हस्ती मिटती नहीं हमारी
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हस्ती मिटती नहीं हमारी
प्रो. हरबंश दीक्षित
भारत के मौजूदा हालात कई बार बहुत निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं। लोग इसे भ्रष्टतम देशों में से एक मानते हैं। महिलाओं की प्रतिष्ठा की स्थिति तो और भी बदतर है। वे न केवल दहेज के लिए प्रताड़ित और जलायी जाती हैं, बल्कि उन्हें कोख में ही मार देने वालों की भी कमी नहीं है। राजनीतिक हालात के बारे में जो कुछ कहा जाये वह कम ही है। अब तो लोग यह कहने लगे हैं कि राजनीति का अपराधीकरण नहीं, अपितु अपराध का राजनीतिकरण होने लगा है। आतंकवाद की चिन्ता से सभी वाकिफ हैं। आतंकवाद को महिमामंडित किए जाने की परम्परा शुरू हो गयी है। आतंकियों को बचाने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित हो रहे हैं। हम विश्व की सबसे बड़ी निरक्षर आबादी वाले देश हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद इस कलंक से निजात नहीं मिल सकी है। महंगाई के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं। आम आदमी के लिए दो समय की रोटी की व्यवस्था करना मुश्किल हो रहा है। चिन्ता तो शैक्षिक हालात को लेकर भी कम नहीं व्यक्त की जा रही है। शिक्षा के व्यवसायीकरण का दौर चल रहा है। जिसे हम ज्ञानदान के नाम से सम्बोधित करते थे वह बाजार की विषयवस्तु बनती जा रही है।
समस्याओं से घिरा देश
भ्रष्टाचार के नित नए मामले उजागर होते जा रहे हैं और उसके साथ ही हमारी साख निरन्तर गिरती जा रही है। हम भ्रष्टतम देशों में शुमार किए जाते हैं। ‘ट्रान्सपरेन्सी इन्टरनेशनल’ द्वारा बनायी गयी सूची में हम 84वें स्थान से खिसककर अब 87वें स्थान पर हैं। देश के 55 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्हें सरकारी कार्यालयों में काम कराने के लिए कभी न कभी रिश्वत देनी पड़ी है। इसका सबसे त्रासद पहलू यह है कि पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका और सेना में भी भ्रष्टाचार के किस्से आम हो गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के भ्रष्टाचार के कई प्रकरण एक के बाद एक सामने आते जा रहे हैं। खुशहाली के लिहाज से हम अभी बहुत पीछे हैं लेकिन कालेधन के हिसाब से हम सबसे आगे हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक स्विटजरलैण्ड के ही बैंकों में हमारे करीब सत्तर लाख करोड़ रुपए जमा हैं। स्विटजरलैण्ड के बैंकों की 2006 की रपट के मुताबिक भारत में उपलब्ध कालाधन शेष विश्व के कुल कालेधन से ज्यादा है। भारत जैसे देश में जहां सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 80 फीसदी लोगों की रोज की कमाई 25 रुपए से भी कम है तथा हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है। कई बार ऐसा लगता है कि यहां मेहनतकश व्यक्ति गरीब है और बेईमानी करने वाले अमीर हैं।
राजनीतिक हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। आजादी के समय राजनेता को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। परन्तु अब हालात पूरे तौर पर परिवर्तित हो चुके हैं। संसद में दागी सदस्यों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। 14वीं लोकसभा में ऐसे सांसदों की संख्या 128 थी जिनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे थे। मौजूदा लोकसभा में इनकी संख्या में 17.2 प्रतिशत की वृद्धि होकर 150 तक पहुंच गयी है। गम्भीर अपराधों के आरोपी सांसदों की संख्या में भी लगातार वृद्धि होती जा रही है। राज्य विधानमण्डलों के हालात तो और भी बदतर हैं। कुछ महीने पहले पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव सम्पन्न हुए हैं। कुल 294 में से 102 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। उनमें से 75 तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ अत्यंत गम्भीर मामले चल रहे हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में 35, तमिलनाडु में 30 और केरल में 48 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। यही स्थिति कमोबेस पूरे देश की है।
शिक्षा किसी भी देश के सामाजिक उन्मेष की आधारशिला है। साक्षरता इसका पहला पड़ाव है। शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार का दर्जा देने के बावजूद हम कुछ खास नहीं कर पाए हैं। हमारे यहां की तकरीबन एक चौथाई आबादी अभी भी निरक्षर है। हमारे पड़ोसी देशों में चीन की साक्षरता दर 93.3, श्रीलंका की 90.8, म्यामार की 89.9, और ईरान की 82.4 प्रतिशत है, जो हमारे 74.04 प्रतिशत से बहुत आगे है। इसका सबसे निराशाजनक पहलू यह है कि माध्यमिक विद्यालयों के तकरीबन 40 प्रतिशत छात्र हर साल अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं जिनमें अधिकतर लड़कियां होती हैं। विश्व के निरक्षरों की 34 फीसदी आबादी भारत में रहती है। यदि हालात में सुधार नहीं हुए तो सन् 2020 तक विश्व के निरक्षरों की आबादी में आधे भारतीय होंगे।
हमारी संस्कृति में महिलाओं को बहुत ऊंचा स्थान हासिल रहा है, किन्तु हम पतन के ऐसे मुकाम तक पहुंच चुके हैं कि हमारा देश महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित जगहों में से एक हो चुका है। देश की राजधानी में भी महिलाओं के विरुद्ध अपराध की खबरें रोजमर्रा का हिस्सा बनती जा रही हैं। दहेज कानून के बाद उम्मीद की गयी थी कि दहेज हत्याओं में कमी आएगी, किन्तु इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। सन् 2008 में दहेज हत्या के कुल 8172 मामले दर्ज हुये थे और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसके अलावा बालिका भ्रूणहत्या के कारण बेटियों की संख्या में चिन्ताजनक कमी आयी है। सन् 1981 में प्रति एक हजार लड़कों की आबादी में 960 लड़कियां थीं। 2001 में प्रति हजार बालकों की तुलना में बालिकाओं की संख्या घटकर 922 तथा 2011 में 906 तक आ गयी। चौंकाने वाली बात यह है कि लिंग अनुपात के मामले में हरियाणा और पंजाब जैसे खुशहाल राज्यों की स्थिति सबसे खराब है।
आन्तरिक सुरक्षा के मामले में हमारी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। पाकिस्तान प्रायोजित हमलों के अलावा देश में अधिकतर हिस्से आतंकवाद जनित हिंसा की चपेट में हैं। असम, नागालैण्ड तथा मणिपुर सहित पूरा पूर्वोत्तर आतंकवादजनित हिंसा से प्रभावित है। कश्मीर की चुनौतियां अलग किस्म की हैं और उन्हें पाकिस्तान से पूरा समर्थन हासिल है। देश के शेष हिस्से में नक्सलवाद सबसे बड़ा खतरा बन चुका हे। इस समय देश के दस राज्यों के 180 जिले इसकी चपेट में हैं। देश के बड़े भू-भाग पर यह खतरा मंडरा रहा है। प. बंगाल से उत्तर प्रदेश तक तथा बिहार से कर्नाटक तक के जंगलों के 20 प्रतिशत हिस्सों पर उनका आतंक है। सरकारी अनुमान के मुताबिक इस समय सक्रिय नक्सलियों की संख्या तीस हजार से ज्यादा हो चुकी है। अब इस बात के साक्ष्य मिल रहे हैं कि उन्होंने लश्करे तोएबा तथा उत्तर-पूर्व के आतंकी संगठन के साथ हाथ मिला लिया है और वे एक दूसरे की मदद कर रहे हैं।
कमियों के बावजूद है साख
इन तमाम कमियों और अन्तर्निहित दोषों के बावजूद कई बातें ऐसी हैं जो हमें विश्व में सबसे ऊंचे पायदान पर रखती हैं। हमें इस बात का बोध कराती हैं कि हमारे अन्दर कठिनाइयों से उभरने की असीम क्षमता है। महिलाओं की स्थिति के बारे में हमारा स्वर्ण युग रहा है। हमने गार्गी जैसी विदुषी महिलाओं से मार्गदर्शन प्राप्त किया है। उनके सन्देश हमारे मार्गदर्शक रहे हैं। बीच के कालखण्ड में विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारी पूरी व्यवस्था को तहस-नहस किया। हमारी सदाशयता का दुरुपयोग किया लेकिन हमने उन सारी परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर आगे का मार्ग प्रशस्त किया। महिलाओं को पिता की सम्पत्ति में बराबर का दर्जा मिला है। सती प्रथा जैसी कलंक गाथाओं को हम बहुत पीछे छोड़ आये हैं। आज हमारे देश के शीर्षस्थ पदों पर महिलाएं आसीन हैं। हमारे राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष कई महत्वपूर्ण राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के पदों को महिलाएं सुशोभित कर रही हैं। छोटी-मोटी कमियों को दूर करने के लिए हमने भारतीय दण्ड संहिता में संशोधन किया है। घरेलू हिंसा से निबटने के लिए नया कानून बनाया है। यह हमारे लिये सकारात्मक संदेश है और आने वाले समय में आशा की किरण भी।
आतंकवाद पर काबू
आतंकवाद के मोर्चे पर भी हमने बड़ी सफलताएं हासिल की हैं। किसी जमाने में पंजाब के आतंकवाद से तमाम लोग निराश हो चुके थे। ऐसा लगने लगा था कि इससे उभर पाना सम्भव नहीं है। लेकिन हमने उस पर विजय पायी। पाकिस्तान की तमाम कोशिशों के बावजूद पंजाब आज देश के सबसे शान्त इलाकों में से एक है। उसकी खुशहाली पुन: लौट आयी है। उत्तर-पूर्व के आतंक के मामलों में भी हालात पहले से बेहतर हुये हैं। नक्सलवादियों की कलई अब खुलने लगी है और लोग उनका विरोध करने लगे हैं। पाकिस्तान विश्व के सबसे बदनाम देशों में से एक हो चुका है। उसके द्वारा पैदा किये गये भस्मासुर अब उसको ही समाप्त करने पर अमादा हैं। ऐसा इसलिए हो पाया है, क्योंकि हमने सैद्धान्तिक नैतिकता के रास्ते का दामन कभी नहीं छोड़ा।
आजादी के समय देश में 500 से ज्यादा रियासतें थीं। उनमें से बहुत ऐसी भी थीं जो हमारे देश से अलग होकर स्वतंत्र देश के रूप में रहना चाहती थीं या कुछ तो पाकिस्तान के साथ मिलना चाहती थीं। सरदार पटेल जैसे राष्ट्रभक्त नेतृत्व ने उनके मनसूबों पर पानी फेरा और देश को एकजुट किया। मजहब के आधार पर अलग हुआ पाकिस्तान शुरू से ही अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करता रहा और अन्त में उसके टुकड़े हो गये। मानवता के आधार पर हमने बंगलादेश के लोगों का समर्थन किया और विश्व के इतिहास में पहली बार किसी देश के एक लाख सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। पाकिस्तान को उसकी करनी का फल मिला। उसके बाद भी पाकिस्तान द्वारा जितनी कोशिशें हुयीं उसका हमने पूरी शालीनता से जबाव दिया। इसका परिणाम हमारे सामने है। हम विश्व के सुसभ्य देशों की अग्रिम पंक्ति में शामिल किये जाते हैं। आजादी के समय हमारे सामने कुछ और चुनोतियां थीं। हम छुआछूत के अभिशाप के संवाहकों में से एक माने जाते थे। आजादी के बाद हमने इसका मुकाबला किया। वंचित जनों और हासिए पर पड़े लोगों के उन्नयन के लिए किये गये कानूनी प्रयासों ने सामाजिक आन्दोलन का रूप लिया। आज परिणाम हम सबके सामने है।
कृषि क्षेत्र में सुधार
लार्ड कार्नवालिस ने हमारे देश को एक नये किस्म की गुलामी से परिचित कराया। उन्होंने हमारे देश में जमींदारी प्रथा लागू की। हमारे देश का किसान अपनी जमीन का मालिक हुआ करता था। कार्नवालिस ने उसे मजदूर बना दिया। उसे जमींदारों के अधीन कर दिया। जिसके कारण उसका स्वाभिमान बोध समाप्त होता गया। परिणाम यह हुआ कि देखते-देखते हमारा प्राचीन गौरव बोध टुकड़ों में तिरोहित होता गया। सन् 1930 में जब हम पराधीन थे तभी यह तय किया कि जमींदारी प्रथा को समाप्त करना है। आजादी के बाद कानून बनाकर जमींदारी समाप्त की गयी। पूरे विश्व के इतिहास में यह पहला मौका था कि कुछ हजार लोगों से सम्पत्ति लेकर देश के लाखों भूमिहीनों को जमीन का मालिक बनाया गया। रूस की क्रान्ति ने लाखों लोगों की जान लेकर भी जो उद्देश्य पूरा नहीं किया था उसे हमने जमींदारी उन्मूलन के रूप में बगैर खून की एक बूंद गिरे हुए हासिल किया। यह हमारी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत और कानून के शासन को मानने की हमारी प्रतिबद्धता के कारण ही सम्भव हो सका।
एशिया के जिस इलाके में हम लोग रहते हैं उसमें तानाशाही हमेशा ही लोकतंत्र पर हावी रहती है। वहां पर लगातार लोकशाही सैनिक तख्ता पलट के आतंक से ग्रसित रहती है। हमने आजादी के तकरीबन छ: दशकों में 15 बार लोकसभा के आम चुनाव का सफलतापूर्वक संचालन किया है। एक बार तो ऐसा हुआ कि जब श्री चंद्रशेखर प्रधानमंत्री हुए तो संसद में उनकी पार्टी के संसद सदस्यों की संख्या बमुश्किल 50 के आस-पास थी, किन्तु देश में किसी ने लोकशाही के स्थान पर किसी और व्यवस्था की कल्पना भी नहीं की। यह एक मात्र देश है जिसकी विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका तथा यहां तक कि सेना के शीर्ष पदों पर अल्पसंख्यक समुदायों के लोग रहे हैं। उन्हें इस देश और समाज ने पूरा सम्मान दिया है।
भ्रष्टाचार हमारे लोक जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन है। हम ऐसा मानने लगे थे कि इसे लोक मान्यता मिल गयी है। लेकिन एक बार फिर हमारी अच्छाई उजागर हुई। बाबा रामदेव व अण्णा हजारे के एक आह्वान पर पूरा देश एकजुट हुआ। भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू की गयी मुहिम ने पूरे देश को एकजुट कर दिया। गली-मौहल्लों से लेकर दिल्ली के राजपथ तक लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ मशाल लेकर उठ खड़े हुये। इसी सोच ने हमें बार-बार गिरने से बचाया है। अगर हम गिर गये तो उठने का हौसला दिया है और उठ करके निर्णायक संघर्ष करने का संकल्प दिया है। यही आशादीप हमें बार-बार याद दिलाता रहेगा कि ‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’। यही सोच हर समय हमारा आह्वान करती रहे कि उतिष्ठत् जाग्रत प्राप्यवरान्निबोधत्।
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