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राष्ट्रोत्थान के प्रत्येक मोर्चे पर अग्रिम पंक्ति में संघ

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Oct 1, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Oct 2011 17:19:02

जन्मजात प्रखर देशभक्त डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार द्वारा 1925 की विजयादशमी पर नागपुर (महाराष्ट्र) में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज न केवल भारत अपितु संसार का सबसे बड़ा अनुशासित, शक्तिशाली और ध्येयनिष्ठ संगठन बनकर विश्व पटल पर उभरा है। अपने जन्मकाल से लेकर आज तक के इन आठ-नौ दशकों का कालखण्ड संघ की स्थापना, संवर्धन, विस्तार, प्रभाव और उपलब्धियों का एक ऐसा ऐतिहासिक दस्तावेज है जिसमें अपने राष्ट्र और समाज के लिए त्याग-तप और बलिदान के असंख्य उदाहरण स्वर्णाक्षरों में सुसज्जित हैं। आज संघ के स्वयंसेवक राष्ट्ररक्षा और समाज सेवा के अग्रिम मोर्चों पर प्रथम पंक्ति में खड़े हुए हैं। विपरीत परिस्थितियों में ध्येय साधना नागपुर के रेशिमबाग मैदान के एक छोटे से हिस्से में मुट्ठीभर बाल किशोरों की टोली के रूप में अंकुरित हुआ राष्ट्रोत्थान का यह कार्य आज एक ऐसा विशाल वट वृक्ष बन चुका है जिसकी छत्र-छाया में अनेक राष्ट्रवादी संगठन पुष्पित-पल्लवित हुए हैं और निरंतर हो रहे हैं। दसों दिशाओं में दल-बादल की तरह छा जाने वाले संघ के वर्तमान स्वरूप को देखकर उस अतीत की कल्पना तक करना भी कितना रोमांचित और आश्चर्यचकित लगता है जब भाषा की अनभिज्ञता, साधनों की कमी, धन के अभाव, दुर्गम क्षेत्र और जान पहचान के सूनेपन के साथ प्रारंभिक प्रचारकों ने संघ शाखाओं का जाल बिछाया होगा। उन कष्टों का स्मरण आज के संघ कार्यकर्ताओं की प्रेरणा और संबल है। संघ के स्वयसेवकों ने इन 85 वर्षों की अनथक राष्ट्र साधना में अनेक उतार-चढ़ाव न केवल देखे हैं, बल्कि उनके साथ जूझते हुए अपना मार्ग भी प्रशस्त किया है। विपरीत परिस्थितियों में तैयार किए गए इस कांटों से भरे हुए मार्ग पर चलते हुए स्वयंसेवक कभी घबराए नहीं, थके नहीं, रुके नहीं और न ही अपने तप और साधना में तनिक नाराज और निराश ही हुए। स्वतंत्रता संग्राम की परिणति, देश का विभाजन, विदेशी आक्रमण, देश की सुरक्षा/अखण्डता को चुनौती, स्वधर्म विमुखता, ध्येय रहित शिक्षा व्यवस्था, स्वदेशी चिंतन से कटी हई संवैधानिक प्रणाली, सामाजिक वैमनस्य, लोकतंत्र की हत्या और संघ पर प्रतिबंध जैसे दु:खद घटनाक्रमों में भी सीना तान कर अपने आदर्शों और सिद्धान्तों पर अडिग रहे हैं संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक। ठोस चिंतन बना संघ की नींव राष्ट्र जीवन में आए इन असंख्य अंधड़ों में भी स्वयंसेवकों ने अपने बल पर अपने संगठन को आगे बढ़ाकर सफलतापूर्वक समाज का मार्गदर्शन किया है। उल्लेखनीय है कि इस कालखण्ड में विश्व पटल पर अनेक राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक शक्तियां उभरीं और किसी ठोस चिंतन तथा सुचारू कार्य पद्धतियों के अभावों के साथ अपना सिर पटककर समाप्त हो गईं। साम्यवाद, समाजवाद, पूंजीवाद, कट्टरवाद मिश्रित अर्थतंत्र और एकतरफा समाजिक उत्थान जैसी अनेक विचारधाराओं, आंदोलनों ने जन्म लिया और दम तोड़ दिया। परन्तु 1925 में प्रारम्भ हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कदम जिधर भी बढ़े तो प्रगति की मंजिलें पार करते चले गए। आज के संदर्भ में भी अगर केवल साम्यवाद से ही संघ की तुलना करें तो सिद्धांतहीन/थोथे विचार चिंतन और सिद्धांतपरक ध्येयनिष्ठ विचारधारा में अंतर समझ में आ जाता है। जब संघ की स्थापना हुई थी तो देश विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए संघर्षरत था। स्वतंत्रता संग्राम कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अपनी जड़ें जमा चुका था। इस महासंग्राम के प्रत्येक क्षेत्र में अपना भरपूर योगदान करने वाले डॉ. हेडगेवार पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अतीत में सभ्यता के शिखर पर पहुंचे विश्वगुरु भारत की परतंत्रता के कारणों पर ध्यान केन्द्रित करके घोषणा की कि जब तक समाज जीवन को चरित्रवान, शक्तिशाली और अपनी राष्ट्रीय पहचान के आधार पर संगठित नहीं किया जाएगा तब तक स्वतंत्रता अर्थहीन और अस्थाई बनी रहेगी। राष्ट्रवाद का रास्ता संघ की स्थापना करके डॉ. हेडगेवार ने स्वतंत्रता संग्राम को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का धरातल प्रदान करने का राष्ट्रीय अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम के सभी पुरोधाओं ने अगर उस समय डा. हेडगेवार की बात समझ ली होती तो देश का विभाजन न होता और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश की दशा और दिशा स्वदेशी चिंतन के अभाव में भटकने न लगती। संघ ने अपनी सामथ्र्य के बल पर देश को उस भटकाव से बचाने में बहुत हद तक सफलता अर्जित की है परन्तु बहुत कुछ रह गया है जिसे दिशा देने में स्वयंसेवक निरंतर जूझ रहे हैं। देश विभाजन से पूर्व संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार सहित सभी स्वयंसेवकों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना भरपूर योगदान देते हुए अपने राष्ट्रीय कर्तव्य को निभाया था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में सम्पन्न हुए सत्याग्रह, जेल यात्रा, स्वदेशी आंदोलन और भारत छोड़ो अभियान इत्यादि संघर्षों में संघ के स्वयंसेवक सदैव आगे रहे। देश विभाजन के पहले और बाद के कालखण्ड में संघ ने अपनी भूमिका को इस देश की राष्ट्रीय पहचान अर्थात हिन्दुत्व के आधार पर सशक्त विस्तार दिया है। हिन्दुत्व के इस धरातल को मजबूत करने के लिए संघ ने अनेक प्रकार के सामाजिक जागृति, सेवा और सुरक्षा के आंदोलन एवं प्रकल्प खड़े किए हैं। आज अपने देश के आधिकांश संगठनों, वर्गों, पंथों एवं क्षेत्रों के लोगों ने संघ द्वारा प्रतिपादित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अर्थात हिन्दुत्व के विचार को स्वीकार किया है। हिन्दुत्व के धरातल पर खड़ा संघ हिन्दुत्व की इसी पृष्ठभूमि को मजबूत बनाने के लिए संघ के स्वयंसेवक स्वयंस्फूर्ति से कार्यरत रहते हैं। भारत विभाजन के समय हिन्दू समाज की सुरक्षा एवं पुनर्वास, कश्मीर हेतु आंदोलन, गोवा मुक्ति संग्राम, पाकिस्तान/चीन के आक्रमणों के समय आंतरिक सुरक्षा, आपातकाल के समय लोकतंत्र की रक्षा, राष्ट्रीय एकात्मता के लिए प्रयास, गोरक्षा, अयोध्या में श्रीराम मंदिर, रामसेतु और हिन्दू आस्था के प्रतीक बाबा अमरनाथ भूमि आंदोलन इत्यादि राष्ट्रीय अभियानों में संघ ने सफल भूमिका निभाई है। धर्म जागरण/परावर्तन, वनवासी चेतना जागरण और सामाजिक समरसता इत्यादि क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवक निर्णायक अभियान चला रहे हैं। संघ के स्वयंसेवकों द्वारा देशभर में 2 लाख से ज्यादा सेवा प्रकल्पों में कार्य किया जा रहा है। स्वास्थ्य सेवा, बाल विकास, छात्रावास, मातृछाया, बाल गोकुलम्, विकलांग सेवा, ग्राम विकास और कृषि संवर्धन इत्यादि क्षेत्रों में अनेक प्रकल्प आरम्भ किए हैं। इनके साथ ही विद्या क्षेत्र में संस्कार, राष्ट्रीयता और सेवाभाव की जागृति जैसे अनुष्ठान भी चल रहे हैं। इसी तरह साहित्य, संगीत और पत्रकारिता जगत को भी संघ के स्वयंसेवकों ने प्रभावित किया है। राष्ट्र की सुरक्षा और समाज की सेवा इन दोनों महत्वपूर्ण मोर्चों पर संघ ने विजय की रणभेरी बजाई है। पाकिस्तान और चीन द्वारा भारत पर थोपे गए पांचों बड़े आक्रमणों के समय साक्षात युद्ध क्षेत्र में जाकर अपने सैनिकों की प्रत्येक प्रकार की सहायता करने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले स्वयंसेवकों ने प्राकृतिक/दैवीय आपदाओं के समय भी राहत कार्यों में योगदान देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बाढ़, भूकम्प और बर्फबारी जैसी आपदाओं से त्रस्त हुए लोगों की निस्वार्थ सेवा करके स्वयंसेवकों ने अपने आदर्श स्वयंसेवकत्व का परिचय दिया है। नित्यसिद्ध राष्ट्रीय शक्ति राष्ट्रोत्थान के प्रत्येक कार्य में स्वयंसेवकों का सदैव अग्रिम पंक्ति में रहना अत्यंत स्वाभाविक होता है। स्वयंसेवक देश के अनुशासित, चरित्रवान, देशभक्त और समाजसेवी नागरिक हैं। अपने विवेक के आधार पर स्वयं की प्रेरणा से राष्ट्र साधना में जुटे हुए स्वयंसेवक राष्ट्र/समाज पर आए प्रत्येक प्रकार के संकट से जूझने के लिए किसी के आदेश का इंतजार नहीं करते। संघ एक नित्यसिद्ध राष्ट्रीय शक्ति है। इस तरह स्वभावत: संघ के स्वयंसेवक प्रत्येक राष्ट्रवादी अनुष्ठान, आंदोलन और अभियान में भाग लेते हैं और राष्ट्रहित के विपरीत होने वाले प्रत्येक कार्य का डटकर विरोध भी करते हैं। अपने देश, समाज और धर्म पर प्रत्येक समय मर-मिटने के लिए तैयार रहने वाले स्वयंसवकों के इस विशेष गुण का आधार, प्रेरणा और क्षमता संघ की हिन्दुत्वनिष्ठ विचारधारा है। सर्वस्पर्शी, सार्वभौम और सर्वग्राह्य हिन्दुत्व क्योंकि भारत की राष्ट्रीय पहचान है इसलिए संघ स्थापना की मूल प्रेरणा, संघ के संवर्धन का आधार और प्रभावशाली परिणामों का कारण भी यही हिन्दुत्व की विचारधारा है। इसी वैचारिक आधार के बल पर संघ के स्वयंसेवकों ने जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद और पंथ की संकीर्ण सीमाओं को मिटाकर प्रखर राष्ट्रवाद का बिगुल बजाने में सफलता प्राप्त की है। प्रत्यक्ष संघ शक्ति के दर्शन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस विस्तृत स्वरूप और वैज्ञानिक कार्यपद्धति को समझने के लिए स्वयंसेवकों द्वारा शुरू किए गए चतुर्दिक समाजसेवी अभियान को समझना पड़ेगा। संघ की दृश्य/अदृश्य शक्ति और सामथ्र्य, राष्ट्रोत्थान के कार्यों में मुख्यत: चार भागों में विभक्त है। प्रथम भाग है संघ की शाखा। शाखा ही संगठन का माध्यम है। समस्त देश में चल रही अनेक शाखाओं के प्रत्यक्ष कार्य से अपने देश और समाज की सेवा करना संघ के कृतिरूप स्वरूप का पहला दर्शन है। संघ के कृतिरूप दर्शन का दूसरा क्षेत्र है संघ का विस्तृत कार्य अर्थात विविध क्षेत्र के संगठन। राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सक्रिय हैं संघ के स्वयंसेवक। विद्यार्थी, मजदूर, किसान इत्यादि प्रत्येक क्षेत्र में अस्तित्व में आए तीन दर्जन से भी ज्यादा संगठन आज अपने यौवन पर हैं। यद्यपि इन संगठनों की नींव और प्रेरणा संघ की शाखा ही है परन्तु इनकी संरचना, कार्य संस्कृति और गतिविधियों में संघ का प्रत्यक्ष हाथ नहीं रहता। आज ऐसे सभी संगठन अपने पांवों पर खड़े होकर अपने-अपने क्षेत्र से संबंधित लोगों की सेवा में जुटे हैं और नए मानक स्थापित कर रहे हैं। संघ शक्ति का विशाल स्वरूप संघ के विशाल स्वरूप का तीसरा क्षेत्र है स्वयंसेवकों द्वारा प्रारम्भ किए गए सेवा के निजी प्रकल्प। इनका संचालन न तो प्रत्यक्ष संघ की शाखा से होता है और न ही विविध क्षेत्र के संगठनों से इनका कुछ लेना-देना है। संघ की विचारधारा के आधार पर चल रहे ऐसे प्रकल्पों में विद्यालय, चिकित्सालय, समाचार पत्र, सेवा अनुष्ठान, मंदिरों की व्यवस्था और रामलीला जैसी धार्मिक गतिविधियों का संचालन इत्यादि शामिल है। अनेक स्वयंसेवकों ने तो अपने रोजगार के साधन भी संघ की वैचारिक पृष्ठभूमि और ध्येय के अनुरूप निश्चित किए हैं। संघ शक्ति का एक बहुत बड़ा हिस्सा संघ के अदृश्य स्वरूप का विस्तार कर रहा है। यह है संघ का चौथा अप्रत्यक्ष परन्तु सशक्त स्वरूप। संघ ने पिछले 85 वर्षों में भारत के प्रत्येक कोने में एक ऐसा राष्ट्रवादी हिन्दुत्वनिष्ठ आधार तैयार कर दिया है जिस पर पांव जमाकर अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संगठन कार्य कर रहे हैं। ऐसे अनेक संगठनों में संघ के स्वयंसेवक न केवल सक्रिय हैं अपितु उनकी संचालन व्यवस्था में भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। संघ के ऐसे लाखों नए और पुराने स्वयंसेवक हैं जिनका शाखा, विविध क्षेत्र और स्वयंसेवकों के निजी प्रकल्पों से कोई सीधा संबंध नहीं है। परन्तु ये स्वयंसेवक अन्य लोगों द्वारा खड़े किए गए सेवा कार्यों में मुख्य भूमिका में रहते हैं। संघ का यह अदृश्य स्वरूप इतना विस्तृत, विशाल एवं प्रभावी है कि आज देश में राष्ट्रोत्थान का कोई भी कार्य संघ के स्वयंसेवकों की भागीदारी की बिना पूर्ण नहीं होता। संघ के बढ़ते कदम अत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना दिवस विजयादशमी पर संघ के स्वयंसेवकों के कृतिरूप दर्शन का मूल्यांकन करते समय संघ के गैर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्वरूप पर ही ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। वैसे भी संघ द्वारा संचालित गतिविधियों का साक्षात दर्शन ऐसे लोग कदापि नहीं कर सकते, जो दलगत राजनीति के तंग जंजाल में फंसे हुए हैं। अपने राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाना संघ का उद्देश्य है और यह उद्देश्य गैरराजनीतिक सांस्कृतिक धरातल पर ही प्राप्त होगा, जिसका आधार हिन्दुत्व है। संघ के स्वयंसेवक इसी साधना में जुटे हैं और अपने कदमों को अंगद के पांव की तरह जमाते जा रहे हैं। आज तो संघ के स्वयंसेवक देश में हो रहे प्रत्येक प्रकार के ठोस व्यवस्था परिवर्तन के प्रतीक बन रहे हैं। भ्रष्टाचार, कालाधन, अलगाववाद और आतंकवाद इत्यादि राष्ट्रघातक खतरों से जूझ रहे समाज को शक्ति देने के काम में अग्रसर हो रहे स्वयंसेवक अपने रास्ते में आने वाली असंख्य राजनीतिक और गैरराजनीतिक बाधाओं को हटाकर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे हैं। संघ विरोधी शक्तियां परास्त हो रही हैं।

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