चर्चा सत्र
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सेना के मनोबल से खिलवाड़ क्यों?
मेजर जनरल (से.नि.) शेरू थपलियाल
देश की राजधानी दिल्ली में बैठी संप्रग सरकार राष्ट्रहित से जुड़े सभी विषयों पर कैसी अपरिपक्व सोच दर्शा रही है, यह किसी से छुपा नहीं है। एक कहावत भी है- विनाश काले विपरीत बुद्धि। जैसे जैसे इस सरकार के काम-काज पर उंगलियां उठ रही हैं, वैसे वैसे यह सरकार गलत पर गलत व्यवहार दर्शाती जा रही है। भ्रष्टाचारी करतूतों की परतें उघड़ रही हैं, लेकिन सरकार के मंत्रियों ने जैसे उस ओर कनखियों से भी न झांकने की कसम खाई हुई है। सत्ता की राजनीति में आकंठ डूबे कुर्सी पर बैठे नेताओं ने पिछले दिनों सेनाध्यक्ष को भी विवादों के घेरे में घसीटने का दुष्प्रयास किया। इन नेताओं को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि सेना पर उंगलियां उठाने से उसकी क्षमता और मनोबल पर बुरा असर पड़ सकता है।
दरअसल, सवाल सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह की जन्मतिथि को लेकर खड़ा किया गया था, जो किसी मायने में विवाद का विषय ही नहीं था। सारे रिकार्ड बता रहे हैं कि उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 है, जबकि सरकार इस बात पर बेवजह जोर दे रही है कि यह तिथि 10 मई 1950 है। दुर्भाग्यवश इसमें थोड़ी बहुत गलती सेना मुख्यालय की भी है। सैन्य सचिवालय में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1950 दर्ज है जबकि एडजुटेंट जनरल इकाई के दस्तावेजों में उनके हाई स्कूल प्रमाण पत्र में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज है। जनरल वी.के.सिंह ने सेना मुख्यालय को 2006 और 2008 में क्रमश: दो पत्र लिखे थे। इन पत्रों में उन्होंने लिखा था कि ये जो अलग अलग जन्मतिथियां हैं, उन्हें दुरुस्त किया जाए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। तत्कालीन सेनाध्यक्षों ने आखिर उनके अनुरोध पर गौर क्यों नहीं किया, यह एक अलग विषय है। लेकिन तब कार्रवाई हो जाती तो कोई भ्रांति ही नहीं रहती। चर्चा है कि जनरल वी.के.सिंह का कार्यकाल पूरा होने के बाद एक अधिकारी विशेष को सेनाध्यक्ष बनाने का दबाव है जिसके चलते यह सारा विवाद बनाए रखा गया। इस संदर्भ में रक्षा मंत्रालय की ऐसी भूमिका समझ में आ सकती है। अगर दस्तावेजों में सेनाध्यक्ष की जन्मतिथि 10 मई 1951 होती तो वह अधिकारी फिलहाल सेनाध्यक्ष नहीं बन पाएगा, इसीलिए यह पूरी योजना रची गई। जनरल सिंह का तमाम रिकार्ड सरकार की नियुक्ति समिति में 2008 में भेजा गया था। यह सेना मुख्यालय की सैन्य सचिव इकाई की जिम्मेदारी के तहत आता है। उसका कर्तव्य था कि एडजुटेंट जनरल इकाई से जनरल सिंह के हाई स्कूल का प्रमाण पत्र मंगवाती और उनके रिकार्ड में सही जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज की जाती, पर ऐसा नहीं किया गया। बताया जाता है कि ऐसा रक्षा मंत्रालय के कहने पर किया गया। नतीजा यह हुआ कि जब जनरल सिंह को सेनाध्यक्ष बनाया गया तब उनका कार्यकाल 10 मई 1950 के आधार पर तय किया गया और उनकी सेनानिवृत्ति की तिथि 30 मई 2012 तय कर दी गयी ताकि जिस अधिकारी विशेष को सरकार अगला सेनाध्यक्ष बनाना चाहती है उसके रास्ते में कोई रुकावट न रहे। जनरल वी.के.सिंह ने एक निष्ठावान सैन्य अधिकारी के नाते सरकार के उस फैसले को तब स्वीकार कर लिया था।
आखिर यह विवाद कहां से पैदा हुआ? सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में किसी व्यक्ति ने सेनाध्यक्ष की जन्मतिथि पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की थी। सर्वोच्च न्यायालय का एक निर्णय है कि हाईस्कूल प्रमाण पत्र में दी गई जन्मतिथि ही सर्वमान्य होती है। इससे सरकार के जनरल सिंह को 2012 में ही सेवानिवृत्त करने के प्रयासों पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है। जनरल सिंह ने रक्षामंत्री से इस मामले पर स्थिति साफ करने का अनुरोध किया। सारे सबूतों के बावजूद उन्हें बताया गया कि सरकारी कागजों में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1950 ही रहेगी, जोकि ठीक नहीं है। जनरल सिंह फिर हैरान रह गए। उनके पास अब कोई चारा नहीं रहा, सिवाय इसके कि अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग करते हुए सरकार को एक स्टेच्युटरी शिकायत दर्ज कराएं, जो उन्होंने कराई भी है। इसका जवाब सरकार को तीन महीने के अंदर देना है, पर एक बार फिर, सरकार चुप्पी साधे बैठी है।
जनरल सिंह की जन्मतिथि 20 मई 1951 है, इसके कई प्रमाण हैं, जैसे-
* सैन्य अस्पताल (पुणे), जहां उनका जन्म हुआ, में उनके रिकार्ड में जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज है।
* उनके पिता, जो स्वयं फौजी अफसर थे, के सैन्य रिकार्ड में जहां संतान का विवरण देना होता है, जनरल सिंह की जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज है।
* उनके हाईस्कूल प्रमाण पत्र में जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज है। (सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के तहत यह तिथि ही सर्वमान्य होती है।)
* राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में जाने से पहले उनका “पुलिस वेरिफिकेशन” कराया गया था। इसमें उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 ही दर्ज है।
* उनके मतदाता पहचान पत्र, वाहन चलाने के लाइसेंस और पार पत्र में उनकी जन्मतिथि वही 10 मई 1951 दर्ज है।
* सेना के “प्रमोशन बोर्ड” में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज है।
इन सभी तथ्यों के प्रकाश में प्रश्न यह उठता है कि सेना मुख्यालय की सैन्य सचिव इकाई में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1950 कैसे अंकित हुई? पता चला कि जब जनरल सिंह ने राष्ट्रीय सैन्य अकादमी का फार्म भरा था तब उसमें उनके एक शिक्षक श्री भटनागर ने गलती से जन्मतिथि 10 मई 1950 भर दी थी। इस विवाद के सामने आने पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि तब उनसे ही यह गलती हो गई थी।
संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि अब सरकार जनरल सिंह से यह कहेगी कि आपकी जन्मतिथि भले ही 1951 हो, पर सरकार आपको 2012 में सेवानिवृत्त कर देगी। यह संभव है और बहुत हद तक इस सरकार के कारिंदों द्वारा ऐसा किया भी जा सकता है। पर इससे इस सरकार के इरादों पर जो प्रश्नचिन्ह लग जाएगा उसका उत्तर कौन देगा? क्या प्रणव मुखर्जी और चिदम्बरम की तरह रक्षामंत्री भी मीडिया के सामने आकर सरकार के उक्त कदम को सही ठहराएंगे? यह चिंता की बात है कि एक भ्रष्ट सरकार अपने कारनामों को सही ठहराने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। फिर भले ही सेनाध्यक्ष को संदेह के घेरे में क्यों न लाना पड़े। लेकिन सरकार ध्यान रखे कि उसकी ऐसी किसी भी करतूत से सेना के मनोबल पर बुरा असर पड़ सकता है। किसी भी भारत-भक्त के लिए ऐसी स्थिति स्वीकार्य नहीं है। *
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