तमसो मा ज्योतिर्गमय
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डा. वीना अग्रवाल
दीपों का प्रकाश पर्व प्रतिवर्ष नव संदेश लेकर आता है। वैदिक ऋषियों की प्रार्थना “असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्माऽमृत गमय” अर्थात् हम असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमरत्व की ओर चलें। यदि हम मानव जीवन पाकर वेद के इस पावन संदेश को चरितार्थ करने में योग्यता और निष्ठा के साथ प्रयत्न करते रहें तो जीवन धन्य है।
अमावस्या की तमसाच्छादित रात्रि में नन्हे-नन्हे दीप जल-जलकर अंधकार को दूर करते हैं। दीपक सदा से मानव को नव प्रेरणा, नव उत्साह और नया जीवन प्रदान करता आया है। पवित्र तीर्थ नगरी हरिद्वार में प्रतिदिन सायंकालीन आरती के समय देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु पत्तों के दोनों में फूलों के मध्य दीप जलाकर गंगा की लहरों पर श्रद्धापूर्वक प्रवाहित करते हैं और वे दीप प्रकाश फैलाते हुए दूर-दूर तक बहते जाते हैं, मानो कह रहे हों कि जैसे हम छोटे-छोटे दीपक गंगा की लहरों के साथ दूर तक प्रकाश व्याप्त करते जा रहे हैं, वैसे आप भी प्रकाश के पुजारी बनकर अंधकार को दूर भगाते रहना। युग प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने जीवन दीप से लक्ष-लक्ष दीप जलाकर दीपावली के दिन “ईश्वर तेरी इच्छा पूर्ण हो” कहते-कहते अपना जीवन दीप शांत कर दिया था, महर्षि के प्राणोत्सर्ग की इस अनुपम घटना को देखकर पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जैसा नास्तिक, परम आस्तिक बन गया था। मृत्युंजय दयानंद ने मानवता की सेवा में अपना सर्वस्व स्वाहा कर दिया था।
स्वर्णमयी लंका पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् अयोध्या पधारने पर अयोध्यावासियों ने असंख्य दीप जलाकर भगवान श्रीराम का अभिनंदन किया था और उन दीपों के आलोक से अयोध्या का कोना-कोना आलोकित हो उठा था। दीपावली के माध्यम से हम मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को स्मरण करते हैं, विष पीकर अमृत पिलाने वाले देव दयानंद को याद करते हैं। सत्य, प्रकाश और अमृत की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाली वैदिक संस्कृति को नमन करते हैं। भारत के प्राचीन स्वर्णिम इतिहास का अभिनंदन करते हैं। दीपावली उल्लास, उत्साह, उमंग, आशा, विश्वास, प्रेम विश्व बन्धुत्व, मित्रता और मानवता का पावन पर्व है। नाना प्रकार के सुंदरतम परिधानों और आभूषणों से जगमगाती हुई लक्ष्मीरूपा सद् गृहिणियों के विमल हास से सम्पूर्ण देश को जगमग-जगमग कर देने वाला त्योहार है।
दीपावली आती है प्रकाश लेकर, लेकिन आज चहुंओर अंधकार है अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार, दुराचार, कदाचार और आतंक का। राजनीति के दलदल में भारत देश महान का रथ फंसा हुआ है। कभी इस रथ को भगवान श्रीराम ने पार लगाया था। कभी योगेश्वर श्रीकृष्ण ने इसे कीचड़ से बाहर निकाला था और कभी महर्षि दयानंद ने ब्रह्मचर्य बल से इसे लक्ष्य तक पहुंचाया था। संपूर्ण विश्व को जीने की कला सिखाने वाला भारत देश अपने स्वाभिमान और स्वर्णिम इतिहास को विस्मृत कर रहा है। जिस देश में सिंहशावक का जबड़ा खोलकर उसके दांतों की गणना करने वाले भरत सदृश वीर बालक हुए, जिस देश ने संसार को ज्ञान विज्ञान की शिक्षा दी, आज उस देश के करोड़ों युवकों के आत्मगौरव को जगाने की आवश्यकता है। जहां पर सती अनुसूया, सीता, सावित्री, गार्गी, जीजाबाई सदृश देवियों ने जन्म लिया, जिस देश की हजारों पद्मिनियां अपने पातिव्रत धर्म की रक्षा के लिए जलती हुई ज्वालाओं में कूद पड़ीं उस देश की ललनाओं को जगाने के लिए दीपावली आई है। आइये! हम सब इस आलोक पर्व पर दीपमाला के प्रकाश में संकल्प लें वैभवशाली, ज्ञानलोक से आलोकित भारत के निर्माण का। यही इस पर्व का स्वागत और अभिनंदन है।
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