीका में आध्यात्मिकता के विस्तार पर दिसम्बर, 2010 में ‘अमरीकन वेद” नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है। इसके लेखक फिलिप गोल्डबर्ग ने पुस्तक सकारात्मक दृष्टिकोण और सहानुभूति से लिखी हैं। उन्होंने पुस्तक के समर्पण वाक्य में लिखा है- ‘पूजनीय ऋषियों, सद्गुरुओं और आचार्यों को समर्पित 400-पृष्ठों की यह पुस्तक  बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले सौ वर्षों में अमरीका में भारतीय अध्यात्म, योग और ध्यान के विस्तार और स्वीकृति का यह एक गहन और शोधपूर्ण दस्तावेज है। यह पुस्तक अमरीकी चिन्तन और मानस में आए क्रान्तिकारी किन्तु सकारात्मक परिवर्तनों का भी विश्लेषण करती है। कैसे और किन मार्गों से भारतीय चिन्तन ने अमरीका में प्रवेश किया, कैसे योग, ध्यान, मंत्र, चक्र, गुरु, कर्म आदि आज उनकी बोलचाल की भाषा में समा गए हैं, कैसे पुनर्जन्म और कर्मफल उनके विश्वास का केन्द्र बन गए हैं- इसका विशद विवेचन इस पुस्तक में है।

स्वामी विवेकानन्द पहले हिन्दू संत थे जो सन् 1893 में अमरीका पहुंचे थे। किन्तु उनके अमरीका पहुंचने के लगभग 80 वर्ष पूर्व ही, हिन्दू विचार और दर्शन का बीज अमरीका की धरती पर स्वत: अंकुरित हो चुका था। वह एक चमत्कार जैसा था। दरअसल ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाज भारत से कच्चा माल, चाय, मसाले आदि अमरीका ले जाते थे। उनके द्वारा कभी-कभी, भारतीय धर्म और दर्शन पर अंग्रेजों द्वारा लिखित और अनुवादित पुस्तकें भी अमरीका पहुंच जाती थीं। इन पुस्तकों को पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जैफरसन और जॉन एडम्स ने पढ़ा और वे भारतीय जीवन-दर्शन के प्रशंसक बन गए। इन पुस्तकों को अमरीकी मनीषा के अग्रगामी, अध्येताओं-एमर्सन, थोरो ओर व्ह्टिमैन ने पढ़ा और इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने भारतीय दर्शन को अपना लिया। उनकी रचनाओं में वेदान्त, पुनर्जन्म, कर्म आदि के संदर्भ और भाव समावेशित हो गए। सन् 1831 में गीता का अनुवाद पढ़कर एमर्सन ने भी लिखा- ‘सब पुस्तकों में यह प्रथम (सर्वश्रेष्ठ) पुस्तक है। ऐसा लगा कि किसी महान साम्राज्य ने हमसे बात की है। कोई छोटी या क्षुद्र बात नहीं, अपितु गंभीर, महान और सार्थक जैसे दूसरे संसार में, दूसरे युग में, किसी ने विचार करके उन प्रश्नों का समाधान दिया हो, जो हमें उलझाते हैं।”

ऋषियों का संदेश

स्वामी विवेकानन्द के पश्चात स्वामी रामतीर्थ, परमहंस योगानन्द, महर्षि महेश योगी, स्वामी भक्ति वेदान्त, स्वामी राम, स्वामी सच्चिदानन्द आदि अनेक गुरुओं और संन्यासियों ने अमरीका की धरती पर भारतीय नवांकुर को सींचकर बड़ा किया। इसके साथ ही योग और आयुर्वेद का भी प्रचार हुआ। एक जनमत संग्रह के अनुसार एक करोड़ साठ लाख अमरीकी नियमित रूप से योगासन करते हैं। वहां योग से सम्बन्धित मासिक पत्रिका ‘योगा जर्नल”, पिछले पैंतीस वर्षों से नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है, जिसकी वितरण संख्या लगभग साढ़े तीन लाख है। भारत में ‘योगा-जर्नल” के स्तर की एक भी पत्रिका प्रकाशित नहीं होती है। योग पर अनेक दूसरी पत्रिकाएं भी हैं, जिनकी वितरण संख्या लाखों में हैं। बड़े नगरों में प्राय: हर गली में ‘योगा-स्टूडियो” मिल जाते हैं। धीरे-धीरे भारतीय जीवन-दृष्टि और धार्मिक अवधारणाएं अमरीकी जीवन में स्थान बना रही हैं।

आज अमरीका में हिन्दू विचार-दर्शन और अध्यात्म की लोकप्रियता और संस्थागत उपस्थिति का अनुमान फिलिप गोल्डबर्ग के निम्नलिखित शब्दों से लगाया जा सकता है:- ‘मैं लॉस एंजिल्स में अपने घर से पांच से तीस मिनट के भीतर, किसी भी निम्नलिखित स्थान पर पहुंच सकता हूं- हरे कृष्णा मंदिर, आनन्द एल.ए., सिद्धयोग मेडिटेशन सेन्टर; श्री अरविन्दो सेन्टर; राधा गोविन्द धाम; सत्य साईं बाबा मंदिर; माता अमृतानन्दमयी आश्रम, रमण महर्षि, नीम करोड़ी बाबा, स्वामी रुद्रानन्द, कृष्णमूर्ति आदि के भक्तों के सत्संग या अध्ययन कक्ष। वहां से दस से बीस मिनट की दूरी पर हैं- ए.आर.ए.एफ. मदर सेन्टर, साईं अनन्त आश्रम, आर्ट ऑफ लिविंग आश्रम, मलीबू टेम्पल, ब्रह्म कुमारी सेन्टर तथा  अनेक आर्युवैदिक क्लिीनिक और बहुत से योग स्टूडियो।’

कैलिफोर्निया के छोटे से नगर फ्रीमॉन्ट का मन्दिर एक चर्च के भवन में स्थित है। चर्च के हॉल में राम, कृष्ण, शंकर और मां दुर्गा की मूर्तियां विराजती हैं। मुझे इस मन्दिर में दर्शन करने का सौभाग्य मिला। बताया गया कि अमरीका में अनेक मंदिर, चर्चों के पूर्व भवन में स्थित हैं। स्थानीय अमरीकी अब हर रविवार चर्च नहीं जाते। चर्चों की देख-रेख अब सहज नहीं रही, इसलिए वे अब बेच दिए जाते हैं। चर्च धार्मिक भवन होते हैं। अत: उनमें मन्दिरों की स्थापना सर्वथा उचित है।

ऐसा प्रतीत होता है कि अमरीका में हिन्दू विचार की प्रतिष्ठा, विश्व के दूसरे देशों में भी हिन्दू जीवन दृष्टि की स्थापना की दिशा में पहली सीढ़ी है। इतिहासकार विल ड्यूरेन्ट के शब्दों में: ‘शायद पराजय, अहंकार और शोषण के बदले में भारत हमें सहिष्णुता, सभ्य मानस की विनम्रता, आत्मा का लोभहीन संतोष एवं शान्ति तथा समस्त प्राणिजगत के प्रति प्रेम की शिक्षा देगा।” आज विल ड्यूरेन्ट की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो रही है। कभी भारत विश्व गुरु था और पुन: भविष्य में विश्वगुरु बनेगा।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी

किशनगंज में घुसपैठियों की बड़ी संख्या- डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी

गंभीरा पुल बीच में से टूटा

45 साल पुराना गंभीरा ब्रिज टूटने पर 9 की मौत, 6 को बचाया गया

पुलवामा हमले के लिए Amazon से खरीदे गए थे विस्फोटक

गोरखनाथ मंदिर और पुलवामा हमले में Amazon से ऑनलाइन मंगाया गया विस्फोटक, आतंकियों ने यूज किया VPN और विदेशी भुगतान

25 साल पहले किया था सरकार के साथ फ्रॉड , अमेरिका में हुई अरेस्ट; अब CBI लायेगी भारत

Representational Image

महिलाओं पर Taliban के अत्याचार अब बर्दाश्त से बाहर, ICC ने जारी किए वारंट, शीर्ष कमांडर अखुंदजदा पर भी शिकंजा

एबीवीपी का 77वां स्थापना दिवस: पूर्वोत्तर भारत में ABVP

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी

किशनगंज में घुसपैठियों की बड़ी संख्या- डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी

गंभीरा पुल बीच में से टूटा

45 साल पुराना गंभीरा ब्रिज टूटने पर 9 की मौत, 6 को बचाया गया

पुलवामा हमले के लिए Amazon से खरीदे गए थे विस्फोटक

गोरखनाथ मंदिर और पुलवामा हमले में Amazon से ऑनलाइन मंगाया गया विस्फोटक, आतंकियों ने यूज किया VPN और विदेशी भुगतान

25 साल पहले किया था सरकार के साथ फ्रॉड , अमेरिका में हुई अरेस्ट; अब CBI लायेगी भारत

Representational Image

महिलाओं पर Taliban के अत्याचार अब बर्दाश्त से बाहर, ICC ने जारी किए वारंट, शीर्ष कमांडर अखुंदजदा पर भी शिकंजा

एबीवीपी का 77वां स्थापना दिवस: पूर्वोत्तर भारत में ABVP

प्रतीकात्मक तस्वीर

रामनगर में दोबारा सर्वे में 17 अवैध मदरसे मिले, धामी सरकार के आदेश पर सभी सील

प्रतीकात्मक तस्वीर

मुस्लिम युवक ने हनुमान चालीसा पढ़कर हिंदू लड़की को फंसाया, फिर बनाने लगा इस्लाम कबूलने का दबाव

प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तराखंड में भारी बारिश का आसार, 124 सड़कें बंद, येलो अलर्ट जारी

हिंदू ट्रस्ट में काम, चर्च में प्रार्थना, TTD अधिकारी निलंबित

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies