अ.भा. कार्यकारी मण्डल की बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने चेताया-राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये प्रभावी रणनीतिक पहल आवश्यक
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अ.भा. कार्यकारी मण्डल की बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने चेताया-
गत 14 से 16 अक्तूबर तक उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर गोरखपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल की बैठक सम्पन्न हुई। अ.भा. कार्यकारी मण्डल ने गंभीर विचार- मंथन के बाद देश की सुरक्षा के संबंध में एक महत्वपूर्ण व विस्तृत प्रस्ताव पारित किया। यहां प्रस्तुत हैं उस प्रस्ताव के मुख्य अंश-
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अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल देश की सीमाओं पर बढ़ते तनाव, सीमा पार से देश में अलगाववाद व आतंकवाद को बढ़ावा देने की बढ़ती घटनाओं, देश की वायु व सामुद्रिक सीमाओं पर उभरती चुनौतियों एवं अन्तरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र व अंतरिक्ष में राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध उभरते खतरों के प्रति सरकार की उपेक्षा के प्रति गम्भीर चिन्ता व्यक्त करता है। इस सन्दर्भ में कार्यकारी मण्डल सुरक्षा सम्बन्धी निम्नलिखित चुनौतियों की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहता है-
चीन से चुनौतियां
चीन भारतीय सीमा पर सैन्य दबाव बनाने के साथ-साथ सीमा का बार-बार अतिक्रमण करते हुए सैन्य व असैन्य सम्पदा की तोड़-फोड़ एवं सीमा क्षेत्र में नागरिकों को लगातार आतंकित कर रहा है। भारत की सुनियोजित सैन्य घेराबन्दी करने के उद्देश्य से हमारे अनेक पड़ोसी देशों में चीन की सैन्य उपस्थिति, वहां उसके सैनिक अड्डों का विकास व उनके साथ रणनीतिक साझेदारी को भी गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। पाकिस्तान का भारत के विरुद्ध सशस्त्रीकरण व वहां भारत विरोधी आतंकवाद को संरक्षण, पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में चीन की सैन्य सक्रियता, माओवाद के माध्यम से नेपाल में शासन के सूत्रधार के रूप में उभरने के प्रयत्न एवं बंगलादेश, म्यांमार व श्रीलंका में चीन के सैन्य विशेषज्ञों की उपस्थिति इस घेराबन्दी के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
कार्यकारी मण्डल का मानना है कि सीमा पार से देश में आतंकवाद व अलगाववाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ पूर्वोत्तर के आतंकवादी-अलगाववादी गुटों को चीन का सक्रिय सहयोग देश की एकता व अखण्डता को सीधी चुनौती है। चीन द्वारा अपने साइबर विशेषज्ञ के माध्यम से देश के संचार व सूचना तंत्र में सेंध लगाने की घटनाएं एवं देश के विविध संवेदनशील स्थानों के निकट अत्यन्त अल्प निविदा मूल्य पर परियोजनाओं में प्रवेश के माध्यम से अपने गुप्तचर तंत्र का फैलाव भी देश की सुरक्षा के लिये गम्भीर संकट उत्पन्न करने वाला है।
चीन द्वारा 1962 के युद्ध में कब्जाई गयी देश की 38,000 वर्ग किमी. भूमि को वापस लेने के उसी वर्ष के 14 नवम्बर के संसद के संकल्प को भारत सरकार ने तो विस्मृत ही कर दिया है। दूसरी ओर चीन हमारे देश की 90,000 वर्ग किमी. भूमि पर और दावा जता रहा है, जिस पर सरकार की प्रतिक्रिया अत्यन्त शिथिल रही है। इन दावों व सीमा क्षेत्र में चीन की सैन्य गतिविधियों को देखते हुए सीमा क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जैसी आधारभूत संरचनाएं, यथा-दूरसंचार, रेल, सड़क व विमानपत्तन आदि की सुविधाएं चाहिये, उनके विकास के प्रति भी सरकार की घोर उपेक्षा अत्यन्त चिन्तनीय है।
सुरक्षा की दृष्टि से चीन द्वारा एक साथ कई परमाणु बम ले जाने मेंे सक्षम लम्बी दूरी के अन्तरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों को भारतीय सीमा पर तैनात किया जाना एक गम्भीर चुनौती है। चीन द्वारा उपग्रह भेदी एवं जहाज भेदी प्रक्षेपास्त्रों के सफल परीक्षण कर लिये गये हैं। उसने 8,500 किमी. की दूरी तक परमाणु बम ले जाने में सक्षम पनडुब्बी, प्रक्षेपित बेलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र युक्त परमाणु पनडुब्बियां भी विकसित कर रखी हैं। इन सभी के प्रभावी प्रतिकार की सामथ्र्य का विकास भारत के लिए अविलम्ब आवश्यक है।
भारतीय बाजारों में चीन के उत्पादों की भरमार से रुग्ण होते भारतीय उद्यमों के साथ-साथ चीन के साथ भारी व्यापार घाटा भी देश की अर्थव्यवस्था के लिये अत्यन्त गम्भीर चुनौती बनकर उभर रहा है। दूरसंचार के क्षेत्र में प्रथम पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी के विकास के आगे भारत द्वारा कोई प्रयत्न नहीं करने से आज तीसरी व चौथी पीढ़ी अर्थात् 3जी व 4जी दूरसंचार प्रौद्योगिकी के सारे साजो-सामान चीनी ही लगाये जा रहे हैं। यह हमारे सूचना व संचार तंत्र की सुरक्षा के लिये संकट का द्योतक है। विद्युतजनन संयत्रों सहित अन्य उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में भी चीन पर बढ़ते अवलम्बन से देश उन सभी क्षेत्रों में स्थायी रूप से चीन पर आश्रित होता जा रहा है।
चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नद व अन्य अनेक नदियों के बहाव को मोड़ने की शुरुआत के विरुद्ध भी कड़ा रुख अपनाते हुए भारत को चीन व तिब्बत से निकलने वाली नदियों के बहाव को मोड़ने से प्रभावित होने वाले सभी देशों, यथा- बंगलादेश, पाकिस्तान, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया, थाईलैण्ड व म्यांमार को साथ लेकर नदी जल के न्यायपूर्ण वितरण के समझौते के लिए चीन को बाध्य करना चाहिए।
पाकिस्तानी कुचक्र
भारत की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान की गतिविधियां भी चिन्ताजनक हैं। स्वयं प्रधानमंत्री ने सेना के कमाण्डरों को सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया है कि सीमा पार से घुसपैठ की घटनाओं में विगत कुछ माह के दौरान अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। एक अनुमान के अनुसार अकेले कश्मीर की सीमा पर विगत साढ़े चार माह के दौरान छिटपुट फायरिंग या घुसपैठ की 70 घटनाएं घटी हैं। पाक सेना में कट्टरवादियों का बढ़ता प्रभाव वहां के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी एक गम्भीर चुनौती बनता जा रहा है।
विगत दिनों सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद का सरगना माने जाने वाले ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान में मारा जाना और वहां उसके सपरिवार वर्षों तक रहने की पुष्टि, पाकिस्तानी सेना व आई.एस.आई. के अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद के साथ गहरे सम्बन्धों को प्रकट करता है। यह भी उल्लेखनीय है कि ओसामा का पता बताने में अमरीका की मदद करने वाले चिकित्सक को गिरफ्तार कर उस पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जा रहा है।
पाकिस्तान लगातार अफगानिस्तान में हामिद करजई सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है। अपने आन्तरिक कारणों से अगले वर्ष से अमरीकी सेना के वहां से हटने की स्थिति में पाकिस्तान वहां पुन: भारत विरोधी कट्टरवादी तालिबान को सत्ता में लाना चाहता है। अफगानिस्तान में ऐसी कोई भी परिस्थिति भारत के लिए सीधी चुनौती होगी। अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल पाकिस्तान-अफगानिस्तान क्षेत्र की इन घटनाओं की तरफ सरकार का ध्यान आकृष्ट करना चाहता है।
विगत दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर हुए विस्फोट में एक बार पुन: आई. एस. आई. की संलिप्तता के प्रमाण मिले हैं। इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण मिल रहे हैं कि माओवादियों को मदद पहुंचाने में आई. एस. आई. का संजाल चीन की मदद कर रहा है। पाकिस्तान-अफगानिस्तान में सक्रिय अत्यन्त खतरनाक हक्कानी गुट के आई.एस.आई. से सम्बन्ध की बात अब जगजाहिर है। परन्तु इस सारे परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार का रवैया अभी भी निष्क्रियता का ही बना हुआ है।
बंगलादेश सीमा सम्बन्धी मुद्दे
सितम्बर, 2011 में बंगलादेश के साथ हुई वार्ता में राष्ट्रीय हितों की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया गया है। असम व प. बंगाल की कई हजार एकड़ भारतीय भूमि को यह कहकर बंगलादेश को सौंपना कि ‘वहां पर उनका अवैध अधिकार पहले से ही है’, किसी भी तरह उचित नहीं माना जा सकता। भूमि की अदला-बदली में कम भूमि पाकर अधिक भूमि देने की बात विवेकहीन व अस्वीकार्य है। साथ ही ऐसा करने से कूचबिहार व न्यू जलपाईगुडी जैसे जिलों में बड़ी संख्या में बंगलादेशी मुसलमानों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप वहां की जनसांख्यिकी बदल जाने से वहां अलगाववाद का संकट बढ़ेगा। दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसी वार्ताओं में भारत में अवैध रूप से रह रहे करोड़ों बंगलादेशी घुसपैठियों के बारे में कोई चर्चा ही नहीं की जाती है। कार्यकारी मण्डल की मांग है कि बंगलादेश से होने वाले समझौतों में राष्ट्रहित, एकता और क्षेत्रीय अखण्डता के मुद्दों को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए।
हिन्द महासागर क्षेत्र की चुनौतियां
अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल इस बात पर भी चिंतित है कि हिन्द महासागर क्षेत्र में नये शक्ति समूहों के बीच तीव्र हो रही वर्चस्व की लड़ाई में यह क्षेत्र शीत युद्ध काल के यूरोप जैसा अखाड़ा बन रहा है। हिन्द महासागर क्षेत्र के देश संसाधन सम्पन्न हैं तथा नये शक्ति समीकरणों में रणनीतिक महत्व के स्थान लिए हुए हैं। भारत का सदियों से इस क्षेत्र में प्रमुख स्थान रहा है। अ.भा.का.म. का मत है कि इस समूचे क्षेत्र के साथ दो हजार वर्षों से चले आ रहे सभ्यतामूलक व सांस्कृतिक सम्बन्धों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में और अधिक सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
चीन ने अपनी समुद्री शक्ति तथा नौसैनिक गतिविधियों में अत्यधिक वृद्धि की है। इस क्षेत्र में उसकी आक्रामक उपस्थिति तनाव उत्पन्न करने वाली है। दूसरी ओर अमरीका दिएगो गार्सिया के सुदूर क्षेत्र में स्वयं को असहज पाकर इस क्षेत्र में निकटतापूर्वक अपनी पैठ और मजबूत करने के प्रयास में है। वर्ष 2003 में इण्डोनेशिया से ईस्ट टिमोर का अलग होना, पड़ोसी श्रीलंका व लिट्टे का संघर्ष, ताइवान मुद्दा आदि इस क्षेत्र में बड़े शक्ति संघर्ष के द्योतक हैं। इन दो शक्तिओं के बीच वर्चस्व की स्पर्धा इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन बिगाड़ कर तनाव बढ़ा रही है।
अ.भा.का.म. का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में भारत मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता। इस क्षेत्र के कई देश भारत को शान्ति व स्थिरता का आश्वासन देने वाली कल्याणकारी शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं।
हमारी सरकार की पूर्वोन्मुख नीति को 20 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। कार्यकारी मण्डल सरकार से आग्रह करता है कि अब इस नीति को कार्य रूप में बदलकर क्षेत्र के सभी देशों से सम्बन्ध और अधिक सुदृढ़ किये जाएं। हमारी विदेश नीति के उद्देश्य हमारी रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप होने चाहिए। इस सम्बन्ध में म्यांमार व वियतनाम जैसे देशों के साथ की गयी नयी पहल का कार्यकारी मण्डल स्वागत करता है।
हिन्द महासागर में चीन व उसके सहयोगी देशों के इस युद्धोन्माद का हाल में भारत भी अनुभव कर रहा है। विगत दिनों की दो घटनाएं उनकी इसी प्रकार की सोच की परिचायक हैं। पहली वियतनाम के पास दक्षिण चीनी समुद्र में भारत तथा चीनी नौ-सेनाओं में तनाव की व दूसरी सिन्धु सागर (अरब सागर) में भारत व पाकिस्तानी युद्धपोतों के बीच की घटना है। ग्वादर से हम्बनतोटा व चटगांव से कोको द्वीप तक हिन्द महासागर में बढ़ता हुआ चीनी प्रभाव हमारी सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है। हिन्द महासागर में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ाने के लिये ही चीन ने वहां 10,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पॉली मेटेलिक सल्फाइड्स के खनन की अनुज्ञा प्राप्त की है।
हमारे सशस्त्र सैन्य बल ऐसे सभी खतरों से निपटने में पूरी तरह से सक्षम हैं। हमारे सैन्य बलों ने अपनी इस क्षमता का कई बार प्रदर्शन किया है। लेकिन सरकार द्वारा उन्हें वांछित ढांचागत व शस्त्रास्त्र आधुनिकीकरण में सहयोग प्रदान नहीं किया जा रहा है।
देश की सामान्य जनता में व्यापक रूप से विद्यमान राष्ट्रवादी आकांक्षाओं तथा हमारे राजनीतिक तंत्र के नीतिगत दृष्टिकोण के बीच गहरी खाई है। हमारे पास प्रचुर मात्रा में वैज्ञानिक दक्षता, सैन्य क्षमता तथा देशभक्ति का ज्वार है। लेकिन, दुर्भाग्य से इन तत्वों की अभिव्यक्ति सरकार की नीतिगत पहल में दिखाई नहीं पड़ती है।
सुरक्षा सम्बन्धी इन चुनौतियों के चलते अ.भा.कार्यकारी मण्डल सरकार से आग्रह करता है कि वह भारत-तिब्बत सीमा सहित देश की सम्पूर्ण थल सीमा, सामुद्रिक सीमा, वायु सीमा, अंतरिक्ष व समग्र सामुद्रिक क्षेत्र में राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा हेतु प्रभावी कदम उठाए। साथ ही अलगाववाद, आतंकवाद व अवैध घुसपैठ जैसी सभी सुरक्षा सम्बन्धी चुनौतियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करे। कार्यकारी मण्डल की मांग है कि सरकार देश के समक्ष उभरती सभी रक्षा चुनौतियों के प्रतिकार हेतु प्रभावी सुरक्षा प्रणालियों के विकास के साथ-साथ आर्थिक व उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी समग्र स्वावलम्बन के लिये व्यापक प्रयत्न करे। अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल जनता से भी आह्वान करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर निरन्तर सजग रहते हुए सरकार को इस दिशा में प्रभावी कदम उठाने के लिये बाध्य करे।
अनपेक्षित वक्तव्यों से भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन कमजोर होगा
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को
दुर्बल करने का राजनीतिक षड्यंत्र
-भैयाजी जोशी, सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
अण्णा हजारे के आंदोलन के संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों की सहभागिता या अण्णा दल द्वारा खुद को संघ से अलग दिखाने की कोशिश में की गई अनपेक्षित बयानबाजी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गंभीरता से लिया है। इसीलिए संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेशराव जोशी उपाख्य भैयाजी जोशी ने गोरखपुर में आयोजित अ.भा. कार्यकारी मण्डल की बैठक के दौरान स्वयं वक्तव्य जारी कर श्री अण्णा हजारे एवं उनके सहयोगियों द्वारा व्यक्त टिप्पणी को खेदजनक बताया और साफ कहा कि इस प्रकार की टिप्पणियां भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को दुर्बल करेंगी। यहां प्रस्तुत है श्री भैयाजी जोशी द्वारा गोरखपुर में दिए गए वक्तव्य का अविकल पाठ-
भ्रष्टाचार के विरोध में चल रहे आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहभागिता को लेकर चलाई जाने वाली चर्चा दुर्भावनापूर्ण है एवं इस आंदोलन को दुर्बल करने के राजनीतिक षड्यंत्र को ही प्रकट करती है।
श्री अण्णा हजारे ध्येय समर्पित व्यक्ति हैं। देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ पिछले कई महीनों से एक व्यापक जन आंदोलन का वह सफलतापूर्वक नेतृत्व भी करते आए हैं। इस आंदोलन की सफलता का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। कई अवसरों पर विभिन्न कार्यक्रमों में उनके द्वारा व्यक्त विचार एवं उनके द्वारा किए गए विकासात्मक कार्यों से मैं और देश भर के हजारों कार्यकर्ता परिचित हैं एवं प्रभावित भी हैं। परन्तु कांग्रेस के एक महासचिव द्वारा षड्यंत्रपूर्वक उठाए गए निरर्थक विवाद के उत्तर के रूप में प्रसार माध्यम में प्रकाशित श्री अण्णा हजारे जी द्वारा लिखे पत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूज्य सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत जी के संदर्भ में व्यक्त किए गए विचार एवं आंदोलन के समर्थन में मेरे द्वारा भेजे गए पत्र को षड्यंत्र के रूप में देखना, यह मेरी समझ के परे है, वेदनादायक है। श्री अण्णा हजारे जी जैसे व्यक्ति भी कुटिल राजनीतिक चाल से प्रभावित हो गए, यह खेदजनक है। उनके पत्र में व्यक्त इस प्रकार की टिप्पणियां भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को ही दुर्बल करने वाली सिद्ध होंगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो यह संघ के स्वयंसेवकों सहित करोड़ों देशवासियों की आकांक्षा है। इस उद्देश्य से चलने वाले ऐसे आंदोलनों को ओछी, निम्नस्तर की कुटिल, विकृत राजनीति से सुरक्षित रखने का दायित्व आंदोलन के नेतृत्व का ही रहता है। राष्ट्रहित की भावनाओं के साथ सभी आंदोलनों में सहभागी होने वाला जनसामान्य भी ऐसे राजनीतिक षड्यंत्रों से आहत होता है, अत: नेतृत्व को सावधान, सजग रहना चाहिए। जनसामान्य निराश-हताश होता है तो दायित्व किसका होगा? सभी राष्ट्रवादी शक्तियों को सामूहिकता से ऐसे प्रयासों को विफल करना चाहिए। भ्रष्टाचार के विरोध में चल रही यह लड़ाई सफल होने से ही देश के भ्रष्टाचार मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त होगा।
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