बात बेलाग
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लोकतंत्र की आड़ में देश पर नेहरू वंश की राजशाही थोपने की कांग्रेसी साजिशें पूरी तरह बेनकाब हो चुकी हैं। अपने चहेते खबरनवीसों की बदौलत राहुल गांधी को दिया गया “युवराज” का संबोधन भी इसी मानसिकता का एक और प्रमाण है। पर अब यह परिवारवादी सोच सिर्फ एक दल और परिवार तक ही सीमित नहीं रह गयी है। अगर आप देश की राजधानी दिल्ली से गाजियाबाद के रास्ते उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ जाएं तो आपकी नजर “युवराज” लिखे बड़े बड़े बोर्डों पर अटके बिना नहीं रह सकेगी। खास बात यह है कि इन बोर्डों पर जो चेहरा बनाया गया है, वह कांग्रेस और नेहरू परिवार के “युवराज” का नहीं है, बल्कि कभी कांग्रेस की परिवारवादी राजनीति के विरुद्ध राजनीति करने वाले मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव का है। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह कई बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। मौजूदा “माया राज” के विरुद्ध जनाक्रोश के मद्देनजर बदलाव भी तय लगता है। सो, मुलायम एक बार फिर जोर आजमाने को तैयार हैं। अभी यह कहना तो जल्दबाजी होगी कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद का मोह छोड़ दिया है, पर चुनावी कमान अखिलेश को अवश्य सौंप दी है। उत्तर प्रदेश तक सीमित जनाधारवाली सपा के मुलायम खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और प्रदेश के अध्यक्ष अखिलेश हैं। अब उन्हें “युवराज” के रूप में पेश किये जाने का तो संदेश स्पष्ट है कि कांग्रेस के साथ साथ समाजवादी पार्टी भी उत्तराधिकार की प्रक्रिया से गुजर रही है।
कांग्रेस दा जवाब नहीं
कांग्रेस को वोट न देने की अपील कर अण्णा हजारे और उनके सहयोगियों ने हरियाणा में हिसार संसदीय उप चुनाव को भ्रष्टाचार के विरुद्ध महाभारत बना दिया। अण्णा खुद तो नहीं आये, पर उनकी टीम के किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया सरीखे सदस्यों ने हिसार में घूम-घूमकर मतदाताओं को बताया कि किस तरह कांग्रेस और उसके नेतृत्ववाली केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए जन लोकपाल विधेयक की अण्णा की मुहिम को छल-बल से नाकाम करना चाह रही है। इन लोगों को सुनने के लिए जुटने वाली भीड़ और उसमें गूंजने वाली तालियों से देश के जनमानस का अनुमान भी सहज ही लगाया जा सकता है। लेकिन कांग्रेस दा वाकई जवाब नहीं। वैसे तो हरियाणा की भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सरकार से लेकर केन्द्र की मनमोहन सिंह सरकार तक भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरी है, लेकिन कांग्रेस को हिसार में प्रचार के लिए अपने जिन दो अन्य मुख्यमंत्रियों की याद आयी, वे थे दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर हुए हजारों-करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार में शीला पर आरोप ही नहीं हैं, बल्कि खुद प्रधानमंत्री द्वारा जांच के लिए गठित शुंगलू समिति ने उनके विरुद्ध टिप्पणियां भी की हैं। गहलोत सरकार के विरुद्ध तो भ्रष्टाचार के ही आरोप भर नहीं हैं, बल्कि उनके सहयोगी एक वरिष्ठ मंत्री पर एक महिला के अपहरण व बलात्कार के आरोप की जांच तो सीबीआई कर रही है। तो यह था गांधीवादी समाजसेवी अण्णा की टीम के सामने कांग्रेसी जवाब।
नए “मिरासी”
अण्णा हजारे की “जनलोकपाल विधेयक बनाओ” मुहिम के दमन के लिए बेनकाब और बदनाम हो चुके केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम और कपिल सिब्बल की जगह मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस आलाकमान ने अब सलमान खुर्शीद और दिग्विजय सिंह की जोड़ी को मैदान में उतारा है। मनमोहन मंत्रिमंडल में बतौर राज्यमंत्री शामिल किये गये सलमान को पिछले फेरबदल में ही वीरप्पा मोइली सरीखे शालीन और वरिष्ठ नेता से लेकर कानून मंत्रालय के साथ-साथ केबिनेट का दर्जा भी दिया गया है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की लुटिया डुबो चुके दिग्विजय अब राहुल गांधी के सहारे अपने पुनरुत्थान की जुगाड़ में हैं। सो, इन दोनों में एक अघोषित स्पर्धा सी चल रही है, सिविल सोसायटी को कोसने और नेहरू परिवार का गुणगान करने की।
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