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आज गोरक्षा के लिए हमारे सारे किए गए प्रयासों का मूल्यांकन करने का समय आ गया है। इसमें कोई शंका नहीं कि बहुत सारे उपाय करने के साथ-साथ गोरक्षा के लिए हमने बहुत बड़े बलिदान भी दिए हैं। 7 नवम्बर, 1966 को महा गोरक्षा आन्दोलन में अनगिनत संख्या में संत मारे गए, मरे और अधमरे स्वयंसेवकों को रिज पहाड़ी पर ले जाकर पेट्रोल डालकर जला दिया गया। इसके पश्चात् भी अनेक उपाय हुए, सभाएं भी हुईं और विशाल गो-यात्राएं निकलीं, परन्तु गोवंश के विनाश के लिए कत्लखानों की संख्या निरंतर बढ़ती ही गई और अवैध तरीकों से गायें कटती भी रहीं। पड़ोसी देशों में तस्करी के माध्यम से लाखों की संख्या में गाय भेजी जा रही हैं। जब गायों से लदा एक-आध ट्रक बहुत प्रयासों के पश्चात पकड़ा जाता है तो उसका ब्योरा हम पत्र-पत्रिकाओं में छापकर अपने आपको गौरवशाली अनुभव करते हैं। परन्तु इस सत्य को भी मानकर चलें कि एक ट्रक पकड़ा गया तो 99 ट्रकों में लदी गाय हमारे भारत की सीमाओं से ले जाकर काटी जाती हैं। इस कड़वे सत्य को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी गोरक्षा की नीतियों को निश्चित रूप से बदलना पड़ेगा, यदि इसी प्रकार चलता रहा तो अगले पांच वर्षों में हमारा गोधन आज से आधा रह जाएगा।
एक लाभकारी योजना
एक योजना है जिसके माध्यम से गाय शत-प्रतिशत बच सकती है- वह यह कि गाय के उत्पादों का विशेषकर गोबर और गोमूत्र का व्यापक उपयोग, जिससे गाय पालने वाले को अच्छा खासा लाभ हो और गाय के उत्पादों का लाभकारी प्रयोग भी हो।
उद्योगपतियों के पास उद्योग चलाने की बड़ी सुन्दर कला है। बहुत से उद्योगपति गाय प्रेमी हैं और गाय की दुर्दशा को जानते भी हैं। वे अगर गाय के पंचगव्य के पदार्थों का ठीक प्रकार से उद्योग लगाएं तो उससे उन्हें आर्थिक लाभ तो होगा ही, उनकी कार्यकुशलता के कारण किसान भी खुशहाल हो सकते हैं और गाय भी बच सकती है।
गाय के उत्पादों से बनने वाली हर वस्तु-बीमारियों से लड़ने वाली क्षमता की दवाएं, त्वचा को सुन्दर और मुलायम बनाने की वस्तुएं जैसे मुखारबिन्द पर लगाने की क्रीम, आफ्टर शेव लोशन, नहाने का साबुन और कई प्रकार की वस्तुएं हैं जैसे फिनाइल, स्वास्थ्य वर्धक पेय इत्यादि। यदि इनका उत्पादन उद्योगपति करें और सारे देश के गो-प्रेमी व समाज हर पर्व पर इन्हें उपहार के रूप में बांटे तो गाए के पंचगव्य का करोड़ों रुपए का व्यापार हो सकता है। हमारे उद्योगपति भी इन वस्तुओं का ही लेन-देन उपहार के रूप में करें। हमें प्रण लेना होगा कि जो-जो वस्तुएं पंचगव्य से बन सकती हैं, गुणवत्ता की दृष्टि से शरीर के लिए गुणकारी हैं, का ही प्रयोग करें। इसके लिए उद्योगपति उद्योग लगाएं और अपने मानस के इन विचारों को बदलें कि विदेशी उद्योगों में बनाई हुए वस्तुएं अधिक लाभकारी हैं। उन्हें स्मरण रहे कि देश में बढ़ते हुए कैंसर के रोगियों का कारण विदेशी कम्पनियों की वस्तुओं में रासायनिक और अन्य हानिकारक तत्वों का बहुत बड़ा हाथ है।
गाय उत्पादों के उपहार दें
यह प्रयास तेज किए जाने की आवश्यकता है कि पंचगव्य से बनी वस्तुओं का उद्योग शुरू हो और दीपावली व अन्य पर्वों पर और वैसे भी एक-दूसरे से मिलते समय उपहारों का लेन-देन होता है, वह गाय के पंचगव्य से बनी हों। हमारी परम्पराओं में हम अक्सर किसी सम्बंधी या मित्र को मिलने जाते हैं तो मिठाई का डिब्बा या मेवा ले जाते हैं। इसकी बजाय गुणकारी गो पदार्थ के लेन-देन की प्रथा हो तो गाय तो बचेगी ही, देश में आर्थिक उन्नति भी होगी। इससे किसान गोबर और गोमूत्र को बेचकर भी आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकेगा। अपनी गाय को किसी भी कीमत पर नहीं बेचेंगे क्योंकि किसी भी आयु की गाय पंचगव्य पदार्थों को बेचकर उसके परिवार का पालन करेगी। गोमूत्र और गोबर की इतनी मांग हो जाएगी कि उसी को बेचकर गोशालाएं और किसान अपने परिवार की जीविका अच्छे ढंग से चला सकेंगे। बहुत छोटे स्तर पर यह कार्य प्रारम्भ हो चुका है और इसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परन्तु इस समय छोटे स्तर से होने पर इसका व्यापक असर नहीं हुआ है। यह तब होगा जब उद्योगपति उन स्थानों पर उद्योग लगाएं जहां गोशालाएं हों, ताकि पंचगव्य की वस्तुएं बड़ी आसानी से उपलब्ध हों, इससे गाय उन उद्योगपतियों को आशीर्वाद देगी जिससे उनके उद्योग पनपेंगे, समृद्धि के साथ-साथ घर में शांति व आरोग्यता भी आएगी जो एक समर्थ भारत के सुदृढ़ समाज की स्थापना करने में सहायक होगी।
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