तम्बाकू और हृदय रोग
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तम्बाकू और हृदय रोग

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Oct 1, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Oct 2011 17:27:20

गत लेखों में पाठकों की जागरूकता के लिए मोटापा और उस पर रोकथाम पर विस्तृत चर्चा की गयी। विश्वास है कि पाठक पूर्व के लेखों से अवगत होकर हृदय सहित शरीर की निरोगता के लिए खान-पान एवं जीवनचर्या में उपयुक्त परिवर्तन करेंगे तथा अनुशासित जीवन जीने का संकल्प लेंगे। प्रस्तुत लेख में तम्बाकू से हृदय को होने वाले खतरे पर चर्चा की जाएगी। हृदय सहित शरीर के विभिन्न अंगों के लिए मोटापा और तम्बाकू – दोनों ही अभिशाप हैं। जिस प्रकार मोटापा “शरीर पर चहुंमुखी दुष्प्रभाव डालता है, उसी प्रकार तम्बाकू भी शरीर के विभिन्न अंगों को बड़ी तेजी से दुष्प्रभावित करता है तथा बहुत जल्दी शरीर को विकारग्रस्त बना देता है। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां को तो तम्बाकू सेवन की शुरूआत के साथ ही निमंत्रण मिल जाता है। पूरे देश की बात करें तो तम्बाकू के विविध उत्पादों की उपलब्धता हर छोटी बड़ी दुकानों पर आसानी से रहती है। कम उम्र के किशोरों से लेकर वयोवृद्धों तक को तम्बाकू के विविध उत्पादों का सेवन करते हुए देखा जा सकता है। तम्बाकू के संदर्भ में समाज में वृहद पैमाने पर कुछ भ्रांतियां फैली हुई हैं और उनका उन भ्रांतियों पर अटूट विश्वास उन्हें तम्बाकू से दूर नहीं कर पा रहा है। लोगों में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि बहुत से धूम्रपान करने वाले व्यक्ति धूम्रपान करने से नहीं मरते, जो ऐसा करते हैं वे बुढ़ापे में मरते हैं, जब उनकी जीने की अवधि पूरी हो जाती है, जबकि इस भ्रांति की वास्तविकता यह है कि लम्बी अवधि तक धूम्रपान करने पर आधे व्यक्तियों की मृत्यु धूम्रपान के कारण होती है तथा आधे जवानी में ही मौत का शिकार बन जाते हैं। उनके जीने की अवधि का 20-25 वर्ष धूम्रपान द्वारा नष्ट हो जाता है। विश्व में एक अनुमान के अनुसार सन् 2030 तक तम्बाकू अपंगता एवं मृत्यु का मुख्य कारण बन जाएगा और 10 मिलियन से अधिक लोग प्रतिवर्ष तम्बाकू सेवन के कारण मर जाएंगे जो संख्या विश्व के कुल क्षय रोग, मातृ मृत्यु, दुर्घटनाओं तथा आत्महत्या आदि से होने वाली मौतों से भी कहीं ज्यादा होगी। वे व्यक्ति जो बाल्यावस्था से ही धूम्रपान करना प्रारम्भ कर देते हैं, उनकी समय से पहले मृत्यु दर धूम्रपान न करने वाले व्यक्तियों से 3 गुना अधिक है। संसार में हर छ: सेंकेंड में एक व्यक्ति की तम्बाकू का इस्तेमाल करने के कारण मौत हो रही है और हर 50 सेंकेंड बाद एक भारतीय की। धूम्रपान हृदय से संबंधित बीमारियों को एक प्रक्रिया के अंतर्गत प्रोत्साहित करता है। यह शरीर के अंदर विद्यमान इंडोथिलियम (लाइनिंग ऑफ ब्लड वेसेल्स) को क्षतिग्रस्त करता है तथा धमनियों में वसा का जमाव बढ़ाने लगता है, थक्का (क्लॉटिंग) तथा लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्राल भी बढ़ने लगता है और हाइ डेन्सिटी लिपोप्रोटीन घटने लगता है और अंत में परिणाम यह होता है कि कोरोनरी आर्टरी का संकुचन शुरू हो जाता है। इस प्रकार हृदय तम्बाकू से होने वाले दुष्प्रभाव की गिरफ्त में आ जाता है। तम्बाकू में विद्यमान निकोटीन हृदय की धड़कन और रक्त चाप को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाता है। एक अनुमान के अनुसार धूम्रपान स्ट्रोक, हृदय रोग तथा नपुंसकता के खतरे को शत प्रतिशत बढ़ाता है तथा निदानरहित हृदय रोग से मृत्यु के खतरे को तीन सौ प्रतिशत बढ़ा देता है। एक शोध के मुताबिक जो व्यक्ति धूम्रपान करता है वह अपने दिल के दौरे के खतरे को तीन गुना बढ़ा लेता है। धूम्रपान करने वाला व्यक्ति स्वयं तो अपने व अपने परिवार की बर्बादी का रास्ता बनाता ही है, साथ-साथ अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषित करता है, जिसके कारण उस प्रदूषित वातावरण में उपस्थित धूम्रपान न करने वाले लोगों को जबरन अनेक जहरीली गैसों को सांस के माध्यम से लेने के लिए बाध्य होना पड़ता है। इन जहरीली गैसों में हाइड्रोजनसायनाएड, सल्फर डाईआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, अमोनिया एवं फार्मल्डीहाइड जैसी खतरनाक गैसों का मिश्रण होता है। आर्सनिक, क्रोमियम, नाईट्रो सामाईन्स, बेन्जोपाइरेन जैसी जहरीली गैसें कैंसर को जन्म देती हैं। बहुत से रसायन निकोटीन, कैडमियम, कार्बन मोनोआक्साइड तो सीधे पुरुष और स्त्री के प्रजनन तंत्र पर प्रभाव डालते हैं। सिगरेट के धुंए में कार्बन मोनोआक्साईड का मिश्रण काफी मात्रा में होता है जो शरीर के ऊतकों तथा हृदय एवं मस्तिष्क में पहुंचने वाले रक्त में मिश्रित आक्सीजन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। एक धूम्रपान करने वाला व्यक्ति जब सिगरेट का धुंआ छोड़ता है तो उस धुंए को एक धूम्रपान न करने वाला व्यक्ति अपनी सांसों के माध्यम से लेने के लिए बाध्य होता है तो इसे “सेकेण्ड हैण्ड स्मोकिंग”, “पैसिव स्मोकिंग” या “इनवोलून्टरी स्मोकिंग” कहा जाता है। “सेकेण्ड हैंण्ड स्मोक” से होने वाले परिणाम अत्यंत घातक हैं। हृदय रोग, फेफड़े से सम्बन्धित रोग एवं नेसल साइनस कैंसर से होने वाली मृत्य “सेकेण्ड हैण्ड स्मोक” से जुड़ी हुई हैं। महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान “सेकेण्ड हैण्ड स्मोक” गर्भ में पल रहे बच्चे की वृद्धि में बाधा, गर्भ में भ्रूण विनाश एवं शिशु की अकाल मृत्यु का सीधा कारण बनता है। घर के अंदर एक व्यक्ति द्वारा पी जा रही सिगरेट के धुंए से घर का वातावरण पूरी तरह से प्रदूषित हो जाता है, जिसके कारण आंख, नाक, सिरदर्द, गले, खांसी एवं श्वास प्रणाली पर दुष्प्रभाव पड़ता है। “सेकेण्ड हैण्ड स्मोक” बच्चों के स्वास्थ्य पर सबसे बुरा प्रभाव डालता है। जिनसे ब्रांकाइटिस, न्यूमोनिया, दमा, बहरापन, सफेद रक्त कणिकाओं का लिम्फोमा कैंसर एवं ब्रेन ट्यूमर जैसी खतरनाक बीमारियां मुख्य हैं। बच्चों के फेफड़े का आकार छोटा होने और उनका शारीरिक तंत्र पूरी तरह से विकसित न होने के कारण “सेकेण्ड हैण्ड स्मोक” से उनके श्वसन तंत्र पर बुरा प्रभाव एवं कान के संक्रमण की संभावना अधिक होती है। बच्चों की श्वसन क्रिया वयस्क से तीव्र होने के कारण वे अपने वजन के अनुसार प्रति पौण्ड हानिकारक गैसों का अवशोषण करते हैं। तथ्यों से यह स्पष्ट है कि तम्बाकू अकेले ही एक नहीं बल्कि अनेक बीमारियों का जनक है। धूम्रपान-रियुमेटिक हार्ट डिजीज, इस्चिमिक हार्ट डिजीज, पल्मनरी हार्ट डिजीज, कार्डियक अरेस्ट, हाइपरटेंशन, ऑर्टिशयल एन्यूरिज्म, एथेरोस्क्लेरोसिस, सेरीब्रोवेस्कुलर डिजीज के खतरे को बढ़ा देता है। अत: समय रहते यदि व्यक्ति तम्बाकू सेवन पर नियंत्रण कर लेता है कि इससे होने वाले खतरे कम हो जाते हैं।

(लेखक दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य एवं शिक्षा मंत्री रहे हैं)

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